Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
• क्रायोजेनिक इंजनों -
का अनुप्रयोग रॉकेट प्रौद्योगिकी में किया जाता है ।
. ताप वस्तु का वह गुण है जो वस्तु के ठण्डेपन या गर्मपन की भाप का प्रकट करता है । ऊष्मा उसे कहेंगे जो भिन्न भिन्न तापों पर रखी दो वस्तुओं के बीच स्थानान्तरित होती है तथा इनको समान ताप पर लाती है ।
• ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है जो दो वस्तुओं के बीच तापान्तर के कारण एक वस्तु से दूसरी वस्तु में बहती है । ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है जिसे कार्य में बदला जा सकता है इसे रमुफोर्ड ने दो बर्फ के टुकड़ों को आपस में रगड़कर सिद्ध कर दिया ।
• जब कार्य को ऊष्मा में या ऊष्मा को कार्य में बदला जाता है तो किये गये कार्य व उत्पन्न ऊष्मा का अनुपात एक स्थिरांक होता है ।
. ऊष्मा ऊष्मा के मात्रक
एक ग्राम जल का ताप । ° C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को कैलोरी कहते हैं ।
एक ग्राम जल के ताप को 14.5 से 15.53 ° C तक बढ़ाने में प्रयुक्त ऊष्मा की मात्रा को अन्तर्राष्ट्रीय कैलोरी कहते हैं 1 एक किग्रा जल के ताप को 14.5 से 15.5 ° C तक बढ़ाने के लिए प्रयुक्त आवश्यक ताप की मात्रा को किलो कैलोरी कहते हैं ।
1 पौंड पानी का ताप 1 डिग्री फॉरनहाइट बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को ब्रिटिश थर्मल यूनिट कहते हैं ।
ताप मापन :- ताप मापन हेतु प्रयुक्त उपकरण को तापमापी कहते हैं । तापमापी में पारे का उपयोग उसके प्रसार के गुण के कारण किया जाता है । ताप मापन में पदार्थ की दो अवस्थाओं को लेते हैं । पहली प्रामाणिक वायु मण्डलीय दाब पर गलते हुए बर्फ की अवस्था तथा दूसरी उबलते हुए जल की अवस्था इसमें गलते बर्फ के ताप को हिमांक तथा उबलते हुए जल को भाप बिन्दु या क्वथनांक कहते हैं ।
सेल्सियस पैमानाः- आविष्कार स्वीडिश वैज्ञानिक सेल्सियस द्वारा ।इसमें हिमांक 0 ° C तथा 100 ° C होता है बीच के भाग को 100 बराबर भागों में बांट दिया गया है ।
फाॅरेनहाइट पैमानाः- आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया था । इसमें हिमांक 32 ° F तथा क्वथनांक 212 ° F होता है बीच के भाग को 180 बराबर भागों में बांट दिया गया है ।
● केल्विन पैमाना :- इसमें हिमांक 273 ° K तथा क्वथनांक 373 ° K होता है बीच के भाग को 100 भागों में बांटा गया है । केल्विन पैमाने पर हिमांक से नीचे 273 ° K ताप को ( 0 " K ) परम शून्य ताप कहते हैं इसके नीचे कोई ताप संभव नहीं है ।
• केल्विन मान से मानव शरीर का सामान्य ताप 310 होता है ।
ऊष्मीय प्रसार
. सामान्यतः ताप बढ़ाने पर पदार्थ के अणुओं के बीच की दूरी बढ़ने से उसके आयतन में वृद्धि हो जाती है परन्तु पानी 0 ° C से 4 ° C के बीच , सिल्वर आयोडाइड 80 ° C से 140 ° C के बीच सिलिका 80 ° C के नीचे का ताप बढ़ाने पर संकुचित होते हैं।
• इस प्रकार ऊष्मा प्रदान करने से पदार्थ के आयतन में होने वाले प्रसार को ऊष्मीय प्रसार कहते हैं ।
• . ठोसों का प्रसार :- किसी ठोस को गर्म करते हैं तो इसका सभी दिशाओं में प्रसार होता है । किसी लम्बी छड़ को गर्म करने पर होने वाले प्रसार को रेखीय प्रसार कहते हैं ।
आयताकार वस्तु में होने वाले प्रसार को क्षेत्रीय प्रसार कहते हैं ।
घनाकार वस्तु में होने वाले प्रसार को आयतन प्रसार कहते हैं ।
