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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

कंपनी का शासन: 1773 से 1858 तक के रेग्युलेटिंग एक्ट का विश्लेषण - UPSC तैयारी के लिए सम्पूर्ण गाइड

कंपनी का शासन: 1773 से 1858 तक के रेग्यूलेंटिग एक्ट

प्रस्तावना→

1773 से 1858 के बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन भारत में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों का गवाह बना। इस अवधि में, कई रेग्यूलेंटिग एक्टों का निर्माण किया गया, जो कंपनी के प्रशासन और भारत की राजनीतिक संरचना को प्रभावी रूप से बदलने का कार्य करते थे। इन अधिनियमों का मुख्य उद्देश्य कंपनी के शासन को सुव्यवस्थित करना, उसकी शक्तियों पर नियंत्रण स्थापित करना, और भारतीय समाज में सुधार लाना था। 

 रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित पहला कानून था जो ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन में सुधार लाने के लिए बनाया गया था। इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान थे:

1. गवर्नर जनरल का पद→: इस अधिनियम के तहत, बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत के सभी प्रांतों का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। यह व्यवस्था न केवल प्रशासनिक दक्षता में सुधार लाई बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि एक सक्षम व्यक्ति पूरे भारत में नीति निर्धारण और प्रशासन का कार्य कर सके। वॉरेन हेस्टिंग्स पहले गवर्नर जनरल बने और उनकी प्रशासनिक नीतियों ने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया।

2. काउंसिल का गठन→: गवर्नर जनरल के साथ एक काउंसिल बनाई गई जिसमें चार अन्य सदस्य होंगे। इस काउंसिल का उद्देश्य गवर्नर जनरल के निर्णयों की समीक्षा करना था। यह व्यवस्था प्रशासन में विविधता और विचारों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करती थी।

3. जमींदारी प्रथा→: इस अधिनियम ने जमींदारी प्रथा की नींव रखी, जिससे जमींदारों को भूमि के मालिकाना हक प्रदान किया गया। इससे जमींदारों का समाज में एक मजबूत स्थान बना और कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिला, हालांकि यह आम किसानों के लिए समस्याओं का कारण भी बना।

4. सुप्रीम कोर्ट का गठन→: कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई, जो कंपनी के कार्यों की न्यायिक समीक्षा कर सकती थी। इससे न्यायिक व्यवस्था को एक कानूनी ढांचा मिला और न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ी।

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1781→

1781 में पारित इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य पहले के अधिनियम की कमियों को दूर करना था। इसके प्रमुख बिंदु थे:→

1. सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित करना→: इस अधिनियम ने कंपनी के अधिकारों के प्रति सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित किया, ताकि कंपनी अपने प्रशासनिक कार्यों में बिना किसी बाधा के कार्य कर सके।

2. कंपनी के अधिकारियों के कार्यों की सुरक्षा→: यह अधिनियम कंपनी के अधिकारियों के कार्यों को सुरक्षा प्रदान करता था, जिससे वे कंपनी के हित में निर्णय ले सकें। इसके परिणामस्वरूप, अधिकारियों के बीच में प्रशासनिक कार्यों को लेकर स्पष्टता बनी रही।

3. न्यायालयों के अधिकारों का विभाजन→: यह अधिनियम न्यायालयों के अधिकारों को स्पष्ट करता है, जिससे कानूनी प्रक्रिया में और अधिक स्पष्टता आई।

 रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813→

इस अधिनियम ने भारत में व्यापार और समाज के कई पहलुओं को प्रभावित किया। इसके महत्वपूर्ण प्रावधान थे:→

1. व्यापार में प्रतिस्पर्धा→: इस अधिनियम ने कंपनी का व्यापार एकाधिकार समाप्त कर दिया और अन्य व्यापारियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी। इससे भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और व्यापार में विविधता आई।

2. धर्म और शिक्षा→: इस अधिनियम ने धर्म, शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की। कंपनी ने मिशनरी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आए।

3. कंपनी का चार्टर→: यह अधिनियम कंपनी के चार्टर को 20 वर्षों के लिए नवीनीकरण करता है, जिससे कंपनी को कार्य करने की एक स्पष्ट रूपरेखा मिली।

