Skip to main content

असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के क्या मानव अधिकार हैं? इस पर विस्तार से चर्चा करो।

वर्तमान समय में विश्व के अनेक देशों ने महिलाओं की पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किये हैं। परन्तु आज भी पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव का वर्ताव किया जाता है। यह कार्य बड़ी सम्मानजनक तरीके से किया जाता है। उत्पाद के फल में उनकी बराबरी की सहभागिता नहीं है। दुनिया के गरीबों में 70 प्रतिशत आबादी महिलाओं की है। अतः महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दे वैश्विक और सार्वभौमिक हैं। आज के युग में महिलाओं के प्रति संस्थापित दृष्टिकोण और व्यवहार, उनके विरुद्ध असमानता और भेदभाव को लोक और निजी जीवन में दिनचर्या के रूप में दुनिया के सभी भागों में स्थायी रूप से बनाये रखा गया है। वहीं यह भी सर्वानुमति उभरी है कि 21 वीं सदी के न्यायोचित और जनतान्त्रिक समाज के लिए सभी लोगों के लिए अवसर की समानता अनिवार्य है। समता, विकास और शान्ति पर आधारित समाज के लिए यह अत्ति आवश्यक है कि महिलाओं का सर्वांगीण विकास हो। 


महिलाओं के अधिकार :



अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी विकास (Right of Women: International Legal Development) -→ लिंग पर आधारित भेदभाव ऐतिहासिक घटना सदियों से रही है। यह सरकारी और विधि की विशेषता पूरे इतिहास के दौर में रही है। महिलाएँ एक समूह के रूप में ऐतिहासिक वंचनाओं की शिकार बड़े पैमाने पर रही हैं। इनके अधिकारों की रक्षा उसी समता के धरातल पर नहीं होती जिस पर पुरुषों की, इन्हें रक्षा से वंचित रखा गया, इनके मानवाधिकार की प्रतिपूर्ति नहीं हुई और इसका कारण शासकीय और निजी व्यवहार तथा विधि और संस्थाएँ रही हैं। महिलाओं के अधिकारों के प्रति वंचनाएँ, एल. कैनोविज का कहना है कि वे किसी भी रूप में अतीत के पुरावेश नहीं है अपितु अब भी समुदायों के जीवन को पूरी दुनिया में जीवन के एक तथ्य के रूप में प्रभावित करते हैं। 


               यदि दोनों लिंगों, स्त्री और पुरुष के बीच, समता को बढ़ावा देता है, और महिलाओं का सम्पूर्ण विकास के प्रयत्नों में पूर्ण समाकलन (एकीकरण) सुनिश्चित किया जाता है, तो जो माननीय न्यायमूर्ति श्री. आर. कृष्णन अय्यर, किसी अन्य सन्दर्भ में कहते हैं, उनके अनुसार मानव अन्याय की विरासत को, 'मानव अधिकार की सम्पदा' से अवश्य विस्थापित किया जाना चाहिए अपितु वास्तविक रूप में गैरकानूनी करार दे देना चाहिए ताकि महिलाओं को यह अवसर प्राप्त हो सके कि वे अपने चारों तरफ समुदाय के मूल्यों को प्रभावित कर सकें और उसमें भागीदारी कर सकें। यही वह क्षेत्र है जहाँ हमें यह देखना है कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने क्या किया है।



            लिंग के आधार पर भेदभाव के प्रतिषेध को आज 'गैर भेदभाव के सामान्य मानक' की जो प्रवृत्ति है उसके एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाने लगा है। ठीक ही कहा जाता है कि लिंग पर आधारित भेदभाव मिटाना संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर उभार के पूर्व भी महिलाओं का संरक्षण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लगाव (सरोकर) का विषय रहा है, यद्यपि, बहुत सीमित रूप है। यह सरोकार हेग अभिसमय 1902 में विवाह-विच्छेद और अवयस्कों की संरक्षता से सम्बन्धित विधियों में होने (conflict) की विवेचना करता है। महिलाओं के अधिकारों के लगाव को पुनः श्वेत दास के अवैध कारोबार करने को रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय करार, 18 जुलाई, 1904 (पेरिस) जिसे प्रोटीकोल, जो 4 मई, 1949 को लेक सक्सेना, न्यूयार्क, में हस्ताक्षारित किया गया, के द्वारा संशोधित किया गया। श्वेत दास के अवैध कारोबार करने को रोकने सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय, जिस पर पेरिस में 4 मई, 1910 को हस्ताक्षरित हुआ, के द्वारा संशोधित हुआ, में देखा जा सकता है। इन दस्तावेजों को महिलाओं में दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अंगीकार किया गया था। महिलाओं के अधिकार सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय लगाव को राष्ट्र संघ को प्रसंविदा में भी देखा जा सकता है। राष्ट्र संघ की प्रसंविदा यह प्रावधान करती है कि- 


   "राष्ट्र संघ से सम्बन्धित या उसके अन्तर्गत सभी पर, जिसमें सचिवालय भी सम्मिलित है, पुरुषों और महिलाओं के लिए समानता के आधार पर खुला होगा।


     " इस सम्बन्ध में एक अन्य महत्वपूर्ण विकास, पूर्णवय की महिलाओं के अवैध दुर्व्यापार को रोकने सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय अधिसमय जो जेनेवा में 11 अक्टूबर, 1933 को हस्ताक्षरित हुआ के रूप में हुआ। 


