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97वें संविधान संशोधन की पृष्ठभूमि:-
सहकारी समितियों का उद्देश्य लोगों को एक साथ लाकर उनके हितों की रक्षा करना होता है। इसे और बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार ने 97वें संविधान संशोधन को 2011 में लागू किया, जिसका उद्देश्य सहकारी समितियों को अधिक लोकतांत्रिक और स्वायत्त (स्वतंत्र) बनाना था। इसके जरिए संविधान में भाग IXB जोड़ा गया, जिसमें सहकारी समितियों से जुड़े नियमों और कार्यप्रणालियों को सुधारने के प्रावधान थे।
इस संशोधन के तहत, यह भी कहा गया कि सहकारी समितियों के चुनाव नियमित रूप से होंगे, ताकि उनका संचालन सुचारू रूप से हो सके। इसके साथ ही, सहकारी समितियों को अधिक पारदर्शी और पेशेवर बनाया जा सके।
हालांकि, समस्या तब आई जब कुछ लोगों ने यह तर्क दिया कि सहकारी समितियों पर कानून बनाना सिर्फ राज्यों का अधिकार है, न कि केंद्र का। इस मुद्दे को लेकर यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
मुख्य सवाल:-
इस मामले में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या 97वें संविधान संशोधन के जरिए केंद्र सरकार ने राज्यों की शक्तियों का उल्लंघन किया है? क्योंकि संविधान की सातवीं अनुसूची में सहकारी समितियां राज्य सूची में आती हैं, इसलिए केवल राज्यों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है। सवाल यह भी था कि क्या इस संशोधन के लिए राज्यों की मंजूरी की जरूरत थी?
संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधान:-
(1.)सातवीं अनुसूची- यह अनुसूची संघ (केंद्र) और राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे का निर्धारण करती है। इसमें "राज्य सूची" में सहकारी समितियों का उल्लेख है, यानी इस पर कानून बनाना राज्यों का अधिकार है।
(2.)अनुच्छेद 368(2) - यह अनुच्छेद संविधान संशोधन की प्रक्रिया बताता है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई संशोधन राज्यों की शक्तियों को प्रभावित करता है, तो उसे राज्यों की मंजूरी लेनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:-
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सहकारी समितियां राज्य सूची का हिस्सा हैं, इसलिए 97वें संशोधन के जरिए राज्यों की शक्तियों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस संशोधन के लिए राज्यों की मंजूरी जरूरी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जहां तक यह राज्य सहकारी समितियों पर लागू होता है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि मल्टी-स्टेट सहकारी समितियों पर यह संशोधन लागू रहेगा, क्योंकि उन पर केंद्र को कानून बनाने का अधिकार है।
संघीय ढांचे की पुष्टि:-
यह फैसला संघवाद (फेडरलिज्म) के सिद्धांत की पुष्टि करता है, जिसमें केंद्र और राज्यों की अपनी-अपनी शक्तियां निर्धारित हैं। कोर्ट ने साफ किया कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
उदाहरण से समझें:-
मान लीजिए, सहकारी समितियों पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण है, जैसे किसी बड़े कंपनी के अंदरूनी विभागों का प्रबंधन उसके खुद के जिम्मे होता है। लेकिन 97वें संशोधन के जरिए केंद्र सरकार ने उन विभागों के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अनुचित है और यह सिर्फ राज्य सरकार का अधिकार है कि वह अपने विभागों का संचालन करे।
निष्कर्ष:-
संघ बनाम राजेंद्र एन. शाह मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारतीय संघीय ढांचे की सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम है। इसने यह सुनिश्चित किया कि राज्यों के पास उनके अधिकार सुरक्षित रहें और केंद्र सरकार उनके कामों में दखलअंदाजी न करे।
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