Skip to main content

असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

महात्मा गांधी का जीवन परिचय और उनके द्वारा किए गए आन्दोलन का विस्तृत वर्णन करो?

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे और उनकी माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थीं। गांधी का परिवार वैष्णव धर्म को मानने वाला था और माता के धार्मिक संस्कारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रारंभिक शिक्षा और इंग्लैंड प्रवास:→
गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई। 1888 में, 19 वर्ष की उम्र में, वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। लंदन में रहते हुए, उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और 1891 में भारत वापस लौट आए। हालांकि, भारत में उनके कानूनी करियर की शुरुआत कठिन रही और उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

दक्षिण अफ्रीका का अनुभव:→
1893 में गांधी जी को एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उनके साथ रंगभेद के आधार पर भेदभाव हुआ, जब उन्हें एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया। उन्होंने सत्याग्रह (सत्य के लिए आग्रह) की अवधारणा को अपनाया, जो अहिंसक प्रतिरोध का एक तरीका था। दक्षिण अफ्रीका में 21 साल के प्रवास के दौरान, उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और भारतीयों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी।

 भारत लौटने और स्वतंत्रता संग्राम:→
1915 में, गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ काम करना शुरू किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की राह अपनाई। उनकी प्रमुख गतिविधियों में निम्नलिखित आंदोलन शामिल हैं:→

1. चंपारण सत्याग्रह (1917)→ बिहार के चंपारण जिले में नील किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ यह आंदोलन था। इस सत्याग्रह ने गांधी जी को राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित किया।

2. खिलाफत आंदोलन (1919-1924):→यह आंदोलन मुसलमानों के खिलाफ तुर्की खलीफा को हटाने के ब्रिटिश फैसले के विरोध में था। गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए इसका समर्थन किया।

3. असहयोग आंदोलन (1920-1922):→गांधी जी ने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए असहयोग का आह्वान किया। उन्होंने लोगों से ब्रिटिश वस्त्रों और सेवाओं का बहिष्कार करने को कहा। हालांकि, चौरी चौरा की हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने यह आंदोलन वापस ले लिया।

4. दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह (1930):→गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के नमक कानून के खिलाफ 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 240 मील दूर दांडी तक पैदल मार्च किया। इस यात्रा का उद्देश्य था ब्रिटिश नमक कर का विरोध करना। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

5. भारत छोड़ो आंदोलन (1942):→द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत की स्वतंत्रता पर कोई स्पष्ट फैसला नहीं लिया, जिससे गांधी जी ने अगस्त 1942 में "अंग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा दिया। इस आंदोलन के दौरान गांधी और अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया।

गांधी जी के सिद्धांत:→
गांधी जी के विचारों की नींव सत्य, अहिंसा, और स्वराज पर आधारित थी। उनका मानना था कि बिना हिंसा के ही किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। उनके द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित हैं:→

1. सत्य:→गांधी जी के अनुसार सत्य ही ईश्वर है और उसे पाने के लिए हर व्यक्ति को सत्य की राह पर चलना चाहिए।
  
2. अहिंसा:→गांधी जी ने अहिंसा को अपने जीवन का प्रमुख आधार बनाया। उनका मानना था कि हिंसा से कभी भी स्थायी समाधान नहीं निकल सकता और अहिंसा के माध्यम से ही सच्ची विजय प्राप्त की जा सकती है।

3. स्वराज: →गांधी जी ने स्वराज को न केवल राजनीतिक आजादी के रूप में देखा, बल्कि उन्होंने इसे आत्म-नियंत्रण और आत्म-संयम का प्रतीक भी माना।

4. स्वदेशी:→गांधी जी ने भारतीय लोगों से विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग करने का आग्रह किया। उनका मानना था कि स्वदेशी वस्त्र और वस्तुओं का उपयोग भारत की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।

स्वतंत्रता और गांधी जी का योगदान:→
गांधी जी के नेतृत्व में चलाए गए विभिन्न आंदोलनों के कारण ब्रिटिश शासन पर दबाव बढ़ता गया। अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली। हालांकि, भारत की स्वतंत्रता के बाद हिंदू-मुस्लिम दंगों ने गांधी जी को बेहद व्यथित किया। उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए उपवास किया और हिंसा को समाप्त करने का प्रयास किया।

महात्मा गांधी की हत्या:→
30 जनवरी 1948 को, गांधी जी की दिल्ली के बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे नामक एक व्यक्ति ने गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी हत्या का कारण गोडसे द्वारा गांधी जी की मुस्लिम समुदाय के प्रति सहानुभूति और विभाजन के समय उनके कार्यों से असंतोष था।

 निष्कर्ष:→
महात्मा गांधी ने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य और सेवा के माध्यम से न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया को यह सिखाया कि बिना हिंसा के भी संघर्ष किया जा सकता है। उनके विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं और उनकी शिक्षाएं मानवता के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं। उन्हें प्यार और सम्मान से "राष्ट्रपिता" कहा जाता है।


