Skip to main content

असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

भारत और भारत में जाति व्यवस्था भारतीय जाति व्यवस्था को किस प्रकार से खत्म किया जाए. India and Indian caste system

जाति प्रथा का प्रादुर्भाव प्राचीन काल की वर्ण व्यवस्था से माना जा सकता है पहले चार ही वर्ण हुआ करते थे इन वर्णो के नाम और कार्य निम्न वत है

ब्राह्मण: - वे लोग ब्राह्मण कहलाए जो शास्त्रों में पारंगत होते थे और धार्मिक एवं विद्यार्जन के कार्यों के प्रति समर्पित रहते थे.


क्षत्रिय: - वे लोग क्षत्रिय कहलाये जिन पर भू प्रदेश की रक्षा का भार रहता था।

वैश्य: - वे लोग वैश्य कहलाए जिन पर व्यापार और वाणिज्य का कार्य करते थे.

शुद्र: - उक्त कार्यों को छोड़कर शेष कार्य करने वाले लोग शूद्र कहलाए उनका कार्य वस्तुओं का निर्माण करना एवं ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य वर्गों की सेवा करना था.


              धीरे-धीरे यह वर्ण विभिन्न जातियों और उप जातियों में बढ़ गया कालांतर में जाति व्यवस्था वंशानुगत हो गई अर्थात ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाला स्वता ही ब्राह्मण हो जाता था और यही बात अन्य तीन वर्गों पर भी लागू होती थी इस प्रकार व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निश्चित होने लगी।


जाति प्रथा के दोष: -

(1) जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष कुछ जातियों को उच्च और कुछ को निम्न कोटि में रखकर समाज को उच्च एवं निम्न जाति में विभाजित करना था जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि उच्च वर्ग में निम्न वर्ग का शोषण करना प्रारंभ कर दिया.


(2) शोषण इतना बढ़ गया कि शुद्र के साथ बुरा व्यवहार होने लगा उन्हें सभी प्रकार के नीच कार्य करने पड़े हुए निम्न स्तर के समझे जाने लगे उनमें से कुछ अछूत कहलाने लगे और पीढ़ी दर पीढ़ी यही सिलसिला चलता रहा.


(3) जातिगत भेदभाव इतना कठोर हो गए कि समाज पूर्णतया प्रथक खंडों में विभाजित हो गया जो देश के आर्थिक विकास में अत्यधिक बाधक सिद्ध हुआ क्योंकि जो व्यक्ति जिस परिवार में जन्म लेता था उसे उस परिवार का जातिगत व्यवसाय अपनाना पड़ता था यह उसके जन्म के समय से ही निश्चित हो जाता था चाहे उसकी योग्यता रूचि और देश की अर्थव्यवस्था “ की मांग कुछ भी रही हो अतः जाति व्यवस्था में व्यक्ति को अपनी पसंद का व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता नहीं रही.


(4) जाति प्रथा में भारतीय समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर देश की एकता और सुरक्षा को बुरी तरह प्रभावित किया गया.


जाति भेदभाव के विरुद्ध आंदोलन: -

रामानंद, कबीर, श्री चैतन्य, राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर ,और दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारको ने जाति के भेदभाव मिटाने के लिए आंदोलन किया महात्मा गांधी ने शूद्रों के प्रति होने वाली है अमानवीय व्यवहारो के विरुद्ध आवाज उठाई. 


जाति प्रथा को दूर करने में सहायक तत्व: -

(1) शिक्षा का प्रसार सामाजिक सुधार के कार्य विज्ञान व औद्योगिक विकास तथा औद्योगिक प्रगति आदि कारणों ने जाति व्यवस्था के बंधन को थोड़ा ढीला किया है. यातायात तथा संचार के साधनों में वृद्धि विभिन्न जातियों को एक दूसरे के अधिक निकट लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है.


(2) संविधान में अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव रखना गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है अर्थात राज्य की ओर से जाति या धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव का बर्ताव नहीं किया जाए शिक्षाओं एवं सामाजिक रोजगार आदि में सबको समान अवसर दिए जाएं तथा यह भी सुनिश्चित किया जाए कि जातिवाद धर्म के आधार पर किसी को सार्वजनिक गुणों तथा तालाबों का प्रयोग करने और मंदिरों सार्वजनिक जलपान ग्रहों होटलों सिनेमाघरों आदि सार्वजनिक स्थानों में जाने से रोका ना जाए.


