Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
मानव जीवन के दिशा निर्देशों का कार्य उसके जीवन मूल्य करते हैं जीवन मूल्य वस्तुतः मनुष्य के जीवन के रडार है जीवन मूल्य वसुता मनुष्य का मूल्य निर्धारण करते हैं मनुष्य की जीवन पद्धति को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मनुष्य अपने व्यक्तित्व का निर्माण किन मूल्यों के आधार पर कर रहा है.
प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन सुखी और आनंदमय बनाएं या प्रकृति का भी नियम है तथा मानव का जन्म जात वरदान भी है परंतु अनेकानेक व्यक्ति प्राकृतिक एवं परमात्मा के ईश्वरदान से वंचित दिखाई देते हैं इनके लिए जीवन एक गंभीर समस्या बन जाता है इसका एक ही कारण रहा है उनके जीवन का रडार अथवा जीवन मूल्यों का निर्धारण एवं निर्देशन दोषपूर्ण रहता है वह व्यस्त थे ही कॉल कर एवं ईश्वर को दोष लगाते हैं.
जीवन जीने के लिए कर्म करना अनिवार्य है. कर्म करने के लिए व्यक्ति को हर पल और हर पल पर अपने मारकंडे धाम करना होता है इसके लिए व्यक्ति के मन में अंतःकरण में कतिपय मापदंडों का होना अनिवार्य है मापदंडों का निर्धारण विवेक आश्रित रहता है लोग किन कामों को उचित अच्छा तथा सत्य साबित समझते हैं और किन कामों को अनुचित बुरा असत्य साबित समझते हैं अपने मापदंडों के आधार पर ही हम जान सकते हैं हमारे लिए क्या मूल्यवान है और क्या मूल्य एवं महत्वहीन है प्रलोभन भाई आलस्य अथवा किसी कारणवश निर्धारित मूल्यों को छोड़ देने का अर्थ यह होता है कि हम दिग्भ्रमित हो जाते हैं और हमारा जीवन निर्देश से बन जाता है .
पुरुषार्थी लोग मूल्यों का निर्धारण स्वविवेक द्वारा करते हैं और उनके अनुसार जनता पूर्वक जरा करते हैं हो सकता है कि किसी व्यक्ति की विवेक वृद्धि पूर्णतया विकसित ना हो उसको आज स्वस्थ रहना चाहिए कि जीवन में प्रगति करने के साथ विवेक का विकास होना चलता है और तदनुसार जीवन का पथ प्रशस्त होता जाता है महात्मा गांधी सादृश्य महान व्यक्तित्व के धनी प्राया यह कह दिया करते थे कि मेरे सामने एक कदम अथवा एक सीढ़ी स्पष्ट है मूल्य के अनुसार आचरण करने वाला व्यक्ति विवेक के विकास के उच्च से उच्चतर स्तनों को स्पर्श करते हुए अपने निर्धारित मार्ग पर दृढ़ता पूर्वक अग्रसर होता चला जाता है.
पुरुषार्थी नियम दुर्बल इच्छाशक्ति वाले जन अपने जीवन के मूल्यों का निर्धारण करते हुए संकोच करते हैं अन्य व्यक्तियों के मूल्यों को अपनाकर में मूल्य निर्धारण की समस्या से छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं स्पष्ट है कि इन मूल्यों के प्रति ना तो इनकी आस्था होती है और ना ही इनके द्वारा निर्देशित दिशा का ज्ञान ही उनको होता है इनकी दशा उस परीक्षार्थी के समान बन जाती है जो परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए नकल के भरोसे रहता है जिसकी नकल की जाए यदि वह गलत हो तो यह गलत उपस्थित हो तो शादी का भविष्य एवं जाता है उसके स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है उनका जीवन एक ऐसी बुद्धि बन जाता है जाता है जिसको जिसको समझा ना किसी के बस की बात नहीं है उनके बस की बात नहीं है.
