Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन एवं उसके कार्य कौन-कौन से हैं तथा उसके सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है और उसका अध्यक्ष कौन होता है?( how a National Human Rights Commission is constituted under human Rights Protection Act 1993? Who appoints the chairperson and member of the commission?)
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन( constitution of the national human right Commission):- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 3 के अंतर्गत मानव अधिकार आयोग के गठन के संबंध में उपबंध किया गया है. इस धारा के अनुसार:-
(1) इस अधिनियम के अंतर्गत प्रदत्त कार्यों का निष्पादन करने के लिए केंद्रीय सरकार एक निकाय (body) का गठन करेगी।
(2) आयोग निम्नलिखित से मिलकर गठित होता है:-
(a) एक अध्यक्ष जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो।
(b) एक सदस्य जो उच्चतम न्यायालय का वर्तमान में न्यायाधीश हो यार रह चुका हो।
(c )एक सदस्य जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रह चुका हो
(d) दो ऐसे व्यक्ति नियुक्त किए जाएंगे जो मानव अधिकारों से संबंधित विषयों में ज्ञान रखते हो।
(3) अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष , अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष , राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के पदेन सदस्य होंगे।
(4) एक महासचिव होगा जो आयोग का मुख्य कार्यपालक अधिकारी (chief executive officer ) होगा तथा वह उन सभी शक्तियों व कार्यों का निर्वहन करेगा जो आयोग द्वारा उसे सौंपे जाएंगे।
(5) आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा। केंद्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से भारत के अन्य स्थानों पर भी आयोग के कार्यालय स्थापित किए जा सकेंगे।
इस प्रकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में एक अध्यक्ष तथा सात अन्य सदस्य हैं । आयोग का अध्यक्ष वही व्यक्ति होता है जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रह चुका हो। आयोग के प्रथम अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र थे ।
आयोग के सदस्यों में निम्नलिखित होंगे:-
(1) एक सदस्य उच्चतम न्यायालय का वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश
(2) एक सदस्य उच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश।
(3) 2 सदस्य जो मानवाधिकार विषयों में पारंगत या व्यवहारिक ज्ञान रखने वाले हो।
(4) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष
(5) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग का अध्यक्ष
(6) राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष
आयोग में महासचिव को प्रमुख कार्यकारी अधिकारी के रूप में रखा गया है और इन्हें उन्हीं अधिकारों के निर्वहन का अधिकार होगा , जो आयोग उसे सैपता है ।
धारा 3 के अंतर्गत यह उप बंधित है कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है लेकिन केंद्रीय सरकार द्वारा आयोग के अन्य कार्यालय देश में कहीं भी स्थापित किए जा सकेंगे ।
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति( appointment of chairperson and members):- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 4 के अंतर्गत आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति किए जाने का प्रावधान किया गया है ।
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के हस्ताक्षर एवं मोहर युक्त वारंट द्वारा की जाती है । अतः यह स्पष्ट है कि अध्यक्षों एवं सदस्यों की नियुक्ति की शक्तियां राष्ट्रपति में निहित होती हैं । लेकिन यहां यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ऐसी नियुक्तियां स्वप्रेरण से नहीं कर सकता। राष्ट्रपति द्वारा ऐसी नियुक्तियां तद्निर्मित समिति की सिफारिश पर ही की जाएगी।
अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत नियुक्ति के लिए सलाहकार समिति का गठन किया गया है । इस समिति में अध्यक्ष एवं सदस्यों का नाम प्रस्तावित करने के लिए निम्नांकित सदस्य होते हैं-
(1) प्रधानमंत्री अध्यक्ष
(2) लोकसभा अध्यक्ष. सदस्य
(3) भारत के गृह मंत्रालय का मंत्री सदस्य
(4) लोकसभा के विपक्ष का नेता सदस्य
(5) राज्यसभा के विपक्ष का नेता सदस्य
