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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

चन्द्रयान 3 मिशन क्या है ?यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?

भारत के लिये ये एक बहुत ही ऐतिहासिक पल है जब चांद पर हमारा तिरंगा लहरा रहा है। चन्द्रयान - 3 के लैंडर ने सफलतापूर्वक चांद के साउथ पोल पर लैडिंग कर ली है। 


चन्द्रयान - 3 भारत का एक महत्वाकांक्षी चन्द्र मिशन है। 24 अगस्त, 2023 को ISRO के अनुसार चन्द्रयान 3 रोवर प्रज्ञान लैडर से नीचे उत्तर गया है। और भारत चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है। 

      चन्द्रयान-3 को भारत के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से लांच किया गया है. "यह लगभग 40 दिनों के बाद चन्द्रमा की सतह पर लैंड होगा। चन्द्रयान में इस्तेमाल होने वाले ईधन की बात करें तो यह सॉलिड व लिक्विड दोनों तरह के फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है। रॉकेट के पहले भाग में सॉलिड फ्यूल और दूसरे भाग में लिक्विड फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है। 

             रॉकेट के आखिरी भाग में क्रायोजेनिक 'इंजन है। इसमें लिक्विड हाइड्रोजन और आक्सीजन का इस्तेमाल होता है। चंद्रयान-3 को ले जाने वाले रॉकेट के फ्यूल टैंक की क्षमता 27000 किग्रा से ज्यादा है। रॉकेट में इस्तेमाल किये गये ईंधन को प्रोपेलेंट कहा जाता है ।


 क्रायोजेनिक इंजन क्या है ?

 इसरो ने चन्द्रमान - 3 के लिये सीई -2 क्रायोजेनिक इंजन डिजाइन किया है। ये इंजन एलवीएम- ३ लॉन्च व्हीकल के क्रायोजेनिक अपर स्टेज को पावर देने का कार्य करता है। क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन
में इग्नाइटर  कम्बशन चेम्बर, फ्यूल क्रायो पंप फ्यूल इंजेक्टर ऑक्सीडाइजर क्रायो पंप, क्रायो वॉल्व गैस टरबाइन फ्यूल टैंक और रॉकेट ईंजन नोजल होते हैं।

 चन्द्रयान -3 को लॉन्च करने वाला रॉकेट 43.5 मीटर लम्बा है। 'फैट ब्वॉय के नाम से मशहूर LVM3-M4


 चन्द्रमान - 3 मिशन की लागत :

चन्द्रयान - 3 मिशन की पूरी लागत करीब 75 मिलियन डॉलर यानी कि भारतीय रुपये में 615 करोड़ रुपये है।

 इसरो ने चन्द्रमान - 3 मिशन के लैंडर को विक्रम नाम क्यों दिया ? 


इसरो ने विक्रम लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। विक्रम लैंडर का भार 1752 किलोग्राम है। विक्रम लैंडर ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला है। जिसमें बिना किसी नुकसान- के कोई भी लैंडर चांद की सतह पर उतरता है। 


चन्द्रयान -3 मिशन के लैंडर को विक्रम और रोवर को प्रज्ञान नाम दिया है, जो एक वैज्ञानिक पेलोड है। प्रज्ञान एक रोबोटिक व्हीकल है। जिसमें 6 पहिये लगे हुये हैं। विक्रम लैडर और प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर 14 दिनों तक विभिन्न प्रकार की खोज में लगे रहेगें। सोलर पैनल की मदद से ये डिवाइस चार्ज होकर चांद पर एक्टिव रहेगें। 

 चन्द्रयान 23 अगस्त ही क्यो लांचिंग की गयी ?



इसरो ने 23 अगस्त को लॉन्चिग की प्लानिंग पहले कर ली थी। ऐसा इसलिये किया गया कि चांद के एक हिस्से पर केवल 14दिन सूरज की रोशनी पहुंचती है और अगले 14 दिन वहां अधेरा रहता है। सोलर पैनल से चलने वाले लैंडर और रोवर को सूरज की रोशनी की आवश्यकता होगी। इसलिये इसरो ने लॉचिंग डेट ऐसी चुनी कि विक्रम के लैंड होने के समय साउथ पोल एरिया में सूरज की रोशनी पहुंचती रहे ! 

चन्द्रयान -3 के लैंडिंग के चार फेज कौन-कौन से थे ?