• ऊष्मीय प्रसार के उदाहरण रेल की पटरियों के बीच जगह का छोड़ा जाना , बैलगाड़ी के पहिये पर हाल चढ़ाते समय गर्म करना गर्मी में लोलक घड़ी का सुक्त होना , काँच के गिलास में गर्म चाय या पानी डालने पर टूटना आदि इसके उदाहरण है ।
• पायरेक्स काँच में ऊष्मीय प्रसार कम होने के कारण इनसे बने बर्तन व गिलास नहीं टूटते हैं ।
• द्रवों का प्रसार :-ठोसों की भाँति द्रवों को भी गर्म करने पर इनमें प्रसार होता है परन्तु आकार अनिश्चित होने के कारण इनमें मात्र आयतन प्रसार होता है । द्रव को जिस बर्तन में गर्म करते हैं उसके ( बर्तन ) प्रसार होने के कारण प्रारम्भ में द्रव का तल कुछ गिर जाता है । इसके आयतन में अधिक प्रसार होता है ।
किसी पदार्थ के द्रव्यमान व आयतन के अनुपात को घनत्व कहते हैं । द्रवों को गर्म करने पर ठोसों की अपेक्षा इसके आयतन मे अधिक प्रसार होता है ।
• पानी का असामान्य प्रसार :- अधिकांश द्रवों को गर्म करने पर आयतन बढ़ता है व घनत्व घटता है परन्तु पानी को 0 ° C से 4 ° C के बीच गर्म करने पर आयतन घटता है व घनत्व बढ़ता है । 4 ° C से आगे गर्म करने पर पानी का भी आयतन बढ़ने व घनत्व घटने लगता है ।
• पानी के इसी असामान्य प्रसार के कारण ठण्डे प्रदेशों में तालाबों का पानी जम जाने के बावजूद जलीय जीव जीवित रहते हैं ।
• बर्फ जमने पर पानी के आयतन में प्रसार होने के कारण पानी के नल टूटते हैं , चट्टाने टूट जाती है तथा पेड़ भी फट जाते हैं ।
गैस बिल्डिंग में ऑक्सीजन एवं एसीटिलीन गैसों का मिश्रण होता है ।
● उत्सर्जनः- प्रत्येक वस्तु सभी ताप पर विकिरण द्वारा ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं इस ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा या ऊष्मीय विकिरण कहते हैं । यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में प्रकाश की चाल से चलती है । वस्तुओं का ताप बढ़ाने से निकलने वाली विकिरण की मात्रा बढ़ती जाती है उत्सर्जन वस्तु के तल की प्रकृति , क्षेत्रफल , आदि पर निर्भर करती है ।
चमकदार व श्वेत तल से ऊष्मीय विकिरण का उत्सर्जन बहुत कम तथा काले व खुरदरे तलों से ऊष्मीय विकिरण का उत्सर्जन अधिक होता है । जो पिण्ड अपनी सतह से सभी प्रकार के ऊष्मीय विकिरण का पूर्णतया उत्सर्जन करता है , उसे कृष्णिका ( Black Body ) कहते हैं ।
अवशोषण:- पिण्ड द्वारा ऊष्मीय विकिरण के अवशोषित होने की क्रिया को अवशोषण तथा इस प्रकार के पिण्ड को अवशोषक कहते हैं ।
- पिण्ड पृष्ठ पर गिरने वाले सम्पूर्ण विकिरण को अवशोषित नहीं करता है , अतः विकिरण अवशोषित करने की क्षमता के आधार पर पिण्डों को दो वर्गों में बांटा गया है ।
- वे पिण्ड जो अधिकतर ऊष्मीय विकिरण को परावर्तित कर देते हैं । अच्छे परावर्तक तथा बुरे अवशोषक होते हैं सफेद व चिकनी सतह के पिण्ड ।
- वे पिण्ड जो अधिकतर ऊष्मीय विकिरण का अधिकतर भाग अवशोषित कर लेते हैं अच्छे अवशोषक तथा बुरे परावर्तक कहलाते हैं , जैसे कालीखुरदरी सतह के पिण्ड ।
● विशिष्ट ऊष्मा :- किसी पदार्थ के एक ग्राम संगति का द्रव्यमान लेकर इसका ताप एक डिग्री सेंटीग्रेट बढ़ाने के लिए पदार्थ को दी गई ऊष्मा को पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं ।
अवशोषण पिण्डद्वारा ऊष्मीय विकिरण के अवशोषित होने की क्रिया को अवशोषण तथा इस प्रकार के पिण्ड को अवशोषक कहते है ।
● पृष्ठ पर गिरने वाले सम्पूर्ण विकिरण को अवशोषित नहीं करता है , अतः विकिरण अवशोषित करने की क्षमता के आधार पर पिण्डों को दो वर्गों में बांटा गया है । . .