4. सामाजिक सुधारों की नींव→: इस अधिनियम ने भारतीय समाज में सुधारों की दिशा में कदम उठाने का रास्ता खोला, जैसे कि सती प्रथा के खिलाफ और बाल विवाह के खिलाफ कदम उठाए गए।

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1833→

1833 का अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक रिफॉर्म्स में से एक था। इसके प्रमुख बिंदु हैं:→

1. एकल गवर्नर जनरल का पद→: यह अधिनियम गवर्नर जनरल के पद को एकल बनाता है और गवर्नर जनरल के अधिकारों में वृद्धि करता है। इसके साथ ही, गवर्नर जनरल को भारत के सभी प्रांतों की प्रशासनिक शक्तियाँ दी गईं।

2. सामाजिक सुधारों की आवश्यकता→: इस अधिनियम ने सामाजिक और धार्मिक सुधारों की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। इससे विभिन्न सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रोत्साहन मिला।

3. कानूनों का एकीकरण→: भारत के विभिन्न प्रांतों में कानूनों के एकीकरण के लिए प्रयास किए गए। इससे भारत में एक समान कानूनी ढांचा स्थापित हुआ।

4. कंपनी के व्यापार के एकाधिकार का समाप्त होना→: इस अधिनियम ने कंपनी के व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया और स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा दिया।

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1853→

1853 का रेग्यूलेंटिग एक्ट ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाला अधिनियम था। इसके प्रमुख बिंदु:→

1. प्रतिनिधि निकाय→: यह अधिनियम भारतीयों के लिए विधायी निकाय में प्रतिनिधित्व का प्रावधान करता है। इससे भारतीयों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिला।

2. सिविल सर्विस में सुधार→: इस अधिनियम ने सिविल सेवा में भारतीयों को शामिल करने की दिशा में पहला कदम उठाया। इससे भारतीयों के लिए उच्च सरकारी पदों पर पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

3. कंपनी के चार्टर का नवीनीकरण→: यह अधिनियम कंपनी के चार्टर को फिर से 10 वर्षों के लिए नवीनीकरण करता है, जिससे कंपनी को अपनी गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति मिली।

4. विधायी परिषद की स्थापना→: इस अधिनियम ने विधायी परिषदों की स्थापना की, जो कानूनों को बनाने में सहायता करती थीं।

UPSC में रेग्यूलेंटिग एक्ट से संबंधित प्रश्न→

यहां कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं जो UPSC में रेग्यूलेंटिग एक्ट से संबंधित आ चुके हैं:→

1. रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 के प्रमुख प्रावधान क्या थे और यह कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में बदलाव लाया?
   •उत्तर में अभ्यर्थियों को अधिनियम के प्रमुख बिंदुओं और उनके प्रभावों को स्पष्ट करना होगा। यह महत्वपूर्ण है कि वे बताएं कि कैसे इस अधिनियम ने कंपनी के प्रशासन को केंद्रीकृत किया और सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की।

2. रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने भारतीय समाज पर क्या प्रभाव डाला?
   •इस प्रश्न का उत्तर देते समय, अभ्यर्थियों को व्यापार में प्रतिस्पर्धा, धर्म और शिक्षा के क्षेत्रों में बदलाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि कैसे इस अधिनियम ने समाज में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया।

3. 1853 के रेग्यूलेंटिग एक्ट का भारतीय सिविल सेवा पर क्या प्रभाव पड़ा?
   •इस प्रश्न में, अभ्यर्थियों को सिविल सेवा में भारतीयों के शामिल होने के संदर्भ में उत्तर देना होगा। उन्हें यह बताना होगा कि कैसे इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए सरकारी नौकरियों में प्रवेश को सुगम बनाया।

4. कंपनी के शासन में किए गए रेग्यूलेंटिग एक्टों का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
   •इस प्रश्न में, अभ्यर्थियों को इन अधिनियमों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनके दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण करना होगा। उन्हें यह बताना होगा कि कैसे ये अधिनियम स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखे।

निष्कर्ष→

1773 से 1858 तक के रेग्यूलेंटिग एक्टों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन में महत्वपूर्ण सुधार लाए और भारतीय समाज में कई बदलावों की नींव रखी। ये अधिनियम भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में स्थायी प्रभाव डालने वाले थे, जिनका अनुसरण आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के समय भी किया गया। UPSC परीक्षा में इन अधिनियमों के बारे में समझना अभ्यर्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक हैं। 