      क्षेत्रीय स्तर पर भी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयत्न किये गये। अमेरिकी राज्यों के संगठन के छठे सम्मेलन हवाना, 1928 ने महिलाओं के लिए अन्तर-अमेरिका आयोग की स्थापना (Inter American Commission of Women) की। इस आयोग के प्रयलों के परिणामस्वरूप अमेरिकी राज्यों ने नवें सम्मेलन ने, जो वोगांटा कोलम्बिया में (मार्च 30, मई 2,  1948) आयोजित हुआ था, दो अभिसमय अंगीकार किये। ये अधिसमय हैं-महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करने के लिए अन्तर- अमेरिकी अधिसमय (Inter American Convention to Grant Civil Rights of Women) और महिलाओं को सिविल (नागरिक) अधिकार प्रदान करने के लिए अन्तर-अमेरिकी अधिसमय (Inter American Convention of Grant Civil Rights to Women) हैं। राजनीतिक अधिकारों का अभिसमय प्रावधान करता है कि- 


     'प्रसंविदाकारी उच्च पक्षकार सहमत है कि मत देने का अधिकार और राष्ट्रीय पदों पर चयनित होने के अधिकार को लिंग के आधार पर नकारा नहीं जाएगा या न घटाया जायेगा।


     नागरिक अधिकारों से सम्बन्धित अभिसमय यह प्रतिपादित करता है कि- 'अमेरिकी राज्य महिलाओं को वही सिविल अधिकार प्रदान करने के लिए सहमत है जिनका उपयोग पुरुष करतें हैं।



    " महिलाओं की राष्ट्रीयता को लेकर मान्टीविडियो अभिसमय, (Montevideo Convention on the Nationality of Married Women), 1933 का उल्लेख यहीं अप्रासांगिक नहीं होगा। राष्ट्रीयता के मामले में यह अभिसमय लिंग की समानता के सिद्धान्त को दृढ़ता से प्रतिपादित करता है। अधिसमय यह नियम अंगीकार करता है कि-


      'राष्ट्रीयता के मामले लिंग पर आधारित कोई भेदभाव उनके विधान या उनके व्यवहार में नहीं होगा।'


      अमेरिकी राज्यों के आठवें अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन ने, जो लीमा में दिसम्बर 1938 में आयोजित हुआ था, कई घोषणाएँ अंगीकार कीं। उनमें से एक महिलाओं के अधिकार से सम्बन्धित था। यह घोषणा यह प्रतिपादित करता है कि महिलाओं के साथ पुरुषों के समान राजनीतिक व्यवहार होगा, सिविल स्थित वे बराबरी होगी, उन्हें काम के लिए पूरा अवसर और संरक्षण होगा, और उनकी माता के रूप में पर्याप्त सुरक्षा होगी।



      यहाँ यह बताना भी अप्रासंगिक न होगा कि मानव अधिकारों और कर्त्तव्यों को अमेरिकी घोषणा, 1948 जो अमेरिकी राज्यों के नवें अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का परिणाम है, और 1948 में बोगाटा में आयोजित हुआ था। यह प्रावधान करता है कि-



     "सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं और इस घोषणा में उल्लिखित सभी अधिकार और कर्त्तव्य, मूलवंश, लिंग, भाषा, पंथ या किसी अन्य कारक पर आधारित भेदभाव के बिना उपयोग करेंगे।"



             फिलाडेलिफिया की घोषणा (1944) जो अन्तर्राष्ट्रीय प्रथम संगठन के लक्ष्यों या उद्देश्यों से सम्बन्धित घोषणा है, भाग तीन (Section III) करता है कि-



       "मूलवंश, पंथ या लिंग पर आधारित भेदभाव के बिना सभी मानव अपने नैतिक कल्याण और आध्यात्मिक विकास, स्वतन्त्रता और आर्थिक सुरक्षा तथा समान अवसर की गरिमा की स्थिति में पाने का प्रयत्न कर सकेंगे।"


संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के प्रावधान (Charter Provision of the United Nations) - यह पहले ही लिखा जा चुका है कि लिंग पर आधारित भेदभाव का प्रतिषेध, संयुक्त राष्ट्र संघ का पूर्वाधिकार रहा है।


        यहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ की उद्देशिका का उल्लेख आवश्यक है, जो पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकार की बात करता है, अनुच्छेद 1(3) का कहना है कि, "मानव अधिकारों के लिए और किसी प्रकार के जाति, लिंग, भाषा या धर्म पर आधारित किसी भेदभाव के बिना सबकी मौलिक स्वतन्त्रता के लिए चादर की भावना को बढ़ाना और प्रोत्साहित देना।" यहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र चार्टर के अनुच्छेद 13 (1) (ख), 55 (ग), 56, 62 (2) और 76 (ग) का भी उल्लेख आवश्यक है जो मानवाधिकार सम्बन्धी प्रावधानों की विवेचना करता है, और संगठन की उद्देशिका और प्रयोजन सम्बन्धी प्रावधानों को ठोस अभिव्यक्ति प्रदान करता है। यहाँ अनुच्छेद 8 के प्रावधानों का भी उल्लेख समीचीन होगा। इन प्रावधानों के अनुसार- 



      "संयुक्त राष्ट्र संघ अपने मुख्य तथा सहायक अंगों में स्त्रियों और पुरुषों की किसी भी हैसियत से और समानता के आधार पर भाग लेने की पात्रता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगायेगा।"



