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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

गौतम बुद्ध: एक राजा से तपस्वी बनने की अद्भुत यात्रा

गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व), जिन्हें सिद्धार्थ गौतम या शाक्यमुनि बुद्ध भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका जीवन एक प्रेरणा है और उनके उपदेश मानवता के लिए जीवन के गहन सत्य को उजागर करते हैं। उनका जीवन परिचय इस प्रकार है:

जन्म और प्रारंभिक जीवन→

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनके पिता राजा शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के शासक थे, और माता महामाया थीं। सिद्धार्थ का जन्म शाही परिवार में हुआ और उन्हें राजकुमार का दर्जा मिला।

जन्म के समय, अष्टांग ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि वे या तो एक महान सम्राट बनेंगे या एक महान संत। उनके पिता ने उन्हें सांसारिक जीवन के सुख-सुविधाओं में रखा ताकि वे गृहस्थ जीवन अपनाएं।

गृहस्थ जीवन→

गौतम का विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से हुआ और उनके पुत्र का नाम राहुल था। हालांकि, सिद्धार्थ सांसारिक सुखों से संतुष्ट नहीं थे।

संसार के दुखों का बोध→

29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने चार महत्वपूर्ण दृश्यों का अनुभव किया:→

•एक वृद्ध व्यक्ति

•एक बीमार व्यक्ति

•एक मृत व्यक्ति

•एक सन्यासी

इन दृश्यों ने उन्हें संसार की अस्थिरता और दुख के मूल को समझने की प्रेरणा दी।

सन्यास और ज्ञान की खोज→

सिद्धार्थ ने राजमहल, परिवार और सांसारिक जीवन को छोड़कर सत्य की खोज में निकल पड़े। वे कई वर्षों तक कठोर तपस्या करते रहे, लेकिन उन्हें यह समझ आया कि अत्यधिक कठोरता भी मोक्ष का मार्ग नहीं है।

उन्होंने अंततः मध्य मार्ग अपनाया।

ज्ञान प्राप्ति→

सिद्धार्थ ने 35 वर्ष की आयु में बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त किया और वे गौतम बुद्ध बने। उन्होंने चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी।

बौद्ध धर्म की स्थापना→

ज्ञान प्राप्ति के बाद, बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। उन्होंने अपने उपदेशों में बताया:→

चार आर्य सत्य: →

•दुख है।

•दुख का कारण है।

•दुख का निवारण है।

•दुख से मुक्ति का मार्ग है।

अष्टांगिक मार्ग: →

सम्यक दृष्टि, विचार, वाणी, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति, और ध्यान।

महापरिनिर्वाण→

80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर (उत्तर प्रदेश, भारत) में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।

बुद्ध का योगदान→

गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से अहिंसा, करुणा और ध्यान का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ बौद्ध धर्म का आधार बनीं और आज भी करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं।

महत्व और विरासत→

गौतम बुद्ध का जीवन सत्य, शांति और आत्मा की मुक्ति का मार्ग दिखाता है। उनकी शिक्षाओं ने भारत, तिब्बत, चीन, जापान, श्रीलंका, थाईलैंड, और अन्य देशों में गहरी छाप छोड़ी है। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।


गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म से संबंधित प्रश्न UPSC सिविल सेवा परीक्षा (प्रारंभिक और मुख्य दोनों) में अक्सर पूछे जाते हैं। यहां ऐसे कुछ प्रमुख प्रश्न दिए गए हैं जो अब तक पूछे गए हैं या संभावित हैं, उनके उत्तर सहित:→

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के प्रश्न→

1. गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के सही क्रम को पहचानें।

प्रश्न: निम्नलिखित घटनाओं को सही क्रम में व्यवस्थित करें:→

•जन्म

•ज्ञान प्राप्ति

•पहला उपदेश

•महापरिनिर्वाण

उत्तर:→
1 → 2 → 3 → 4

स्पष्टीकरण:→

जन्म:→ 563 ईसा पूर्व, लुंबिनी।

ज्ञान प्राप्ति:→ 35 वर्ष की आयु में बोधगया।

पहला उपदेश:→ सारनाथ में धर्मचक्र प्रवर्तन।

महापरिनिर्वाण:→ 483 ईसा पूर्व, कुशीनगर।

2. चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) में कौन-सा सत्य सही नहीं है?

