Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
भारतीय संविधान के अंतर्गत कौन से अधिकार, मानव अधिकार कहे जा सकते हैं?( under indian Constitution which fundamental rights can said human rights.)
भारतीय संविधान के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकारों को मानव अधिकार के रूप में वर्णित किया गया है:-
(1) न्याय:- सामाजिक ,आर्थिक व राजनीतिक
(2) स्वतंत्रता:- विचार, मत ,विश्वास व धर्म की
(3) समानता:- पद तथा अवसर की
(4) बंधुत्व: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता के लिए भारतीय संविधान के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार मानव अधिकार की श्रेणी में आते हैं-
(1) नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार:- संविधान के अनुच्छेद 5 के अंतर्गत संविधान के लागू होने पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत राज्य में अधिवास है तथा
(क) जो भारत राज्य क्षेत्र में जन्मा या
(ख) जिसके माता-पिता में से कोई भारत राज्य क्षेत्र में जन्मा
(ग) संविधान प्रारंभ होने से ठीक पहले कम से कम 5 वर्ष तक भारत राज्य क्षेत्र में सामान्यतः निवासी रहा है, भारत का नागरिक होगा।
अनुच्छेद 8 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई अथवा पितामह में से कोई भारत सरकार अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में रहा हो, यदि वह निम्नलिखित शर्तें पूरी कर लेता है तो वह भारत का नागरिक समझा जाएगा:
(अ) इस आशय का आवेदन पत्र कौंसलर प्रतिनिधि अथवा राजनयिक के समक्ष किया गया हो,
(ब) आवेदन संविधान के पूर्व या बाद में दिया गया हो
(स) आवेदन पत्र भारत डोमिनियम सरकार या भारत सरकार द्वारा विवादित प्रपत्र पर और रीति से किया हो
(घ) यदि वह भारत का नागरिक पंजीकृत कर लिया गया हो
प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार भी ना किसी युक्तियुक्त आधार से वंचित नहीं होगा।
(2) समता का अधिकार: मूल अधिकार समता के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकार सम्मिलित होते हैं:
(क) विधि के समक्ष समता
(ख) धर्म ,मूल वंश ,जाति ,लिंग ,जन्म का स्थान
(ग) राज्य की नियुक्तियों के मामले में अवसर की समता
(घ) छुआछूत का उन्मूलन
(ड) उपाधियों का उन्मूलन
(3) स्वतंत्रता का अधिकार: वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। स्वतंत्रता के अधिकार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
(a) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
(b) शांतिपूर्वक तथा बिना हथियारों के एकत्रित होने की स्वतंत्रता
(c) समुदाय का संघ बनाने की स्वतंत्रता
(d) भारत के क्षेत्रों में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता
(e) आवास की स्वतंत्रता
(f) किसी भी पेशे को स्वीकार करने या कोई भी कार्य करने व्यापार या व्यवसाय चलाने की स्वतंत्रता
ये स्वतंत्रताएँ स्वयं में परिपूर्ण नहीं है।
(4) शोषण के विरुद्ध अधिकार: इस अधिकार के अंतर्गत किसी व्यक्ति से बेगार तथा जबरदस्ती काम नहीं लिया जाएगा तथा 14 वर्ष से कम आयु वाले किशोरों को खतरनाक कारखाने या खान में नौकरी पर नहीं रखा जाएगा और ना ही किसी अन्य संकटमय नौकरी में लगाया जाएगा।
(5) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार: इस अधिकार के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को:
(क) सार्वजनिक व्यवस्था सदाचार और स्वास्थ्य तथा उच्च भाग के दूसरे उपबंधों के अधीन रहते हुए अंत:करण की स्वतंत्रता का तथा धर्म का अबाध रूप से मानने आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार होगा।
(ख) धार्मिक मामलों का प्रबंध करने की स्वतंत्रता होगी
(ग) किसी खास धर्म की उन्नति के लिए कर देने के विषय में स्वतंत्रता होगी ।
(घ) कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थिति होने की स्वतंत्रा होगी ।
(6) सांस्कृतिक और शिक्षा संबंधी अधिकार: भारत के राज्य क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी भाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
राज्य द्वारा घोषित अथवा राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूल वंश जाति अथवा इनमें से किसी के आधार पर वंचित नही रखा जायेगा।
(7) संपत्ति का अधिकार: अनुच्छेद 31 व्यवस्था करता है कि कोई भी व्यक्ति विधि के अधिकार के अलावा किसी भी प्रकार की अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
(8) संवैधानिक उपचारों का अधिकार: बिना उपचारों के मौलिक अधिकारों का कोई महत्व नहीं है । अतः भारत का संविधान अनुच्छेद 32 यह प्रत्याभूति देता है कि यदि किसी मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण किया जाता है तो वह उपयुक्त कार्यवाही द्वारा उच्चतम न्यायालय से अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए प्रार्थना कर सकता है।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के गठन संबंधी प्रावधान(Formation of the national human rights commission ): मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 3 के अनुसार
(1) इस अधिनियम के अंतर्गत प्रदत्त कार्यों का निष्पादन करने के लिए केंद्रीय सरकार एक निकाय (Body) का गठन करेगी ।
(2) आयोग निम्नलिखित से मिलकर गठित होता है:-
(a) एक अध्यक्ष जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रह चुका हो।
(b)एक सदस्य जो उच्चतम न्यायालय का वर्तमान में न्यायाधीश हो या रह चुका हो,
(c) एक सदस्य जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रह चुका हो
(d) दो ऐसे व्यक्ति नियुक्त किए जाएंगे जो मानव अधिकारों से संबंधित विषयों में ज्ञान रखते हो।