    पुरुषों और महिलाओं की समानता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए उपाय (Measures taken by the United Nation to Promote Equality of Men and Women) - स्त्रियों और पुरुषों के बीच समानता को बढ़ावा देने और स्त्रियों की प्रास्थित (Status) को सुधारने की प्रेरणा संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा से प्राप्त हुई जिसने गैर-भेदभाव (Non-discrimination) के एक सामान्य मानक की स्थापना की। लिंग पर आधारित भेदभाव अनुज्ञेय नहीं है। यह समान संरक्षण के प्रावधान का भी प्रतिपादन करता है। 



        कानून की निगाह में सभी कानूनी सुरक्षा के अधिकारी हैं। यदि इस घोषणा का अतिक्रमण करके कोई भी भेदभाव किया जाय, इस प्रकार के भेदभाव को किसी प्रकार उकसाया जाय तो उसके विरुद्ध समान संरक्षण का अधिकार सभी प्राप्त है। 



      आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का अनुच्छेद 3 यह प्रावधान करता है कि- →


     "वर्तमान प्रसंविदा के राज्य पक्षकार यह वचन देते हैं कि वे वर्तमान प्रसंविदा ने उल्लिखित सभी आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों के उपयोग में पुरुषों और स्त्रियों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करेंगे।"



      ठीक इसी नीति से नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का अनुच्छेद यह कहता है कि वर्तमान प्रसंविदा के राज्य पक्षकार यह वचन देते हैं कि वे वर्तमान प्रसंविदा में उल्लिखित सभी नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के उपयोग में पुरुषों और स्त्रियों के समान अधिकारों को सुनिश्चित करेंगे।




      संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में किये गये तमाम उपाय स्त्रियों की प्रास्थित पर आयोग (Commission on the Status of Women) के प्रयत्नों का परिणाम है। मूल रूप से आयोग की स्थापना ब्राजील के प्रस्ताव पर स्त्रियों को प्रास्थित पर एक उप-आयोग के रूप में हुई थी। आयोग को यह अधिदेश/आदेश (mandate) दिया गया था कि वह परिषद् को राजनीतिक, आर्थिक, सिविल, सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं के अधिकार के सम्बर्धन हेतु संस्कृति और प्रतिवेदन दे। इसे यह भी उतरदायित्व सौंपा गया था कि यह महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में तत्काल ध्यान दिये जाने सम्बन्धी अत्यावश्यक समस्याओं पर भी परिषद् को संस्तुति दे।


     महिलाओं को प्रास्थिति पर आयोग, महिलाओं के अधिकारों से सम्बन्धित अधिकारों पर अभिसमय का प्रारूप तैयार करता है तथा प्रत्येक दूसरे वर्ष अपना सम्मेलन आयोजित करता है। इस बात के परीक्षण के लिए कि दुनिया भर में महिलाओं के लिए समानता की प्राप्ति में कितनी प्रगति हुई है। यह विशिष्ट अभिकरणों के साथ और मुख्यालय से अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनेस्को से घनिष्ठ रूप से मिलकर, इन मामलों में महिलाओं के आर्थिक और शिक्षा के अधिकार प्रभावित होते हैं, काम करता है। 



      इस बात पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए कि महिलाओं के सम्बन्ध जो अन्तर्राष्ट्रीय मानक है उनका कार्यान्वयन कैसे हो, संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यक्रम महिलाओं और पुरुषों के लिए समान अवसर और समान अधिकार पर भी विशेष बल देते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में महिलाओं की परिवार में भूमिका और देशों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास में महिलाओं के पूर्ण एकीकरण पर जोर दिया जाता है। राष्ट्रीय जनसंख्या और महिलाओं की प्रास्थिति (स्थित) के बीच सम्बन्धों का भी अध्ययन किया जाता है।



       1962 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने यह तय किया कि महिलाओं के विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की एक दीर्घकालिक एकीकृत योजना प्रारम्भ और क्रियान्वित की जाय। इस कार्य योजना का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के समापन के लिए एक घोषणा की उद्घोषणा (Proclamation)। यह घोषणा वास्तव में 1967 में उ‌द्घोषित की गई। 



     उद्देशिका के अतिरिक्त इस घोषणा में 11 अनुच्छेद1 के प्रावधानों के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव, जो पुरुषों के साथ इसकी समानता को नकारता है या सीमित करता है वह मूलरूप से अन्यायोचित है और मानव गरिमा के विरुद्ध एक अपराध है। इस घोषणा में अंगीकृत मुख्य अधिकार है- राजनीतिक अधिकार, राष्ट्रीयता का अधिकार, सिविल विधियों के अन्तर्गत अधिकार, महिलाओं में दुर्व्यापार, शिक्षा से सम्बन्धी अधिकार और आर्थिक अधिकार। 


                 यह घोषणा, "महिलाओं के लिए समान अधिकार के सिद्धान्त के सूत्रीकरण हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके दूसरे अंगों, जिसमें गैर-सरकारी संगठन भी सम्मिलित हैं, के प्रयत्नों की पराकष्ठा है।"



      1968 में (22 अप्रैल, 13 मई) तेहरान, ईरान में मानवाधिकार पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ है। उसमें 13 मई, 1968 को एक घोषणा जारी की, जिसे तेहरान घोषणा के नाम से जाना जाता है। इस घोषणा ने अपने 15वें बिन्दु में कहा- 