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा "चार आर्य सत्य" का भाग नहीं है?
a) संसार दुखमय है
b) दुख का कारण तृष्णा है
c) दुख का अंत संभव है
d) आत्मा शाश्वत है

उत्तर: d) आत्मा शाश्वत है

स्पष्टीकरण: → बौद्ध धर्म में आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को नकारा गया है।

3. त्रिपिटक से संबंधित कथन पर विचार करें।

प्रश्न:

•त्रिपिटक बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख ग्रंथ हैं।

•यह पाली भाषा में लिखे गए हैं।

•त्रिपिटक में विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक शामिल हैं।

उत्तर: सभी कथन सही हैं।

4. बुद्ध के मध्य मार्ग का अर्थ क्या है?

उत्तर: मध्य मार्ग का अर्थ है अतिविलासिता और अतितपस्या के बीच का संतुलित मार्ग। यह जीवन में संतुलन और संयम को अपनाने की बात करता है।

मुख्य परीक्षा (Mains) के संभावित प्रश्न और उत्तर

1. गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का भारतीय समाज पर प्रभाव का विश्लेषण करें।

उत्तर:→
गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा:

•सामाजिक सुधार: उन्होंने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों की आलोचना की।

•धार्मिक दृष्टिकोण: उनकी शिक्षाएँ तर्क और नैतिकता पर आधारित थीं, जिससे भारतीय धर्म को एक नया आयाम मिला।

•अहिंसा और करुणा: उनके विचारों ने अहिंसा को प्रमुखता दी, जो बाद में गांधी जी के आंदोलनों में प्रेरणा बने।

•महिलाओं का उत्थान: बौद्ध संघ में महिलाओं को भी शामिल किया गया।

•राजनीतिक प्रभाव: अशोक जैसे शासकों ने बौद्ध धर्म अपनाकर इसे वैश्विक स्तर पर फैलाया।


3. अशोक के शासन में बौद्ध धर्म का प्रसार कैसे हुआ?

उत्तर:→

•धम्म नीति: अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपनाकर समाज में नैतिकता, अहिंसा और सदाचार को बढ़ावा दिया।

•धम्म महामात्रों की नियुक्ति: जनता में धर्म प्रचार के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए।

•स्तूपों का निर्माण: अशोक ने सारनाथ, साँची जैसे स्थानों पर स्तूप बनवाए।

•अंतर्राष्ट्रीय प्रचार: अशोक ने श्रीलंका, म्यांमार और अन्य देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

•शिलालेख और अभिलेख: पत्थरों और स्तंभों पर धर्म की शिक्षाएँ खुदवाकर प्रचार किया।

4. क्या बौद्ध धर्म आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है?

उत्तर:→
बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं:→

अहिंसा और करुणा: वैश्विक शांति और सह-अस्तित्व के लिए आवश्यक।

•सामाजिक समानता: जातिवाद और भेदभाव के विरुद्ध प्रेरणा।

ध्यान और मानसिक शांति: आधुनिक तनावपूर्ण जीवन में ध्यान और विपश्यना की बढ़ती लोकप्रियता।

•पर्यावरण संरक्षण: बौद्ध धर्म में प्रकृति के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व का विचार।

सारांश→

गौतम बुद्ध और उनकी शिक्षाएँ UPSC के विभिन्न स्तरों पर पूछे जाने वाले प्रश्नों का महत्वपूर्ण विषय हैं। तैयारी करते समय उनके जीवन, शिक्षाएँ, ग्रंथ और ऐतिहासिक प्रभावों को विस्तार से पढ़ें। बौद्ध धर्म को ऐतिहासिक, दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझना अत्यंत आवश्यक है।

    
गौतम बुद्ध के जीवन और उनके उपदेशों में विभिन्न स्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके प्रमुख प्रवास स्थलों में राजगृह, वैशाली, कोशल, और पावा विशेष उल्लेखनीय हैं। इन स्थलों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व निम्नलिखित है:

1. राजगृह प्रवास→

स्थान: राजगृह (वर्तमान बिहार में राजगीर)
महत्व:

•राजगृह मगध राज्य की राजधानी थी और बुद्ध के समय का प्रमुख राजनीतिक और धार्मिक केंद्र था।

•बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद इस स्थान पर कई वर्षों तक निवास किया।

•यहां गीधकूट पर्वत (ग्रिधकूट) पर बुद्ध ने कई उपदेश दिए।

प्रमुख घटनाएँ:→

•अजातशत्रु और बिंबिसार: मगध के राजा बिंबिसार ने गौतम बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपनाया। उनके पुत्र अजातशत्रु ने भी बाद में बुद्ध के विचारों को अपनाया।

•विहारों की स्थापना: राजा बिंबिसार ने बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए राजगृह में वेणुवन विहार का निर्माण करवाया।

•प्रथम बौद्ध संघ: बौद्ध संघ के विकास के लिए यह स्थान महत्वपूर्ण था।

धार्मिक महत्व:→
•राजगृह बौद्ध धर्म के प्रारंभिक प्रचार और बुद्ध की शिक्षाओं के विस्तार का प्रमुख केंद्र बना।

2. वैशाली प्रवास→

स्थान: वैशाली (वर्तमान बिहार में)
महत्व:

•वैशाली गणराज्य (लिच्छवि संघ) उस समय का एक प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र था।

•यह स्थान बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा।

प्रमुख घटनाएँ:→

अंबपाली का परिवर्तन: वैशाली में बुद्ध का उपदेश सुनकर अंबपाली (एक प्रसिद्ध नगरवधू) ने बौद्ध धर्म अपनाया और संघ में शामिल हो गई।

महिला संघ की स्थापना: बुद्ध ने अपनी धाय मां, महाप्रजापति गौतमी, के आग्रह पर वैशाली में पहली बार महिलाओं को बौद्ध संघ में शामिल होने की अनुमति दी।

धर्म उपदेश: बुद्ध ने वैशाली में कई महत्वपूर्ण धर्म उपदेश दिए।

धार्मिक महत्व:→

•यह स्थान बौद्ध संघ के विकास में सहायक रहा और बुद्ध ने यहां महापरिनिर्वाण के बारे में अपनी भविष्यवाणी की थी।

•वैशाली में बुद्ध ने अंतिम बार वर्षा ऋतु (वर्षावास) बिताया।

3. कोशल प्रवास→

स्थान: कोशल (वर्तमान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का क्षेत्र)
महत्व:

•कोशल राज्य बुद्ध के जीवनकाल में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। इसकी राजधानी श्रावस्ती (सावथी) थी।

•बुद्ध ने अपने अधिकांश प्रवचन श्रावस्ती में दिए।

प्रमुख घटनाएँ:→

•अनथपिंडिक का समर्थन: श्रावस्ती के एक धनी व्यापारी अनथपिंडिक ने बुद्ध के लिए जेतवन विहार (जेतवन मठ) का निर्माण करवाया।

•प्रमुख उपदेश: बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग, चार आर्य सत्य और ध्यान के कई उपदेश श्रावस्ती में दिए।

•प्रसिद्ध चमत्कार: श्रावस्ती में बुद्ध ने अपने जीवन के कुछ प्रसिद्ध चमत्कार दिखाए, जिससे उनके प्रति श्रद्धा बढ़ी।

धार्मिक महत्व:→
श्रावस्ती बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया और यहां कई प्रमुख विहार स्थापित हुए।

4. पावा प्रवास→

स्थान: पावा (वर्तमान उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के निकट)
महत्व:

•पावा वह स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम भोजन ग्रहण किया।

•यह स्थान बौद्ध धर्म के लिए ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

प्रमुख घटनाएँ:→

चुंड के घर भोजन: पावा में बुद्ध ने एक लोहार चुंड के घर भोजन किया। भोजन के बाद उन्हें अस्वस्थता महसूस हुई, जिसे उनकी मृत्यु का कारण माना जाता है।

