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भारत त्योहारों का देश है आते हैं लोग इस बारे में चर्चा करते हैं भारत में सबसे ज्यादा पर्व मनाए जाते हैं क्योंकि भारत में भिन्न-भिन्न प्रांत और भीम भिन्न-भिन्न प्रजातियां भारत में निवास करती हैं और विभिन्न संस्कृतियों के लोग यहां अपनी संस्कृति का अपने पर्व के रूप में मनाते चले आए हैं यह कोई आज से नहीं हो रहा है बल्कि जब से भारत को लोगों ने जाना है तब से इस तरह के त्यौहार चलते चले आ रहे हैं.
लेकिन आजकल भारत में एक नया पर्व जो कि काफी पहले से चल रहा था लेकिन जिस प्रकार से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा उस पर्व का प्रचार प्रसार किया जा रहा है उस पर्व को हम अपने देश का लोकतांत्रिक पर्व चुनाव कहते हैं. चुनाव से मेरा शाब्दिक मतलब है कि हमें अपने वोट देकर के अपने लिए एक अच्छी सरकार चुनना जो कि हमारे देश को और हमारे प्रदेश को एक सतत विकास की राह पर ले जा सके.
अभी हाल ही में जिस प्रकार से बिहार चुनाव का नतीजा सामने आया है उससे यही लगता है कि अभी भी भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई भी तोड़ नहीं है. उनके बोलने की क्षमता और उनका लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने का एक अलग ही तरीका जो कि उनको आम आदमी तक कनेक्ट करता है यह कनेक्टिविटी किसी और लीडरशिप में दिखाई नहीं देती है उनके करिश्माई नेतृत्व के आगे बाकी सभी नेताओं की क्षमता धूमिल दिखाई देती है जिस प्रकार से भाजपा का नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं और जिस प्रकार से उनका भारतीय जनता के साथ कनेक्टिविटी दिखाई देती है उससे तो यही प्रतीत होता है कि उनके सामने विपक्ष का कद बहुत ही छोटा होता चला जा रहा है बिहार चुनाव के नतीजे यह बताने के लिए काफी है.
बिहार में भाजपा का अपने सहयोगी गठबंधन के साथ समानता बैठाने की क्षमता
जीतन राम मांझी
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता जीता राम मांझी को जब पद से हटा दिया गया तो उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत कर दी थी यदि उसे निकाले जाने के बाद उन्होंने 2015 में अपनी अलग पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का गठन कर लिया इसके बाद 2019 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी के तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ा और फिर लोकसभा चुनाव में रजत का हाथ थामा अगस्त में फिर से नीतीश के खेमे में वापस आ गए.
चिराग पासवान
हालांकि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा ने केवल बिहार विधानसभा में 1 सीट जीती है लेकिन जिस प्रकार से उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना आइडियल बताया और उन्होंने बताया कि वह एनडीए से अलग चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन वह भाजपा से अलग चुनाव नहीं लड़ रहे हैं भाजपा उनके लिए उनका बड़ा भाई ही है.
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा को करीब 2400000 वोट मिले इसके अलावा इस पार्टी ने करीब 36 सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाया है.
भाजपा के शीर्ष नेताओं चाहे वह प्रधानमंत्री मोदी हूं या अमित शाह जिस प्रकार से उन्होंने बिहार चुनाव का मैनेजमेंट किया था वे उनके लिए काफी है सही साबित हुआ और बिहार चुनाव में जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी ने नंबर 2 की पोजीशन हासिल की है और अपने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड को नंबर 3 की पोजीशन पर लाकर खड़ा कर दिया है इस प्रकार से भाजपा का बिहार में देखे तो वोट बैंक में काफी ज्यादा विस्तार दिखाई देता है.
भारतीय जनता पार्टी का बिहार में क्यों जीती?
भारतीय जनता पार्टी का बिहार चुनाव में जिस प्रकार से प्रदर्शन रहा है उस प्रदर्शन को देखते हुए कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने बताया है कि जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी जनता को अपने भाषणों से कनेक्ट करते हैं वह कनेक्टिविटी और जिस प्रकार से प्रधानमंत्री अपनी योजनाओं को जनता तक बताते हैं कैसे उन्होंने यह बताया कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना मुफ्त में गैस कनेक्शन दिए स्वच्छ भारत अभियान के तहत मुफ्त में शौचालय प्रदान किए गए लड़कियों को साइकिल बांटने पंचायत के पदों पर 50 फ़ीसदी आरक्षण शामिल है नशा बंदी के भी उन्होंने फायदे गिनाए कि जिस प्रकार से नशाबंदी नीतीश सरकार के दौर में की गई उससे बिहार के महिलाओं पर क्या असर हुआ और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जिससे छठ पूजा तक बढ़ाया जा रहा था श्री की योजनाओं का भी बड़ा असर है.