     "भेदभाव जिसका किस महिलाएँ दुनिया के सभी क्षेत्रों में अब भी शिकार हैं, उसका समापन किया जाना चाहिए। महिलाओं के लिए अवर स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र  और मानव अधिकारों के सर्वभौम घोषणा के प्रावधानों के विरुद्ध भेदभाव के समापन सम्बन्धी घोषणा का पूर्ण कार्यान्वयन मानवता की प्रगति के लिए अनिवार्य है।" 



     संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 1975 को ' अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष' के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं समानता के सिद्धान्त, सार्वभौम मान्यता, विधितः और तथ्यतः को बल प्रदान करना था। अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष का महिलाओं का विश्व सम्मेलन 19 जून से 2 जुलाई, 1975 तक मेक्सिको में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में एक सम्मेलन 19 जून से 2 जुलाई, 1975 तक मेक्सिको में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में एक घोषणा-पत्र जारी किया गया जिसमें महिलाओं और पुरुषों की समानता और विकास और शान्ति में महिलाओं का योगदान सम्बन्धी सिद्धान्तों का उल्लेख था। इस सम्मेलन ने एक विश्वकार्य योजना (World Plan of Action) तैयार किया जिसमें महिलाओं की स्थिति के सुधार के लिए दिशा-निर्देश और लक्ष्य निर्धारित किये। इस सम्मेलन की विषय-वस्तु 'समानता विकास और शान्ति' था। विश्व कार्य योजना के अतिरिक्त सम्मेलन ने एक घोषणा (मेक्सिको घोषणा) तथा महिलाओं की स्थिति तथा सम्बन्धित मुद्दों को लेकर 34 संकल्प पारित किया। सम्मेलन ने यह भी संस्तुति की कि 1975-83 को 'महिला और विकास का दशक' घोषित किया गया। महासभा ने 1976-85 को 'महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ दशक' घोषित किया। 1976 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओं के विकास के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय शोध और प्रशिक्षण संस्थान, जिसका मुख्यालय सैण्टो डोमिंगो, डोमिनिकल रिपब्लिक में होगा, के निर्माण को स्वीकृति प्रदान की। इसी क्रम में महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कोष की स्थापना की गई। 


 मानवाधिकार एवं महिलाओं की प्रास्थिति (Human Rights and Position of Women) :-  →नारी को प्राचीनकाल से सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। उसे शान्ति एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कहा गया है कि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है (यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता) वह वाक्यांश हमारी संस्कृति की समृद्धता को दर्शाता है। किन्तु धीरे-धीरे नारियों की सम्मानजनक स्थिति में ह्रास होने लगा और उनके विरुद्ध विभिन्न प्रकार के अत्याचार बढ़ते गये। वर्तमान युग नारी स्वतन्त्रता का युग है। नारी हर क्षेत्र में पुरुषों का मुकाबला कर रही है। जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है। संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में उनके लिए व्यवस्था है। अनुच्छेद 243-घ में पंचायतीराज संस्थाओं में उनके लिए आरक्षण की बात की गई है।



                    मानव अधिकार (Human Right) सम्बन्धी विधियों में भी महिलाओं को पर्याप्त कानूनी संरक्षण दिया गया है। वर्तमान समय में नारी की स्थिति सुदृढ़ हो रही है, महिला उत्पीड़न की घटनाओं में होने वाली वृद्धि को रोकने हेतु तथा महिलाओं को विशेष संरक्षण प्रदान किये जाने हेतु प्रयास किया जा रहा है।


स्टेट ऑफ पंजाब बनाम गुरुमीत सिंह (ए. आई. आर. 1996 एस. सी. 1993) के मामले में न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया कि बालत्संग जैसे मामले की सुनवाई यथासम्भव महिला न्यायाधीशों द्वारा की जाये। 


बोधिसत्व गौतम बनाम शुभ्रा चक्रवर्ती (ए. आई. आर. 1996 एस. सी. 922) के मामले में एक शिक्षक ने अपनी शिष्या का यौन उत्पीड़न किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले का गम्भीरता से लिया और शिक्षक को ₹ 1,000 पीड़िता को दिए जाने का निर्देश दिया।


       महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों का साथ दे रही हैं। वर्तमान समय में कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है और उन्हें विशेष संरक्षण दिये जाने की अपेक्षा है ताकि उनका शोषण न हो सके।



 विशाका बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (ए. आई. आर. 1997 एस. सी. 3011) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने के लिए कतिपय महत्वपूर्ण निर्देश दिये। ये निर्देश निम्नवत् हैं- 


(i) जहाँ कामकाजी महिलाएँ हैं जहाँ के नियोक्ताओं एवं अन्य जिम्मेदार अधिकारियों का यह कर्त्तव्य होगा कि वे कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण रोकने का प्रवन्ध करें और दोषी व्यक्तियों को दण्ड दिलवाने हेतु कार्यवाही करायें। 


(ii) कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न के निवारण हेतु तत्सम्बन्धी निर्देश सूचना- पट्टों पर लगायें और मौन उत्पीड़न निवारण हेतु सख्त कदम उठायें।


 (iii) यदि यौन उत्पीड़न के लिए किसी व्यक्ति का अभियोजन किया जाता है तो यह सुनिश्चित किया जाये कि पीड़िता महिला और मामले के सम्बन्ध में साक्ष्य देने वाले व्यक्ति को परेशान न किया जाये।