(3) इन कानूनों के बावजूद विभिन्न स्थानों पर संघर्ष  के जातिगत भेदभाव का बर्ताव किया जाता है इस कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा का अधिक प्रसार हो और लोगों में जागृति बढे उत्तम शिक्षा व्यवस्था और व्यक्ति को जाति प्रथा के दुष्परिणामों से अवगत कराने और उन्हें समझने में सहायक होती है समुचित शिक्षा व्यक्ति की मनोवृत्ति को उदार बनाती है और वह व्यक्ति जीवन के प्रति एक व्यापक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित कर लेता है इस प्रकार शिक्षा जाति व्यवस्था और जातीय भेदभाव के उन्मूलन में सहायक होती है.


अस्पृश्यता  का अर्थ

अस्पृश्यता शब्द की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है आता हम उन स्थितियों की कल्पना कर सकते हैं जिनका उल्लेख हम अस्पृश्यता के अंतर्गत कर सकते हैं इन स्थितियों में से कुछ इस प्रकार है

(a) हरिजनों को मंदिरों या अन्य पूजा स्थलों में प्रवेश करने से रोका जाए

(b) सार्वजनिक तालाब कुआं अथवा नदियों के घाटों के प्रयोग से हर जनों को वंचित रखा जाए


(c) दुकान होटल सार्वजनिक जलपान गृह सार्वजनिक मनोरंजन स्थल सार्वजनिक यातायात के साधन अस्पताल औषधालय अथवा शैक्षणिक संस्थानों में पहुंचने या प्रयोग करने से हर जनों को वंचित रखा जाए.


(d) उपरोक्त स्थितियां अस्पृश्यता की स्थिति को दर्शाती है इस कलंक को मिटाने के लिए महात्मा गांधी ने अथक प्रयास किया उनका मत था कि अस्पृश्यता  या छुआछूत जिस रूप में आज हिंदू धर्म में प्रचलित है वह भगवान और मनुष्य दोनों के विरुद्ध है अतः यह एक विष की तरह जो हिंदू धर्म को खा जा रही है मेरी राय में हिंदू शास्त्रों में इसकी स्वीकृति नहीं है.


(e) गांधी जी ने इस अमानवीय कुरीति के विरुद्ध अपनी पहली आवाज अछूत शब्द के विरुद्ध उठाई और इस शब्द के प्रयोग को बंद कर उसके स्थान पर उन्हें हरिजन कहकर पुकारा.

 इस प्रकार महात्मा गांधी तथा अन्य महान संतों और समाज सुधारकों के प्रयास से जातियों और उप जातियों के बंधन शिथिल पड़ने लगे जिसका परिणाम यह हुआ कि अछूतों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण उदार होता गया


भारत का संविधान और अस्पृश्यता :

(1) संविधान ने सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकार सुनिश्चित किए हैं जिनमें से एक अधिकार समानता का अधिकार है इस अधिकार के अंतर्गत जाति  रंग या लिंग के आधार पर राज्य द्वारा भेदभाव किया जाना वर्जित है साथ ही संविधान में यह भी व्यवस्था की गई है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए उन्हें विशेषाधिकार और सुविधाएं दी जाएंगी.



(2) एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में 1955 के कानून के अंतर्गत अस्पष्टता के व्यवहार को एक दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है.


इस प्रस्ताव उन्मूलन के लिए प्रयास:


अस्पृश्यता  के व्यवहार से हरजनो में निराशा और घृणा की भावना उत्पन्न होती है यह भावना कभी-कभी हिंसक रूप धारण कर लेती है जाति दंगे और उसके फल स्वरुप होने वाली बर्बर हत्या और आगजनी की घटनाएं इसी का परिणाम है अतः अस्पृश्यता निवारण तथा रंग रूप या जाति के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव में नागरिकों की रक्षा करने हेतु सरकार ने कानून बनाने के अलावा अन्य कदम भी उठाए हैं जो निम्न वत है.


(a) इस प्रस्ताव के दोषों को व्यक्त करने के लिए फिल्में तथा नाटक दिखाई जाए.

(b) अनेक राज्यों में हरिजन सप्ताह तथा हरिजन दिवस आयोजित किए जाते हैं जिनमें हरिजन बस्ती यों में सफाई करना अंतर समूह सह भोज हरि जनों द्वारा अन्य जाति वालों को पानी के लिए पीने का पानी देना उनका मंदिरों में स्वागत करना आदि कार्यक्रम संपन्न किए जाते हैं.

(c) इस रिश्ता के विरुद्ध उल्लेख एवं संवाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जाते हैं.