चंपारण सत्याग्रह (1917) महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। यह सत्याग्रह बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों की रक्षा और उनके शोषण के खिलाफ ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के विरुद्ध हुआ था। इस आंदोलन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह गांधी जी का भारत में पहला सत्याग्रह आंदोलन था और उनके नेतृत्व में अहिंसक संघर्ष की एक नई दिशा की शुरुआत हुई।

पृष्ठभूमि:→
चंपारण के किसानों पर अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नील की खेती करने का दबाव डाला जा रहा था। ब्रिटिश सरकार ने किसानों को एक अनुबंध (जिसे तीन कठिया व्यवस्था कहते हैं) के तहत बाध्य किया था, जिसमें उन्हें अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करनी पड़ती थी। इस व्यवस्था के तहत किसानों को कम कीमत पर नील उगाने के लिए मजबूर किया जाता था, जबकि नील की मांग घटने के बाद भी किसानों को अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती थी। इस कारण किसानों पर आर्थिक संकट गहरा हो गया था और वे ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारियों द्वारा शोषित हो रहे थे। साथ ही, अगर किसान नील की खेती से इनकार करते, तो उन पर भारी कर लगाए जाते और उनकी जमीनें छीन ली जातीं।

महात्मा गांधी का हस्तक्षेप:→
1917 में, चंपारण के कुछ किसानों ने राजकुमार शुक्ला नामक किसान नेता के माध्यम से महात्मा गांधी से संपर्क किया और उन्हें अपने क्षेत्र में आकर किसानों की दुर्दशा देखने के लिए आमंत्रित किया। गांधी जी ने उनकी बात सुनी और चंपारण जाने का निर्णय लिया। गांधी जी 10 अप्रैल 1917 को चंपारण पहुंचे और वहां के किसानों की समस्याओं को समझने लगे।

चंपारण पहुंचते ही गांधी जी को ब्रिटिश प्रशासन ने चंपारण छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन गांधी जी ने प्रशासन के इस आदेश का विरोध करते हुए कहा कि वह किसानों की समस्याओं की जांच पूरी किए बिना नहीं जाएंगे। इसके बाद गांधी जी ने खुद को गिरफ्तार करने के लिए कहा, लेकिन चंपारण की जनता के बढ़ते समर्थन और गांधी जी की दृढ़ता के कारण प्रशासन को अपना आदेश वापस लेना पड़ा और उन्हें जांच की अनुमति दी गई।

सत्याग्रह की प्रक्रिया:→
गांधी जी ने चंपारण के गांवों में जाकर किसानों से बातचीत की और उनकी समस्याओं का अध्ययन किया। उन्होंने 8,000 से अधिक किसानों के बयान दर्ज किए और उनकी परेशानियों को विस्तार से समझा। इस सत्याग्रह में गांधी जी के साथ ब्रजकिशोर प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, नरहरि पारेख और जे.बी. कृपलानी जैसे प्रमुख नेताओं का भी साथ था, जिन्होंने इस आंदोलन को संगठित और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गांधी जी ने ब्रिटिश अधिकारियों के सामने किसानों की समस्याओं को रखा और उनके लिए न्याय की मांग की। उनके अहिंसक विरोध और दृढ़ता के कारण प्रशासन को किसानों की मांगों पर ध्यान देना पड़ा।

परिणाम:→
गांधी जी के सत्याग्रह और किसानों के दृढ़ समर्थन के कारण अंततः ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। चंपारण एग्रेरियन कमेटी का गठन किया गया, जिसमें गांधी जी भी शामिल थे। इस कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने किसानों के पक्ष में निर्णय लिया और तीन कठिया व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। किसानों को नील की खेती करने से आजादी मिली और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

चंपारण सत्याग्रह का महत्व:→
1. महात्मा गांधी की पहली विजय:→चंपारण सत्याग्रह गांधी जी का भारत में पहला प्रमुख राजनीतिक अभियान था, और इसने उन्हें एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया। इस आंदोलन से गांधी जी ने भारतीय जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेतृत्व के लिए प्रेरित किया।
  
2. अहिंसा और सत्याग्रह की नीति:→चंपारण सत्याग्रह में गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह की नीति को सफलतापूर्वक लागू किया, जिससे यह साबित हुआ कि अहिंसक संघर्ष भी एक प्रभावी हथियार हो सकता है। इस नीति का उपयोग आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अन्य आंदोलनों में किया गया।

3. किसानों की स्थिति में सुधार: →इस आंदोलन के बाद किसानों को नील की जबरन खेती से मुक्ति मिली, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें अपने खेतों में अन्य फसलों की खेती करने की आजादी मिली।