(3) अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पदेन सदस्य होंगे।
(4) एक महासचिव होगा
(5) आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा।
मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की कार्य अवधि: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्यों का कार्यकाल नियुक्ति की तिथि में 5 वर्ष तक अथवा उनकी आयु 70 वर्ष होने तक रहता है। एक बार सदस्य रह चुका व्यक्ति दूसरी बार आयोग का सदस्य नियुक्त किया जा सकेगा बशर्ते कि उसकी आयु 70 वर्ष से कम रही हो। अध्यक्ष की पुनः नियुक्ति नहीं हो सकेगी। अध्यक्ष अथवा सदस्य जब अपने पद से मुक्त हो जाते हैं तो वे केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी भी पद पर नियुक्त नहीं हो सकेंगें।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पद से कब हटाया जा सकता है?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए होती है लेकिन उसको समय अवधि के पूर्व भी हटाया जा सकता है यदि वह दिवालिया न्यायनिर्णीत कर दिया गया है या वे अपने पद के कर्तव्य के बाहर किसी वेतन रोजगार में अपने कार्यकाल में लगता है। यदि वह मस्तिष्क या शरीर की दुर्बलता के कारण अपने पद पर बने रहने के अयोग्य है या विकृत्त चित्त का है, या किसी अपराध के लिए सिद्ध दोष हो गया है, एवं उसे कारागार की सजा दी गई है।
आयोग के कार्य:- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की धारा 12 में आयोग के कार्यों का वर्णन किया गया है। मानवाधिकार आयोग का प्रमुख कार्य स्वप्रेरणा से या किसी पीडित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर (1) मानव अधिकारों के उल्लंघन या उसके उपशमन की(2) किसी लोक सेवक द्वारा उस उल्लंघन को रोकने की उपेक्षा की शिकायत की जांच करेगा। इसके अलावा मानव अधिकार आयोग का प्रमुख कार्य मानव अधिकारों का संरक्षण करना है। इसके साथ-साथ मानव अधिकारों के प्रति जनसाधारण में चेतना जागृत करना तथा इस क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन देना है। मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच करने की शक्ति आयोग को प्रदान की गई है।
इस प्रकार धारा 12 के अंतर्गत मानव अधिकार आयोग को प्राप्त अधिकारों का उद्देश्य मानव अधिकारों का संरक्षण प्रदान करना है। यह जांच आयोग स्वयं या पीड़ित अथवा किसी भी व्यक्ति की शिकायत पर कार्यवाही उस स्थिति में कर सकता है जबकि मानव अधिकारों का उल्लंघन अथवा दुष्प्रेणा (asetment) हो तथा ऐसे उल्लंघन के निवारण में लोक सेवक द्वारा लापरवाही बरती गई है।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत आयोग को मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी शिकायतों की जांच करने का महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किया गया है। इस संबंध में उसे दीवानी न्यायालय की समस्त शक्तियां प्राप्त होंगी। आयोग को किसी भी व्यक्ति से किसी शिकायत के संबंध में सूचना प्राप्त करने का अधिकार होगा ऐसा व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 176 एवं धारा 177 के अंतर्गत ऐसी सूचना देने के लिए बाध्य हुआ समझा जाएगा।
धारा 13 के अंतर्गत आयोग को गवाहों को सम्मन जारी करने, गवाहों का परीक्षा करने, दस्तावेजों को प्रस्तुत कराने, शपथ पत्रों पर साक्ष्य लेने किसी न्यायालय या कार्यालय से लोक अभिलेखों के प्रति प्राप्त करने, गवाहों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने तथा अन्य निहित विषयों के अधिकार प्राप्त हैं।
धारा 17 के अनुसार मानवाधिकार के उल्लंघन पर किसी शिकायत के प्राप्त होने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग शिकायत के संबंध में केंद्र सरकार या राज्य सरकार अथवा किसी प्राधिकारी या संस्था से रिपोर्ट मांग सकता है। यदि आयोग मानवाधिकार के उल्लंघन पर प्राप्त होने वाली किसी शिकायत की जांच के बाद यह पाता है कि किसी लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है या इसे रोकने में लापरवाही बरती गई है तो आयोग दोषी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने की संस्तुति करता है। आयोग उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय से समुचित आदेश, निर्देश या याचिका जारी करने की सस्तुति करेगा।
केंद्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति: मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 40 के अनुसार केंद्रीय सरकार अधिसूचना जारी करके इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी किए जाने के संबंध में नियम बना सकेगी। इसके अलावा केंद्रीय सरकार इस आयोग के अधीन नियुक्त सदस्यों के वेतन भक्तों एवं सेवा शर्तों के संबंध में भी नियम बना सकेगी। इसके साथ-साथ प्रशासकीय तकनीकी एवं वैज्ञानिक स्टाफ की नियुक्ति एवं उनके वेतन भत्तों के संबंध में नियम बना सकेगी।
इसी प्रकार का अधिकार राज्य सरकार को धारा 41 के अंतर्गत राष्ट्र आयोग के संबंध में प्रदान किया गया है।
मानवाधिकार न्यायालय(Human rights courts ): मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 30 के अंतर्गत मानवाधिकार न्यायालय की स्थापना के बारे में प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार मानवाधिकारों के उल्लंघन में उद्द्भुत मामलों के त्वरित विचरण हेतु राज्य सरकार अधिसूचना जारी करके प्रत्येक जिले के लिए एक सेशन न्यायालय को मानवाधिकार ने वाले के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकती है। ऐसा करने से पूर्व राज्य सरकार को राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर सहमति प्राप्त करनी होगी। इन न्यायालयों के कार्य मानवाधिकारों के उल्लंघन से उद्भूत अवरोधों का विचरण करना होगा।
Comments