महापरिनिर्वाण की घोषणा: पावा से कुशीनगर जाते समय बुद्ध ने महापरिनिर्वाण की घोषणा की।

धार्मिक महत्व:→

•पावा बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां बुद्ध के जीवन का अंतिम चरण शुरू हुआ।

सारांश→

•गौतम बुद्ध के ये प्रवास स्थल उनके जीवन और धर्म प्रचार में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहे।

•राजगृह: बौद्ध धर्म के विकास का प्रारंभिक केंद्र।

•वैशाली: महिलाओं के संघ में प्रवेश और अंतिम उपदेश का स्थल।

•कोशल (श्रावस्ती): बुद्ध के अधिकांश प्रवचनों का स्थल।

•पावा: महापरिनिर्वाण से पहले की घटनाओं का स्थान।

इन स्थलों ने बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज भी ये स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए श्रद्धा और अध्ययन के केंद्र बने हुए हैं।


गौतम बुद्ध का प्रथम उपदेश बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इसे "धर्मचक्र प्रवर्तन" (Dharma Chakra Pravartana) कहा जाता है, जिसका अर्थ है "धर्म के चक्र का प्रवर्तन"। यह उपदेश बौद्ध धर्म का आधारभूत दर्शन प्रस्तुत करता है।

प्रथम उपदेश का स्थान और समय

•स्थान: यह उपदेश उत्तर प्रदेश के सारनाथ (वाराणसी के पास) में दिया गया था।

•समय: बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति (बोधगया में) के कुछ समय बाद आषाढ़ पूर्णिमा के दिन यह उपदेश दिया।

•श्रोतागण: यह उपदेश बुद्ध ने अपने पांच पूर्व साथी साधुओं को दिया, जिन्हें पंचवर्गीय भिक्षु कहा जाता है: 

•अंजन

•वास्पा

•महानाम

•अश्वजित

•कोदन

•प्रथम उपदेश की सामग्री

चार आर्य सत्य (Four Noble Truths)→

गौतम बुद्ध ने इस उपदेश में जीवन के चार महान सत्यों को समझाया:→

दुख (दुःख): संसार में जन्म, बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु और अन्य सभी प्रकार के दुख मौजूद हैं।

दुख का कारण (दुःख समुदय): दुख का कारण तृष्णा (अत्यधिक इच्छाएँ और आसक्ति) है।

दुख का निवारण (दुःख निरोध): इच्छाओं को समाप्त करके दुख का निवारण संभव है।

दुख से मुक्ति का मार्ग (दुःख निरोध मार्ग): दुख से मुक्ति पाने का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।

अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)

दुख से मुक्ति पाने के लिए आठ मार्गों का अनुसरण करना चाहिए:

•सम्यक दृष्टि (Right View): सत्य को समझना।

•सम्यक संकल्प (Right Intention): सही उद्देश्य रखना।

•सम्यक वाणी (Right Speech): सत्य और मधुर वचन बोलना।

•सम्यक कर्म (Right Action): नैतिक आचरण करना।

•सम्यक आजीविका (Right Livelihood): सही और धर्मसम्मत आजीविका अपनाना।

सम्यक प्रयास (Right Effort): बुरी आदतों से बचना और अच्छे गुणों को विकसित करना।

•सम्यक स्मृति (Right Mindfulness): जागरूक और सचेत रहना।

•सम्यक समाधि (Right Concentration): ध्यान में लीन होकर सत्य का अनुभव करना।

धर्मचक्र और मृग का प्रतीकात्मक महत्व

धर्मचक्र और मृग बुद्ध के इस उपदेश के प्रतीक हैं।

धर्मचक्र (Wheel of Dharma):→

•यह 8 तीलियों वाला चक्र है, जो अष्टांगिक मार्ग को दर्शाता है।

•धर्मचक्र प्रवर्तन का अर्थ है सत्य और धर्म का प्रचार आरंभ करना।

•यह ज्ञान और मुक्ति का प्रतीक है।

मृग (हिरण):→

•यह प्रतीक सारनाथ के मृगदाय वन का है, जहां बुद्ध ने यह उपदेश दिया।

•मृग अहिंसा, शांति और जागरूकता का प्रतीक है।

•यह बौद्ध धर्म की करुणा और सभी जीवों के प्रति प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है।