मोदी का करिश्माई नेतृत्व का जलवा अभी भी बरकरार है
उपचुनाव वाले 11 राज्यों में जीत और बिहार में दमदार प्रदर्शन के साथ भाजपा के पास हाल ही में संपन्न चुनाव का जश्न मनाने के कई कारण हैं बिहार में एनडीए के शासनकाल में पहली बार गठबंधन में भाजपा प्रमुख पार्टी के रूप में उभरी है वहां 243 सदस्यीय विधानसभा में से 74 सीटें मिली हैं जबकि नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड 43 सीटों के साथ गठबंधन में दूसरे स्थान पर है लेकिन काफी पीछे है वैसे मुख्यमंत्री का ताजा भी नीतीश कुमार के पास है पर इंडिया में समीकरण के बदल जाने की पूरी संभावना है जाहिर है फायदा भाजपा को होगा पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार जदयू को 28 सीटें कम मिली है फिर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी भाजपा ने सुनिश्चित की है वैसे बहुमत बड़ा नहीं है जदयू ने चुनाव में 115 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से 40 फ़ीसदी से कम पर जीत हासिल की है.
जहां तक उपचुनाव की बात है तो भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपनी सरकार के बने रहना सुनिश्चित किया है जबकि मणिपुर गुजरात कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में इसने अपनी स्थिति मजबूत की है और तेलंगाना विधानसभा में 1 सीट हासिल करने में भी सफल रही है पार्टी ने 59 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में से 40 पर जीत दर्ज की है भाजपा के लिए यह न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का एक संकेत है बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि कोविड-19 के कारण पैदा हुई आर्थिक कठिनाइयों ने पार्टी के मूलाधार को नुकसान नहीं पहुंचाया है चुनावी सफलता है भाजपा के कैडर को फिर से मजबूत करने में मदद करेंगे और पार्टी को अगले 2 साल में राज्य पश्चिम बंगाल असम में विधानसभा चुनावों से पहले मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी पार्टी जहां बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सामने प्रमुख चुनौती है वही असम में सत्ता में है.
भाजपा विस्तार वादी अभियान पर है और पिछले कुछ वर्षों में विपक्षी के लिए फतेह करने के लिए इसने तोड़फोड़ का सहारा लिया है इसने कई राज्यों में कांग्रेस को छाती पहुंचा कर सत्ता हासिल की है.
इस वक्त भाजपा को पूरे ही प्रदेश में जिस प्रकार से सफलताएं मिलती जा रही हैं उससे यही लगता है कि आगे आने वाले चुनावों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई भी विपक्षी नेता टिक नहीं पाएगा.
विपक्ष नेता: किसकी ताकत किस की कमजोरी किसमें कितना दम है
अगर हम बात करते हैं कि भाजपा की प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर अगर देश में किसी का नाम आता है तो वह कांग्रेस पार्टी ही है कांग्रेस पार्टी ही वे भाजपा की प्रतिद्वंदी पार्टी के रूप में ही देश में जिस प्रकार से कांग्रेस पार्टी साल पुरानी पार्टी है और जिस प्रकार से 60 दशक तक कांग्रेस पार्टी ने इस देश पर शासन किया है उसको देखते हुए कांग्रेस पार्टी आज के दौर में भाजपा को वह कड़ी टक्कर देने की परिस्थिति में नजर नहीं आती है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व के आगे कांग्रेस पार्टी में कोई भी उनके कच्छ कोई भी खड़ा हुआ नहीं दिखाई देता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक दर्जन रैलियों को संबोधित किया राहुल गांधी ने आस्ट्रेलिया की दोनों ने एक दूसरे दलों के मुख्यमंत्री उम्मीदवारों को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत को झोंक दिया लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल है कि कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता पर एक प्रश्न चिन्ह जिस प्रकार से उसके सहयोगी दल ने आरजेडी ने खड़ा कर दिया है वह एक सोचने की बात है सबसे बड़ा सवाल यहां यह आता है कि जिस प्रकार से राहुल गांधी गांधी परिवार से निकलकर कांग्रेस पार्टी की बागडोर संभाल रहे हैं उससे उनकी नेतृत्व क्षमता पर दूरदर्शी का ना होने का आरोप लगता रहता है.
देशभर में चुनावी हार के बाद से कांग्रेस में नेतृत्व का संकट ज्ञान हो गया है बचे रहने के लिए पार्टी को इस समस्या से पार पाना होगा. केवल और केवल गांधी परिवार के अलावा किसी और का नेतृत्व क्षमता पर भरोसा नहीं जाता पा रही है जिसके कारण कांग्रेस पार्टी की हार होने का यह प्रमुख कारण है कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के अलावा किसी और को देखना भी पसंद नहीं करती है लेकिन क्या भारतीय जनता के बीच कॉन्ग्रेस पार्टी के गांधी परिवार का जो जादू था वह समाप्त होता हुआ दिखाई दे रहा है.