 (iv) कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न सम्बन्धी परिवादों की सुनवाई हेतु शिकायत समितियों का गठन किया जाये।


 (v) ऐसी समितियों का अध्यक्ष महिलाओं को बनाया जाये।


 (vi) किसी कामकाजी महिला के साथ बाहरी व्यक्तियों द्वारा यौन शोषण रोकने हेतु व्यापक प्रबन्ध कार्यवाही करना चाहिए। 


(vii) केन्द्र और राज्य सरकारों को कामकाजी महिलाओं के यौन शोषण रोकने हेतु व्यापक प्रबन्ध कार्यवाही करना चाहिए। 


उपर्युक्त मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने मौन उत्पीड़न की परिभाषा भी दी है। यह निम्न रूपेण है-

 (1) शारीरिक सम्पर्क या ऐसे सम्पर्क का प्रयास।

 (2) यौन सम्पर्क का प्रयास।

 (3) कोमोत्तेजक चित्रों का प्रदर्शन। 

(4) अन्य अश्लील आचरण।


महिलाओं के मानव अधिकार एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है, जो विश्वभर में अलग - अलग समाजों और संस्कृतियों में विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने महिलाओं के अधिकारो की रक्षा और संवर्धन के लिये कई महत्वपूर्ण कदम उठायें हैं।


          मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा [UDHR] और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संधियों ने महिलाओं के अधिकारों की गारंटी की है। महिलाओं के मानव अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त और संरक्षित हैं। ये अधिकार महिलाओं को उनके जीवन के हर पहलू में सामनता, सम्मान और गरिमा प्रदान करने के लिये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार कानून और संधियों के माध्यम से महिलाओं को हिंसा, भेदभाव, और अन्याय से बचाने के लिये व्यापक अधिकार दिये गये हैं। इन अधिकारों को विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा लागू और संरक्षित किया जाता है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र [UNAJ मानव अधिकार परिषद, और अन्य क्षेत्रिय  संगठनों द्वारा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के मानव अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिये कई महत्वपूर्व संधियाँ सम्मेलन और नीतियाँ स्थापित की गयी हैं। ये अधिकार महिलाओं के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य कार्यस्थल, राजनीति और व्यक्तिगत सुरक्षा शामिल है।


महिलाओं के मानव अधिकारों को विशेष महत्व दिया गया है। क्योंकि ऐतिहासिक रूप से उन्हें कई समाजों में भेदभाव और अत्याचार का सामना पड़ा है। सयुक्त राष्ट्र और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और प्रोत्साहन के लिये विभिन्न समझौते और सम्मेलन अपनायें हैं। 

अन्तर्राष्ट्रीय संधियों और कानून 


[1] सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषणा [UDHR]:→ 1948 में सयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनायी गयी सार्व- भौमिक मानव आधिकार घोषणा, जिसमें महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिये समान अधिकारों की गारंटी दी गयी है। इस घोषणा का अनुच्छेद 1 कहता है कि "सभी मनुष्य जन्मजात स्वतंत्रता और समान अधिकारों एवं गरिमा के साथ जन्म लेते हैं। इस घोषणा पत्र के तहत सभी व्यक्तियों की बिना लिंग, जाति, धर्म, या अन्य भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त हैं। महिलाओं के अधिकार जैसे कि जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, और न्याय का अधिकार, इस घोषणा पत्र में शामिल है।

 महिलाओं के मानव अधिकार : अंतरराष्ट्रीय दुष्टिकोण 


[A] शिक्षा का अधिकार : → शिक्षा का अधिकार हर महिला का मौलिक अधिकार है। UDHR के अनुच्छेद 26 में इसे स्पष्ट किया गया है। शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है और उन्हें अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में सशक्त बनाती है। यूनेस्को के अनुसार सभी को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।

[B] स्वास्थ्य का अधिकार:  →महिलाओं का स्वास्थ्य अधिकार। जिसमें यौन और प्रजनन स्वास्थ्य शामिल है, अन्तर्राष्ट्रीय संधियों जैसे कि CEDAW  [ convention on the Elimination of All forms of Discrimination Against women] द्वारा संरक्षित है। यह अधिकार महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति देता है। अफ्रीका के कई देशों में मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करके महिलाओं की जीवन दर में वृद्धि हुई है।


 [C] कार्यस्थल पर समानता का अधिकार :-→ महिलाओं को कार्यस्थल पर समान अवसर और समान वेतन का अधिकार है। उदाहरण के लिये, आइसलैंड ने • 2018 में एक कानून पारित किया जिसने कम्पनियों को यह साबित करने के लिये बाध्य किया कि वे महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन दे रहे हैं। कार्यस्थल में महिलाओं को समान वेतन, सम्मान और अवसर मिलने चाहिये। किसी भी प्रकार के लैंगिक भेदभाव को रोकने के लिये कडे कानून बनाये गये हैं। 


Note: -→ भारत में महिलाओं को कार्यस्थल पर समान अवसर और समान वेतन देने के लिये कई कानून बनाये गये हैं। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देना और कार्यस्थल पर लैगिंक भेदभाव को रोकना है।

 प्रमुख कानून


• समान वेतन अधिनियम 1976: → यह अधिनियम समान काम के लिये पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन देने का प्रावधान करता है।


 • लिंग आधारित भेदभाव निषेध अधिनियम 1976: यह अधिनियम रोजगार, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में लिंग आधारित भेदभाव की प्रतिबंधित करता है।

 • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडन [रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम 2013

 यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीडन से बचाने के लिये बनाया गया है। यह अधिनियम महिलाओं को एक सुरक्षित और सम्मानजनक कार्य वातावरण प्रदान करने के लिये बनाया गया है।


 अधि‌नियम का उद्देश्य :→


 • कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाव।

 • यौन उत्पीडन के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की एक व्यवस्था स्थापित करना। 

• यौन उत्पीडन के आरोपों की जांच के लिये एक तंत्र स्थापित करना। 

दोषी पाये गये व्याक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करना।

 अधिनियम में यौन उत्पीडन की परिभाषा: इस अधिनियम में यौन उत्पीड़न को व्यापक रुप से परिभाषित किया गया है। इसमें शारीरिक, मौखिक और गैर-मौखिक यौन प्रकृति के अवांछित शब्द, कृत्य व इशारे शामिल हैं जो महिला की गरिमा को कम करते हैं यह एक भयभीत, शत्रुतापूर्ण या अपमानजनक कार्य वातावरण बनाते हैं।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान :-→

 • शिकायत समिति :-→  हर संगठन में एक शिकायत 'समिति का गठन करना अनिवार्य है। 

• शिकायत दर्ज करना:  →कोई भी महिला शिकायत समिति के पास लिखित या मौखिक रूप से शिकायत  दर्ज करा सकती है। 

• जांच : → शिकायत समिति की शिकायत की जांच करनी होगी और 30 दिनों के भीतर अपना रिपोर्ट देना होगा।


 • सजा: → यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की जा सकती है जिसमें बर्खास्तगी भी शामिल है। 


• जागरुकता :→  संगठनों को कर्मचारियों को यौन उत्पीडन के बारे में जागरूक करना होगा और प्रशिक्षण प्रदान करना होगा।

 • सुरक्षित कार्य वातावरण :→  संगठनों को एक सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने के लिये उचित कदम उठाने होंगें। 

अधिनियम के उल्लंघन के लिये दंड: →  अधिनियम के उल्लघन के लिये दंड संगठन के प्रकार और अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है। दंड में जुर्माना, कारावास या दोनों शामिल हो सकते हैं। 


अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये चुनौतियाँ : →

• जागरुकता की कमी :→  कई महिलायें अभी भी अपने अधिकारों के बारे में जागरुक नहीं है।

 • शिकायत दर्ज करने में हिचकिचाहटः  → कई महिलायें डर के कारण शिकायत दर्ज करने से हिचकिचाती हैं।


• सामाजिक दबाव :  →समाज में अभी भी ऐसी मान्यतायें है, जो महिलाओं की शिकायत दर्ज करने से रोकती हैं।

 • कानून के प्रभावी कार्यान्वयन में कमी : → कई बार कानून का उल्लघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है।

 • शिकायत समितियों की प्रभावशीलता : → कई बार शिकायत समितियां प्रभावी ढंग से काम नहीं करती हैं। 


      यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के लिये एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है। हालांकि इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार, संगठन और समाज को मिलकर काम करना होगा। महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरुक करना शिकायत दर्ज करने के लिये प्रोत्साहित करना और कानून का प्रभावी कार्यान्वयन करना बहुत जरुरी है। 


कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन अधिनियम 2013: किसी विशेष केस स्टडी का विश्लेषण:→


 विशाखा बनाम राजस्थान राज्य : → यह मामला भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में एक मील का पत्थर साबित हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक व्यापक दिशा निर्देश जारी किया जिसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषण दी गयी और इसे रोकने के लिये संगठनों की क्या कदम उठाने चाहिये। इस बारे में विस्तृत दिशा निर्देश दिये गये। इस मामले ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन  के खिलाफ जागरुकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 2013 के अधिनियम के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। 


अन्य उल्लेखनीय  मामले:→

 • तारक मेहता का उल्टा चश्मा मामले:  → इस मामले में शो की एक अभिनेत्री ने सह-कलाकार पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इस मामले ने मनोरंजन उद्योग में यौन उत्पीड़न के मुद्दे को उजागर किया ।


 विभिन्न संगठनों द्वारा किये जा रहे प्रयास : कई संगठन कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन को रोकने के लिये विभिन्न प्रयास कर रहे हैं:- →

• NGO:  →कई NGO महिलाओं को जागरुक करने, शिकायत दर्ज करने में मदद करने और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिये काम कर रहे हैं। 


• Corporate sector:  → कई Corporate Companies. में यौन उत्पीडन के खिलाफ अपनी नीतियां बना रही हैं। कर्मचारियों को प्रशिक्षण दे रही हैं और शिकायत निवारण तंत्र स्थापित कर रही हैं।


 • सरकार : → सरकार इस अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये विभिन्न कदम उठा रही है जैसे कि जागरुकता अभियान चलाना, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना और कानून को और मजबूत बनाना। 


• अंतरराष्ट्रीय संगठन :  →अन्तरराष्ट्रीय संगठन भी भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन को रोकने के लिये काम कर रहे हैं। 


भविष्य में इस अधिनियम में किये जाने वाले संभावित बदलाव:→

• परिभाषा का विस्तार : →  यौन उत्पीडन की परिभाषा को और अधिक व्यापक बनाया जा सकता है. ताकि इसमें नये रूपों के यौन उत्पीडन को शामिल किया जा सकें। 