(d) चलती फिरती गाड़ियों नुक्कड़ नाटकों वाद-विवाद गोष्ठियों आदि द्वारा आज प्रस्ताव के विरोध में प्रचार किया जाता है.

(e) अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया जाता है.

(f) कुछ राज्य और गांव को पुरस्कृत करते हैं जो आज प्रस्थान निवारण में अपेक्षाकृत अधिक प्रगति दिखा लाते हैं.

(g) सरकार ने पंचवर्षीय योजना में हरिजन उत्थान के लिए काफी बड़ी मात्रा में धनराशि व्यय की है.


अस्पृश्यता कैसे दूर की जाए:

अस्पृश्यता  अज्ञानता तथा रूढ़िवादी पर आधारित है शिक्षा के अभाव में तरह-तरह की रूढ़ियां और अंधविश्वास जन्म लेते हैं जैसे देवी देवता भूत प्रेत या जिन आदि को खुश करने के लिए बच्चों या पशुओं की बलि देना आदि आज प्रेस का भी एक ऐसा ही अंधविश्वास है जिसका उन्मूलन तभी संभव हो सकता है जब संपूर्ण समाज शिक्षित हो शिक्षा स्वता इस रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों को ज्ञान के प्रकाश में मिला देती है अतः इसका एकमात्र उपाय शिक्षा ही है.



अनुसूचित जातियों और जनजातियों का कल्याण: -

अनुसूचित जातियां: - भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिकों को समान रूप से अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं परंतु भारत में कुछ जातियां ऐसी भी है जो सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई है और आर्थिक रूप से निर्बल है इन्हें भारतीय संविधान द्वारा कुछ विशेष अधिकार एवं सुविधाएं दी गई है ताकि वह समाज के शेष वर्गों के समान स्तर पर आ सके ऐसी जातियों की सूची देश के राष्ट्रपति के आदेश पर तैयार की जाती है.

(1) सामाजिक एवं आर्थिक दशा: - की कट्टरता के कारण समाज को उच्च और निम्न जातियों में विभाजित कर दिया गया है उच्च जातियों ने निम्न जातियों के लोगों का उत्पीड़न एवं शोषण किया है यहां तक कि निम्न जातियों के एक बड़े भाग को सही अर्थों में समाज का अंग कभी नहीं माना गया है उन्हें गांव के अंदर रहने तक की अनुमति नहीं थी अर्थात उनके प्रति समाज बहुत ही अन्याय रहा है. आर्थिक रूप से वे सदा पिछले ही रहे हैं जिसके कारण भी सदैव धनी वर्गों पर निर्भर रहे हैं क्योंकि वह निर्धनता में ही रह रहे थे इसलिए उनका शोषण अभी भी जारी है इनमें से अधिकांश लोग बहुत अधिक गरीब है अनुसूचित जाति की बहू संख्या आज भी निरीक्षण है मुख्य रूप से स्त्रियों में साक्षरता का प्रतिशत बहुत निम्न है.


(2) दशा सुधारने के उपाय और संरक्षण: - अनुसूचित जातियों के लोगों पर युवाओं से चले आ रहे अन्याय ओं के प्रति जागरूक थे अतः संविधान बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि हमारी जनसंख्या के इस मुख्य भाग को भारत के शेष लोगों के समान स्तर पर लाने के लिए उनको समुचित और व्यापक संरक्षण प्रदान किया जाए जो निम्न वत है -


      (a) भारत का संविधान अनुसूचित जातियों के हितों और अधिकारों की रक्षा करता है और संरक्षण प्रदान करता है.


       (b) संविधान द्वारा अस्पृश्यता गैरकानूनी कर दी गई है.


      (c) अनुसूचित जातियों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा दिया जाता है.


       (d) किसी प्रकार के सामाजिक अन्याय अथवा शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की जाती है.

      (e) लोक सभा और राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों के लिए कुछ स्थान आरक्षित रखे जाते हैं साथ ही कुछ निर्वाचन क्षेत्र को उनके लिए आरक्षित घोषित कर दिया जाता है.


     (f) सरकारी नौकरियों का कुछ प्रतिशत इस श्रेणी के लिए आरक्षित रहता है इसके अतिरिक्त सरकार ने सरल शर्तों पर ऋण तथा भूमिहीनों के लिए मुफ्त जमीनों के पट्टे प्रदान किए हैं.