यदि कांग्रेस को दोबारा से सत्ता में वापसी करनी है तो कांग्रेस को गांधी परिवार के अलावा भी दूसरों को अपने सेनापति के रूप में तैयार करना होगा जिस प्रकार से प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का नेतृत्व करने का अगुआ बनाया गया है यह भी सोचने वाली बात है क्योंकि जिस प्रकार से कांग्रेस कार्यकर्ता प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी को ढूंढते हुए नजर आते हैं क्या यही सो मच भारत की जनता में भी नजर आती है यह विचार करना ही होगा वरना धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी करते ही नजर आती हुई दिखाई दी जाएगी.
कांग्रेस की ताकत
हम कांग्रेस की ताकत की बात करते हैं तो कांग्रेस से देश की सबसे पुरानी पार्टी है और कांग्रेस की में काफी विद्वान नेताओं का जमघट है और उन नेताओं की नेतृत्व क्षमता काफी ले काबिले तारीफ है जिस प्रकार से उनके पास काफी वरिष्ठ नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है यदि उन वरिष्ठ नेताओं को कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार से चाटुकारिता के कारण जिस प्रकार से उन नेताओं ने पार्टी से अपने आपको अलग करके रखा हुआ है जिसके कारण कांग्रेस का संगठन जमीनी तौर पर कमजोर होता चला जा रहा है उस संगठन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस को गांधी परिवार के अलावा भी अपने जमीनी स्तर के नेताओं को भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए जिससे कि आने वाले समय में कांग्रेस सत्ता में दोबारा अपनी वापसी कर सकें.
कमजोरी:
पार्टी की कमजोरी की बात की जाए तो सबसे बड़ी उनकी कमजोरी उनका शीर्ष नेतृत्व गांधी परिवार ही इस वक्त नजर आता है क्योंकि कांग्रेस पार्टी जो भी चुनाव लड़ती है और गांधी परिवार के नेतृत्व में लड़ती है और गांधी परिवार की नेतृत्व क्षमता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने काफी कमजोर साबित होती हुई नजर आ रही है कांग्रेस पार्टी को अपनी नेतृत्व क्षमता को बदलने पर विचार करना चाहिए.
समाजवादी पार्टी
भारत देश में अगर सबसे बड़ा प्रदेश है लोकसभा सीटों में तो वह उत्तर प्रदेश है या लोकसभा की 80 सीटें हैं इन 80 यहां की 80 सीटें ही केंद्र की सत्ता का चुनाव करती हैं इन 80 सीटों पर जो भी विजई होता है वह केंद्र में अपनी सत्ता मजबूती के साथ स्थापित करने की क्षमता रखता है.2017 में जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी अमित शाह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सत्ता में जिस प्रकार से उन्होंने वापसी की है उससे समाजवादी पार्टी की और उनके अध्यक्ष की चिंताओं को बढ़ा दिया है समाजवादी पार्टी का पहले प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी थी लेकिन अब उनकी सबसे बड़ी और विरोधी पार्टी के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी को टेकओवर करते हुए समाजवादी पार्टी का प्रमुख विपक्षी दल बनकर सामने आ गई है.
जिस प्रकार से विधानसभा चुनाव बिहार के समाप्त हो चुके हैं और तेजस्वी यादव ने जिस प्रकार से अपने युवा होने की नेतृत्व क्षमता को जनता के सामने मूल्यांकन के लिए रखा था वह उस पर काफी खरे उतरते हुए नजर आए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी जमीनी स्तर पर अंतर नजर आता है सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश बिहार की अपेक्षा काफी बड़ा राज्य है और यहां की जनता बिहार की जनता की अपेक्षा थोड़ी बहुत संपन्न ज्यादा है लेकिन सबसे बड़ी अगर समानता देखी जाए तो उत्तर प्रदेश की जनता में भी अभी जातिवाद की राजनीति में व्यस्त रहती है.