इन अधिनियमों ने न केवल भारतीय समाज में बदलाव लाने का कार्य किया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि भारतीय जनता को राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर मिले। इनका अध्ययन करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस प्रकार ब्रिटिश राज के अधीन भारत में एक नई राजनीतिक संस्कृति का विकास हुआ, जिसने आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।


रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित पहला कानून था, जिसका उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में प्रशासन को व्यवस्थित करना और उसमें सुधार लाना था। बंगाल में प्लासी की लड़ाई (1757) और बक्सर की लड़ाई (1764) में विजय के बाद, कंपनी को राजस्व और प्रशासनिक शक्तियाँ मिलीं, लेकिन कंपनी का प्रशासनिक ढांचा अत्यधिक भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से ग्रस्त था। कंपनी की इन समस्याओं के समाधान और ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को बढ़ाने के लिए रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 लागू किया गया। इसके प्रमुख प्रावधान और उनके प्रभाव निम्नलिखित हैं:→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 के प्रमुख प्रावधान→

1. गवर्नर जनरल का पद सृजन→:
   •इस अधिनियम के तहत, बंगाल के गवर्नर जनरल का पद सृजित किया गया, जो पूरे भारत में ब्रिटिश शासित क्षेत्रों के प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी बन गया। वॉरेन हेस्टिंग्स पहले गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।
   •बंगाल, मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी में यह व्यवस्था लागू की गई कि मद्रास और बॉम्बे के गवर्नर जनरल भी बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन रहेंगे, जिससे बंगाल प्रशासन का नियंत्रण बढ़ गया।

2. काउंसिल की स्थापना→:
   •गवर्नर जनरल के साथ चार सदस्यों की एक कार्यकारी काउंसिल बनाई गई। इस काउंसिल का उद्देश्य गवर्नर जनरल के निर्णयों पर परामर्श देना और प्रशासन में सुधार लाना था।
   • हालांकि, निर्णय में मतभेद होने पर बहुमत का मत माना जाता था, जिसके कारण कई बार गवर्नर जनरल और काउंसिल के बीच संघर्ष होता था। 

3. सुप्रीम कोर्ट की स्थापना→:
   •इस अधिनियम के तहत 1774 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए। सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बंगाल प्रेसीडेंसी के तहत कंपनी के अधिकारियों और ब्रिटिश नागरिकों के मामलों तक सीमित था।
   •सुप्रीम कोर्ट के गठन से न्यायिक नियंत्रण मजबूत हुआ, और कंपनी के अधिकारियों पर न्यायिक निगरानी बढ़ी।

4. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण→:
   •इस अधिनियम का उद्देश्य कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना भी था। गवर्नर जनरल और काउंसिल के सदस्यों को उनकी शक्तियों का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए कई नियम लागू किए गए। 

5. कंपनी के मामलों की ब्रिटिश संसद द्वारा समीक्षा→:
   •रेग्यूलेंटिग एक्ट ने ब्रिटिश संसद को कंपनी के मामलों पर निगरानी और नियंत्रण का अधिकार दिया। कंपनी के प्रशासन, राजस्व, और उसके विदेशी व्यापार पर भी ब्रिटिश संसद ने निगरानी रखना प्रारंभ किया। 

 रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 का प्रभाव→

1. केंद्र में प्रशासन का केंद्रीकरण→:
   गवर्नर जनरल की नियुक्ति और मद्रास व बॉम्बे के गवर्नरों का बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन होना, प्रशासन के केंद्रीकरण को दर्शाता है। इससे ब्रिटिश शासन के अधीन भारतीय क्षेत्रों में एक प्रभावी और संगठित प्रशासन की नींव रखी गई।

2. न्यायिक सुधार और कानून का शासन→:
   •सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से ब्रिटिश शासन के अधीन क्षेत्रों में न्यायिक प्रक्रिया और पारदर्शिता का विकास हुआ। यह भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, जिसने भविष्य में कानूनी व्यवस्था को और सुदृढ़ किया।

3.ब्रिटिश संसद का नियंत्रण→:
   •इस अधिनियम के तहत ब्रिटिश संसद ने कंपनी के मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया, जिससे भारत में कंपनी के शासन को ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में लाने की प्रक्रिया शुरू हुई। ब्रिटिश संसद की निगरानी के कारण कंपनी के अधिकारियों की मनमानी पर अंकुश लगा और प्रशासन अधिक उत्तरदायी बना।