(6) राज्य सभा का उपसभापति सदस्य
यहां यह उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय के किसी पीठासीन न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के पीठासीन मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के पश्चात ही की जा सकेगी अन्यथा नहीं।
अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य की नियुक्ति मात्र इस आधार पर अविधि मान्य नहीं समझी जाएगी कि समिति में किसी सदस्य का पद रिक्त है ।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्य( function of the Human Rights Commission):- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12 के अंतर्गत आयोग के कार्यों का उपबंध किया गया है। इस धारा के अनुसार आयोग अग्र लिखित सभी या किन्ही कृतियों का निष्पादन करेगा अर्थात
(1) स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर
(क) मानवाधिकारों के उल्लंघन या उसके अपशमन की
(ख) किसी लोक सेवक द्वारा उस उल्लंघन को रोकने की उपेक्षा की शिकायत की जांच करेगा ।
(2) किसी न्यायालय के समक्ष लंबित मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी अभिकथन वाली किसी कार्यवाही में उच्च न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करेगा ।
(3) राज्य सरकार को सूचना देने के अध्याधीन राज्य सरकार के नियंत्रण आधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का जहां पर उपचार सुधार या संरक्षण के प्रयोजन अर्थ व्यक्तियों को निरुद्ध किया जाता है या रखा जाता है निवास करने वालों को जीवन की दशाओं का अध्ययन करने उस पर सिफारिशें करने के लिए निरीक्षण करेगा।
(4) मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान का तत्समय प्रव्रत किसी कानून द्वारा या उसके अधीन प्रवाहित सुरक्षा का पुनर्विलोकन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करेगा ।
(5) उन कारकों का जिनमें उग्रवाद के कृत्य भी हैं मानव अधिकारों के उपभोग में बाधा डालते हैं , पुनर्विलोकन करेगा एवं उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करेगा
(6) मानव अधिकार पर संधियों एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय लेखों का अध्ययन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करेगा
(7) मानव अधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान एवं उसे प्रोन्नत करेगा
(8) समाज के विभिन्न खंडों के मानव अधिकार साक्षरता का प्रचार करेगा तथा प्रशासकों साधनों सेमिनारों एवं अन्य उपबंध साधनों के माध्यम से इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षाओं के प्रति जागरूकता को विकसित करेगा ।
(9) मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों एवं समस्याओं के प्रयत्नों को देगा
(10) ऐसे अन्य कृत्य करेगा जिन्हें मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक समझेगा।
इस प्रकार धारा 12 के अंतर्गत मानव अधिकार आयोग को प्रदत्त कार्यों का उद्देश्य मानव अधिकारों का संरक्षण करना है । इसके साथ-साथ मानव अधिकारों के प्रति जनसाधारण में चेतना जागृत करना तथा इस क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन देना है। मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच करने की अधिकार शक्ति आयोग को प्रदान की गई है। यह जांच आयोग स्वयं या पीड़ित अथवा किसी भी व्यक्ति की शिकायत पर उस स्थिति में कर सकता है जबकि मानव अधिकारों का उल्लंघन अथवा दुष्प्रेरण (Abetment) हो तथा ऐसे उल्लंघन के निवारण में लोक सेवक द्वारा लापरवाही बरती गई हो । इसके अलावा आयोग को निम्नलिखित कार्य करने का अधिकार है:-
(1) न्यायालय में लंबित मानवाधिकारों से संबंधित किसी मामले में हस्तक्षेप करना
(2) राज्य सरकार के अंतर्गत किसी भी जेल , संरक्षण गृह , अथवा अन्य संस्थाओं का निरीक्षण कर वहां रहने वाले व्यक्तियों की जीवन दशा का अध्ययन करना
(3) मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षा पायो की समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सरकार को सुझाव देना
(4) मानवाधिकारों के उपभोग के विरुद्ध होने वाली आतंक कारी कार्यों की समीक्षा व उपचार हेतु सुझाव देना
(5) मानव अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय लिखितों व सन्धियों का अध्ययन करना व उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सुझाव देना