•चित्रात्मक विवरण

•बौद्ध कला में प्रथम उपदेश का चित्रण:

•बौद्ध कला में इस घटना को धर्मचक्र और दो मृगों के माध्यम से दिखाया जाता है।

•चित्र में बुद्ध को ध्यान की मुद्रा में बैठा दिखाया जाता है।

•उनके सामने पंचवर्गीय भिक्षु बैठे होते हैं, जो ध्यान से उपदेश सुन रहे होते हैं।

•चित्र में एक धर्मचक्र (चक्र) होता है, जिसके दोनों ओर हिरण (मृग) होते हैं।

•यह प्रतीकात्मक चित्रण बौद्ध धर्म के प्रचार की शुरुआत को दर्शाता है।

•धर्मचक्र प्रवर्तन की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता

धर्म की स्थापना: बुद्ध के इस उपदेश ने बौद्ध धर्म को संगठित रूप दिया।

संघ की स्थापना: पांच भिक्षुओं ने बौद्ध संघ की नींव रखी।

मानवता का संदेश: इस उपदेश में मानवता के लिए दुख से मुक्ति का मार्ग प्रस्तुत किया गया।

समता और करुणा: बुद्ध के उपदेशों में किसी भी जाति, वर्ग या लिंग का भेदभाव नहीं था।

सारनाथ के स्तूप और धर्मचक्र→

धमेख स्तूप: यह वह स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

अशोक स्तंभ: सम्राट अशोक ने यहां स्तंभ बनवाया, जिस पर सिंह और धर्मचक्र खुदे हुए हैं।

धर्मचक्र: इसे भारत के राष्ट्रीय प्रतीक (अशोक चक्र) के रूप में भी अपनाया गया है।

चित्र विवरण हेतु ध्यान देने योग्य बिंदु

यदि आप इस घटना का चित्र देखना या बनाना चाहते हैं:

बुद्ध को ध्यान की मुद्रा में चित्रित करें।

पंचवर्गीय भिक्षु को उनके सामने दिखाएं।
धर्मचक्र को प्रमुखता से दर्शाएं।

मृगदाय वन के प्रतीक के रूप में दो मृग (हिरण) शामिल करें।

शांत और प्राकृतिक वातावरण का चित्रण करें।

धर्मचक्र और मृग के साथ यह चित्र बौद्ध धर्म की शांति, करुणा और सत्य की शिक्षा को सजीव बनाता है।



महापरिनिर्वाण सूत्र (Mahaparinibbana Sutta) बौद्ध धर्म के दीघ निकाय (Digha Nikaya) का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें गौतम बुद्ध के अंतिम दिनों, उनके महापरिनिर्वाण, और उनके शरीर के धातु अवशेषों (भस्म) के वितरण का उल्लेख है। बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया था, जिन्हें आठ प्रमुख दावेदारों (राज्यों/शासकों) ने प्राप्त किया।

बुद्ध के शरीर धातु अवशेष के आठ दावेदारों

अजातशत्रु (मगध):

स्थान: मगध साम्राज्य (राजगृह)

महत्व: अजातशत्रु, राजा बिंबिसार के पुत्र, बुद्ध के अनुयायी थे। उन्होंने बुद्ध के अवशेषों को प्राप्त कर स्तूप बनवाया।

लिच्छवि (वैशाली):→

स्थान: वैशाली गणराज्य

महत्व: वैशाली के लिच्छवि गणराज्य बुद्ध के समय का एक महत्वपूर्ण गणतांत्रिक राज्य था। उन्होंने बुद्ध के अवशेषों को सम्मानपूर्वक ग्रहण कर उनका स्मारक बनवाया।

शाक्य (कपिलवस्तु):→

स्थान: कपिलवस्तु

महत्व: बुद्ध शाक्य वंश के थे, इसलिए उनके परिवार और समुदाय ने भी अवशेष प्राप्त किए।