4. भ्रष्टाचार में कमी→:
   •रेग्यूलेंटिग एक्ट ने गवर्नर जनरल और काउंसिल के सदस्यों के कार्यों पर निगरानी रखकर भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने का प्रयास किया। इससे कंपनी के प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ी और जनता का शोषण कुछ हद तक कम हुआ।

5. प्रशासन में सुधार का मार्ग प्रशस्त→:
   • यह अधिनियम ब्रिटिश शासन की ओर से भारत में प्रशासनिक सुधार की दिशा में पहला कदम था। इसने बाद के रेग्यूलेंटिग एक्टों जैसे 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट, 1813 और 1833 के चार्टर एक्टों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो भारतीय प्रशासन में सुधार लाने में सहायक सिद्ध हुए।

निष्कर्ष→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1773 भारतीय प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस अधिनियम ने कंपनी के शासन को सुव्यवस्थित किया और ब्रिटिश संसद के नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। यद्यपि इस अधिनियम में कई कमियाँ भी थीं, लेकिन यह कंपनी के शासन में अनुशासन और न्यायिक नियंत्रण को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश प्रशासन और कानून व्यवस्था का एक नया स्वरूप विकसित हुआ, जिसने आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के आधार तैयार किए।


रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने भारतीय समाज पर गहरा और बहुआयामी प्रभाव डाला। इस अधिनियम के माध्यम से ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में व्यापार पर एकाधिकार समाप्त किया गया, जिससे व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, और धर्म व शिक्षा के क्षेत्र में बदलावों की शुरुआत हुई। इसके अतिरिक्त, सामाजिक सुधारों का भी मार्ग प्रशस्त हुआ। निम्नलिखित बिंदुओं में, हम इस अधिनियम के भारतीय समाज पर प्रभावों को विस्तार से समझेंगे।

1. व्यापार में प्रतिस्पर्धा→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 का एक प्रमुख प्रावधान यह था कि ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, हालांकि चीन के साथ चाय व्यापार पर उसका एकाधिकार बरकरार रखा गया। इस बदलाव के कारण भारत में व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई और ब्रिटिश व्यापारी भारत में स्वतंत्र रूप से व्यापार करने के लिए प्रेरित हुए। इस प्रतिस्पर्धा के कारण कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव देखने को मिले:→

•व्यापारिक अवसरों का विस्तार→: ब्रिटिश व्यापारी और अन्य यूरोपीय व्यापारी अब स्वतंत्र रूप से भारत में व्यापार कर सकते थे। इससे बाजार का विस्तार हुआ और भारत में अधिक विदेशी व्यापारिक गतिविधियाँ शुरू हुईं।

•नई आर्थिक संरचना→: ब्रिटिश व्यापारियों के आगमन से भारतीय समाज में आर्थिक संरचना में बदलाव हुआ। पारंपरिक कुटीर उद्योगों और हस्तशिल्प पर बुरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि ब्रिटिश व्यापारी भारत में सस्ते ब्रिटिश सामान बेचने लगे, जिससे भारतीय कारीगरों की आजीविका प्रभावित हुई। 

•नए व्यवसायों की स्थापना→: ब्रिटिश व्यापारियों द्वारा स्थापित नए व्यवसायों और कंपनियों ने भारतीयों को रोजगार के नए अवसर प्रदान किए, जिससे आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई।

 2. धर्म और ईसाई मिशनरियों का प्रवेश→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने भारतीय समाज में धार्मिक प्रभावों को भी बढ़ावा दिया। इस अधिनियम के तहत पहली बार ब्रिटिश मिशनरियों को भारत में आने और धर्म का प्रचार-प्रसार करने की अनुमति मिली। इसका समाज पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा:→

•ईसाई मिशनरियों का आगमन→: इस अधिनियम के तहत, मिशनरियों को भारत में आने की अनुमति दी गई और वे यहाँ आकर ईसाई धर्म का प्रचार करने लगे। मिशनरियों ने सामाजिक सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जैसे कि जातिवाद, बाल विवाह, सती प्रथा, आदि के खिलाफ जनजागरूकता फैलाना। 