4. जनसंगठन और सहयोग:→चंपारण सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आम जनता की सक्रिय भागीदारी की मिसाल पेश की। इससे पता चला कि आम जनता को संगठित करके बड़े पैमाने पर परिवर्तन लाया जा सकता है।

निष्कर्ष:→
चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जिसने महात्मा गांधी को भारतीय जनमानस के बीच एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभारा। इस आंदोलन ने यह भी सिद्ध किया कि अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से शोषित और पीड़ित वर्ग के लिए न्याय प्राप्त किया जा सकता है। चंपारण सत्याग्रह भारतीय इतिहास में गांधी जी की महान उपलब्धियों में से एक है और यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी निष्ठा और नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।


खिलाफत आंदोलन (1919-1924) भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और धार्मिक आंदोलन था। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार द्वारा तुर्की के खलीफा की सत्ता को कमजोर करने और उसे हटाने के विरोध में शुरू हुआ था। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई और हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने में योगदान दिया।

पृष्ठभूमि:→
खिलाफत आंदोलन का मुख्य कारण प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद की राजनीतिक घटनाएं थीं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तुर्की, जो कि उस समय ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था और जिसका प्रमुख "खलीफा" कहलाता था, जर्मनी के साथ युद्ध में शामिल था। तुर्की को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा, और युद्ध के बाद संविधान संधि (Treaty of Sèvres, 1920) के तहत ऑटोमन साम्राज्य को विभाजित करने का निर्णय लिया गया।

तुर्की के खलीफा को मुस्लिम दुनिया का धार्मिक नेता माना जाता था, और भारतीय मुसलमान भी उसे इस्लाम के रक्षक के रूप में देखते थे। लेकिन युद्ध के बाद, ब्रिटिश और अन्य पश्चिमी शक्तियों ने तुर्की के खलीफा की सत्ता को कमज़ोर करने का प्रयास किया और उसके धार्मिक और राजनीतिक अधिकारों को सीमित कर दिया। इससे भारतीय मुसलमानों में आक्रोश उत्पन्न हुआ, क्योंकि वे खलीफा को इस्लाम के गौरव और एकता का प्रतीक मानते थे।

 खिलाफत आंदोलन का प्रारंभ:→
1919 में, अली बंधु (मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली जौहर) ने खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य तुर्की के खलीफा को उसके पद और शक्तियों पर बनाए रखने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना था। भारतीय मुसलमानों ने ब्रिटिश सरकार से अपील की कि तुर्की के खलीफा के साथ न्याय किया जाए और उनकी धार्मिक स्थिति को बनाए रखा जाए। 

गांधी जी का समर्थन और हिंदू-मुस्लिम एकता
महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को व्यापक समर्थन दिया, क्योंकि वे इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ जोड़ना चाहते थे। गांधी जी ने महसूस किया कि खिलाफत आंदोलन का समर्थन करके हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता स्थापित की जा सकती है। उन्होंने इस मुद्दे को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ते हुए असहयोग आंदोलन (1920-1922) की शुरुआत की।

गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिया। गांधी जी ने मुसलमानों से वादा किया कि वे खलीफा के समर्थन में उनका साथ देंगे, और इसके बदले में भारतीय मुसलमानों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग किया। इस प्रकार, खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन साथ-साथ चलाए गए और भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ।

 खिलाफत आंदोलन की प्रमुख गतिविधियाँ:→
1. खलीफा की बहाली की मांग:→खिलाफत आंदोलन के नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से तुर्की के खलीफा को उनकी सत्ता वापस लौटाने की मांग की। इसके लिए देशभर में सभाएं और रैलियां आयोजित की गईं।

2. असहयोग आंदोलन का समर्थन:→खिलाफत आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के असहयोग आंदोलन को समर्थन दिया। दोनों आंदोलनों के तहत ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा, और सरकारी शिक्षा संस्थानों का परित्याग शामिल था।

3. हिजरत (प्रवासन):→खिलाफत आंदोलन के दौरान कुछ मुस्लिम नेताओं ने भारतीय मुसलमानों से अपील की कि वे ब्रिटिश शासित भारत छोड़कर अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल देशों में चले जाएं, क्योंकि ब्रिटिश शासन में रहना उनके धर्म के खिलाफ है। हालांकि, यह कदम विफल साबित हुआ और बहुत से मुसलमान अफगानिस्तान से वापस लौट आए।

4. खिलाफत समितियों का गठन:→पूरे भारत में खिलाफत आंदोलन को संगठित करने के लिए खिलाफत समितियों का गठन किया गया। ये समितियां मुसलमानों को संगठित कर खलीफा के समर्थन में रैलियां और सभाएं आयोजित करती थीं।

आंदोलन का पतन:→
1922 में खिलाफत आंदोलन कमजोर पड़ने लगा। इसके कई कारण थे:→

1. असहयोग आंदोलन का अंत:→1922 में चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। इस घटना में पुलिस स्टेशन में आग लगाकर 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। गांधी जी के इस फैसले से खिलाफत आंदोलन भी कमजोर हो गया।