● यदि समान संहति के विभिन्न पदार्थों को लिया जाए , जिनका प्रारम्भिक ताप समान है तो एक निश्चित ताप तक गर्म करने के लिए विभिन्न मात्राओं में ऊष्मा की आवश्यकता होती है ।
• गुप्त ऊष्मा जब पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन होता है तो उसका ताप स्थिर रहता है । अवस्था परिवर्तन के समय स्थिर ताप पर पदार्थ के निश्चित द्रव्यमान को दी गई आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को गुप्त ऊष्मा कहते हैं । बर्फ को 0 ° C से पिघलका 0 ° C के जल में परिवर्तित होने के लिए 80 किलो कैलोरी ऊष्मा को आवश्यकता होती है इसे ही बर्फ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं ।
• इसी प्रकार किया जल को 100 ° C से 100 ° C की भाप में परिवर्तित होने के लिए 540 किलो कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है । इन्हीं कारणों से ठण्डे पेय को 0 ° C के पानी में रखकर बर्फ से ढक देने से वे अधिक उण्डे होते हैं क्योंकि एक ग्राम बर्फ पानी में परिवर्तित होते समय 336 जूल ऊष्मा अवशोषित करता है ।
. ● • क्ययन तथा क्वथनांक :- सामान्य रूप में वाष्पन द्रव की सतह से धीमी होती है परन्तु ताप बढ़ाने पर इस तेजी से वाप्प में परिवर्तित होने लगता है । ऐसी स्थिति जब द्रव का ताप स्थिर होकर सम्पूर्ण पृष्ठ से वाष्पीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाये तो ' क्वयन ' कहलाता है ।
. इसी प्रकार 100 ° C के जल की अपेक्षा 100 ° C की भाप से जलने पर अधिक जलन होती है क्योंकि भाप में जल की अपेक्षा अधिक गुप्त ऊष्मा होती है । कायनीक बढ़ जाता है । वह स्थिरताप जिस पर कान होता है क्यनीक कहलाता है ।
दाब बढ़ाने पर सामान्यतया सभी पदार्थों का आपेक्षिक आर्द्रता वायुमण्डल में वायु के साथ घुली हुई जलवाष्प को आईता कहते हैं । किसी निश्चित ताप पर वायु जलवाष्प की एक निश्चित मात्रा हो ग्रहण कर सकती है वायु की इस अवस्था को संतृप्त ( Saturated ) अवस्था कहते हैं ।
• यदि वायु के ताप को बढ़ा दिया जाये तो वायु को संतृप्त करने के लिए और जलवाष्य को आवश्यकता होगी अत : किसी दिये हुए ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर उसी आपतन की वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्म की मात्रा के अनुपात को आपेक्षिक आर्द्रता कहते हैं ।
• डीजल इंजन में प्रयुक्त ईंधन डीजल की वाष्प और वायु होते हैं । आपेक्षिक आईता को हाइड्रोमीटर नामक यंत्र से मापते हैं । समुद्रतटीय क्षेत्रों की वायु में वाष्प की मात्रा अधिक होने के कारण सूती कपड़ा उद्योग अधिक विकसित है क्योंकि जलवाष्प के कारण गर्मी के दिनों में नमी से धागे मजबू तथा आसानी से न टूटने वाले वाले बनते हैं।
. एक प्रकार की ऊर्जा है , जो हमारी आँखों को संदरता है पहले वस्तु तथा इन वस्तुओं से लौटकर हमारी आँखों को मेरित करके वस्तु की स्थिति का जानका सूर्य एवं अन्तरिक्ष के अन्य ग्रह प्रकाश के प्रकृति प्रकाश एवं ऊष्मा का उत्सर्जन कर है । सूर्य 1026 जूल / सेकंड की दर के लग्न में उत्पन्न से ऊर्जा दे रहा है और 100 किग्राण्ड की दर से अपना द्रव्यमान कम कर रहा है । कुछ प्राणी ( जुनू आदि ) भी प्रकाश कार्जन करते हैं ऐसे प्रकाश को जैन प्रकाश कहते है । मीबिच आदि कृत्रिम प्रकाश के त ] है ।
प्रकाश के आधार पर वस्तुओं के निम्न प्रकार-
● प्रदीप्त वस्तुएं वे जो स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित हो , जैसे - सूर्यबत्व आदि ।
• अप्रयाप्त वस्तुएं में वस्तुएं जिनमें स्वयं का प्रकाश नहीं होता परन्तु प्रकाश पड़ने पर दिखाई देने लगतो कुर्सी , मेज , किताब आदि ।
● पारदर्शक वस्तुएं जिनसे होकर प्रकाश किरणें पार निकल जाती है जैसे - शीशा अर्द्धपारदर्शक वस्तुए ऐसी वस्तुएँ जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने पर उनका कुछ भाग अवशोषित हो जाता है तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है , जैसे - तेल लगा हुआ कागज • अपारदर्शक वस्तुएं ऐसी वस्तुएं जिनसे प्रकाश की किरणें बाहर नहीं जा पाती है जैसे धातुएं , लकड़ी . आदि ।
