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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

मानव अधिकार से क्या अभिप्राय हैं? मानव अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?( what do you mean by human rights? Kinds of human rights?)

मानव अधिकार से हमारा अभिप्राय ऐसे  अधिकारों से हैं जिनका संबंध मनुष्य से जन्म के साथ होता है। ये वे अधिकार है  जिनके बिना सामान्यतः  कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता। मानव जाति के लिए मानव अधिकार का अत्यंत महत्त्व होने के कारण मानव अधिकार को कभी-कभी मूल अधिकार(fundamental rights ) आधारभूत अधिकार(Base Rights ) अंतर्निहित अधिकार(inherent Rights ) प्राकृतिक अधिकार(Natural Rights ) और जन्म अधिकार(Birth Rights ) कहा जाता है। वियना में  1993 में आयोजित विश्व मानव सम्मेलन (world conference of human rights ) की घोषणा में यह कहा गया था कि सभी मानव अधिकार व्यक्ति में गरिमा और अंतर्निहित योग्यता से प्रति भूत होते हैं और व्यक्ति मानव अधिकार तथा मूल स्वतंत्रता ओं का केंद्रीय विषय है। डी.डी बसु मानव अधिकार को उन न्यूनतम अधिकारों के  रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी अन्य विचारण के मानव परिवार का सदस्य होने के फल स्वरुप राज्य या अन्य लोक प्राधिकारी (Public Authority) विरुद्ध धारणा करना चाहिए।


      According to D.D.Basu human rights are those minimum rights every individual must have against the states aur other public authority by virtue of his being a member of human family respective any other consideration.

             इसलिए मानव अधिकार आवश्यक रूप से प्रारंभिक मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित है। इन मानवीय आवश्यकताओं में से कुछ शारीरिक जीवन तथा स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है और कुछ अन्य मानसिक जीवन तथा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। इस प्रकार मानव अधिकार का अनुभव किया जा सकता है तथा इसकी परिगणना की जा सकती है।


         मानव अधिकार मनमाने पूर्णशांति के प्रवर्तन के विरुद्ध है। यह बात ध्यान देने की है कि कोई व्यक्ति मानव अधिकार की ईप्सा केवल संगठित समुदाय अर्थात राज्य में ही कर सकता है, या अन्य शब्दों में ऐसे समुदाय में इच्छा कर सकता है जहां सामाजिक व्यवस्था अस्तित्व  में रहती है। कोई व्यक्ति अराजकता की स्थिति में मानव अधिकार की उपलब्धता की कल्पना भी नहीं कर सकता , जहां कोई ऐसी शक्ति नहीं होती जिससे नागरिक अधिकार के उल्लंघन के विरुद्ध अभी नहीं कर सकता है। इस प्रकार मानव अधिकार के संरक्षण का सिद्धांत व्यक्ति की अवधारणा से तथा उसका संबंध संगठित समाज में रहने के कारण उत्पन्न होता है।



            मानवीय गरिमा तथा उसके सम्मान को मान्यता देना आज के अंतर्राष्ट्रीय विधि की एक महानतम उपलब्धि है। मानवीय गरिमा को बनाए रखने के लिए व्यक्तियों को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण प्राप्त है। राज्यों को व्यक्तियों के संरक्षक के रूप में नहीं सौंपा जा सकता। यह धारणा स्पष्ट रूप से विभिन्न क्षेत्रों के लिए बनाए गए अभिसमयों से स्पष्ट हो जाती है जिन्हें पिछले 55 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में अंगीकृत किया गया है। विश्व संगठन और उसके विशिष्ट अधिकरणों द्वारा अंगीकृत विभिन्न घोषणाओं में यह कहा गया है कि उसके सदस्य मानव अधिकार और मूल स्वतंत्रता ओं के सार्वभौमिक सम्मान की अभिवृद्धि करने और उनका अनुसरण करने के लिए स्वंय वचन दिए हैं। राज्य स्वयं मानव अधिकारों के प्रति सचेत है। राज्य मानव के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए अभिसमय करके कई क्षेत्रीय व्यवस्थाएं किए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने अपने अपने संविधान में मानव अधिकार से संबंधित प्रावधानों को शामिल करके व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए उपाय किए हैं।


     मानव अधिकारों के प्रकार (Kinds of human rights ): मानव अधिकारों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है:


(1) सिविल एवं राजनीतिक अधिकार और

(2) आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार


(1) सिविल एवं राजनैतिक अधिकार(Civil and political rights ): सिविल अधिकारों अथवा स्वतंत्रताओं से तात्पर्य उन अधिकारों से है जो प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता ओं के संरक्षण से संबंधित होते हैं। यह सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक होते हैं जिससे वे अपनी गरिमामय  जीवन बिता सकें। इस प्रकार के अधिकारों में प्राण स्वतंत्रता एवं व्यक्तियों की सुरक्षा एकांतता (Privacy) के अधिकार गृह एवं पत्राचार संपत्ति रखने का अधिकार उत्पीड़न से स्वतंत्रता अमानवीय  एवं अपमानजनक व्यवहार से स्वतंत्रता का अधिकार, विचार अंतरात्मा एवं धर्म तथा आगमन की स्वतंत्रता के अधिकार शामिल होते हैं।


        राजनीतिक अधिकारों से तात्पर्य उन अधिकारों से है जो किसी व्यक्ति को राज्य की सरकार में भागीदारी करने की स्वीकृति देते हैं। इस प्रकार से मत देने का अधिकार सामाजिक निर्वाचन में निर्वाचित होने का अधिकार लोक कार्यों में प्रत्यक्ष अथवा चयनित है प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने के अधिकार राजनैतिक अधिकारों के उदाहरण है।


(2) आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार(Economic , social  and cultural rights ): आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का संबंध मानव के लिए जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएं उपलब्ध करवाने से है। इन अधिकारों के अभाव में मानव प्राणियों के अस्तित्व के खतरे में पड़ने की संभावना रहती है। पर्याप्त भोजन वस्त्र आवास एवं जीवन के समुचित स्तर तथा भूख से स्वतंत्रता काम के अधिकार सामाजिक सुरक्षा का अधिकार शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार इस कोटि  में सम्मिलित होते हैं। इन अधिकारों में आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार भी शामिल है।



संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अधीन मानव अधिकार(Human Rights under the U.N. Charter): संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में निम्नलिखित मानव अधिकारों का उल्लेख किया गया है:

(1) चार्टर की उद्देशिका अपने प्रथम परिच्छेद में यह अधिकारित करती है कि संयुक्त राष्ट्र के लोग मूल मानव अधिकारों के प्रति मानव की गरिमा और महत्व के प्रति पुरुषों और स्त्रियों तथा बड़े और छोटे राज्यों के प्रति निष्ठा को पुनः अभिपुष्ट करने के लिए दृढ़ निश्चित है।


(2) चार्टर के अनुच्छेद 1 के परिच्छेद 3 में वर्णित उद्देश्यों में से एक मूल वंश लिंग भाषा या धर्म के आधार पर विभेद किए बिना सभी के लिए मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्रता ओं के प्रति सम्मान की अभिवृत्ति करने और उसे प्रोत्साहित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करता है।

(3) अनुच्छेद 13 द्वारा महासभा को मूल वंश लिंग भाषा याद धर्म के आधार पर विभेद किए बिना सभी के लिए मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रता ओं को प्राप्त करने में सहायता करने के प्रयोजन के लिए अध्ययन करने तथा सिफारिश करने के लिए सशक्त किया गया है।


(4) अनुच्छेद 55 प्रावधान करता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मूल वंश लिंग भाषा और धर्म के आधार पर विभेद किए बिना सभी के लिए मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रता ओं के प्रति विश्वव्यापी आदर और उनके पालन की अभिवृद्धि करेगा।


(5) अनुच्छेद 56 द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य अनुच्छेद 55 में वर्णित प्रयोजनों की पूर्ति के लिए संगठन के सहयोग से संयुक्त या पृथक रूप से कार्यवाही करने की प्रतिरक्षा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने आर्थिक तथा सामाजिक परिषद को मानव अधिकारों को प्रोत्साहित करने के विषय में अधिकार प्रदान किया है।


(6) चार्टर का अनुच्छेद 62 आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानव अधिकारों और स्वतंत्रता ओं के प्रति आदर बढ़ाने के प्रयोजन के लिए और उनके पालन के लिए सिफारिशें करने के लिए सशक्त करता है।

(7) चार्टर 68 आर्थिक और सामाजिक परिषद को आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में मानव अधिकारों की अभिवृद्धि के लिए आयोग तथा ऐसे अन्य आयोगों को स्थापित करने का निर्देश देता है। जिसको वह अपने कार्यों का पालन करने के लिए आवश्यक समझता हो।

(8) अनुच्छेद 76 का परिच्छेद (ग) यह प्रावधान करता है कि न्यासिता प्रणाली के मूल उद्देश्यों में से हैं एक मूल वंश लिंग भाषा और धर्म के आधार पर बिना भेदभाव के सभी के लिए मानव अधिकारों के प्रति और मूल स्वतंत्रता ओं के प्रति आदर को प्रोत्साहन देना और विश्व के लोगों को एक दूसरे पर आश्रित होने की मान्यता के लिए प्रोत्साहन देना है।



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