2. तुर्की में राजनीतिक परिवर्तन:→1924 में तुर्की के नेता मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की में आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष सुधारों की शुरुआत की। अतातुर्क ने खुद तुर्की के खलीफा को समाप्त कर दिया और तुर्की को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित कर दिया। इससे खिलाफत आंदोलन का मूल उद्देश्य समाप्त हो गया, क्योंकि जिस खलीफा की बहाली के लिए आंदोलन चलाया जा रहा था, वह पद ही समाप्त हो गया था।

3. हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार:→आंदोलन के कमजोर पड़ने के बाद हिंदू-मुस्लिम एकता भी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ गई। खिलाफत आंदोलन के दौरान बनी एकता लंबे समय तक नहीं चल सकी, और आगे चलकर भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया।

आंदोलन का महत्व:→
1. हिंदू-मुस्लिम एकता:→हालांकि खिलाफत आंदोलन का अंत निराशाजनक था, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू-मुस्लिम एकता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के माध्यम से दोनों समुदायों को एकजुट करने का प्रयास किया, जो स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण था।

2. स्वतंत्रता संग्राम में सहभागिता:→खिलाफत आंदोलन ने भारतीय मुसलमानों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया। इसने उन्हें यह समझने में मदद की कि ब्रिटिश शासन केवल उनके धर्म पर ही नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता पर भी खतरा है।

3. असहयोग आंदोलन को बल:→खिलाफत आंदोलन ने असहयोग आंदोलन को एक मजबूत आधार दिया और भारतीय जनमानस को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया। 

 निष्कर्ष:→
खिलाफत आंदोलन एक धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन था, जो भारतीय मुसलमानों के लिए खलीफा की रक्षा करने और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध करने का माध्यम बना। हालांकि, यह आंदोलन अपने उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सका, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हिंदू-मुस्लिम एकता की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ।


असहयोग आंदोलन (1920-1922):→महात्मा गांधी द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चलाए गए सबसे प्रभावी और महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी प्रकार के सहयोग को समाप्त कर देना था, ताकि ब्रिटिश शासन को कमजोर किया जा सके और भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सके। यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक था और भारतीय जनता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया गया था।

पृष्ठभूमि:→
असहयोग आंदोलन की नींव 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट के कारण पड़ी थी। जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी सरकार के जनरल डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलाकर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी थी। इसके साथ ही रॉलेट एक्ट के तहत भारतीयों को बिना मुकदमे के जेल में बंद करने का प्रावधान था, जिससे भारतीयों में भारी रोष उत्पन्न हुआ। इन घटनाओं ने महात्मा गांधी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन चलाने की प्रेरणा दी।

साथ ही, खिलाफत आंदोलन (1919-1924) के समय में भारतीय मुसलमानों में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था। महात्मा गांधी ने इस मौके का फायदा उठाकर हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना को प्रोत्साहित किया और दोनों समुदायों को एकजुट किया। गांधी जी ने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनता में असंतोष को देखते हुए एक बड़े पैमाने पर असहयोग आंदोलन चलाया जा सकता है।

असहयोग आंदोलन की शुरुआत:→
1 अगस्त 1920 को, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार का सहयोग बंद कर देना था। गांधी जी ने भारतीय जनता से आग्रह किया कि वे ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाई जा रही सेवाओं और वस्तुओं का बहिष्कार करें। 

असहयोग आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य:→
1. ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार:→गांधी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करें और स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग करें। इसके तहत हजारों भारतीयों ने अपने विदेशी कपड़ों की होली जलाई और खादी के कपड़ों का उपयोग करना शुरू किया।

2. शिक्षण संस्थानों और नौकरियों का त्याग:→ भारतीय जनता से कहा गया कि वे ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी नौकरियों का त्याग कर दें। इसके परिणामस्वरूप कई छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से नामांकन वापस लिया, और कई सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

3. सरकारी उपाधियों और सम्मानों का परित्याग:→ असहयोग आंदोलन के तहत ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई उपाधियों और सम्मानों को छोड़ने का आह्वान किया गया। कई प्रतिष्ठित भारतीयों ने अपनी उपाधियाँ लौटा दीं, जैसे कि रवींद्रनाथ टैगोर, जिन्होंने "नाइटहुड" की उपाधि वापस कर दी थी।

4. स्वदेशी आंदोलन:→असहयोग आंदोलन का एक प्रमुख हिस्सा स्वदेशी आंदोलन था। इसका उद्देश्य विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देना था। भारतीयों ने चरखे पर सूत कातना शुरू किया और खादी का उपयोग किया, जिससे देश में आत्मनिर्भरता की भावना जागृत हुई।

