सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
सरकार के नजरिए से देखें तो कृषि कानून से फायदे नजर आते हैं (krishi Kanoon ke fayde sarkar Ke najriya se)
क्रांतिकारी कृषि कानून कुछ समय पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खेती किसानी की स्थिति को प्रभावी तरीके से ठीक करने और एक देश एक राशन कार्ड की तर्ज पर एक राष्ट्र एक बाजार की अवधारणा को मूर्त रूप देने के मकसद से संसद से पारित तीन कृषि सुधार विधेयकों को मंजूरी दी यह विधेयक किसानों पर व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020 मूल आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक 2020 तथा आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 इन कानूनों का उद्देश्य देश की कृषि व्यवस्था में बदलाव लाना और किसानों की आय बढ़ाना है नए विधेयक में किसी भी उपज के लिए बुवाई से पहले समझौता करने का प्रावधान है इसके अनुसार किसानों को कृषि उपज के मूल्य का आश्वासन मिल सकेगा और किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकेगा.
नए कानून का उद्देश्य किसानों को अतिरिक्त आय उपलब्ध कराने के लिए कृषि उपज विपणन समिति मंडी के अतिरिक्त अपनी उपज बेचने का विकल्प प्रदान करना भी है या मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर खरीद प्रणाली के अतिरिक्त इन कानूनों का उद्देश्य देश की कृषि व्यवस्था में बदलाव लाना है और किसानों की आय बढ़ाना है दरअसल इन विधायकों की आवश्यकता गत तीन दशकों से सतत महसूस की जा रही थी वास्तव में नए बने कृषि कानूनों के पहले तक किसानों की यह मजबूरी थी कि उन्हें अपने सभी उत्पादों को मंडी में ही बेचना होता था मंडी से बाहर बेचने पर उन पर कानूनी कार्रवाई हो सकती थी बल्कि एक प्रांत से दूसरे प्रांत तक अपने उत्पाद ले जाने पर उनसे अच्छा खासा टैक्स वसूला जाता था अब यह सभी बाधाएं खत्म कर दी गई हैं इन कानूनों के बाद कृषि उत्पादों के बाजार से एक झटके में उन बिचौलियों और अतिथियों का सफाया हो जाएगा जो किसान का शोषण करते रहे हैं इसलिए यह कानून वास्तव में क्रांतिकारी है और आने वाले वर्षों में इनका बेहतर परिणाम भी देश को देखने को मिलेगा.
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य अधिनियम 2020:
: किसान उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सुविधा अधिनियम 2020 के प्रावधान किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने और खरीदने की अनुमति देते हैं अब किसानों का अपना उत्पाद बेचने के लिए एपीएमसी यानी कृषि मंडियों तक सीमित रहने के लिए मजबूर नहीं होना होगा कानून बनाने के बाद राज्य की मंडी या या व्यापारी किसी प्रकार की फीस जलेबी नहीं ले पाएंगे ऐसे में निश्चित तौर पर इस विधेयक का विरोध में ही व्यापारी है कमीशन एजेंट करेंगे जिनके लिए कृषि मंडी कमाई का अहम जरिया है नए कृषि कानूनों से गिनती के ही कुछ राज्यों में किसानों की एक खास लॉबी का पाए क्योंकि मंडी व्यवस्था के तहत सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले गेहूं और धान का करीब 80% हिस्सा यही लॉबी भेजती है.
