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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

प्रदूषण क्या होता है और किन कारणों से फैलता है?

आधुनिक युग में पर्यावरण संरक्षण अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है । आधुनिक औद्योगिक विकास की तीव्र गति ने विश्व के समक्ष नाना प्रकार की चुनौती उत्पन्न कर दी है । आज का युग वैज्ञानिक युग है । विज्ञान ने संपूर्ण विश्व के मानव जीवन को आंदोलित कर दिया है । यथार्थ विज्ञान ने मानव जीवन की उन्नति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है परंतु इस तरक्की के साथ-साथ इसने मानव के अस्तित्व को भी खतरे में डाल दिया है । आज मानव जीवन को सबसे ज्यादा खतरा प्रदूषण से है । यह प्रदूषण कल कारखानों से निकलने वाले धुओं से, डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से उत्पन्न धुयें  से होता है। आज मानव प्रदूषण में जन्म लेता है ,प्रदूषण में जीवित रहता है और उसका अंतिम  संस्कार भी प्रदूषण के वातावरण में ही होता है । यथार्थ प्रकृति में वातावरण को स्वच्छ रखने की क्षमता है परंतु उस क्षमता की एक सीमा है । एक समय था जब मानव छोटे-छोटे समुदायों  में विस्तृत भू-भाग पर रहता था । वायु ,जल ,धूप के द्वारा प्रकृति वातावरण को स्वच्छ बना देती थी । उस समय मानव जीवन के समक्ष प्रदूषण की कोई समस्या नहीं थी । प्राचीन समय में मानव का जीवन स्वच्छ था तथा उसके द्वारा फेका गया कूड़ा कचरा समस्या नहीं था।

            प्रदूषण का एक प्रमुख कारण जनसंख्या की वृद्धि भी है । जनसंख्या की वृद्धि के साथ बड़े बड़े नगरों का विकास हुआ जिनमें मानव ने अपने जीवन यापन के लिए उद्योग धंधे लगाने प्रारंभ किए। शहरीकरण और औद्योगीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती गई। नदियों के किनारे बड़े नगर बस गए। इन नगरों में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा कूड़ा कचरा नदियों में फेंका जाने लगा। इस प्रकार नदियां प्रारंभ से अंत तक कूड़ा और गंदगी से प्रदूषित हो गई। उनका बहाव बाधित हो गया जिसके परिणाम स्वरूप जल प्रदूषित हुआ। आज मानव इस प्रदूषित जल को पीने तथा अपने काम में लाने को बाध्य है।

               विज्ञान के विकास के साथ-साथ स्वचालित वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई। डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों ने नगरों को प्रदूषित कर दिया। नगरों में मानव का जीवन दुर्लभ हो गया। जंगल ,झीलों एवं वातावरण को मानव ने प्रदूषित कर दिया है। यह प्रदूषण राष्ट्रीय धरोहरों को समाप्त कर रहा है। ऐतिहासिक इमारतें बर्बाद हो रही हैं। आगरा के ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए तथा दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने कठोर निर्देश जारी किए हैं। आज का मानव जीवन जल ,थल ,नभ सभी प्रकार के प्रदूषणों से ग्रसित हैं। प्रदूषण मानव जनित महामारी है, अतः कानून ने उसे विधायन द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया है।


प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित विधियां:- वर्तमान समय में प्रदूषण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। इससे हमारा तात्पर्य यह नहीं है कि पहले प्रदूषण नहीं था। प्रदूषण की समस्या पहले भी थी परंतु उसका रूप विकराल एवं भयानक नहीं था। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पहले भी निम्न व्यवस्थाएं थी।

(1) धारा 277 भारतीय दंड संहिता(1860)।

(2) धारा 133 अपराध प्रक्रिया संहिता(1973)।

(3) कारखाना अधिनियम की धारा 12।

(4) जल( नियंत्रण एवं प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम 1974 ।

(5) वन्य जीव( नियंत्रण) अधिनियम 1972 ।

(6) जंगल( संरक्षण) अधिनियम 1986 ।

            इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया है कि प्रदूषण मुक्त समाज में जीवन यापन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। पर्यावरण( संरक्षण) अधिनियम 1986 इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण अधिनियम है।