5. कानूनी व्यवस्था का बहिष्कार:→वकीलों से अपील की गई कि वे ब्रिटिश अदालतों में प्रैक्टिस करना छोड़ दें। कई प्रमुख वकीलों ने गांधी जी के आह्वान पर अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी, जिनमें मोतीलाल नेहरू और सी. राजगोपालाचारी प्रमुख थे।

6. नौकरशाही और प्रशासनिक सेवाओं का बहिष्कार:→भारतीय जनता से अपील की गई कि वे ब्रिटिश प्रशासनिक सेवाओं का हिस्सा न बनें और अंग्रेजों के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करें।

आंदोलन का प्रसार और लोकप्रियता:→
असहयोग आंदोलन ने पूरे भारत में तेजी से लोकप्रियता हासिल की। गांधी जी के नेतृत्व में यह आंदोलन गांवों और शहरों में समान रूप से फैल गया। भारतीय जनता ने आंदोलन का भरपूर समर्थन किया और लाखों लोगों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया, सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों का त्याग किया। 

किसान, मजदूर, व्यापारी और विद्यार्थी सभी वर्गों ने इस आंदोलन में भाग लिया। असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नींव को कमजोर कर दिया, क्योंकि विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं की बिक्री में भारी गिरावट आई। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ यह पहला बड़ा जनांदोलन था, जिसने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया।

चौरी चौरा कांड और आंदोलन की वापसी
असहयोग आंदोलन अहिंसक सिद्धांतों पर आधारित था, लेकिन फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में एक हिंसक घटना हुई, जिसने आंदोलन की दिशा बदल दी। 

4 फरवरी 1922 को, गोरखपुर जिले के चौरी चौरा कस्बे में असहयोग आंदोलन के समर्थकों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए। इस हिंसक घटना से गांधी जी बहुत आहत हुए, क्योंकि उन्होंने आंदोलन को पूरी तरह अहिंसक रखा था। इस घटना के बाद गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया, क्योंकि वे हिंसा को किसी भी कीमत पर बढ़ावा नहीं देना चाहते थे।

परिणाम और प्रभाव:→
हालांकि असहयोग आंदोलन अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका और बीच में ही समाप्त हो गया, लेकिन इसके कई महत्वपूर्ण प्रभाव हुए:→

1. जन जागरूकता:→असहयोग आंदोलन ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता और संघर्ष की भावना को बढ़ावा दिया। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने लोगों को यह दिखाया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध भी शक्तिशाली हो सकता है।

2. स्वराज की भावना:→असहयोग आंदोलन ने भारतीय जनता में आत्मनिर्भरता और स्वराज (स्वशासन) की भावना को जागृत किया। स्वदेशी वस्त्रों और खादी के उपयोग ने देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाया।

3. कांग्रेस का विस्तार:→इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक जन आंदोलन के रूप में स्थापित किया। कांग्रेस, जो पहले एक सीमित समूह के लिए काम करती थी, अब एक बड़े जनसमूह का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बन गई। गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस भारतीय जनता की मुख्य राजनीतिक आवाज बन गई।

4. अहिंसक संघर्ष का महत्व:→असहयोग आंदोलन के माध्यम से महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति को साबित किया। इस आंदोलन ने दिखाया कि बिना हिंसा के भी बड़े पैमाने पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध किया जा सकता है।

5. हिंदू-मुस्लिम एकता:→असहयोग आंदोलन के दौरान हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच आपसी सहयोग और एकता देखने को मिली। खासतौर से खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन के सम्मिलित प्रयासों से भारतीय जनता के दोनों प्रमुख समुदायों में एकजुटता पैदा हुई।

निष्कर्ष:→
असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इसने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया और उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वराज की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। आंदोलन का अहिंसक स्वरूप और गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नई दिशा दी। हालांकि आंदोलन को बीच में ही रोकना पड़ा, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव को मजबूत किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष को गति दी।


दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह (1930) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों, विशेषकर नमक कर के विरोध में भारतीय जनता को जागरूक करना और ब्रिटिश शासन की अवहेलना करना था। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में हुआ और इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

पृष्ठभूमि:→
ब्रिटिश सरकार ने भारत में नमक पर भारी कर लगाया हुआ था। नमक जीवन की एक अनिवार्य वस्तु थी, और भारत में गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए भी इसका उपयोग आवश्यक था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने नमक उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार किया हुआ था, और भारतीयों को नमक बनाने या बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, नमक पर भारी कर लगाया गया, जिससे भारतीय गरीबों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ा। 

महात्मा गांधी ने इस अन्यायपूर्ण कानून को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाया, क्योंकि नमक सभी भारतीयों के जीवन से सीधे जुड़ा हुआ था। गांधी जी ने नमक कर को अन्यायपूर्ण और दमनकारी बताया और इसका विरोध करने का निर्णय लिया।