अनुसूचित जनजातियां: -

भारत में मुख्यता उत्तर पूर्वी राज्य में पश्चिमी बंगाल बिहार मध्य प्रदेश उड़ीसा राजस्थान और महाराष्ट्र में विभिन्न जनजातीय निवास करती है उनमें से प्रत्येक की अपनी अलग संस्कृति एवं जीवन पद्धति है भारत की बड़ी-बड़ी जनजातियों में मुख्य रूप से गोंड (राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में) भील जनजाति (बिहार और उड़ीसा में) और संथाल (पश्चिम बंगाल) की गणना होती है वैसे देश के विभिन्न भागों में छोटी-छोटी अन्य जातियां भी पाई जाती हैं.


(1) सामाजिक एवं आर्थिक दशा: - जनजाति के लोग प्रकृति की गोद में सरल जीवन व्यतीत करते हैं वह सामान्य वालों और पर्वतों के साए साए में रहते हैं कुछ जनजातीय खानाबदोश भी होती है जो शिकारी और भोजन की खोज में घूमते रहते हैं जनजातियों की सरल जीवन शैली में रीति रिवाजों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है संगीत और नृत्य उनके दैनिक जीवन के अभिन्न अंग होते हैं आर्थिक दृष्टि से जनजातीय मुख्य रूप से कृषि एवं उससे संबंधित अन्य कार्य में संलग्न रहते हैं वह लोग बहुत ही गरीब है और अधिकतर लोग निरीक्षण है ऐसी परिस्थितियों में दूसरे द्वारा उनका शोषण सरिता से किया जा सकता है.


(2) दशा सुधारने के उपाय और संरक्षण: - जनजातीय लोग हमारे देश की अमूल्य निधि है उन्हें उनकी विशिष्ट पहचान से अलग नहीं किया जाना चाहिए बल्कि ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जानी चाहिए जिससे मैं अपनी विशिष्टता भी बनाए रखें और साथ ही आधुनिक भारत के अंग बन सके इसके लिए निम्न उपाय किए जा रहे हैं: -


(a) शिक्षा की व्यवस्था तथा जीवन स्तर उठाने के लिए विशेष सुविधाएं दी जा रही है.

(b) संविधान में जनजातियों की रक्षा और संरक्षण की व्यवस्था है साथ ही स्कूलों और कालेजों में उनके लिए स्थान आरक्षित है.

(c) सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं.

(d) लोक सभा और राज्य की विधानसभाओं में उनके लिए स्थान आरक्षित है.


          उपरोक्त सुविधाओं के द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को कुछ लाभ तो हुआ है परंतु पूरा नाम नहीं प्राप्त हो रहा है क्योंकि उन सुविधाओं को अनुसूचित जाति जनजाति के एक बहुत छोटे वर्ग ने अपने हाथ में सीमित कर लिया है यह वर्ग छोटा अवश्य परंतु धनबल इत्यादि से पूर्णतया सक्षम है इस कारण यह सुविधाएं उन गरीब निर्धन एवं शोषित अनुसूचित जाति जनजाति यों के लोगों तक नहीं पहुंच पाती है जिनके लिए यह बनाई गई है अतः आवश्यकता इस बात की है कि संविधान द्वारा दी गई यह सुविधाएं उन लोगों तक अवश्य पहुंचे जिनके उत्थान के लिए यह बनाई गई हैं. जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो पाएगा तब तक इनका विकास अधूरा ही रहेगा.




Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

लोकतंत्र में नागरिक समाज की भूमिका: Loktantra Mein Nagrik Samaj ki Bhumika

लोकतंत्र में नागरिकों का महत्व: लोकतंत्र में जनता स्वयं अपनी सरकार निर्वाचित करती है। इन निर्वाचनो  में देश के वयस्क लोग ही मतदान करने के अधिकारी होते हैं। यदि मतदाता योग्य व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करता है, तो सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलता है. एक उन्नत लोक  प्रांतीय सरकार तभी संभव है जब देश के नागरिक योग्य और इमानदार हो साथ ही वे जागरूक भी हो। क्योंकि बिना जागरूक हुए हुए महत्वपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होती है।  यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपने देश या क्षेत्र की समस्याओं को समुचित जानकारी के लिए अख़बारों , रेडियो ,टेलीविजन और सार्वजनिक सभाओं तथा अन्य साधनों से ज्ञान वृद्धि करनी चाहिए।         लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। साथ ही दूसरों के दृष्टिकोण को सुनना और समझना जरूरी होता है. चाहे वह विरोधी दल का क्यों ना हो। अतः एक अच्छे लोकतंत्र में विरोधी दल के विचारों को सम्मान का स्थान दिया जाता है. नागरिकों को सरकार के क्रियाकलापों पर विचार विमर्श करने और उनकी नीतियों की आलोचना करने का ...