• शिकायत प्रक्रिया की सरल बनाना :→   शिकायत दर्ज करने और जांच की प्रक्रिया को और अधिक सरल बनाया जा सकता है। 

• दण्ड को कडा बनाना:→   दोषी पाये गये व्यक्तियों के लिये दण्ड को और कडा बनाया जा सकता है।

 • पुरुषों के लिये सुरक्षा :→  इस अधिनियम की पुरुषों को भी यौन उत्पीड़न से बचाने के लिये विस्तारित किया जा सकता है। 


• अनौपचारिक क्षेत्र :→  अंसगठित क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिये भी इस अधिनियम के दायरे को बढ़ाया जा सकता है।

 निष्कर्षः → कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक गंभीर समस्या है जिसके लिये सभी को मिलकर काम करना होगा। इस अधिनियम ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार, संगठन और समाज को मिलकर काम करना होगा। महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करना। शिकायत दर्ज करने के लिये प्रोत्साहित करना और कानून को प्रभावी कार्यान्वयन करना बहुत जरुरी है।


[D] राजनीतिक और नागरिक अधिकार :  →  महिलाओं को राजनीतिक और नागरिक अधिकारों जैसे मतदान का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का अधिकार है।
 ICCPR [International Covenant on civil and Political Rights] इस बात की गांरटी करता है। महिलाओं को राजनीति में भाग लेने और नेतृत्व करने का अधिकार है। भारत में इंदिरा गांधी, सरोजनी नायडू, और पहली दलित मुख्यमंत्री मायावती जैसी महिलाओं द्वारा राजनीति में महिलाओं के उत्कृष्ट नेतृत्व के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं।

 भारत में महिलाओं के मानव अधिकार से सम्बन्धित प्रमुख मामले : -→ 

[1] विश्वला हिरेमठ बनाम महाराष्ट्र राज्य :-  → यह मामला महिलाओं के संपत्ति अधिकारों से संबन्धित था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि महिलाएं अपने पैतृक संपत्ति में बराबर की हकदार है। यह निर्णय महिलायों के संपत्ति अधिकारों की मजबूत करता है और लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करता है।


 CEDAW I Convention on the Elimination of All forms of Discrimination Against women]: →  यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि है जिसे 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा जे अपनाया था। इसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्त करना था।


बीजिंग घोषणा और प्लेटफार्म फॉर एक्शन : →   1995 में आयोजित चौथी विश्व महिला सम्मेलन में बींजिग घोषणा और प्लेटफार्म फॉर एक्शन को अपनाया गया, जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को बढावा देना और लैंगिक समानता प्राप्त करना था। बींजिंग प्लेटफार्म फॉर एक्शन ने 12 प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की, जहां महिलाओं के अधिकारों को प्रोत्साहित करने और उन्हें बढ़ावा देने' की आवश्यकता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, हिंसा के खिलाफ सुरक्षा और आर्थिक भागीदारी शामिल है।


    संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार घोषणा पत्र [UDHR] 1946 में अपजाये गये इस घोषणा पल के तहत सभी व्यक्तियों को बिना लिंग, जाति, धर्म, या अन्य भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त हैं। महिलाओं के अधिकार जैसे कि जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और न्याय का अधिकार, इस घोषणा पत्र में शामिल है।


 अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ महत्वपूर्ण केस:→ 


 [1] हंगरी बनाम टोडोर वीसन [Hungary vs Todor vissan]:→  इस केस में हंगरी की एक महिला को उसके पति द्वारा उत्पीडित किया गया। यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने निर्णय दिया कि हंगरी सरकार ने महिला की सुरक्षा के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाये थे। इस फैसले ने घरेलू हिंसा के खिलाफ अन्तरर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को मजबूत किया।

[2] काजाचिस्तान बनाम मिसेज 'के' [Kazakhstan vs. mrs. 'k' 7: → इस मामले में Kazakhstan की एक महिला को सेक्स ट्रैफिकिंग के दौरान उत्पीडित किया गया। संयुक्त राष्ट्र महिला अधिकार समिति ने पाया कि सरकार ने सेक्स ट्रैफिकिंग के खिलाफ पर्याप्त कार्यवाही नही की थी। इस केस ने सरकारों को सेक्स ट्रैफिकिंग के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिये प्रेरित किया।


 [3] मलाला युसुफजईः →  पाकिस्तान की मुलाला युसुफजई ने शिक्षा के अधिकार के लिये आवाज उठाई और तालिबान द्वारा हमले का शिकार हुई। मलाला को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया । यह घटना महिलाओं के शिक्षा के अधिकार की रक्षा और उनकी आवाज की शक्ति को दर्शाती है। 


[4.] शक्ति परियोजना: →  भारत में शक्ति परियोजना एक संगठन है जो महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिये काम करता है। यह परियोजना महिलाओं को कानूनी सहायता, परामर्श और प्रशिक्षण प्रदान करती है।


 भारत में सम्बन्धित केस :→ 


 [1] विश्वका बनान स्टेट ऑफ राजस्थान [1997)-→  यह मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस जारी की जो कार्यस्थलों पर मौन उत्पीड़न को रोकने और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करती है।


[2] निर्भया केस [2012]: →  दिल्ली में हुये इस गंभीर मामले ने देशभर में महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ हो रही हिंसा पर व्यापक चर्चा छेड़ दी। इसके परिणामस्वरूप, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 पारित किया गया जिसमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिये सख्त सजा का प्रावधान है।