 रफ ब्रेकिंग फेज :→ इस चरण के दौरान साफ्ट लैंडिंग के लिये लैंडर का क्षैतिज वेग लगभग 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से कम होकर शून्य के करीब होना चाहिये। 


एटीट्यूट होल्डिंग फेज:→ चन्द्रमा की सतह से लगभग 7.43 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैडर 3.48 किलोमीटर की दूरी तय करते हुये क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर स्थिति में झुक जाता है। 


फाइन ब्रेकिंग फेज : यह फेज लगभग 175 सेकण्ड तक चलेगा। इस दौरान लैडर लैंडिंग क्षेत्र तक क्षैतिज रूप से लगभग 28.52 किलोमीटर की यात्रा करेगा साथ ही . ऊंचाई लगभग 1 किलोमीटर कम हो जायेगी। 



टर्मिनल डीसेंट :→ यह लैंडिंग का आखिरी फेज है जब पूरी तरह से लम्बवत लैडर को चन्द्रमा की सतह पर उतरने के लिये तैयार होता है।


 कौन से देश अब तक चन्द्रमा पर सॉफ्ट लैंडिग कराने में सफल हुये है ?


 अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने में सफल रहे हैं। अब इस लिस्ट में भारत भी शामिल हो गया चन्द्रयान- 3 की सफल लैंडिंग के साथ भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला चौथा देश बन गया है।


 चन्द्रमा के साउथ पोल पर लैडिंग कराने वाले देश :- भारत ने ही अभी तक साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई है। इसके अलावा कोई भी देश सफल नही हुआ है। चन्द्रयान-3 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी वीरमुथुवेल हैं। उन्होंने वर्ष 2019 में चन्द्रयान -3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर की कमान संभाली। 


कितना रहस्यमयी है चांद का दक्षिणी ध्रुव ? 

दुनिया के देशों द्वारा अब तक चांद पर भेजे गये सभी मिशन चांद की भूमध्यरेखीय क्षेत्र में लैंड हुये है यहां की जमीन दक्षिणी ध्रुव की तुलना में काफ़ी सपाट है इसलिये इन क्षेत्रों पर लैंडिंग आसान होती है। इसकी तुलना में चांद का दक्षिणी ध्रुव की जमीन काफी ऊबड़-खाबड़ है साथ ही यहाँ कई ज्वालामुखी भी है। इस क्षेत्र में सौरमण्डल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर भी हैं जो करीब ढाई हजार किलोमीटर चौडा और 8 किलोमीटर गहरा है। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूरज क्षितिज के नीचे या हल्का सा ऊपर रहता है। इस क्षेत्र में सूरज की थोडी ही रोशनी चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुचती है। इसलिये उन दिनों में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।




चन्द्रयान- 3 से देश और दुनिया को क्या जानकारी प्राप्त होगी ?

 (i) चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और बर्फ की उपस्थिति होने की सम्भावना |

 (2) चन्द्रमा की सतह एवं उसकी बनावट की जानकारी ।

 (3 ) ) चन्द्रमा पर उपस्थित गुरुत्वाकर्षण बल की जानकारी ।

(4) चन्द्रमा पर मौजूद वायुमण्डल की जानकारी।

 (5) प्राकृतिक खनिजों की जानकारी।


 चन्द्रयान 3 काम कैसे करेगा ?

 चन्द्रयान -3 भारत का एक महत्वपूर्ण भारतीय अंतरिक्ष मिशन है। यह एक मल्टी-पार्ट मिशन है जिसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल है। ऑर्बिटर चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा और इसकी सतह और उसके वातावरण की जानकारी देगा। विक्रम लैंडर चन्द्रमा की सतह पर प्रज्ञान रोवर की सहायता से वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। रोवर का नाम प्रज्ञान है। यह २७ किलोग्राम भारी है और 6.5 मीटर लम्बा है।




इसरो द्वारा 2008 में पहला चन्द्र मिशन शुरू किया गया था। 2008 में पहली बार चन्द्रयान चांद पर भेजा गया था। चन्द्रयान-1 सफल रहा- फिर 10 सालों की मेहनत के बाद 2019 में चन्द्रमान -२ को चांद पर भेजा गया लेकिन वो असफल रहा।



This is a very historic moment for India when our tricolor is hoisting on the moon.  The lander of Chandrayaan-3 has successfully landed on the south pole of the moon.



 Chandrayaan-3 is an ambitious lunar mission of India.  According to ISRO on August 24, 2023 Chandrayaan 3 rover Pragyan has gone down the ladder.  And India has become the first country to land on the south pole of the moon.


 Chandrayaan-3 has been launched from India's Satish Dhawan Space Center Sriharikota.  "It will land on the lunar surface after about 40 days. Talking about the fuel used in Chandrayaan, both solid and liquid fuels are used. Solid fuel in the first part of the rocket and liquid in the second part.  Fuel is used.


The last part of the rocket has a cryogenic engine.  Liquid hydrogen and oxygen are used in this.  The capacity of the fuel tank of the rocket carrying Chandrayaan-3 is more than 27000 kg.  The fuel used in a rocket is called propellant.