अखिलेश यादव की ताकत
अगर अखिलेश यादव की ताकत की बात की जाए तो जिस प्रकार से अखिलेश यादव ने 2012 में युवा मुख्यमंत्री का ताज अपने सर पर रखा था और 2017 तक उन्होंने जिस प्रकार से ताबड़तोड़ निर्णय पर निर्णय करके उत्तर प्रदेश को विकास की राह पर ले गए हैं और जिस प्रकार से अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के युवा जाति बंधन तोड़ कर चाहे वह ओबीसी हो या ऐसी हो या दलित मुसलमान युवा अखिलेश यादव को अपनी पहली पसंद के रूप में स्वीकार करते हैं अखिलेश यादव की नेतृत्व क्षमता पर उत्तर प्रदेश के युवाओं को भरोसा दिखाई देता है जिस प्रकार से बेरोजगार की बात करते हैं . तो युवाओं में उनके प्रति भरोसा दिखाई देता है
समाजवादी पार्टी की कमजोरी
अगर हम बात करते हैं समाजवादी पार्टी की कमजोरी की बात तो समाजवादी पार्टी का बूथ स्तर का कार्यकर्ता अब का भाजपा की अपेक्षा काफी कमजोर नजर आता है और जिस प्रकार से पुराने कार्यकाल में अखिलेश यादव पर यादव और मुस्लिमों के हितों में कार्य करने कि उनके विपक्षियों ने आरोप लगाए हैं यह उनके लिए काफी घातक साबित हो सकता है और जिस प्रकार से दलित युवा अभी अखिलेश यादव में अपने समाज की नेतृत्व क्षमता को देखने के लिए आशा लगाए हुए हैं इसके लिए अखिलेश यादव के पास उस दलित संगठन को संगठित करने के लिए अखिलेश यादव के पास अभी भी कोई बड़ा नेता नहीं है. यह आत्ममंथन करना होगा कि यदि 2022 में उन्हें भाजपा को कड़ी टक्कर देनी है तो अपनी पार्टी में मुस्लिम और दलित दो काफी विद्वान नेताओं को इन कम्युनिटी के लिए सामने करना होगा.
और सबसे बड़ी बात यह है कि जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी पर गुंडा पार्टी होने का आरोप लगता रहता है कि यदि सत्ता में यह आते हैं तो इन्हें यह जनता से वायदा करना होगा कि यह गुंडा पार्टी के रूप में दोबारा से कभी भी जनता के सामने ऐसे बर्ताव के लिए जिम्मेदारी नहीं लेंगे.
बहुजन समाज पार्टी
जब से मायावती राज्यसभा से अपना इस्तीफा दिया है तब से वह भारतीय मेंस्ट्रीम की राजनीति से थोड़ी सी दूर नजर आती हुई नजर आ रही हैं जिस प्रकार से मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया था और 2019 के चुनाव हारने के बाद जिस प्रकार से मायावती ने हार का पूरा ठीकरा समाजवादी पार्टी पर छोड़ दिया और उनसे गठबंधन खत्म करने का निर्णय लिया यह इनके लिए सबसे बड़ा गलत फैसला साबित हो सकता है.
ताकत:
बहुजन समाज पार्टी की ताकत की बात की जाए तो मायावती सबसे बड़ी ताकत बहुजन समाज पार्टी की है और उनकी नेतृत्व क्षमता पर पूरे देश के दलितों को भरोसा है जिस प्रकार से उन्होंने एक दलित बेटी के रूप में भारतीय राजनीति में कदम रखा है तब से लेकर अब तक उनके किसी भी फैसले पर आज तक कोई भी प्रश्न चिन्ह नहीं उठा सका है उनके अंदर काफी अच्छी नेतृत्व क्षमता है इसमें कोई दो राय नहीं है.
कमजोरी:
सबसे बड़ी कमजोरी उत्तर प्रदेश में मायावती के लिए यदि कोई है तो वह चंद्रशेखर रावण चंद्रशेखर रावण ने जिस प्रकार से भीम आर्मी के नेतृत्व से अपनी एक नई पार्टी का गठन किया है और जिस प्रकार से उसने दलित नेताओं के साथ साथ आज के दलित युवाओं को अपने साथ लेकर के चलने की जो काबिलियत चंद्रशेखर रावण में नजर आती है वह मायावती के लिए काफी चिंता का विषय है क्योंकि जिस वोट बैंक की बदौलत मायावती सत्ता में वापसी करना चाहती हैं वह दलित युवाओं वोट बैंक चंद्रशेखर आजाद रावण के साथ इस वक्त खड़ा नजर आ रहा है वचन शेखर आजाद रावण के बातों से दलित युवा आज का काफी प्रभावित नजर आता है.
यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा की सत्ता में और प्रधानमंत्री करिश्माई नेतृत्व के सामने कौन सा नेता उभरकर उनको आमने-सामने की टक्कर देता है.
नोट:
यह लेखक के अपने विचार नहीं हैं बल्कि समाज में जो गतिविधियां चाय की दुकानों पर जिस प्रकार से अगर राजनीति की चर्चा हो रही है तो उन राजनीतिक चर्चाओं को लेखक ने अपने शब्दों में उनके दुकान में जिस प्रकार से लोगों द्वारा राजनीतिक चर्चाएं होती रहती हैं उन लोगों के शब्दों को लेखक ने यहां पर लिखा हुआ है यदि किसी पार्टी या किसी व्यक्ति को इस पर आपत्ति है तो लेखक इसके लिए क्षमा प्रार्थी.
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