● प्रकाश का संचरण : प्रकाश किरणे यद्यपि सीधी रेखा में गमन करती है फिर भी अवरोधों के किनारे पर कुछ मुदती अवश्य है तरगदैर्ध्य अत्यंत छोटी होने के कारण बहुत कम महसूस होती है । प्रकाश की अवरोधों के किनारे मुड़ने की घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं । प्रकाश की चाल भिन्न भिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न भिन्न होती है तथा निर्यात में प्रकाश की चाल सर्वाधिक होती है । चाल माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करती है । जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है किसी माध्यम में प्रकाश की चाल सूत्रः १ % का प्रयोग करते हैं जहाँप्रकाश की चाल . प्रकाश की निर्वात में चाल तथा १ % माध्यमका अपवर्तनाक है ।
● सूर्यप्रकाश को पृथ्वी तक आने में लगभग 500 सेकेंड लगते हैं । अधिकांश प्रकाश का परावर्तनः जब प्रकाश किसी चिकने या चमकदार पृष्ठ पर पड़ता है तो इसका अधिकांश माम विभिन्न दिशाओं में वापस लौट जाता है इस प्रकाश के किसी पृष्ठ से टकराकर वापस लौटने की घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं यदि पृष्ठ अपारदर्शक है तो इसका कुछ भाग अवशोषित हो जाता है । यदि पारदर्शक है तो कुछ भाग पृष्ठ के पार निकल जाता है । चिकने व चमकदार पॉलिश किये प्रकाश को परावर्तित कर देते हैं । समतल दर्पण प्रकाश का सबसे अच्छा परावर्तक होता है ।
• परावर्तक पृष्ठ के लम्बवत् सीधी रेखा को अभिलम्ब तथा जो किरण परावर्तक तल पर आकर गिरती है उसे आपाती किरण एवं जो किरण परावर्तन के पास लौट जाती है उसे परावर्तित किरण कहते हैं । अभिल के बीच के कोण को आपकोण एवं अभिलम्ब एवं परावर्तित किरण के बीच के कोण को परावर्तन कोण कहते हैं । प्रकाश का परावर्तन दो नियमों पर आधारित होता है ।
• आपाती किरण , परावर्तित किरण व अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं । के बराबर होता है । आपकोण परावर्तन प्रकाश का अपवर्तन : प्रकाश का एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करते समय दूसरे माध्यम की सीमा पर अपने रेखीय पथ से विचलित होने की घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं ।
. . • जब प्रकाश को किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो किरण सघन माध्यम के पृष्ठ से ● जब किरण माध्यम से माध्यम में प्रवेश करती है तो बिरल माध्यम के पृष्ठभ दूर हट जाती है , लेकिन जो किरण लम्बवद् किसी भी माध्यम में प्रवेश करती है यह किसी भी तरफ न सीधे निकला है । • प्रकाश के अपवर्तन का कारण भिन्न - भिन्न माध्यमों में वे का भिन्न भिन्न होता है ।
● किसी माध्यम का अपवर्तनाक भिन्न रंगों के प्रकाश के लिए भिन्न - भिन्न होता है । प्रकाश की तरंग दैर्ध्य बढ़ने के साथ अपवर्तनांक का मान कम होता जाता है । दृश्य प्रकाश में लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैंगनी रंग का सबसे अधिक होता है । कारण रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक बैंगनी रंग की सबसे कम होती है
● ताप बढ़ने के साथ अपवर्तनाक का मान कम होता जाता है अपवर्तन की क्रिया में प्रकाश की चाल . उरगदैर्ध्य तथा तीव्रता बदल जाती है परन्तु आवृत्ति नहीं बदलती है ।
● अपवर्तन के कारण ही पानी में डूबी हुई कोई लकड़ी या चम्मच बाहर से देखने पर देवी दिखती है । रात्रि में तारों का टिमटिमाना , तालाब की गहराई कम प्रतीत होना , सूर्य का क्षितिज के नीचे होने पर भी दिखाई देन आदि अपवर्तन के कारण होते हैं
• जल में किसी वस्तु की आभासी गहराई जात होने पर इसमें जल के अपवर्तनांक को गुणा कर देने से वास्तविक गहराई का पता चल जाता है ।
• पूर्ण आन्तरिक परावर्तनः जब प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करता है तो अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है , जैसे आपतन कोण का मान बढ़ाया जाता है ।
• अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है एक स्थिति ऐसी आती है जब आपतन कोण के लिए अपवर्तन का मान 900 हो जाता है ।
• ऐसी स्थिति जिसमें अपवर्तित कोण का मान 900 हो वह आपतन कोण क्रान्तिक कोण कहलाता है । जब है जिस माध्यम से चली थी । आपतित कोण को क्रान्तिक कोण से और बढ़ा कर दिया जाता है तो किरण पुनः उसी माध्यम में लौट जाती मृग तृष्णा पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का उदाहरण है । इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं । इसके बहुत से उदाहरण हैं जैसे - हीरे का चमकन गर्म व ठण्डे प्रदेशों में मरीचिका का दिखायी देना , टूटे कांच का अधिक चमकना , आशिक जल से भरी परखनली को जल में दुबाने पर चांदी की तरह चमकना आदि है ।
● मेडिकल , प्रकाशीय सिग्नल के संचरण , विद्युत सिग्नलों को भेजने व प्राप्त करने में आप्टिकल फाइबर का उपयोग होता है जो पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करता है ।
● लेन्स : दो तलों से घिरा जिसके दोनों तल दो गोलों के पारदर्शक खण्ड होते हैं लेस कहलाता है । इनका उपयोग सभी प्रकाशीय यन्त्रों जैसे- कैमरा , प्रोजेक्टर्स , टेलिस्कोप एवं सूक्ष्मदर्शी आदि में किया जाता है । ये काँ ( मुख्यतः ) या प्लास्टिक के बने होते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं उत्तल लेंस एवं अवतल लेंस उत्तल लेंस : उत्तल लेंस बीच में मोटा तथा किनारों पर पतला होता है । उत्तल लेंस अनन्त से आने वाली किरणों उत्तल , अवतलोत्तल लेंसा को सिकोड़ता है इसीलिए इसे अभिसारी लेंस भी कहते हैं । उत्तल लेंस तीन प्रकार के होते हैं - उपयोग सम अवतल लेंस : यह बीच में पतला एवं किनारों पर मोटा होता है । अवतल लेंस अनन्त से आने वाली किरणों को फैलाता है इसे अपसारी लेंस भी कहते हैं । यह भी तीन प्रकार के होते हैं : उभयावत्तल , समतल अडला तथा उत्तलावतल लेंस मुख्य फोकस भी कहते हैं । इत्तल लेंस के दोनों तलों के वक्रता केंद्रों को जोड़ने वाली रेखा लेंस का मुख्य अक्ष कहलाती है । लेसों में दो फोकस तथा दो वकता केन्द्र होते हैं । लेग के द्वितीय फोकस को लेस में जम वास्तविक तथा अवतल लस में आभासी होता है । उत्तल लेस की फोकस दूरी धनात्मक तथा अवकल लेभ की ऋणात्मक होती है ।
● क्षमता : उत्तल लेंस में जब प्रकाश किरणें मुख्य के समानान्तर चलती हुई लेस पर आपतित होती है से यह लेंस अपवर्तन के पश्चात् उन किरणों को मुख्य अश की और मोद देता है तथा अवतल लेंस इन किरणों है , इसी को लेस की क्षमता कहते हैं । को मुख्य अक्ष से दूर हटा देता है इस प्रकार लेंस का कार्य उस पर आपत्ति होने वाली किरणों को मोहता लेस किरणों को जितना अधिक मोड़ता है उसकी क्षमता उतनी ही अधिक होती है । कम फोकस दूरी के लेखों की क्षमता अधिक तथा अधिक फोकस दूरी के लेगों की क्षमता कम होती है । लंस की क्षमता का मात्रक डायॉप्टर है । उदल लेंस की क्षमता धनात्मक एवं अवतल लेस की ऋणात्मक होती है । दो लेखों को सटाकर रखने पर उनकी क्षमताएं जुड़ जाती है । जब समान फोकस दूरी के उत्तल व अवतल लेसों को परस्पर मिलाया जाता है तो ये समतल काँच की भाँति व्यवहार करते हैं . इनको क्षमता शून्य एवं फोकस दूरो अनन्त होती है ।
● लेंस को किसी द्रव में दुबोने पर लेंस की फोकस दूरी व क्षमता दोनों परिवर्तित हो जाती है । यदि ऐसे द्रव में किसी लेंस को डुबोया जाए , जिसका अपवर्तनाक लेंस के अपवर्तनांक से कम हो तो स की फोकस दूरी बढ़ती है और क्षमता घट जाती है । परन्तु तेस की प्रकृति अपरिवर्तित रहती है । यदि ऐसे द्रव में लेंस को दुबोया जाये जिसका अपवर्तनांक लेस के अपवर्तनांक के बराबर हो तो लेंस की फोकस दूरी अनन्त व क्षमता शून्य हो जाती है और सेंस समतल प्लेट की भाँति व्यवहार करेगा व दिखाई नहीं देगा । यदि ऐसे द्रव में किसी लेंस को दुबोया जाये कि जिसका अपवर्तनांक लेस के अपवर्तनांक से अधिक हो तो लेंस की प्रकृति बदल जायेगी । इसी कारण पानी में दूबा हवा का बुलबुला ( उत्तल प्रकृति है ) अवतल लेख की भाँति व्यवहार करता है क्योंकि जल का अपवर्तनांक हवा से अधिक होता है । .