दांडी यात्रा की योजना:→
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी नामक समुद्र तटीय गांव तक 240 मील की यात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा नमक सत्याग्रह का प्रतीक थी, जिसमें गांधी जी और उनके अनुयायी दांडी पहुंचकर ब्रिटिश कानून को तोड़ते हुए समुद्र से नमक बनाएंगे। यह यात्रा गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और नागरिक अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा थी।

गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की घोषणा करते हुए लिखा कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को बहुत समय तक लूटा है और अब समय आ गया है कि हम शांतिपूर्ण तरीकों से उनके अन्याय का विरोध करें। गांधी जी ने इस यात्रा को एक प्रतीकात्मक विरोध के रूप में चुना, ताकि भारतीय जनता को संगठित किया जा सके और उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वराज के लिए प्रेरित किया जा सके।

दांडी यात्रा की शुरुआत और यात्रा का विवरण:→
12 मार्च 1930 को, महात्मा गांधी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी की यात्रा शुरू की। गांधी जी की इस यात्रा को "नमक मार्च" के नाम से भी जाना जाता है। यह यात्रा 24 दिन तक चली और प्रतिदिन गांधी जी और उनके अनुयायी लगभग 10 मील की दूरी तय करते थे। इस यात्रा के दौरान गांधी जी ने रास्ते में कई गांवों का दौरा किया और लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित किया।

गांधी जी की यह यात्रा पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई और लोग बड़ी संख्या में इस आंदोलन से जुड़ने लगे। इस यात्रा के दौरान गांधी जी ने हर जगह ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण कानूनों की आलोचना की और भारतीय जनता को आत्मनिर्भरता, स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग, और नमक कर के विरोध के लिए प्रेरित किया।

दांडी पहुंचकर नमक कानून तोड़ना:→
5 अप्रैल 1930 को गांधी जी दांडी पहुंचे और अगले दिन, 6 अप्रैल 1930 को, उन्होंने समुद्र किनारे जाकर नमक बनाया। यह एक प्रतीकात्मक घटना थी, जिसने नमक कानून को तोड़ते हुए ब्रिटिश सरकार की सत्ता को चुनौती दी। गांधी जी ने मुट्ठी भर नमक उठाते हुए कहा, "इस छोटे से कार्य से मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दूंगा।"

गांधी जी के इस कदम ने पूरे देश में एक नया जोश भर दिया। उनके इस अहिंसक विद्रोह के बाद भारत के अन्य हिस्सों में भी लोग नमक बनाने लगे और नमक कानून का उल्लंघन करने लगे। इस प्रकार, नमक सत्याग्रह एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया, जिसने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध की शुरुआत की।

नमक सत्याग्रह का विस्तार:→
गांधी जी के दांडी यात्रा के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी नमक सत्याग्रह शुरू हो गया। लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ते हुए नमक बनाया या नमक बेचने का कार्य किया। पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। 

इस आंदोलन के दौरान देशभर में हड़तालें, बाजारों का बंद होना, सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार, और ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार किया गया। 

महात्मा गांधी के साथ ही, अन्य प्रमुख नेताओं ने भी नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, अबुल कलाम आज़ाद, और मौलाना शौकत अली जैसे नेताओं ने भी आंदोलन का समर्थन किया और ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन किया। 

गांधी जी की गिरफ्तारी और आंदोलन की प्रतिक्रिया:→
महात्मा गांधी के नमक कानून तोड़ने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने बड़ी संख्या में सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। 5 मई 1930 को, गांधी जी को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे देश में व्यापक रोष फैल गया। 

गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद भी आंदोलन जारी रहा। सरोजिनी नायडू ने गांधी जी की अनुपस्थिति में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उन्होंने महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए नमक कानून का उल्लंघन किया और महिलाओं को इस आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 

ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्यधिक बल प्रयोग किया और लाखों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया। ब्रिटिश पुलिस ने सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसाईं, लेकिन सत्याग्रही अहिंसक बने रहे। 

गांधी-इरविन समझौता (1931):→
महात्मा गांधी की गिरफ्तारी और व्यापक जन आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार पर भारी दबाव पड़ा। अंततः ब्रिटिश सरकार ने 1931 में गांधी जी के साथ समझौता करने का फैसला किया, जिसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है। 

इस समझौते के तहत:→
1. ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार दिया।
2. सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया गया।
3. गांधी जी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय लिया।

हालांकि, यह समझौता पूरी तरह सफल नहीं रहा, लेकिन इसने यह सिद्ध कर दिया कि अहिंसक संघर्ष के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को झुकाया जा सकता है।

नमक सत्याग्रह का महत्व:→
1. अहिंसक संघर्ष का उदाहरण:→नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक संघर्ष का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। गांधी जी ने इस आंदोलन के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि बिना हिंसा के भी ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध किया जा सकता है।

2. जन जागरूकता:→नमक सत्याग्रह ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता और संघर्ष की भावना को बढ़ावा दिया। यह आंदोलन न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बना, बल्कि उसने आम जनता को स्वतंत्रता के लिए एकजुट किया।