 [3] शाह बानो केस [1985]:  → यह मामला एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ता के अधिकार से संबन्धित था। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया। 


निष्कर्ष :→  अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के मानव अधिकार एक महत्वपूर्ण मुद्धा है और विभिन्न संधियाँ और कानून इन अधिकारों की रक्षा के लिये काम करते हैं। भारत में भी कई महत्वपूर्ण केस और नीतियाँ महिलाओं के अधिकारों की सुनिश्चित करने के लिये लागू की गयी है। यह जरूरी है कि समाज महिलाओं के मानव अधिकारों की रक्षा के लिये जिस तरह प्रयास करे और उन्हें समान अवसर और सम्मान प्रदान करे। 


कुछ महत्वपूर्ण केस: → 


• सैफई माता वैशाली देवी इंटर कॉलेज केस:→  इस केस में एक महिला शिक्षिका को पुरुष शिक्षक के बराबर वेतन नहीं दिया जा रहा था। कोर्ट ने इस मामले में महिला शिक्षिका के पक्ष में फैसला सुनाया।

 • एयर इंडिया केस:→   इस केस में एयर इंडिया की महिला एयर होस्टेस ने कंपनी पर वेतन में भेदभाव करने का आरोप लगाया था।कोर्ट ने इस मामले में भी महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया।


 चुनौतियों और आगे का रास्ता :→ 


 हालांकि इन कानूनों के बावजूद, भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव की कई घटनाएं होती रहती हैं। इसकी कुछ प्रमुख वजहें हैं!


 • जागरुकता की कमी:→  कई महिलायें अपने अधिकारों के बारे में जागरुक नहीं होती हैं। 


• सामाजिक रुढिवादी विचार:  → समाज में अभी भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता है। 

• कानून के प्रभावी कार्यान्वयन में कमीः → कई बार कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होती है। 

आगे का रास्ता : →

 • जागरुकता अभियान: →  महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना ।

 • कानून का प्रभावी कार्यान्वयन: →  कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करना। 

• सामाजिक बदलाव: → समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाना।


 • सरकारी नीतियां: →  महिलाओं को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिये सरकारी नीतियां बनाना।


 निष्कर्ष : →  भारत में महिलाओं के लिये कार्यस्थल पर समान अवसर और समान वेतन के अधिकारों के लिए कमी कानून बनाये गये हैं हैं। हालांकि अभी भी कई चुनौतियाँहैं।


इन चुनौतियों से निपटने के लिये सभी को मिलकर काम करना होगा। 


मातृत्व लाभ (अधिनियम 1961:→ मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 एक कानून है जो महिला कर्मचारियों को प्रसव के दौरान (और उसके बाद आवश्यक छुट्टी और अन्य लाभ प्रदान करता है। इसका उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर लौटने के बाद भी अपने करियर को जारी रखने में सक्षम बनाना है।


 अधिनियम के प्रमुख प्रावधान : → 

• मातृत्व अवकाश :  → अधिनियम महिला कर्मचारियों को प्रसव के समय 26 सप्ताह का भुगतानित मातृत्व अवकाश प्रदान करता है। 


• चिकित्सा प्रमाणपत्र → 

महिला को मातृत्व अवकाश लेने के लिये चिकित्सक द्वारा जारी प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है।

 • वेतन : →  मातृत्व अवकाश के दौरान महिला को उसके अंतिम वेतन के बराबर वेतन दिया जाता है। 

• नौकरी सुरक्षा :→   मातृत्व अवकाश के दौरान महिला की नौकरी सुरक्षित रहती है। 

• शिशु देखभाल सुविधायें : →  50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच की अनिवार्य व्यवस्था का प्रावधान है। 

अधिनियम में संशोधन :  → 2016 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया था। जिसके तहत मातृत्व अवकाश की अवधि बढाकर 26 सप्ताह कर दी गयी। इसके अलावा गोद लेने वाली माताओं और कमीशनिंग माताओं को भी मातृत्व अवकाश का लाभ दिया गया।









    

Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

लोकतंत्र में नागरिक समाज की भूमिका: Loktantra Mein Nagrik Samaj ki Bhumika

लोकतंत्र में नागरिकों का महत्व: लोकतंत्र में जनता स्वयं अपनी सरकार निर्वाचित करती है। इन निर्वाचनो  में देश के वयस्क लोग ही मतदान करने के अधिकारी होते हैं। यदि मतदाता योग्य व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करता है, तो सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलता है. एक उन्नत लोक  प्रांतीय सरकार तभी संभव है जब देश के नागरिक योग्य और इमानदार हो साथ ही वे जागरूक भी हो। क्योंकि बिना जागरूक हुए हुए महत्वपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होती है।  यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपने देश या क्षेत्र की समस्याओं को समुचित जानकारी के लिए अख़बारों , रेडियो ,टेलीविजन और सार्वजनिक सभाओं तथा अन्य साधनों से ज्ञान वृद्धि करनी चाहिए।         लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है। साथ ही दूसरों के दृष्टिकोण को सुनना और समझना जरूरी होता है. चाहे वह विरोधी दल का क्यों ना हो। अतः एक अच्छे लोकतंत्र में विरोधी दल के विचारों को सम्मान का स्थान दिया जाता है. नागरिकों को सरकार के क्रियाकलापों पर विचार विमर्श करने और उनकी नीतियों की आलोचना करने का ...