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इजरायल ईरान war और भारत ।

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वन अधिकार अधिनियम [ एफआरए] और आदिवासियों के सरंक्षण में सरकार द्वारा कौन-कौन सी नितियां बनायी गयी हैं?What policies have been made by the government under the Forest Rights Act [FRA] and for the protection of tribals?

परिचय :-


 वन अधिकार अधिनियम [ एफआरए] 2006 वन में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य परम्परागत वन निवासियों (ओटीएफडी] के अधिकारों को मान्यता देने और उन्हें मजबूत करने के लिये एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम वन भूमि पर उनके दावों की मान्यता  देता है, उन्हें आजीविका के साधन प्रदान करता है और वन प्रबन्धन में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करता है ।


अध्ययन के निष्कर्ष :-


           हाल ही में दिल्ली स्थित संगठन कॉल फॉर जस्टिस द्वारा गठित एक, तथ्य खोज समिति ने देश भर के पाँच राज्यों - असम, छत्तीसगढ महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक में एफआरए के कार्यान्वयन का अध्ययन किया । अध्ययन में पाया गया कि एफआरए का कार्यान्वयन मिश्रित रहा है। जिसमें कुछ राज्यों में सकारात्मक प्रगति देखी गयी है, जबकि अन्य में महत्वपूर्ण कमियां है। 


       मुख्य बिन्दु

 • असम: अध्ययन में पाया गया है कि एफआरए 
 पूर्वोत्तर राज्यों में मौजूद झूम खेती से संबन्धित अनूठी स्थिति  को संबोधित नहीं करता है। झूम खेती, पहाडी ढलानों पर पौधों को काटने और जलाने वाली एक पारंपरिक कृषि पद्धति है, जिसे वनवासी समुदायों की आजीविका और संस्कृति के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है ।

महाराष्ट्र : महाराष्ट्र में एफआरए कार्यान्वयन में विरोधभारा दिखाई दिये। गढ़चिरौली जिले में कार्यान्वयन को संतोषजनक पाया गया, जबकि नासिक में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी।


ओडिशा: ओडिशा के कंधमाल और सुन्दरगढ़ जिलों में एफआरए के कार्यान्वयन में पर्याप्त प्रगति देखी गयी है। हालांकि, यह पाया गया कि व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार दावों की संख्या में महत्वपूर्ण अंतर था।


 चुनौतियाँ:- 

• कानूनी कमियां : एफआरए में कुछ खामियां हैं, जैसे कि झूम खेती को मान्यता न देना और सामुदायिक वन अधिकारों के प्रबंन्धन के लिये स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव। 

• कार्यान्वयन में कमी : कई राज्यों में एफआरए को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पर्याप्त संस्थागत और वित्तीय संसाधन नहीं है।

 • जागरुकता की कमी: वनवासी समुदायों में अक्सर अपने अधिकारों और एफआरए के तहत उपलब्ध प्रक्रियाओं के बारे में जागरुकता की कमी होती है। 


• विरोध: वन विभाग और अंन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा एफआरए के कार्यान्वयन का 'कभी - कभी विरोध किया जाता है। 

आगे का रास्ता: 

• कानूनी सुधार :- एफआरए में मौजूदा कमियों को दूर करने के लिये संशोधन की आवश्यकता है।


 • बेहतर कार्यान्वयन : सभी राज्यों में एफआरए के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये पर्याप्त संसाधनों और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

 • जागरुकता बढाना :- वनवासी समुदायों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये अभियान चलाये जाने चाहिये। 


• सहयोग : वन विभाग, अन्य सरकारी एजेंसियों गैरसरकारी संगठनों और वनवासी समुदायों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग की आवश्यकता है।


 वनवासी समुदायों के सशक्तिकरण में एफ आर ए की भूमिका: 

• अधिकारों की मान्यता :- एफआरए वनवासी समुदायों को वन भूमि पर कई अधिकार प्रदान करता है। जिनमें शामिल है- 