उल्लेखनीय है कि देश के किसानों की संख्या करीब 16 करोड़ और कृषि मंडियों में किसानों का मैच 4% अनाज ही बिकता है बावजूद इसके मंडी व्यवस्था को मंडियों से अधिकाधिक लाभान्वित होने वाले किसान यह माहौल बनाने में तुले हैं कि मौजूदा कानून किसानों के विरोध में है मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान अधिनियम 2020 में किसी भी उपज के लिए बुवाई से पहले समझौता करने के प्रावधान है इसके अनुसार किसानों को कृषि उपज के मूल्य का आश्वासन मिल सकेगा
तीसरे विधायक आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020:
असीमित भंडारण का विकल्प देता है पिछली सदी के पांचवें दशक में जब अनाज की और किल्लत पैदा हो गई थी तब आवश्यक वस्तु कानून 1955 लागू किया गया था लेकिन अब सभी प्रकार के अनाज दलहन व तिलहन और खाद्य तेलों तथा प्याज आलू को आवश्यक वस्तु अधिनियम की परिधि में बाहर कर दिया गया अब किसान अपने उत्पादों का भंडारण कर सकते हैं और अपने पसंद के खरीदार को भेज सकते हैं यह केंद्र सरकार को कुछ कृषि उत्पादों के नियमन हुआ उनके भंडारण की सीमा तय करने का अधिकार प्रदान करता है नया कानून आने के बाद केंद्र सरकार युद्ध सूखा अप्रत्याशित मूल वृद्धि व प्राकृतिक आपदा की स्थिति में आवश्यक वस्तुओं का नियंत्रण करती रहेगी शीघ्र नाशवान वस्तुओं सब्जियों की कीमतों में 100% या उससे अधिक की असाधारण वृद्धि तथा गैर सीखना सुभान वस्तुओं की कीमतों में 50% या उससे अधिक की वृद्धि पर सरकार इनके भंडारण की सीमा निर्धारित कर सकती है.
नए कानूनों का उद्देश्य किसानों को अतिरिक्त आय उपलब्ध कराने के लिए कृषि उपज वितरण समिति एपीएमसी मंडी के अतिरिक्त अपनी उपज बेचने का कोई विकल्प देना है या मौजूदा व्यवस्था न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी खरीद प्रणाली के अतिरिक्त होगा इससे किसानों की आय में स्थिरता आएगी इन कानूनों से ऐसा माहौल तैयार होगा जिसमें किसान और व्यापारी को कृषि उपज खरीदने और बेचने की आजादी है इससे किसानों को अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे और उनकी बाजार लागत घटेगी इन प्रावधानों से किसानों को अपनी उपज के बेहतर दाम मिल सकेंगे.
सरकार द्वारा कृषि में निवेश को बढ़ावा देने आधुनिकीकरण करने उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि पदार्थों को बेचने को प्रोत्साहन के लिए निजी कंपनियों की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करना भी एक उल्लेखनीय पहल कही जा सकती है हालांकि यह सीमित रूप से कुछ राज्यों में पहले भी थी साथ ही कंपनियों द्वारा किसानों को उनके उत्पाद की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि के लिए बीज खाद आदि की खरीद और आधुनिक तकनीकी के उपयोग के लिए अनुबंध के अंतर्गत आर्थिक सहायता फसल की बुवाई के पूर्व आपसी सहमति से निर्धारित मूल्य पर फसल तैयार होने पर निर्धारित मात्रा में खरीदने की अनुमति दी गई है एक वैकल्पिक व्यवस्था है वर्तमान में प्रचलित वितरण व्यवस्था भी चलाई जाएंगी और व्यवस्थाएं भी चलती रहेगी.
किसानों की आशंका है:
सदन में पारित इन कृषि विधायकों को लेकर किसानों के मन में कई तरह की आशंकाएं हैं और वर्तमान में उग्र किसान आंदोलन पंजाब हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में केंद्रित है जहां मंडियां बहुत ताकतवर है इन राज्यों में मंडियों के जरिए ही सबसे ज्यादा खरीद होती है और मंडियों पर लेवी के जरिए राज्य सरकारों को काफी राज्यों से मिलता है लेकिन यदि सरकार किसानों की शंकाओं का समाधान कर दे तो यह कानून किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है पहला किसान सरकार में बैठे उच्चाधिकारियों के विचार से सहमत नहीं है कि उदारीकरण के इस दौर में मौजूदा मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य की वजह से बाजार की स्वाभाविक गति होती है और सरकार के वित्तीय संसाधनों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से आधारभूत ढांचे के विकास पर हो सकने वाली सार्वजनिक निवेश में कमी आती है आर्थिक विकास की दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है हाल ही में रिजर्व बैंक की रिपोर्ट दोहराई गई है कि इसलिए किसान को डर है कि कहीं वर्तमान मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली खुली अर्थव्यवस्था में अवगत करा दिया जाए लेकिन यहां यह उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित कर राज्य सरकार चाहे तो अपने बजट से किसानों की उपज पर बोनस के रूप में अधिक मूल्य भी दे सकती है छत्तीसगढ़ में ऐसी व्यवस्था लागू है.