धार्मिक जागरूकता→: ईसाई धर्म के प्रचार से भारतीय समाज में धार्मिक जागरूकता बढ़ी। इसका प्रभाव यह हुआ कि हिंदू, मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अधिक सजग हो गए। कई धार्मिक और सुधार आंदोलनों का जन्म भी इसी दौर में हुआ, जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज, आदि।

•सामाजिक सुधारों का आरंभ→: मिशनरियों ने सती प्रथा, बाल विवाह, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उनके द्वारा किए गए प्रयासों ने समाज में सुधार की एक लहर चलाई और भारतीय समाज में सुधारवादी आंदोलन को बढ़ावा मिला।

3. शिक्षा में सुधार→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 के तहत, पहली बार शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान दिया गया। इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार को यह जिम्मेदारी दी कि वह भारतीयों की शिक्षा के लिए एक निश्चित राशि (10,000 पाउंड प्रति वर्ष) खर्च करे। इससे भारतीय समाज में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव हुए:→

•पश्चिमी शिक्षा का प्रवेश→: इस अधिनियम के बाद पश्चिमी शिक्षा को भारत में बढ़ावा मिला। मिशनरियों और ब्रिटिश सरकार ने आधुनिक विज्ञान, गणित, चिकित्सा और अन्य विषयों पर आधारित शिक्षा प्रणाली शुरू की, जिससे भारतीय समाज में नए विचारों और विज्ञान का प्रसार हुआ।

अंग्रेजी भाषा का प्रसार→: शिक्षा के क्षेत्र में बदलावों के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का प्रसार भी हुआ। अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों को नई सोच और आधुनिक विचारों से परिचित कराया, जिससे भारतीय समाज में राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम की भावना का विकास हुआ।

•सामाजिक जागरूकता का प्रसार→: पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ी। इस शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना करने और समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाने का अवसर प्रदान किया।

4. सामाजिक सुधारों की दिशा में कदम→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने सामाजिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, क्योंकि इसने ब्रिटिश सरकार को शिक्षा और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य किया। इस अधिनियम के कारण कुछ महत्वपूर्ण सुधार हुए:→

कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता→: मिशनरियों और शिक्षित भारतीयों ने बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किए। भारतीय समाज में सुधारों की लहर शुरू हुई और सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथाओं पर प्रतिबंध लगने के लिए आधार तैयार हुआ।

•धार्मिक पुनर्जागरण→: भारतीय समाज में धार्मिक पुनर्जागरण की शुरुआत हुई। भारतीय समाज में पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं को चुनौती दी जाने लगी और समाज में जातिवाद और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ सुधार आंदोलनों का जन्म हुआ।

निष्कर्ष→

रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला और भारतीय समाज में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। इस अधिनियम के माध्यम से व्यापार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, धर्म के क्षेत्र में मिशनरियों के आगमन से धार्मिक और सामाजिक सुधारों की नींव पड़ी, और शिक्षा के क्षेत्र में नए विचारों और विज्ञान का प्रसार हुआ। 

इस अधिनियम ने भारतीय समाज में बदलाव की दिशा में कई कदम उठाए, जो आगे चलकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा बने। UPSC के दृष्टिकोण से, यह समझना महत्वपूर्ण है कि रेग्यूलेंटिग एक्ट 1813 ने कैसे भारतीय समाज में सुधार, सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के क्षेत्र में एक नई चेतना का संचार किया।


1853 के चार्टर एक्ट का भारतीय सिविल सेवा (ICS) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। यह अधिनियम भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण को बढ़ाने और सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लाया गया था। इस अधिनियम ने भारतीय सिविल सेवा में नियुक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा का प्रावधान किया, जिसने सिविल सेवाओं में भारतीयों के लिए अवसरों को खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित किया। निम्नलिखित बिंदुओं में, हम 1853 के चार्टर एक्ट के भारतीय सिविल सेवा पर प्रभावों को विस्तार से समझेंगे:

1. प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा का प्रावधान→

1853 के चार्टर एक्ट के तहत पहली बार भारतीय सिविल सेवा में भर्ती के लिए प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा प्रणाली की शुरुआत की गई। पहले, भारतीय सिविल सेवा में नियुक्तियाँ पैतृक प्रभाव या सिफारिशों के माध्यम से होती थीं, जो अधिकांशतः ब्रिटिश नागरिकों के पक्ष में होती थीं। इस अधिनियम ने नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार करते हुए खुली प्रतियोगी परीक्षा के प्रावधान को अनिवार्य किया। 