(6) मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध करना व शोध कार्य (reserch work) को प्रोत्साहन देना
(7) समाज के विभिन्न वर्गों को प्रकाशन मीडिया आदि के माध्यम से मानव अधिकारों के बारे में जागरूक करना
(8) मानवाधिकारों की प्रोन्नति के लिए अन्य आवश्यक कार्य करना
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत आयोग को मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी शिकायतों की जांच करने का महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किया गया है। जांच सही पूर्ण एवं निष्पक्ष हो इसके लिए आयोग को अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत महत्वपूर्ण शक्तियां प्रदान की गई है।
(1) अधिनियम की धारा 12(1) के अंतर्गत आयोग इस अधिनियम के अधीन शिकायतों की जांच करते समय व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत वाद का तथा विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों के संबंध में विचरण करते हुए दीवानी न्यायालय की समस्त शक्तियां रखेगा अर्थात
(क)साक्षियों को बुलाना तथा उनकी उपस्थिति प्रवर्तित करना एवं शपथ पर उनकी परीक्षा करना
(ख) किसी भी दस्तावेज को खोजना एवं प्रस्तुत करना
(ग) शपथ पत्र पर साक्ष्य प्रस्तुत करना
(घ) किसी भी न्यायालय का कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति के लिए अभियाचना करना
(ड) साक्षियों या दस्तावेजनों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना
(च) अन्य कोई मामला जो विहित किया जाएगा
(2) आयोग को किसी व्यक्ति से किसी विशेषाधिकार के अधीन रहते हुए जिस उस व्यक्ति द्वारा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अंतर्गत क्लेम किया जाएगा ऐसे बिंदुओं या मामलों पर जो आयोग की राय में जांच की विषय के लिए उपयोगी होगें या उससे सुसंगत होंगे सूचना प्रस्तुत करने के लिए कहने की शक्ति प्राप्त होगी तथा इस प्रकार से अपेक्षा किए गए व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 176 एवं धारा 177 के अंतर्गत ऐसी सूचना देने के लिए बाध्य हुआ समझा जाए।
(3) आयोग का कोई अन्य अधिकारी जो राजपत्रित अधिकारी के नीचे के पद पर नहीं होगा एवं आयोग द्वारा इस संबंध में विशेष रुप से प्राधिकृत किया गया है किसी ऐसे भवन या स्थान में प्रवेश करेगा जहां पर आयोग कारणों से यह विश्वास करता है की जांच के विषय से संबंधित कोई दस्तावेज पाया जा सकेगा तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 100 के जहां तक ये प्रयोज्य है उपबंधों के अध्याधीन रहते हुए ऐसे दस्तावेज को अधिग्रहित कर सकेगा या उससे प्रतिलिपियां ले सकेगा।
(4) आयोग को सिविल न्यायालय के रूप में समझा जाएगा एवं जब कोई अपराध जो भारतीय दंड संहिता की धारा 175 धारा 178 धारा 179 धारा 180 या धारा 288 में वर्णित है आयोग के मत में या उसकी उपस्थिति में किया जाता है तो अपराध का गठन करने वाले तथ्यों को तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में यथा उप बंधित अभियुक्त के बयानों को लेखबद्ध करने के बाद उस मामले को उस पर विचार करने का क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को प्रेषित करेगा तथा मजिस्ट्रेट जिसे वह मामला देगा उस अभियुक्त के विरुद्ध शिकायतों को सुनने की कार्यवाही उसी तरह करेगा जैसे मानो वह मामला उसे दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 346 के अंतर्गत प्रेषित किया गया है।
(5) आयोग के समक्ष कार्यवाही को धारा 193 व 288 के अंतर्गत तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 176 के प्रयोजना अर्थ न्यायिक कार्यवाही के रूप में समझा जाएगा तथा आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 एवं अध्याय 26 के समस्त प्रयोजना के लिए सिविल न्यायालय होना समझा जाएगा।
इस प्रकार धारा 13 के प्रावधानों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आयोग को किसी भी शिकायत या मामले की सही पूर्ण निष्पक्ष जांच करने हेतु अनन्य अधिकार प्रदान किए हैं। इसके अंतर्गत आयोग को गवाहों को सम्मन जारी करना गवाहों का परीक्षा करना दस्तावेजनों को प्रस्तुत कराने शपथ पत्रों पर साक्ष्य लेने किसी न्यायालय या कार्यालय से अभिलेखों के प्रति प्राप्त करने गवाहों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने तथा अन्य विषयों के अधिकार कार प्राप्त हैं ।
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