Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
भारत और भारत में जाति व्यवस्था भारतीय जाति व्यवस्था को किस प्रकार से खत्म किया जाए. India and Indian caste system
जाति प्रथा का प्रादुर्भाव प्राचीन काल की वर्ण व्यवस्था से माना जा सकता है पहले चार ही वर्ण हुआ करते थे इन वर्णो के नाम और कार्य निम्न वत है ब्राह्मण: - वे लोग ब्राह्मण कहलाए जो शास्त्रों में पारंगत होते थे और धार्मिक एवं विद्यार्जन के कार्यों के प्रति समर्पित रहते थे. क्षत्रिय: - वे लोग क्षत्रिय कहलाये जिन पर भू प्रदेश की रक्षा का भार रहता था। वैश्य: - वे लोग वैश्य कहलाए जिन पर व्यापार और वाणिज्य का कार्य करते थे. शुद्र: - उक्त कार्यों को छोड़कर शेष कार्य करने वाले लोग शूद्र कहलाए उनका कार्य वस्तुओं का निर्माण करना एवं ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य वर्गों की सेवा करना था. धीरे-धीरे यह वर्ण विभिन्न जातियों और उप जातियों में बढ़ गया कालांतर में जाति व्यवस्था वंशानुगत हो गई अर्थात ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला स्वता ही ब्राह्मण हो जाता था और यही बात अन्य तीन वर्गों पर भी लागू होती थी इस प्रकार व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निश्चित होने लगी। जाति प्रथा के दोष: - (1) जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष कुछ जातियों को उच्च और कुछ को निम्न क...