मल्ल (कुशीनगर):→

स्थान: कुशीनगर

महत्व: बुद्ध का महापरिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ था। मल्ल समुदाय ने इस स्थल पर बुद्ध के अंतिम संस्कार का आयोजन किया और उनके कुछ अवशेष प्राप्त किए।

मल्ल (पावा):→

स्थान: पावा

महत्व: पावा के मल्ल गणराज्य ने भी बुद्ध के अवशेष प्राप्त कर उनका स्मारक बनवाया।

कौशल्य (रामग्राम):→

स्थान: रामग्राम

महत्व: कौशल्य राज्य के लोग बुद्ध के बड़े अनुयायी थे। उन्होंने अवशेषों को सुरक्षित रखा और एक स्तूप बनवाया।

वृहद्रथ (वत्स):

स्थान: अलकप्पा (वत्स राज्य)

महत्व: अलकप्पा के लोग बुद्ध के प्रति सम्मान रखते थे और उन्होंने अवशेषों को प्राप्त कर उनका स्मारक बनवाया।

मौर्य (पिप्पलिवन):

स्थान: पिप्पलिवन

महत्व: पिप्पलिवन के मौर्य गणराज्य ने भी बुद्ध के अवशेषों का एक हिस्सा ग्रहण किया और उसे संरक्षित करने के लिए स्तूप बनाया।

वितरण का तरीका
बुद्ध के शरीर के अवशेषों के वितरण का कार्य द्रोण ब्राह्मण (Drona Brahmin) ने किया।

उन्होंने अवशेषों को आठ समान भागों में बांटकर इन आठ प्रमुख दावेदारों को सौंपा।

अवशेषों को प्राप्त करने वाले सभी राज्यों ने अपने-अपने क्षेत्र में बुद्ध की स्मृति में स्तूपों का निर्माण किया।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

स्तूप निर्माण: इन अवशेषों को संरक्षित करने के लिए बने स्तूप बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण पूजा स्थल बन गए।

राजनीतिक प्रभाव: अवशेषों के वितरण से बौद्ध धर्म का विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार हुआ।

अशोक का योगदान: सम्राट अशोक ने बाद में इन स्तूपों को खोदकर अवशेषों का पुनः वितरण किया और उन्हें और अधिक व्यापक रूप से फैलाया।

सारांश

गौतम बुद्ध के अवशेषों का वितरण उनके अनुयायियों और समकालीन राज्यों के बीच श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक था। यह घटना बौद्ध धर्म के प्रचार में एक महत्वपूर्ण अध्याय है और बौद्ध वास्तुकला (स्तूप) के विकास का आधार बनी।


बौद्ध धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों जैसे दसशील, त्रिरत्न, बुद्ध के समकालीन शासक, प्रमुख बोधिसत्व, बौद्ध साहित्य, और बौद्ध ग्रंथ व उनके रचनाकार का अध्ययन न केवल परीक्षाओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म की गहन समझ के लिए भी उपयोगी है। नीचे इन सभी विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।

1. बौद्ध धर्म के दसशील (Ten Precepts)

बौद्ध धर्म के अनुयायियों (विशेष रूप से भिक्षुओं) के लिए दसशील का पालन आवश्यक माना गया है। ये नैतिक आचरण और जीवन के सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दसशील के नियम:→

प्राणातिपाता वेरमणी: प्राणियों की हिंसा न करना (अहिंसा)।

अदत्तादाना वेरमणी: चोरी न करना।

कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी: कामवासना से दूर रहना।

मुसावदा वेरमणी: झूठ न बोलना।

सुरामेरयमज्जपमादठ्ठाना वेरमणी: नशीले पदार्थों का सेवन न करना।

विकालभोजन वेरमणी: अनुचित समय पर भोजन न करना।

नच्चगान वेरमणी: नाच-गान और मनोरंजन से दूर रहना।

माला गंध वेरमणी: अलंकरण और सुगंधित द्रव्यों का उपयोग न करना।

उच्चासयन महासयन वेरमणी: विलासपूर्ण बिस्तर का उपयोग न करना।

जातरूप-राजत वेरमणी: धन-संपत्ति का संग्रह न करना।

2. त्रिरत्न (Three Jewels)