 What is cryogenic engine?


 ISRO has designed CE-2 cryogenic engine for Chandraman-3.  This engine serves to power the cryogenic upper stage of the LVM-3 launch vehicle.  cryogenic rocket engine

 It consists of igniter, combustion chamber, fuel cryo pump, fuel injector, oxidizer cryo pump, cryo valve, gas turbine fuel tank and rocket engine nozzle.


 The rocket that launched Chandrayaan-3 is 43.5 meters long.  'LVM3-M4, known as Fat Boy.



 Cost of Chandramaan-3 Mission:


 The complete cost of Chandrayaan-3 mission is around $75 million i.e. Rs 615 crore in Indian Rupees.


 Why did ISRO name the lander of Chandraman-3 mission as Vikram?



 ISRO has named Vikram Lander after scientist Vikram Sarabhai, who is considered the father of the Indian space program.  The weight of Vikram Lander is 1752 kg.  Vikram Lander is the only one to make a soft landing on the lunar surface.  In which any lander lands on the lunar surface without any damage.



 The lander of Chandrayaan-3 mission has been named Vikram and the rover has been named Pragyan, which is a scientific payload.  Pragyan is a robotic vehicle.  In which 6 wheels are fitted.  Vikram Ladder and Pragyan Rover will remain engaged in various types of exploration on the lunar surface for 14 days.  With the help of solar panels, these devices will be charged and remain active on the moon.


Why was Chandrayaan launched on August 23 only?




 ISRO had already planned the launch on 23 August.  This was done because sunlight reaches one part of the moon only for 14 days and there is darkness there for the next 14 days.  Landers and rovers running on solar panels will need sunlight.  Therefore, ISRO chose the launching date such that sunlight reaches the South Pole area at the time of Vikram's landing.


 What were the four phases of Chandrayaan-3's landing?


 Rough Braking Phase: → During this phase, for soft landing, the horizontal velocity of the lander should be reduced from about 6000 kilometers per hour to near zero.



 Attitude Holding Phase: → At a height of about 7.43 kilometers from the lunar surface, the ladder tilts from horizontal to vertical position covering a distance of 3.48 kilometers.



 Fine breaking phase: This phase will last for approximately 175 seconds.  During this time the ladder will travel approximately 28.52 kilometers horizontally to the landing area.  The altitude will decrease by about 1 kilometer.




 Terminal Descent: → This is the last phase of landing when the fully vertical ladder is ready to land on the lunar surface.



 Which countries have so far been successful in making a soft landing on the Moon?



 America, China and the former Soviet Union (now Russia) have been successful in making a soft landing on the Moon.  Now India has also joined this list. With the successful landing of Chandrayaan-3, India has become the fourth country to make a soft landing on the Moon.



 Countries that have made a soft landing on the South Pole of the Moon: - Only India has made a soft landing on the South Pole so far.  Apart from this, no country has succeeded.  The project director of Chandrayaan-3 mission is P Veeramuthuvel.  He took over as the Project Director of Chandrayaan-3 in the year 2019.


How mysterious is the South Pole of the Moon?


 All the missions sent to the Moon by the countries of the world till now have landed in the equatorial region of the Moon. The land here is much flat compared to the South Pole, hence landing is easier on these areas.  In comparison, the land at the Moon's south pole is quite rugged and it also has many volcanoes.  This area also has the oldest impact crater in the solar system which is about 2500 kilometers wide and 8 kilometers deep.  At the Moon's south pole the Sun remains below or slightly above the horizon.  In this region, only a little sunlight reaches the south pole of the Moon.  That is why the temperature reaches 54 degrees Celsius during those days.





 What information will the country and the world get from Chandrayaan-3?


 (i) Possibility of presence of water and ice on the south pole of the Moon.


 (2) Knowledge of the Moon's surface and its texture.


 (3) ) Information about the gravitational force present on the moon.


 (4) Information about the atmosphere present on the moon.


 (5) Knowledge of natural minerals.



 How will Chandrayaan 3 work?


 Chandrayaan-3 is an important Indian space mission of India.  It is a multi-part mission consisting of an orbiter, a lander and a rover.  The orbiter will revolve around the moon and provide information about its surface and its atmosphere.  Vikram Lander will conduct scientific experiments on the lunar surface with the help of Pragyan Rover.  The name of the rover is Pragyan.  It weighs 27 kg and is 6.5 m tall.





 The first moon mission was launched by ISRO in 2008.  Chandrayaan was sent to the moon for the first time in 2008.  Chandrayaan-1 was successful - then after 10 years of hard work, Chandrayaan-2 was sent to the moon in 2019 but it failed.

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