• [a] जीविका के लिये वन संसाधनों का उपयोग करने का अधिकार 

[b] वन प्रबन्धन में भाग लेने का अधिकार

 [C] पवित्र स्थलों और सांस्कृतिक स्थलों तक पहुंच का अधिकार

 [d] वन भूमि पर निवास का अधिकार

 • आजीविका के अवसर :- एफ आर ए वनवासी समुदायों को वन आधारित आजीविका के अवसरों तक पहुंच प्रदान करता है जैसे कि लघु वन उत्पादों का संग्रह, लकडी काटना, और इको-पर्यटन.।


 सामुदायिक वन प्रबन्धन : एफ आरए समुदायों को वन प्रबन्धन में भाग लेने और सामुदायिक वन संसाधनों का प्रबन्धन करने का अधिकार देता है।


• महिलाओं का सशक्तिकरण : एफआरए महिलाओं को वन अधिकारों में समान भागीदारी प्रदान करता है, जो उन्हें सशक्त बनाने और उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार करने में मदद करता है।


 वन संरक्षण में वनवासी समुदायों की भागीदारी:

 • स्थानीय ज्ञान और अनुभव :- वनवासी समुदायों के पास पीढियों से चली आ रही वनों का प्रबन्धन करने की गहरी समझ और अनुभव है। 

• संरक्षण में भागीदारी: एफआरए वनवासी समुदायों को वन संरक्षण गतिविधियों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है, जैसे कि वृक्षारोपण, वन अग्नि की रोकथाम, और वन्यजीव संरक्षण ।

 • जंगलों के प्रति सम्मान: वनवासी समुदायों का जंगलों के साथ गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबन्ध है, जो उन्हें वनों को संरक्षित करने के लिये प्रेरित करता है। 

चुनौतियाँ और आगे का रास्ता:

 • जागरुकता की कमी: कई वनवासी समुदायों की अभी भी अपने अधिकारों और एफआरए के तहत उपलब्ध प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी नहीं है। 


• कार्यान्वयन में कमी :- कुछ राज्यों में एफआरए को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पर्याप्त संसाधन और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।



विवाद: वन विभाग और अन्य सरकारी एंजेसियों द्वारा एफआरए के कार्यान्वयन का कभी कभी विरोध किया जाता है। 

निष्कर्ष


 वन अधिकार अधिनियम - एक वाद और चुनौती:-

 वन अधिकार अधिनियम (एफआरए], 2006 वनवासी समुदायों के लिये मील का पत्थर कानून है, जो उनके अधिकारों की मान्यता देता है, आजीविका प्रदान करता है और वन प्रबन्धन में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करता है। यह कानून वनवासी समुदायों के सशक्तिकरण और वन संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, एफआरए का प्रभावी कार्यान्वयन कई चुनौतियों का सामना करता है। जागरुकता की कमी  कार्यान्वयन में कमी, विवाद और संसाधनों की कमी कुछ प्रमुख बाधायें हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिये सभी हितधारकों सरकार, वन विभाग, गैर-सरकारी संगठनों और वनवासी समुदायों के बीच' सहयोग और समन्वय आवश्यक है। 


       यह भी महत्वपूर्ण है कि वनवासी समुदायों को अपने अधिकारों और उपलब्ध प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक किया जाय। क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिये ताकि वे अपने दावों की दर्ज कर सके और वन प्रबन्धन में प्रभावी ढंग से भाग ले सके। 


    वन अधिकार अधिनियम के सफल कार्यान्वयन के लिये एक समावेशी और सहयोगात्मक पहुंच की आवश्यकता है। सभी हितधारकों को मिलकर काम करना चाहिये ताकि वह यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह कानून वनवासी समुदायों के जीवन सकारात्मक परिवर्तन लाये और भारत के वन संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे। 


    यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें धैर्य और लगन की आवश्यकता  है। लेकिन यदि सभी' मिलकर काम करते हैं। तो वन अधिकार अधिनियम वनवासी समुदायों और भारत के वन संसाधनों के लिये एक उज्जव भविष्य का मार्ग प्रेसित कर सकता है।

    

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