3. ब्रिटिश सरकार पर दबाव:→नमक सत्याग्रह ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया और उसे भारतीय जनता की मांगों पर विचार करने के लिए मजबूर किया। यह आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय जनता के दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गया।

4. अंतर्राष्ट्रीय समर्थन:→नमक सत्याग्रह ने न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। इस आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता की मांग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मजबूती दी और विदेशी पत्रकारों ने इसे व्यापक रूप से कवर किया।

निष्कर्ष:→
दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस आंदोलन ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया और ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का एक प्रभावशाली उदाहरण प्रस्तुत किया। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में एक ऐतिहासिक घटना बन गया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को बदल दिया और ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।


भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement):→ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और अंतिम बड़ा जन आंदोलन था, जिसकी शुरुआत 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई थी। इसे अंग्रेजी में "Quit India Movement" के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन का उद्देश्य भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करना और भारत को तुरंत स्वतंत्रता दिलाना था। यह आंदोलन पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता के लिए था और इसे "अगस्त क्रांति" के नाम से भी जाना जाता है।

पृष्ठभूमि:→
भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) से जुड़ी हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बिना भारतीय नेताओं की सहमति के भारत को युद्ध में शामिल कर लिया, जिससे भारतीय नेताओं में भारी असंतोष फैल गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से स्पष्ट किया था कि भारत युद्ध में तभी सहयोग करेगा, जब उसे युद्ध के बाद स्वतंत्रता दी जाएगी। 

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की मांगों पर ध्यान न देते हुए क्रिप्स मिशन (मार्च 1942) भेजा, जो भारत को युद्ध के बाद 'डॉमिनियन स्टेटस' देने की बात कह रहा था, परंतु यह प्रस्ताव कांग्रेस और अन्य भारतीय नेताओं के लिए अस्वीकार्य था। भारतीय जनता ने इसे धोखा माना और इसे तुरंत खारिज कर दिया गया। महात्मा गांधी ने इसे "पोस्टडेटेड चेक"(भविष्य का वादा जो बेकार है) कहा और ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

गांधी जी की "करो या मरो" की घोषणा
8 अगस्त 1942 को मुंबई में ग्वालियर टैंक मैदान (जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में महात्मा गांधी ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने की मांग की। गांधी जी ने अपने भाषण में यह नारा दिया: "करो या मरो" (Do or Die)। उन्होंने भारतीय जनता से आह्वान किया कि अब समय आ गया है कि हमें पूर्ण स्वतंत्रता के लिए आखिरी संघर्ष करना होगा, और इसमें हमें सफल होना होगा या फिर मर जाना होगा।

भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत:→
गांधी जी की "करो या मरो" की घोषणा के साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन के तहत भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सभी प्रकार का सहयोग समाप्त करने का आह्वान किया गया। 

कांग्रेस ने इस आंदोलन में भाग लेने वाले सभी भारतीयों से कहा कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ सत्याग्रह करें, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दें, करों का भुगतान बंद करें, और सभी प्रकार के ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करें। 

 ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया:→
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने इसे कुचलने के लिए तुरंत कठोर कदम उठाए। आंदोलन शुरू होते ही, 9 अगस्त 1942 को ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 

गांधी जी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया, जबकि अन्य नेताओं को भी अलग-अलग जेलों में कैद कर दिया गया। कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया और इसके सभी कार्यालयों को जब्त कर लिया गया। इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय जनता पर दमनकारी कदम उठाए और हजारों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया। प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई और जनता पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए।

आंदोलन का प्रसार:→
ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन पूरे देश में तेजी से फैल गया। यह आंदोलन किसी एक नेता द्वारा निर्देशित न होकर, पूरी तरह जनता के स्वाभाविक विद्रोह के रूप में विकसित हुआ। 

1. शहरी क्षेत्रों में:→मजदूरों और छात्रों ने बड़े पैमाने पर हड़तालें कीं, रेलवे लाइनों को उखाड़ा गया, टेलीफोन और तार संचार को बाधित किया गया। भारतीय जनता ने अहिंसक और हिंसक दोनों प्रकार के प्रतिरोध किए। खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और बंगाल में आंदोलन ने बड़े रूप में जोर पकड़ा। 

2. ग्रामीण क्षेत्रों में:→गाँवों में किसानों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया, सरकारी भवनों और पुलिस स्टेशनों पर हमला किया, और ब्रिटिश अधिकारियों को निष्कासित कर दिया। बिहार के बलिया, मिदनापुर, और तमिलनाडु के कई जिलों में विद्रोही जनता ने कुछ समय के लिए अपनी सरकारें स्थापित कर ली थीं।

3. युवाओं और महिलाओं की भूमिका:→इस आंदोलन में युवाओं और महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया। अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, उषा मेहता, और अन्य महिलाओं ने आंदोलन को आगे बढ़ाया। उषा मेहता ने भूमिगत रेडियो स्टेशन की स्थापना की, जिससे जनता को प्रेरित किया गया और आंदोलन की सूचनाएं फैलाई गईं।