यहां पर प्रसंग वश एमएसपी के वास्तविक तस्वीर का भी उल्लेख करना प्रासंगिक होगा उल्लेखनीय है कि बहुत थोड़े से और खासकर बड़े किसान ही एमएसपी व्यवस्था का लाभ उठा पाते हैं केवल 25% किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानते हैं जिनमें से भी केवल 6% ही इस नीति का फायदा उठा पाते हैं वह 2018 19 में केवल 12% धान उत्पादक किसान ईएमएसपी पर सरकारी खरीद व्यवस्था का फायदा उठा पाए थे वर्ष दो हजार अट्ठारह उन्नीस के जो सरकारी आंकड़े उपलब्ध है उनके मुताबिक देश के कुल आठ करोड़ धान उत्पादक किसानों में से 9700000 किसानों के धान खरीद सरकारी खरीदी पर की जा सकती है इनमें से अलग-अलग राज्यों के किसानों की भागीदारी में जबरदस्त अंतर दिखाएं पंजाब और हरियाणा के 70 किसानों का फायदा मिला लेकिन बाकी राज्यों के किसान बहुत पीछे नजर आते हैं अन्य प्रमुख धान उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के पश्चिम बंगाल के साथ का फायदा उठा सकें.
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि एमएसपी पर फसलों की खरीद के लिए बनी मंडी व्यवस्था का देश के ज्यादातर किसानों के लिए कोई मायने नहीं है इस प्रकार कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का तगड़ा विरोध मुख्यता दो राज्यों पंजाब और हरियाणा में केंद्रित होने का कारण स्पष्ट है कि दूसरा सरकार की ओर से किए गए दो Y2 स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करने और किसानों की आय दोगुना करने का भी अनुशासन प्रणाम अभी सामने नहीं आया जिससे किसानों के विश्वास में भारी कमी आई है तीसरा अनुबंध खेती के संबंध में किसानों द्वारा यह संख्या व्यक्त की जा रही है कि इससे एक दिन में उनकी भूमि एग्रो बिजनेस कंपनियों के हाथों में चली जाएगी जबकि भारत की वैज्ञानिक व्यवस्था के अंतर्गत की कॉपी तथा गानों को छोड़कर कोई भी पार्टनरशिप फर्म की स्वामी हो सकती और ना ही खेती कर सकती है भारत में नहीं है..
इसलिए सरकार की ओर से कुछ ठोस पहल कर्मियों की दरकार है सर्वप्रथम तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसान का कानूनी अधिकार बनाना होगा दूसरे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए तीसरे वर्तमान मंडी व्यवस्था को ना केवल चालू रखा जाए बल्कि पहले की अपेक्षा अधिक पारदर्शी और कुशल बनाया जाए चौथे संविदा खेती के करार का तैयार सुधा मॉडल मसौदा सरल और स्थानीय भाषा में हो ताकि किसानों से समझ सके पांचवे संविदा कृषि से उपजे विवादों को सुलझाने के लिए सरल और उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवस्था की जाए जो निर्धारित समय सीमा में वादों का निस्तारण करें ऐसे प्रभावी उपायों से किसानों की आशंकाओं को काफी हद तक दूर किया जा सकता है यह भी गौर करने योग्य की मंडियों तक पहुंच की समुचित व्यवस्था और उपज के भंडारण का मुद्दा आधारभूत संरचना से जुड़ा है और आधारभूत संरचना तैयार करने के लिए भारी निवेश की जरूरत होती है जिसके लिए राज्य सरकारें कतराती रही है इसलिए यहां पर निजी निवेश की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता है और जिसके लिए कृषि सुधार जरूरी है.