•योग्यता-आधारित चयन→: प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा प्रणाली ने मेरिट के आधार पर नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू की, जिससे प्रशासन में अधिक योग्य और सक्षम लोगों का चयन संभव हुआ। अब केवल ब्रिटिश परिवारों के सदस्यों तक ही सिविल सेवाएं सीमित नहीं रहीं, और योग्य भारतीयों के लिए भी यह अवसर उपलब्ध हुआ।

•भ्रष्टाचार और पक्षपात में कमी→: इस प्रणाली ने सिविल सेवा में भ्रष्टाचार और पक्षपात को कम करने में मदद की, क्योंकि अब केवल योग्य उम्मीदवार ही परीक्षा पास करके सिविल सेवाओं में प्रवेश कर सकते थे।

 2. भारतीयों के लिए सिविल सेवा के द्वार खुले→

हालांकि प्रारंभ में यह परीक्षा इंग्लैंड में ही आयोजित की जाती थी, जिससे भारतीयों के लिए इसमें भाग लेना कठिन था, फिर भी इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए सिविल सेवा में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त किया। इससे भारतीय समाज में एक नई जागरूकता और महत्वाकांक्षा का संचार हुआ:→

•भारत में योग्य व्यक्तियों के लिए अवसर→: 1853 के चार्टर एक्ट ने भारतीयों को इस सेवा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। हालांकि यात्रा और परीक्षा स्थल इंग्लैंड में होने के कारण बहुत कम भारतीय इसमें भाग ले पाते थे, लेकिन यह बदलाव उनके लिए एक आशा का संचार करता था।

•शिक्षा में सुधार और जागरूकता→: प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा के प्रावधान ने भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा की महत्ता को बढ़ावा दिया। इस परीक्षा में सफल होने के लिए भारतीयों को अंग्रेजी भाषा और ब्रिटिश प्रशासनिक प्रणाली का ज्ञान होना आवश्यक था, जिससे भारतीय युवाओं में शिक्षा के प्रति जागरूकता और रुचि बढ़ी।

3. स्वतंत्रता आंदोलन में प्रभाव→

इस अधिनियम के बाद, कई भारतीयों ने सिविल सेवा परीक्षा में बैठने और सफल होने की कोशिश की। सिविल सेवा में भारतीयों के प्रवेश से भारतीय समाज में एक राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ:→

•राजनीतिक जागरूकता का विकास→: सिविल सेवा में चुने गए भारतीयों ने प्रशासनिक कार्यों में भाग लिया और ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों के प्रति एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित किया। वे अपने अधिकारों और भारतीय जनता के प्रति ब्रिटिश शासन की नीतियों को समझने लगे, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में उन्हें अपनी भूमिका का अहसास हुआ।

•भारतीय नेतृत्व का विकास→: सिविल सेवा में प्रवेश पाकर कई भारतीयों ने अपनी नेतृत्व क्षमता को विकसित किया और वे भारतीय समाज के लिए प्रेरणा बने। इनमें से कई भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अंग्रेजों के शासन के खिलाफ आवाज उठाई।

4. भविष्य के सुधारों की नींव:→

1853 का चार्टर एक्ट भारतीय प्रशासनिक सेवा में सुधार का पहला कदम था, जिसने आगे चलकर और भी महत्वपूर्ण सुधारों के लिए नींव रखी। इसके बाद 1861, 1893, और 1919 के अधिनियमों के तहत सिविल सेवाओं में भारतीयों की भागीदारी को और बढ़ावा दिया गया। इस अधिनियम ने प्रशासनिक सुधारों के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति को स्पष्ट किया, जिससे आगे चलकर भारतीयों के लिए और अधिक अवसरों की संभावना बनी।

निष्कर्ष:→

1853 के चार्टर एक्ट ने भारतीय सिविल सेवा में प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली की शुरुआत करके भारतीयों के लिए सरकारी नौकरियों में प्रवेश को सुगम बनाने का प्रयास किया। हालांकि प्रारंभ में भारतीयों के लिए इसमें भाग लेना कठिन था, लेकिन इस अधिनियम ने भारतीय समाज में शिक्षा के महत्व और प्रशासनिक कार्यों में भागीदारी की आवश्यकता के प्रति जागरूकता पैदा की। 