जो व्यक्ति अपने जीवन मूल्यों का निर्धारण नहीं करता है उसकी दशा उस घुड़सवार की भांति हो जाती है जिसने घोड़े की लगाम किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में सौंप दी है गंतव्य की ओर ना जाने वाला व्यक्ति सफल एवं सुखी नहीं हो पाता है इस गतिविधि की तरह दी होती है कि वह व्यक्ति अपने दुखों एवं अपनी असफलताओं के लिए अन्य व्यक्तियों को उत्तरदाई मानता है मानो ऐसा करने से उसका दुख कुछ कम या हल्का हो जाता है ऐसे व्यक्ति भूल जाते हैं कि हमारे दुर्भाग्य का दायित्व किसी का हो परंतु हानियां बर्बादी हमारी होती है.
हमको जीवन में ऐसे अनेक व्यक्ति मिलते हैं जो अपने तर्कों द्वारा अनुशासनहीनता अनैतिक देशद्रोह भ्रष्टाचार अनाचार आदि को न्याय पूर्ण एवं उचित सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं जो व्यक्ति उनके वितरित मूल्यों संबंधित तर्कों द्वारा प्रभावित होकर अपने जीवन पथ पर चल पड़ता है वह यदि आना पीके क्षेत्र समस्या में उलझी जाए तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है ऐसे व्यक्ति तत्कालिक समस्याओं के समाधान के लिए चाहे जिस मार्ग पर चले आते हैं और मटका और संतोष एवं सफलता का जीवन जीने को विवश हो जाते हैं मूल्य हीनता के बियाबान में भरत ने वाले व्यक्ति की दशा बहुत कुछ कहानी के अफीम जी की तरह बन जाती है.
बचपन में माता-पिता मूल्यों का ज्ञान देते हैं उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलने में कल्याणम भटकाव की संभावना नहीं होती है परंतु आगे चलकर अनेक वाला उन मूल्यों को अस्वीकार कर देते हैं उनके इस आचरण के मूल्य में प्राया दो कारण रहते हैं माता-पिता एवं गुरू जन के प्रति पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास ना होना तथा तार्किक बुद्धि का प्राधान्य वे यह कहने लगते हैं कि मूल परिवर्तित होते आते हुए आवश्यक नहीं है कि प्राचीन मूल्य सदैव बनी रहे फलता विश्वा विवेक अनुसार नवीन मूल्य निर्धारित करने के पूर्व ही माता-पिता पुस्तक ज्ञान द्वारा प्राप्त मूल्यों को तिलांजलि दे देते हैं.
हमें स्मरण रखना चाहिए कि मनुष्य की मौलिक प्रतियां उनके स्थाई भाव उसके जीवन के लक्ष्य आदि परिवर्तित रहते हैं अतः मनुष्य जाति के मौलिक मूल्य में परिवर्तन आना कदापि अनिवार्य नहीं हो सकता है मौलिक मूल्यों के अनुरूप आचरण करने में असमर्थ व्यक्ति के मूल्यों के संदर्भ में परिवर्तनशील ताज की बातें करते हैं मूल्यों के परिवर्तन की बात कहकर समस्याओं से विमुख होने का प्रयत्न शुतुरमुर्ग नीति से अधिक कुछ नहीं मूल निर्धारित करने वाला व्यक्ति संशय की वृद्धि से मुक्त होकर कैसा भी निर्णय लेने में विलंब नहीं करता है और वह लाइन क्लियर मिलने वाली रेलगाड़ी की तरह अपने जीवन पथ पर अग्रसर होता चला जाता है हमें स्मरण रखना चाहिए कि हमारे जीवन का मूल्य निर्धारण मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए व्यक्ति की निर्णय लेने की प्रक्रिया का सरलीकरण करते हैं और ऐसी उर्वरक माता तैयार करते हैं जहां आप सफल हो समृद्ध हो सके.
Comments