कांग्रेस शासित राज्यों में केंद्रीय कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिए विधि पहल
पंजाब देश का ऐसा पहला राज्य बना है जिसने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनों कृषि सुधारों को निष्प्रभावी बनाने के लिए विधानसभा में निम्नलिखित विधेयक पारित कर दिया है
( 1). कृषकों का उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य संवर्धन एवं सुविधाएं विशेष प्रावधान तथा पंजाब संशोधन विधेयक 2020
( 2): मूल आश्वासनों पर ऐसी सेवा सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता विशेष प्रावधान तथा पंजाब संशोधन विधेयक 2020
( 3): आवश्यक वस्तु पंजाब संशोधन विधेयक 2020
इन विधायकों के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित प्रकार हैं
केवल गेहूं एवं धान को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही ट्राई किया जाने की गारंटी यदि कोई भी व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर गेहूं को खरीदना है या भेजता है तो 3 वर्ष तक के कारावास की सजा अन्य कोई भी कृषि जिस इस विधेयक से अच्छादित नहीं है.
राज्य में कहीं भी किसी निजी व्यापारी या कंपनी द्वारा किसानों से क्रय किए गए उत्पादों पर राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार.
असाधारण परिस्थितियों में पंजाब राज्य सरकार को कतिपय फसलों के उत्पादन आपूर्ति तथा वितरण उनकी भंडारण सीमा निर्धारित करने का अधिकार होगा.
पंजाब कृषि उत्पाद बाजार अधिनियम के प्रावधान यथावत लागू होंगे.
क्योंकि इन्हें कानूनों से संबंधित तीन कानून केंद्र सरकार द्वारा पारित और अधिसूचित किए जा चुके इसलिए इन विधेयकों पर राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हो जाने पर इन्हें राष्ट्रपति के अनुमोदन भेजा जाना एक कानूनी बाध्यता है वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव प्रतीत नहीं होता है इसलिए इन विधायकों के पंजाब विधानसभा में पारित होने के निहितार्थ केवल और केवल इतना है कि सत्तारूढ़ कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार अकाली दल और आप तीनों ही दल राज्य के कृषि को विशेष रूप से बड़े कृषकों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वही किसानों के सच्चे हितैषी है केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसानों के हितों के विरुद्ध कार्य कर रही है.
पंजाब सरकार की तर्ज पर ही राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने 2 नवंबर 2020 को राज्य विधानसभा में केंद्रीय कृषि कानून को निष्प्रभावी बनाए जाने से संबंधित तीन विदेश कर दिए हैं.
छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा ने भी 28 अक्टूबर 2020 को केंद्र सरकार के कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिए पंजाब विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों की तर्ज पर 3 विधेयक पारित कर दिए हैं.
अतः इन तीनों ही राज्यों के विधायकों को राज्यपालों से मंजूरी लेने के बाद राष्ट्रपति से भी मंजूरी लेनी होगी.
दृष्टिकोण:
निष्कर्ष रूप में कृषि सुधार वास्तव में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएंगे जो कि छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए अनिवार्य किसान अब मंडियों का ही मोहताज नहीं रह गया है अब किसानों को सौदेबाजी की क्षमता बढ़ेगी जिससे वे अपने उत्पाद की बेहतर कीमत हासिल कर सकेंगे साथ ही राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी इनाम व्यवस्था से किसानों की दूसरे बाजारों में भी पहुंच बढ़ेगी देश भर की मंडियों में उत्पादों की हर समय सटीक कीमत की जानकारी के साथ छोटे किसान अपने उत्पादों के लिए बेहतर सौदा कर सकेंगे इसमें दो राय नहीं कि आजादी के 73 वर्ष बीत जाने के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है एक सर्वे के मुताबिक देश में लगभग 40% किसान आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं खेती किसानी का सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में 16% और रोजगार उपलब्ध कराने में 49% योगदान है एक अनुमान के अनुसार भारत में शक्ल क्षेत्र लगभग एक 10 से भी अधिक ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है आज भी घाटे का सौदा होने के बावजूद खेती किसानी आजीविका प्रदान करने पलायन रोकने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने गरीबी कम करने एवं विकास की रफ्तार को सुचारू बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रही है बहुत सारे उद्योगों जैसे शक्कर खाद्य तेल कपड़ा आदि का आधार भी कृषि ही है.