इस अधिनियम के परिणामस्वरूप भारतीयों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ, और उन्होंने ब्रिटिश शासन की नीतियों के प्रति एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रशासनिक नेताओं के उदय का कारण बना। UPSC के दृष्टिकोण से, यह समझना आवश्यक है कि कैसे 1853 का चार्टर एक्ट भारतीय सिविल सेवा में भारतीयों के लिए प्रवेश के द्वार खोलने वाला पहला कदम था, जिसने प्रशासनिक सुधारों और भारतीय समाज में एक नई चेतना का संचार किया।


कंपनी के शासन में किए गए रेग्यूलेंटिंग एक्टों का ऐतिहासिक महत्व बहुत व्यापक और गहरा है। इन अधिनियमों ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए और ब्रिटिश शासन के प्रभाव को स्थापित किया। साथ ही, इन अधिनियमों ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम की नींव भी रखी। रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स (जैसे कि 1773, 1784, 1813, 1833 और 1853 के अधिनियम) का प्रमुख उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन और व्यापार को सुव्यवस्थित करना और उसमें पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ाना था। इन अधिनियमों का भारतीय समाज और ब्रिटिश शासन पर दीर्घकालिक प्रभाव हुआ, जो स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक सिद्ध हुआ। 

1. प्रशासनिक सुधार और केंद्रीकरण की नींव→

रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स ने भारतीय प्रशासन को संगठित और केंद्रीकृत करने का प्रयास किया। 1773 के रेग्यूलेंटिंग एक्ट ने बंगाल के गवर्नर जनरल का पद स्थापित किया और अन्य प्रेसीडेंसियों (बॉम्बे और मद्रास) को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया, जिससे प्रशासन में केंद्रीकरण हुआ। इसके साथ ही, 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट ब्रिटिश सरकार को कंपनी के प्रशासन पर अधिक नियंत्रण और निगरानी प्रदान करता है। इस प्रकार, इन अधिनियमों ने ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत में एक केंद्रीकृत प्रशासनिक ढांचे की नींव रखी। 

इस केंद्रीकरण का महत्व यह है कि:→
   •इससे पूरे भारत में ब्रिटिश शासन का नियंत्रण मजबूत हुआ और प्रशासनिक व्यवस्था स्थिर हुई।
   •प्रशासनिक प्रक्रिया में अनुशासन और उत्तरदायित्व बढ़ा, जिसने भारतीय जनता के लिए एक प्रभावी शासन का आधार प्रदान किया।

2. न्यायिक सुधार और कानून का शासन→

रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स ने भारत में न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में कई कदम उठाए। 1773 के रेग्यूलेंटिंग एक्ट ने कलकत्ता में पहला सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया, जिसका उद्देश्य न्यायिक नियंत्रण और पारदर्शिता को बढ़ाना था। इसके बाद के अधिनियमों ने न्यायिक प्रक्रियाओं और प्रशासनिक कार्यों के लिए स्पष्ट निर्देश और नियम बनाए। 

कानून का शासन→: इन न्यायिक सुधारों से भारत में कानून का शासन स्थापित हुआ। अब न्यायिक मामलों में कानून का पालन अनिवार्य हो गया, जिससे भ्रष्टाचार और अन्याय पर अंकुश लगा। 
•भारतीयों के अधिकारों के प्रति जागरूकता→: ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली के तहत भारतीय जनता में उनके अधिकारों और न्याय की प्राप्ति के प्रति जागरूकता आई। इस जागरूकता ने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक आधार तैयार किया।

3. व्यापार और आर्थिक नीति में बदलाव:→

1813 का चार्टर एक्ट और 1833 का चार्टर एक्ट ब्रिटिश व्यापार नीति में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। 1813 के चार्टर एक्ट के तहत कंपनी का भारत में व्यापार पर एकाधिकार समाप्त किया गया, जिससे भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी। 1833 के चार्टर एक्ट ने कंपनी को भारत में केवल प्रशासनिक शक्तियाँ प्रदान कीं और उसे एक व्यापारिक संस्था से एक प्रशासनिक संस्था में बदल दिया।