● किसी रंग का प्रकीर्णन उसकी तरंग दैर्ध्य पर निर्भर करता है । जिस रंग के प्रकाश की तरंग दैर्ध्य कम होती है उसका प्रकीर्णन अधिक तथा अधिक तरंग दैर्ध्य वाले का प्रकीर्णन कम होता है । से प्रकाश का प्रकीर्णन : जब सूर्य का प्रकाश वायुमण्डल से गुजरता है तो प्रकाश वायुमण्डल में उपस्थित कणों द्वारा विभिन्न दिशाओं में फैल जाता है , इसी प्रक्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं । .. सूर्य के प्रकाश में बैंगनी रंग का तरंग दैर्ध्य सबसे कम होने के कारण प्रकीर्णन सर्वाधिक तथा लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सर्वाधिक होने के कारण प्रकीर्णन सबसे कम होता है ।
• बैंगनी रंग का प्रकीर्णन सर्वाधिक होने के कारण ही आकाश नीला दिखाई देता है और लाल रंग का प्रकीर्णन कम होने के कारण ही दूबते व उगते समय सूर्य लाल दिखाई देता है क्योंकि अन्य रंगों का प्रकीर्णन हो जाता
• प्रकीर्णन के कारण ही समुद्र का पानी भी नीला दिखाई देता है । अन्तरिक्ष से अन्तरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है क्योंकि वहां वायुमण्डल न होने के कारण प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है । चन्द्रमा से भी आकाश काला ही दिखाई देता है । विकट दृष्टि तो इसमें व्यक्ति को पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती है किंतु एक निश्चित दूरी से अधिक दूरी की वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखती इसमें वस्तु का प्रतिबिम्ब आँख के रेटिना पर कुछ आगे बन जाता है ।
• इसके निवारण हेतु अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है क्योंकि अवतल लेस किरणों को फैलाकर रेटिना पर केन्द्रित कर देता है । " . दूर दृष्टि दोष : इसमें व्यक्ति को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखायी देती हैं परन्तु पास की वस्तुएं नहीं दिखायी देतो इसमें प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर कुछ पीछे बनने लगता है ।
• इसके निवारणार्थ उचल लेस का प्रयोग किया जाता है क्योंकि उचल लेस किरणों को सिकोड़ कर रेटिना पर केन्द्रित कर देता है ।
● प्रकाश का विवर्तन : प्रकाश के अवरोधों के किनारों पर मुड़ने की घटना को प्रकाश का निवर्तन कहते हैं । निवर्तन के कारण अवरोध की छाया के किनारे ठीक्ष्ण नहीं होते । इसी कारण दूरदर्शी में तारों की प्रतिविम्व तौरविन्दुओं के रूप में न दिखाई देकर अस्पष्टों के रूप में दिखाई देते हैं ।
● प्रकाश का विवर्तन अवरोध के आकार पर निर्भर करता है । यदि अवरोध का आकार प्रकाश की ता be की कोटि कोन स्पष्ट होता है । यदि अवरोध का आकार प्रकाश की रंग बहुत बड़ा है तो विवर्तन उपेक्षणीय होगा ।
● विवर्तन प्रकाश की तरंग प्रकृति की पुष्टि करता है । ध्वनि तरंग अवरोधों से आसानी से मुड़ जाते हैं और आलू तक पहुंच जाती है ।
• प्रकाश तरंगों का व्यतिकरणः जब समान आवृति व समान आयाम की दो प्रकाश तरण होतो मूलएक ही प्रकाश स्नोत से एक ही दिशा में संचरित होती है तो माध्यम के कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता अधिका व कुछ विन्दुओं पर तीव्रता न्यूनतम पायी जाती है ।
• इस घटना को ही प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण कहते हैं । जिन बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होई है वहाँ हुए व्यतिकरण का संयोजी व्यतिकरण तथा जिन बिन्दुओं पर तीव्रता न्यूनतम होती है यहाँ हुए व्यतिकरण को विनाश व्यतिकरण कहते हैं । दो स्वतंत्र स्रोतों से निकले प्रकाश तरंगों में व्यतिकरण की घटना नहीं होती है । जल की सतह पर फैल मिट्टी के तेल तथा साबुन के बुलबुलों का रंगीन दिखाई देना व्यतिकरण का उदाहरण है ।
● व्यतिकरण में शून्य तीव्रता वाले स्थानों की ऊर्जा नष्ट नहीं होती बल्कि जितनी ऊर्जा नष्ट होती है उतनी हो ऊर्जा अधिकतम तीव्रता वाले स्थानों पर प्रकट हो जाती है । .