किसानों की सबसे बड़ी समस्या उन्हें उनकी फसल का उचित कीमत नहीं मिलना है मंडियों में वैश्विक बाजार होता किसानों की पहुंच नहीं है फसल कम हो या देख दोनों ही स्थितियों में उनके लिए अच्छी नहीं है किसानों के साथ उपभोक्ता को भी फसलों के बंपर पैदावार का लाभ नहीं मिल पाता बेबी हमेशा महंगी दरों पर अनाज खरीदने के लिए मजबूर होते हैं इसके अलावा भंडारण की समुचित व्यवस्था की कमी गांव में बुनियादी सुविधाओं सड़क बिजली पानी आदि का अभाव सभी किसानों को बैंक से ऋण नहीं मिल पाना आदि किसानों की बदहाली के बड़े कारण हैं देश में भूमिहीन किसानों की बड़ी संख्या है जिन्हें भूमि नहीं होने के कारण बैंकों से ऋण नहीं मिल पाता है ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकार बिचौलिया कालाबाजारी और मुनाफाखोरी की वजह से किसानों को उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिल पाती है फसलों की कीमत मांग आपूर्ति के आधार पर तय होती है लेकिन गांव और मंडियों में ऐसा नहीं हो रहा है.
बिचौलियों महाजन कारोबारी आदि जमाखोरी और कालाबाजारी की मदद से फसल की कीमत को अपने फायदे के लिए कम या ज्यादा करते हैं अमूमन किसान मंडी तक पहुंच नहीं पाते हैं गांव के साहूकार या बिजोलिया गांव में ही अनाजों की सस्ती कीमत में खरीद लेते आर्थिक तंगी की वजह से गांव या निकटतम बाजार में किसानों को अपनी फसल तुरंत भेजनी पड़ती है जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि एमएसपी का फायदा केवल 6% किसानों को ही मिल पाता है इतना ही नहीं केवल एक तिहाई किसानों को यह प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में पता दो तिहाई किसानों ने किसान काल सेंटर से संपर्क ही नहीं किया है ऐसी स्थिति में सरकार किसानों की समस्याओं पर भी जाना चाहिए और सरकार ने उक्त तीनों में इन सारी समस्याओं पर फोकस करते हुए उनके समाधान की दिशा में कदम उठाया है यहां इस पर भी विचार करना जरूरी है है कि जब एक छोटे छोटे उद्योगपति को भी अपने उत्पादों की कीमत तय करने का हक है तो हमारे देश में कृषि बाजार को इतनी बारीकी से डिजाइन किया गया है कि देश में अधिकांश उत्पादों की कीमत का निर्धारण स्वयं करते हैं तो फिर हमारे देश के अन्नदाता किसान को यह क्यों नहीं मिलना चाहिए कि उनकी अपने उत्पाद के मूल्य निर्धारण खास भूमिका होनी चाहिए.
इतिहास में पहली बार जब सरकार ने इन कानूनों के चलते अब किसान को उसे न केवल अपने उत्पादों को मंडी में या मंडी के बाहर कहीं भी बेचने का ना केवल आजादी दिया बल्कि उनके लिए अपने उत्पादों की कीमत भी खुद तय करने का प्रावधान किया है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए कृषि राज्य का विषय है इसलिए है यह सही है किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान और फसल बीमा सहित अधिकांश पहल नौकरशाही और राज्य केंद्र के बीच आपसी तालमेल की कामयाबी पर निर्भर है इसी तरह कर्ज माफी से केवल अमीर किसानों को फायदा होता है और छोटे किसानों को तो इसमें कुछ हद तक नुकसान ही होता है हम इस तथ्य से इंकार नहीं कर सकते हैं कि केवल कृषि क्षेत्र ही इस मामले में इतना सक्षम है जो देश की बड़ी जनसंख्या में रोजगार पैदा कर सकता है जो ग्रामीण परिवेश को बदल देगा और किसानों को अधिक गरिमा में जीवन प्रदान करेगा इसलिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को कंधे से कंधा मिलाकर खेती किसानी को मुनाफे वाला व्यवसाय बनाना चाहिए और हम उम्मीद करते हैं कि उक्त तीनों विषयों को यदि केंद्र तथा राज्य सरकार सही ढंग से अमल में लाती हैं तो निश्चित और भारतीय कृषि तथा किसान की दशा और दिशा में आमूलचूल परिवर्तन आएगा.
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