•आर्थिक शोषण का आरंभ→: इन अधिनियमों के तहत भारत के संसाधनों और व्यापार का दोहन बढ़ गया, जिससे भारतीय उद्योग और कुटीर उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इस आर्थिक शोषण ने भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष उत्पन्न किया और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया।
•बाजार का विस्तार→: व्यापार और आर्थिक नीतियों के बदलाव से भारतीय बाजार में ब्रिटिश सामानों की भरमार हो गई, जिससे भारतीय कारीगरों और उद्योगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति नाराजगी और असंतोष बढ़ने लगा।

4. भारतीयों के लिए सिविल सेवा में प्रवेश के अवसर:→

1853 के चार्टर एक्ट के तहत भारतीय सिविल सेवा में प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा का प्रावधान किया गया। इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए सिविल सेवाओं में भाग लेने का मार्ग प्रशस्त किया। यद्यपि प्रारंभ में यह परीक्षा इंग्लैंड में ही आयोजित की जाती थी, लेकिन इससे भारतीयों में एक नई शिक्षा और आत्मनिर्भरता की भावना का विकास हुआ।

•शिक्षा के प्रति जागरूकता→: इस अधिनियम ने भारतीय युवाओं में शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ाई और आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को समझाया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में सामाजिक जागरूकता बढ़ी और नई पीढ़ी को ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस मिला।
•राष्ट्रीयता और नेतृत्व का विकास→: सिविल सेवा में प्रवेश पाने वाले भारतीय ब्रिटिश शासन की नीतियों को समझने और उनका विरोध करने में सक्षम हुए। इससे स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व का विकास हुआ।

5. धर्म, शिक्षा और सामाजिक सुधारों का आरंभ:→

1813 के चार्टर एक्ट और इसके बाद के अधिनियमों ने शिक्षा और धार्मिक क्षेत्र में कई परिवर्तन लाए। 1813 के एक्ट के तहत मिशनरियों को भारत में धर्म का प्रचार करने की अनुमति मिली और ब्रिटिश सरकार को शिक्षा पर खर्च करने का निर्देश भी दिया गया।

•शिक्षा में सुधार और आधुनिक सोच का विकास→: इन अधिनियमों के तहत, अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का प्रचार हुआ और भारतीय युवाओं में आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी और राजनीति के प्रति जागरूकता बढ़ी। इससे समाज में शिक्षा का प्रसार हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के लिए बुद्धिजीवियों की एक पीढ़ी तैयार हुई।
•सामाजिक जागरूकता→: मिशनरियों और आधुनिक शिक्षा के माध्यम से भारतीय समाज में कुरीतियों, जातिवाद, सती प्रथा, बाल विवाह आदि के खिलाफ सुधार आंदोलनों की शुरुआत हुई। इससे समाज में सुधार की लहर चली और राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

 6. स्वतंत्रता संग्राम की नींव:→

इन सभी रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स का सबसे महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव यह था कि उन्होंने भारतीय समाज में असंतोष, असहमति और सुधार की लहर को जन्म दिया। ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों का असंतोष और स्वतंत्रता की इच्छा धीरे-धीरे इन अधिनियमों के माध्यम से बढ़ी, जिसने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। 

ब्रिटिश शासन की वास्तविकता का बोध→: रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स के जरिए भारतीय समाज को ब्रिटिश शासन की वास्तविकता का बोध हुआ, जिससे भारतीयों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक सामूहिक असंतोष और स्वतंत्रता की भावना का विकास हुआ।
•स्वराज की मांग→: इन अधिनियमों के माध्यम से भारतीयों में अपनी सत्ता की इच्छा और स्वराज की भावना का संचार हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनता ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित रूप से आवाज उठाने के लिए तैयार हुई और स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई।

निष्कर्ष:→

कुल मिलाकर, कंपनी के शासन में किए गए रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स का ऐतिहासिक महत्व बहुत व्यापक था। इन अधिनियमों ने प्रशासन, न्याय, शिक्षा, व्यापार और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव लाए। इनसे भारतीय समाज में प्रशासनिक दक्षता, शिक्षा के प्रति जागरूकता, सामाजिक सुधार, और राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ। इन अधिनियमों ने भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम की ओर प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।

UPSC के दृष्टिकोण से, यह समझना आवश्यक है कि कैसे रेग्यूलेंटिंग एक्ट्स ने भारतीय समाज और प्रशासन में स्थायी बदलाव लाए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी।

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