• ज्योति तीव्रता का मात्रक केन्डिला एवं लेस की क्षमता डायटर में मापी जाती है । तशा हुआ हो अपने उच्च अपवर्तनाक के कारण पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से चमकता है । भारत का सबसे बड़ा और दूरदर्शी कोडाईकनाल ( तमिलनाडु में स्थित है । अपवर्तन की क्रिया में प्रकाश का वेग आयाम , तरंगदैर्ध्य तो बदल जाता है , लेकिन आवृति अपरिवर्तित रहती है ।
• विद्युतचुम्बकीय तरंग एवं प्रकाश तरंग के वेग के बराबर है । आपको यदि इन्द्रधनुष बननबीच में नीला रंग होता है ।
• यदि किसी लेस को ऐसे माध्यम में दिया जाए जिसका अपवर्तनाक लेख के पदार्थ के अपवर्तनाक से अधिक होतो की फोकस दूरी बदलने के साथ - साथ उसकी प्रकृति भी उलट जाती है और अवतल ले उत्तल लेस की भांति व्यवहार करने लगता है ।
● रंगी प्रकाश की तरंगदैर्ध्य प्रकाश संश्लेषण में सर्वाधिक प्रभावशाली होती है व्यतिकरण प्रारूप ( इंट पैटर्न ) में ऊर्जा का पुनर्वितरण होता है । कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है ।
● अन्दर से बाहर की को देखने के लिए पेरिस्कोप का प्रयोग किया जाता है • बुनकरों द्वारा विभिन्न प्रकारके देखने के लिए कैलिडोस्कोप का उपयोग किया जाता है ।
• कुछ वस्तुएं एक प्रकार के प्रकाश का शोषण करती है और दूसरे रंग के प्रकाश की किरणें निकाली है । को प्रतिदीप्ति कहा जाता है । फैल्सियम क्लोराइड बैंगनी किरणों का शोषण करता है परंतु नीली किरणें निकालता है । इस प्रकार की बदस . ऑप्टिकल फाइबर का आविष्कार टी . एच महमाह ने किया था । जब प्रकाश की किरण आयु से कांच में प्रवेश करती है तो उसका तरंगदैर्घ्य घट जाता है । यदि कोई पारदर्शी गुटका किसी इव में हुबाने पर दिखाई नहीं पड़े तो दोनों का आवर्तन्त्रक बराबर होता है । 1876 में सर्वप्रथम मनुष्यों में का वर्णन किया । नॉल और एक ( 1933 ) ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार किया । हो स्पेक्ट्रम के दृश्य प्रकाश में तरंगदैर्ध्य होता है ।
● मनुष्य उस विद्युत चुम्बकीय विकिरण को देख सकता है जिसका तर प्रकाश उर्जा का एक रूप है प्रकाश तरंग विद्युत चुंबकीय डर है जिनके नाम के लिए भौतिकी आवश्यकता नहीं होती । 400 मिमी से 700 मिमी
प्रकाश के परावर्तन के दो नियम है आपतित किरण , परावर्तित किरण और आपतन बिंदु पर अभिलय सभी एक ही समतल में होते हैं । 2. आपतन कोण और परावर्तन कोण बराबर होते हैं ।
● धूप के चश्मों के लिए फ्रिलट कांव का प्रयोग किया जाना चाहिए । उचल दर्पण से हमेशा सीधा छोटा और काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनता है ।
• प्रतिबिम्ब की उचाई और वस्तु की ऊंचाई या आकार के अनुपात को आवर्द्धन कहते हैं । समतल दर्पण के बिना प्रतिविम्व सीधा एवं काल्पनिक होता है तथा दर्पण से उतना ही पीछे बनता है जितना वस्तु बिम्ब दर्पण से आगे रहता है । गोलीय दर्पण के मुख्य अझ समातर और निकट आपतित सभी किरणें दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य अ पर जिस बिंदु पर अभिसारित होती है या जिस बिंदु से अपसारित होती प्रतीत होती है , वह बिंदु गोलीय दर्पण का मुख्य फोकस कहा जाता है अवतल दर्पण से वास्तविक और काल्पनिक दोनों प्रकार के प्रतिविम्य बन सकते हैं वास्तविक प्रतिबिम्ब बढ़ा छोटो सकता है , किन्तु काल्पनिक प्रतिबिम्ब बड़ा होता है . जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तब प्रकाश की दिशा में परिवर्तन को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं । प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम है आपतित किरण , अपवर्तित किरण और आपतन बिंदु पर अभिलव सभी एक समान ही समतल में होते हैं ।
2. प्रकाश के किसी विशेष वर्ण के लिए आपतन कोण की ज्या Sinc तथा आपर्वन कोण की ज्या Sine के का अनुपात किन्हीं दो माध्यमों के लिए एक नियतांक होता है इस नियम कोने का नियम भी कहते हैं ।
• एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हुई एक प्रकाश किरण के लिए अनुपात का मान पहले माध्यम को अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनाक कहलाता है
• आयताकार कांच के स्लैब से प्रकाश का अपवर्तनांक दो चार होता है पहला हवा - पृष्ठ पर और दूसरा काहपृष्ठ पर निर्गत किरण आपतित किरण के समांतर तो होती है परंतु वह पाविक रूप से विस्थापित जाती है
● पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए दो शर्ते है -1 . प्रकाश की किरणों को सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए और 2. सघन माध्यम से आपतन कोण क्रांतिक कोण से बढ़ा होना चाहिए उत्तल लेंस द्वारा वास्तविक और काल्पनिक या आभासी दोनों प्रकार के प्रतिबिम्ब बनते हैं । जबकि अवतल लेग द्वारा केवल आभासी प्रतिबिम्ब हो बनते हैं । निकट दृष्टिता नेत्रगोलक के लंबा हो जाने के कारण होता है और बहुत दूर स्थित वस्तु बिम्ब नेत्र लेस द्वारा रेटिना के आगे बनाता है इस दोष का सुधार अवतल लेंस द्वारा होता है
• दूरदृष्टिा नेत्रगोलक के छोटा हो जाने के कारण होता है और सामान्य निकट बिंदु ( 25 मिमी की दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिविष्व नेत्र लेंस द्वारा रेटिना के पीछे बनाता है । इस दोष का सुधार उत्तल लेन्स द्वारा होता है ।
• जरा दूरदर्शिता वृद्धा अवस्था में होती है और इसे दूर करने के लिए बेलनकार लेंस का उपयोग किया जाता है । एक रंगीन टेलीविजन में तीन आधारभूत रंगों के मिश्रण से रंग बनते हैं । ये लाल , पीला तथा नौला है सरल सूक्ष्मदर्शी छोटी फांकस दूरी का एक उत्तल लेंस होता है जो अपनी फोकस दूरी से कम दूरी पर रखे वस्तु कसौधावति तथा काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाता है
• संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कम फोकस दूरी के दो समाक्षीय उत्तल लेन्स होते हैं । जिनके बीच की दूरी बदली जा सकती है । अपने निकटर का उलटा , बड़ा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाता है और तंत्रिका इस प्रतिभिषका पर भी आवति तथा काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाती है ।
सेना की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम द्वारा व्यक्त की जाती है और इसका मात्रक डाई आक्साईड संकेत में होता है । किसी वस्तु का उल्टा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है दृश्य तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक संचारित होता है । .
उत्तल या अभिसारी लेंस की क्षमता घटनात्मक और अब तक या अपसारी लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है । आँख की क्षमता जिस कारण नेत्र - लेस की आकृति अर्थात फोकस दूरी स्वतः नियंत्रित होती रहती है । नेश की समंजन क्षमता कही जाती है । सामान्य आंख जिसे साफ - साफ देख सकती है उसे निकट बिंदु कहा जाता है । सामान्य आंख के लिए निकट बिंदु की दूरी 25 मिमी होनी चाहिए ।
• उस दूरस्थ बिंदु को जहाँ तक आंख साफ - साफ देख सकती है , दूर बिंदू कहा जाता है सामान्य आँख के लिए दूर बिंदु अनंत पर होना चाहिए ।
• खगोलीय दूरबीन में समाशीय उत्तल लेन्स होते हैं , जिनके बीच की दूरी बदली जा सकती है । अभिष्यात्मक बहुत दूर की वस्तु का उलटा , छोटा और वास्वविक प्रतिबिम्ब अपने फोकसी समतल पर बनाता है । शिका इस प्रतिबिम्ब अनंत पर बनाती है । सामान्य समायोजन से किसी अपारदर्शी वस्तु का प्रकाश उसके द्वारा लौटाए गए अर्थात परावर्तित प्रकाश पर निर्भर करता है ।
• कुक्स कोच में पराबैगनी किरणों का विच्छेदन होता है । आफसेट प्रिंटिंग CMYK प्रक्रम से सम्बन्धित है । बैंगनी वर्ण के प्रकाश का तरंग दैर्ध्य सबसे कम तथा लाल वर्ण के प्रकाश का तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होता है । .
पेट अथवा शरीर के अन्य आन्तरिक अंगों के अन्वेषणों के लिए प्रयुक्त तकनीकी एण्डोस्कोपी पूर्ण आन्तरिक परावर्तन परिघटना पर आधारित है । पिरामेंट बहुत छोटे कण होते हैं जो किसी वस्तु को रंगीन रूप देते हैं पिरामेंट के तीन प्राथमिक वर्ग है भी प्रकार का वर्ग उत्पन्न किया जा सकता है स्थान , मैजेण्टा और पीला समुचित अनुपात में स्थान , मैजेण्टा और पोता तथा काला मिलाने पर किसी ज्योति तीव्रता का मात्रक केन्द्रिता एवं लेंस की क्षमता डायरेक्टर से मापी जाती है तघरा हुआ हीरा अपने उच्च अपवर्तनांक के कारण पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से चमकता है ।
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