सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
भारतीय संविधान के अंतर्गत स्त्री और बालकों की सुरक्षा संबंधी प्रावधान कौन -कौन से हैं( describe the provision provided the under Indian Constitutionभारतीय संविधान के अंतर्गत स्त्री और बालकों की सुरक्षा संबंधी प्रावधान कौन -कौन से हैं( describe the provision provided the under Indian Constitution relating to protection of women and children?))
भारत के संविधान तथा अन्य कानूनों में स्त्री के हित काफी मात्रा में सुरक्षित रखे गए हैं और इस बात पर ध्यान दिया गया है कि स्त्री को आत्म सम्मान , बराबर का दर्जा तथा उसका शोषण किसी भी प्रकार से ना हो।
संविधान का अनुच्छेद 21 यह उपबंधित करता है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार से किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण दैहिक तथा स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा । यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा किया जाता है तो वह व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है । प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी अधिकारों में श्रेष्ठ है । संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एकांतता का अधिकार मूल अधिकार है और कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। एक नागरिक को अन्य बातों के अतिरिक्त अपनी निजी एकांतता अपने परिवार एकान्तता ,विवाह ,वंश चलाने , मातृत्व, बच्चा पैदा करने और शिक्षा ग्रहण करने की एकान्तता की रक्षा करने का अधिकार प्राप्त है ।
पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक नियमों का बनाया जाना जीवन रक्षा के लिए आवश्यक है और यह अनुच्छेद 21 से संचालित होता है ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद यह गारंटी प्रदान करता है कि राज्य केवल धर्म , जाति ,लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी व्यक्ति के विरुद्ध विभेद नहीं करेगा ।
संविधान के अनुच्छेद 7 के अंतर्गत विधि के समक्ष सभी समान है और बिना किसी भेदभाव के सभी विधि का सामान संरक्षण पाने के अधिकारी हैं ।
संविधान के अनुच्छेद 23 की समीक्षा करते हुए विद्वानों ने कहा है कि इससे भारतीय समाज के दो बड़े सामाजिक कलंको पर कुठाराघात हुआ है
(1) नारी के क्रय विक्रय तथा
(2) बेगार
संविधान के अनुच्छेद 29 के अंतर्गत अब लड़की की शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है ।
अनुच्छेद 44 अपेक्षा करता है कि राष्ट्र भारत के समस्त राष्ट्र क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता स्थापित करने का प्रयास करेगा ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 313 के अंतर्गत स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कराना निषेध कर दिया गया है ।
स्त्री को अधिकार है कि वह बच्चे का गर्भ धारण करें तथा बच्चे को जन्म दे ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के अंतर्गत स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उन पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग दंडनीय है । धारा 366 के अंतर्गत विवाह आदि के करने के लिए विवश करना किसी स्त्री को व्यवह्त करना ,अपहृत करना या उत्प्रेरित करना दण्डनीय अपराध है। धारा 372 के अन्तर्गत वेश्यावृत्ति या सम्भोग करने के आशय से लड़की का खरीद-फरोख्त करना अपराध है । जब की 18 वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को या किसी अन्य व्यक्ति को जो वेश्या ग्रह चलाता हो यह उस का प्रबंध करता हो बेची जाए भाड़े पर दी जाए तब यह धारा 372 के अंतर्गत अपराध है । धारा 375 के अंतर्गत बलात्संग एक अपराध है । इसी प्रकार नारी को दहेज के लिए तंग करना , मारना पीटना मानसिक या शारीरिक पीड़ा देना सभी अपराध की श्रेणी में आते हैं । नारियों के हितों की संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग नारी अधिनियम 1990 की स्थापना की गई ताकि आयोग नारी के समस्त अधिकारों का संरक्षण करें । नारी के अधिकारों का उल्लंघन होने पर आयोग उचित कार्रवाई करें ।
अनुच्छेद 42 के अंतर्गत राज्य काम कि यथोचित और मानवोचित दशाओं की तथा था प्रसूति सहायता का उपबंध करेगा।
स्त्रियों के संबंध में राष्ट्रीय आयोग का संरक्षण:- स्त्रियों के ऊपर अत्याचार या अन्य संबंधित मामलों पर उन को संरक्षण प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयोग स्त्री अधिनियम 1990 की संरचना की।
इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत स्त्रियों के लिए अलग से आयोग का गठन किया गया । इस प्रकार से आयोग में चेयर पर्सन स्त्री को नियुक्त करने का प्रावधान है तथा जांच सदस्य ऐसे व्यक्ति नियुक्त किए जाएंगे जिनको स्त्रियों से संबंधित सभी विधियों का पूर्ण रूप से ज्ञान हो और जिन से स्त्रियों के सामाजिक कल्याण की संभावना हो।
अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत आयोग को निम्नलिखित कार्य सौंपा गये
(1) भारतीय संविधान में प्रदत्त स्त्रियों के सभी अधिकारों के बारे में जांच पड़ताल करें
(2) स्त्रियों को प्रधान सुरक्षा का पालन हो रहा है या नहीं उसके बारे में केंद्र सरकार को समय-समय पर अपनी रिपोर्ट भेजना
(3) संविधान तथा अन्य अधिनियम के अंतर्गत स्त्रियों के अधिकारों का पुनर्विलोकन करना और यदि आवश्यक हो तो उसके सुझाव का प्रस्ताव भेजना ।
(4) यह पता लगाना की विभागों द्वारा स्त्रियों के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है
(5) महिलाओं की शिकायत पर या स्वयं अपनी ओर से निम्नलिखित मामलों को देखना
(क) स्त्रियों के अधिकार का हनन
(ख) स्त्रियों के कल्याण के लिए बनाए गए अधिनियमों का पालन सुचारू रूप से हो रहा है या नहीं
(ग) निर्णय, सिद्धांत ,नियम, विनियमन द्वारा स्त्रियों को अनुतोष प्राप्त हो रहा है या नही।
6 स्त्रियों के साथ भेदभाव तो नहीं बढ़ता जा रहा है इस संबंध में जांच पड़ताल करना।
(7) स्त्रियों का विकास सही ढंग से हो रहा है या नहीं इस बारे में जांच करना । उनको कार्यालय घरों में तंग वह परेशानी तो नहीं किया जा रहा है । उनके विकास में क्या-क्या औरोधन तत्व है ।
(8) स्त्रियों के कल्याण के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करना
(9) राज्य सरकार या केंद्रीय सरकार द्वारा उनके उत्थान के लिए नियमित कदम उठाए जा रहे हैं या नहीं
(10) स्त्री अपराधी के साथ बर्ताव सही हो रहा है , उनके संरक्षण का ध्यान रखा जा रहा है
(11) स्त्री को मान सम्मान सही ढंग से मिल रहा है उनको आर्थिक ढंग से तंग व परेशान तो नहीं किया जा रहा है
(12) आयोग अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रेषित करेगा तथा यह भी बताएगा कि महिलाओं को किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है ।
बच्चों के संरक्षण के संबंध में प्रावधान:- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 उप बंधित करता है कि 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बालक को किसी कारखाने या खान में नौकर नहीं रखा जाएगा और ना किसी संकटमय नौकरी में लगाया जाएगा। इस व्यवस्था का उद्देश्य कम आयु के बच्चों की रक्षा करनी है । वस्तुतः बच्चे देश के भावी नागरिक है। अतः उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है । इस प्रकार इस अनुच्छेद का तात्पर्य भारत के ऐसे किशोरों के स्वास्थ्य को कठोर श्रम एवं संकट पूर्ण कार्यों से बचाना है । इसलिए The Employment of children Act 1938 के अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को रेलवे अन्य यातायात संबंधी कामों में नियुक्त करने को निषेध करता है । एक वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि भवन के निर्माण का कार्य संकट पूर्ण नियोजन है । अतः कोई भी बालक यदि वह 14 वर्ष से कम आयु का है भवन निर्माण नियोजन कार्य में नियोजित नहीं किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने एक केस में यह निर्णय पारित किया कि जो व्यक्ति बाल श्रमिकों के संरक्षण हेतु बनाए गए नियमों का उल्लंघन करेगा उसे क्षतिपूर्ति देनी होगी।
अनुच्छेद23 के अंतर्गत अब नाबालिगों से बेगारी भी नहीं ली जा सकती है और बच्चों के क्रय विक्रय करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है ।
संविधान के अनुच्छेद 45 के अंतर्गत हाई स्कूल तक की शिक्षा मुफ्त कर दी गई है ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़ें तथा स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने हेतु जाएं। बच्चों के लिए शिक्षा निशुल्क तथा अनिवार्य कर दी गई है।
धारा 372 के अंतर्गत वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए नाबालिक को बेचना दंडनीय अपराध है। किसी ऐसी स्त्री के साथ बलात्संग अपराध है जो कि 12 वर्ष से कम आयु की है चाहे बलात्संग उसकी इच्छा से किया जाये ।कोई पुरुष जो किसी स्त्री के साथ प्रकृति के विरुद्ध स्वच्छया इंद्रिय भोग करेगा तो वह धारा 377 के अंतर्गत एक अपराधी है ।
संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा बालकों को स्वतंत्र एवं गरिमा में वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर व सुविधा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है ।
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