त्रिरत्न बौद्ध धर्म के मूल आधार हैं, जिनका अनुसरण करना हर बौद्ध अनुयायी के लिए अनिवार्य है।

त्रिरत्न के तीन अंग:

बुद्ध: बुद्ध अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने वाले।

धर्म: बुद्ध द्वारा दिया गया उपदेश (धर्म) जो दुखों के निवारण का मार्ग दिखाता है।

संघ: भिक्षुओं और अनुयायियों का समुदाय जो धर्म का पालन करता है।

3. बुद्ध के समकालीन शासक

गौतम बुद्ध के समय कई शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासक थे, जिन्होंने उनके धर्म प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रमुख समकालीन शासक:

राजा बिंबिसार (मगध):

बुद्ध के प्रमुख अनुयायी।

उन्होंने वेणुवन विहार दान में दिया।

राजा अजातशत्रु (मगध):

बुद्ध के अंतिम समय में शासन किया।

उन्होंने बुद्ध के अवशेषों का स्तूप निर्माण करवाया।

प्रसेनजित (कोशल):

श्रावस्ती का राजा।

बुद्ध का सम्मान करते थे।

महापद्मानंद (शाक्य):

कपिलवस्तु के शाक्य समुदाय के शासक।

अंबपाली (वैशाली):

वैशाली की नगरवधू।

बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर भिक्षुणी बनीं।

4. बौद्ध धर्म के प्रमुख बोधिसत्व (Bodhisattvas)

बोधिसत्व वे आत्माएँ हैं जो पूर्ण ज्ञान (बोधि) प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। बौद्ध धर्म में प्रमुख बोधिसत्व निम्नलिखित हैं:

प्रमुख बोधिसत्व:

अवलोकितेश्वर: करुणा के बोधिसत्व।

मंजुश्री: प्रज्ञा (ज्ञान) के बोधिसत्व।

वज्रपाणि: शक्ति और साहस के बोधिसत्व।

मaitreya (मैत्रेय): भविष्य के बुद्ध।

क्षितिगर्भ: नरक में प्राणियों की रक्षा करने वाले बोधिसत्व।

5. बौद्ध साहित्य (Buddhist Literature)

बौद्ध साहित्य पालि, संस्कृत और तिब्बती भाषाओं में लिखा गया है।

मुख्य प्रकार:

पालि साहित्य:

त्रिपिटक (Three Pitakas): 

•विनय पिटक: भिक्षुओं और भिक्षुणियों के नियम।

सुत्त पिटक: बुद्ध के उपदेश।

•अभिधम्म पिटक: बौद्ध दर्शन और मनोविज्ञान।

•जातक कथाएँ: बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएँ।

•संस्कृत साहित्य:

•ललितविस्तर, महावस्तु, दिव्यावदान।

•तिब्बती साहित्य:

कांग्यूर और तांग्यूर।


बौद्ध धर्म का परीक्षाओं में महत्व

•बौद्ध धर्म से संबंधित विषय यूपीएससी, राज्य लोक सेवा आयोग, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं।

•विशेष रूप से त्रिपिटक, बोधिसत्व, समकालीन शासक, और बौद्ध ग्रंथों से जुड़े प्रश्नों की संभावना अधिक होती है।

महत्वपूर्ण परीक्षा बिंदु:

•बुद्ध के प्रथम उपदेश (धर्मचक्र प्रवर्तन)।

•बौद्ध धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय: हीनयान और महायान।

•अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार।

•बौद्ध धर्म के स्तूप, विहार और मूर्तिकला।


बौद्ध धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हीनयान और महायान हैं। इन दोनों का विकास गौतम बुद्ध की शिक्षाओं की व्याख्या के आधार पर हुआ और इनके दर्शन, आचरण, और परंपराएं भिन्न-भिन्न हैं। नीचे इन दोनों का विस्तृत वर्णन दिया गया है:

1. हीनयान (Hinayana)

परिचय:

•"हीनयान" का अर्थ है "छोटा मार्ग" या "निम्नतर मार्ग"। हालांकि, यह नाम महायान बौद्धों द्वारा दिया गया था, और इसे अपमानजनक समझा जाता है।