हिंसा और दमन:→
हालांकि गांधी जी ने इस आंदोलन को अहिंसक रखा था, लेकिन ब्रिटिश सरकार के अत्यधिक दमन के कारण कई जगहों पर हिंसा भड़क गई। आंदोलनकारियों ने पुलिस स्टेशनों, डाकघरों, सरकारी इमारतों पर हमले किए। ब्रिटिश सरकार ने हिंसा को कुचलने के लिए कड़े कदम उठाए। 

ब्रिटिश पुलिस और सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए गोलीबारी की, जिससे हजारों लोग मारे गए। इस आंदोलन के दौरान हजारों लोग घायल हुए और लाखों लोगों को गिरफ्तार किया गया। ब्रिटिश सरकार के इस दमनकारी रवैये के बावजूद, आंदोलन जारी रहा और कई जगहों पर जनता ने अपने-अपने ढंग से आंदोलन को जारी रखा।

भूमिगत गतिविधियाँ:→
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की गिरफ्तारी के बाद भी आंदोलन बंद नहीं हुआ। कई नेताओं और क्रांतिकारियों ने भूमिगत रूप से आंदोलन को जारी रखा। जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जैसे नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों का नेतृत्व किया। 

इन नेताओं ने गुप्त रूप से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। उषा मेहता ने बंबई में गुप्त रेडियो स्टेशन शुरू किया, जो आंदोलन के संदेशों को प्रसारित करता था और भारतीय जनता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित करता था। 

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव:→
1. राष्ट्रीय आंदोलन को गति:→भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया जोश भर दिया। इस आंदोलन ने जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया और स्वतंत्रता के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता को मजबूत किया।

2. ब्रिटिश शासन का विरोध:→आंदोलन ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया कि भारतीय जनता अब ब्रिटिश शासन को और सहन नहीं कर सकती। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह अहसास दिलाया कि भारत पर उनका शासन लंबे समय तक जारी नहीं रह सकता।

3. अंतरराष्ट्रीय समर्थन:→भारत छोड़ो आंदोलन ने विश्व स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य की साख को धक्का लगा और भारत की स्वतंत्रता की मांग को वैश्विक समर्थन मिला।

4. महात्मा गांधी की भूमिका:→महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के माध्यम से स्पष्ट किया कि अब भारतीय जनता किसी भी प्रकार के आधे-अधूरे वादों को स्वीकार नहीं करेगी। उनकी "करो या मरो" की नीति ने स्वतंत्रता की मांग को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया।

5. स्वतंत्रता की दिशा में कदम:→भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार को यह समझ आ गया कि अब भारत में उनकी सत्ता बहुत समय तक नहीं टिक सकती। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव को हिला दिया, और अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली।

निष्कर्ष:→
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम और सबसे बड़ा आंदोलन था। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में हुआ और इसमें भारतीय जनता ने बड़ी संख्या में भाग लिया। आंदोलन ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता के प्रति गहरी जागरूकता और संघर्ष की भावना को और भी प्रबल किया। 

हालांकि यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के कठोर दमन के कारण सफल नहीं हो पाया, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक रूप से आगे बढ़ाया और ब्रिटिश शासन की नींव को कमजोर कर दिया। अंततः, भारत छोड़ो आंदोलन के बाद, भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में घटनाएं तेजी से बढ़ीं, और 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

लोकतंत्र में नागरिक समाज की भूमिका: Loktantra Mein Nagrik Samaj ki Bhumika

लोकतंत्र में नागरिकों का महत्व: लोकतंत्र में जनता स्वयं अपनी सरकार निर्वाचित करती है। इन निर्वाचनो  में देश के वयस्क लोग ही मतदान करने के अधिकारी होते हैं। यदि मतदाता योग्य व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करता है, तो सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलता है. एक उन्नत लोक  प्रांतीय सरकार तभी संभव है जब देश के नागरिक योग्य और इमानदार हो साथ ही वे जागरूक भी हो। क्योंकि बिना जागरूक हुए हुए महत्वपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होती है।  यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपने देश या क्षेत्र की समस्याओं को समुचित जानकारी के लिए अख़बारों , रेडियो ,टेलीविजन और सार्वजनिक सभाओं तथा अन्य साधनों से ज्ञान वृद्धि करनी चाहिए।         लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। साथ ही दूसरों के दृष्टिकोण को सुनना और समझना जरूरी होता है. चाहे वह विरोधी दल का क्यों ना हो। अतः एक अच्छे लोकतंत्र में विरोधी दल के विचारों को सम्मान का स्थान दिया जाता है. नागरिकों को सरकार के क्रियाकलापों पर विचार विमर्श करने और उनकी नीतियों की आलोचना करने का ...