•इसे "थेरवाद" (Theravada) के नाम से भी जाना जाता है, जो इसका सही और सम्मानजनक नाम है।

•यह बुद्ध के मूल उपदेशों और प्रारंभिक बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व करता है।

मुख्य सिद्धांत:

मोक्ष का उद्देश्य: 

व्यक्तिगत मुक्ति (निर्वाण) पर जोर दिया गया है।

इसका अंतिम लक्ष्य अर्हत (Arhat) बनना है।

धर्म ग्रंथ: 

पालि त्रिपिटक (विनय पिटक, सुत्त पिटक, और अभिधम्म पिटक) हीनयान के प्रमुख ग्रंथ हैं।

बोधिसत्व की अवधारणा: 

बोधिसत्व की अवधारणा को कम महत्व दिया गया है।

ध्यान और तपस्या: 

ध्यान और आत्म-अनुशासन को प्रमुख साधन माना गया है।

आचार संहिता: 

भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए कठोर आचार संहिता है।

मुख्य क्षेत्र:

यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया (श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस) में प्रचलित है।

विशेषताएँ:

•बुद्ध को एक महान शिक्षक और मानव माना जाता है, न कि ईश्वर।

•हीनयान अनुयायी केवल प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथों का पालन करते हैं।

2. महायान (Mahayana)

परिचय:

•"महायान" का अर्थ है "महान मार्ग" या "विशाल वाहन"।

•यह बौद्ध धर्म का उदार और प्रगतिशील रूप है, जिसमें करुणा और सार्वभौमिक मुक्ति पर बल दिया गया है।

•महायान का विकास बुद्ध के निर्वाण के लगभग 400 वर्ष बाद हुआ।

मुख्य सिद्धांत:

मोक्ष का उद्देश्य: 

व्यक्तिगत निर्वाण के बजाय सभी प्राणियों की मुक्ति (समूह मुक्ति) पर बल दिया गया है।

इसका अंतिम लक्ष्य बोधिसत्व बनना है, जो दूसरों की मुक्ति के लिए अपना निर्वाण स्थगित कर देता है।

धर्म ग्रंथ: 

महायान बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं, जैसे सद्धर्मपुंडरीक सूत्र और अवतंसक सूत्र।

बोधिसत्व की अवधारणा: 

बोधिसत्व को अत्यधिक महत्व दिया गया है।

ध्यान और पूजा: 

ध्यान के साथ-साथ पूजा और भक्ति पर भी जोर दिया गया है।

आचार संहिता: 

भिक्षुओं और गृहस्थ दोनों के लिए सरल और लचीली आचार संहिता है।

मुख्य क्षेत्र:

यह चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया और वियतनाम में प्रचलित है।

विशेषताएँ:

•बुद्ध को एक दिव्य शक्ति या ईश्वर के रूप में देखा जाता है।

•महायान अनुयायी लोक संस्कृति और धर्म के साथ अधिक घुल-मिल जाते हैं।



महायान के अंतर्गत प्रमुख संप्रदाय

मध्यमक संप्रदाय (Nagarjuna):

•नागार्जुन द्वारा स्थापित।

•शून्यवाद का सिद्धांत।

योगाचार संप्रदाय (Asanga and Vasubandhu):

•चित्त-प्रधान या विचार-प्रधान बौद्ध दर्शन।

वज्रयान:

•इसे तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहा जाता है।

•तिब्बत और मंगोलिया में प्रचलित।

सारांश

हीनयान और महायान, बौद्ध धर्म के दो अलग-अलग मार्ग हैं जो एक ही लक्ष्य, यानी मुक्ति, की प्राप्ति के लिए विभिन्न दृष्टिकोण अपनाते हैं।

हीनयान: व्यक्तिगत मुक्ति और आत्म-अनुशासन पर बल।

महायान: करुणा और सार्वभौमिक मुक्ति पर जोर।

यह दोनों ही संप्रदाय बौद्ध धर्म को विविधता और व्यापकता प्रदान करते हैं। इनका अध्ययन धर्म, संस्कृति और दर्शन के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है।





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