       पर्यावरण प्रदूषण का तात्पर्य होता है मानवीय कारणों द्वारा स्थानीय स्तर पर गुणवत्ता में ह्रास । प्रदूषण को पर्यावरण के ऐसे ढंग से संदूषण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है , जो जीवित तथा अजीवित  के स्वास्थ्य के प्रति परिसंकट या संभावित परिसंकट उत्पन्न करता है। पर्यावरण प्रदूषण नगरीकरण, औद्योगिक क्रांति, प्रौद्योगिकी में विकास, प्राकृतिक संसाधनों के लोलुपता पूर्ण अंधाधुंध विदोहन, पदार्थ तथा ऊर्जा के विनिमय की बढ़ी हुई दर तथा औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों नगरी मल जल तथा न सड़ने गलने वाली उपभोक्ता सामग्रियों के उत्पादन में निरंतर वृद्धि का प्रभाव है। पर्यावरण प्रदूषण की निम्नलिखित परिभाषाएं उल्लेखनीय है:

(1) संयुक्त राज्य अमेरिका की विज्ञान सलाहकार समिति ने प्रदूषण को निम्न रूप में परिभाषित किया है:

   " प्रदूषण हमारे परिवेश का प्रतिकूल परिवर्तन है जिसका उर्जा प्रतिमान विकरण स्तर रासायनिक तथा भौतिक संघटक और जैविकों की प्रचुरता में परिवर्तन का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव है।"

  (2) आर.ई.डैसमैन के अनुसार उस दशा या स्थिति को प्रदूषण कहते हैं जब मानव द्वारा पर्यावरण में विभिन्न तत्वों एवं ऊर्जा की इतनी अधिक मात्रा में संग्रह हो जाता है कि वे परिस्थितिक तंत्र द्वारा आत्मसात करने की क्षमता से अधिक हो जाते हैं।

(3)डी.एम. डिक्सन के अनुसार प्रदूषण के अंतर्गत मनुष्य एवं उसके पालतू मवेशियों को उन समस्त इच्छित एवं अनिश्चित कार्यों तथा उनसे उत्पन्न प्रभावों एवं परिणामों को सम्मिलित किया जाता है जो मनुष्य को अपने पर्यावरण से आनंद एवं पूर्ण लाभ प्राप्त करने की उसकी क्षमता को कम करते हैं।

(4) राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद के अनुसार मनुष्य के क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थो  एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।

(5)लाघम  का कहना है कि सामान्य बोलचाल में प्रदूषण का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा पर्यावरण के किसी भाग में अपशिष्ट  पदार्थों या अतिरिक्त उर्जा या किसी अन्य परिसंकटमय वस्तुओं का समावेश है , जो पर्यावरण को परिवर्तित कर देता है और इस परिवर्तन के द्वारा उस देश में जिसमें व्यक्ति चाहते हैं व्यक्ति के प्रयोग या उपयोग के अवसर को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षता प्रभावित करता है।

         इस प्रकार उपयुक्त परिभाषाओं से यह ज्ञात होता है कि प्रदूषण के तीन मुख्य आधार है:

(1) मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थ तथा उनका निपटान,

(2) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपशिष्ट पदार्थों के निपटान से उत्पन्न हानि, और

(3) इस क्षति का लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव

       अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण उसे कहते हैं जब मनुष्य के इच्छित  या अनुचित कार्यों द्वारा प्राकृतिक पारिस्थितिक ढंग में इतना अधिक परिवर्तन हो जाता है कि वह उसकी क्षमता से अधिक हो जाता है परिणाम स्वरूप पर्यावरण की गुणवत्ता में आवश्यकता से अधिक ह्रास होने से मानव समाज पर दूरगामी हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण: पर्यावरण प्रदूषण के निम्नलिखित मुख्य कारण है:

(1) साधारण दिग्दर्शन

(2) जनसंख्या वृद्धि

(3) औद्योगिक क्रियाकलाप

(4) कृषि विकास

(5) नगरीकरण

(6) आधुनिक औद्योगिक

(1) साधारण दिग्दर्शन:- प्राकृतिक पर्यावरण की संरचना भौतिकी या अजैविक संघटकों जैसे: स्थल ,जल ,मृदा तथा वायु एवं जैविक संघटकों जैसे पौधे मानव सहित जंतु तथा सूक्ष्मजीव द्वारा होती है। इस जैवमंडल तंत्र या प्राकृतिक पर्यावरण वेग का भौतिक एवं जैविक प्रक्रमों द्वारा कार्यान्वयन तथा नियंत्रण होता है। परंतु जैसे-जैसे मनुष्य ने विकास की ओर कदम बढ़ाये कुछ नहीं प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक मात्रा में दोहन किया जिसका प्रभाव प्रकृति की स्थिति पर पड़ा तथा इसके भौतिक पर्यावरण के कुछ संघटकों में इतना अधिक परिवर्तन हो गया कि प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई।

(2) जनसंख्या वृद्धि:- वास्तव में पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिकीय असंतुलन का मूल कारण मानव जनसंख्या में वृद्धि है क्योंकि कृषि में विस्तार, नगरीकरण, औद्योगिकरण आदि बढ़ते मानव समुदाय के ही परिणाम है। जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव दिन प्रतिदिन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता गया है इस कारण प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से किंतु धुआंधार विदोहन के कारण अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न होती गई है।

            शहरी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होती गई। इसके प्रभाव का अनुभव आवास ,परिवहन क्षमता ,खाद्य भंडार और वितरण नागरिक सुविधाओं, पौष्टिक आहार इत्यादि के क्षेत्र में किया जा रहा है। जनसंख्या में वृद्धि अत्यधिक भीड़ के शोर कीटाणुओं और कृतंक वायु प्रदूषण और सड़क की गंदगी की समस्या को उत्पन्न कर रहा है। यह कारण बदले में हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। प्रदूषण का मूल कारण जनसंख्या की अतिशय वृद्धि है। जनसंख्या की वृद्धि के कारण ही पर्यावरणीय प्रदूषण फैल रहा है।

            आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रगति तथा मनुष्य के आर्थिक क्रियाकलापों में वृद्धि के कारण प्रकृति के विदोहन में और तेजी आई है। इन सब का परिणाम यह हुआ कि भौतिक पर्यावरण के कुछ संघटकों में इतना अधिक परिवर्तन हो गया है कि उसी की क्षतिपूर्ति पर्यावरण से अंतर्निर्मित समस्थैतिक क्रिया विधि द्वारा संभव नहीं है। परिणाम स्वरूप परिवर्ती पर्यावरणीय दशाओं का जैव मंडल की जीवो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तदानुसार पर्यावरण संरक्षण के लिए जनसंख्या की परिवर्तन जनसंख्या नियंत्रण के लिए आवश्यक है।

(3) औद्योगिक क्रियाकलाप:- मनुष्य प्रारंभ से ही आविष्कारशील है। उसने इस गुण को स्वयं प्रकृति से ही उत्तराधिकार में प्राप्त किया है। अपनी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए और अपने जीवन स्तर में वृद्धि करने के लिए उसने विभिन्न क्रियाकलाप किए हैं। वह अब ऐसी चीजों का उत्पादन कर रहा है जो पहले नहीं थी और वह उत्पादन में वृद्धि कर रहा है जो पहले अस्तित्व में थीं, किंतु प्रचुर मात्रा में नहीं थी और प्रक्रिया में वह सभी चार संघटकों अर्थात भूमि ,जल, वायु तथा खाद्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, जो मानव के जीवन के लिए आवश्यक है। खाद्य स्थल तथा ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। इन मांगों को पूरा करने के लिए हम रासायनिकों का अधिकतम प्रयोग कर रहे हैं जो जीवित प्राणियों के लिए हानिकारक है। 10 मुख्य रासायनिक  प्रदूषक जिन्हें वैज्ञानिकों द्वारा पहचाना गया है वे हैं कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड ,सल्फर डाइऑक्साइड ,नाइट्रोजन ऑक्साइड ,मर्करी लेड, पेट्रोलियम डी.टी.टी. और विकिरण युक्त पदार्थ तथा उनके द्वारा उत्पादित विकिरण। किसी व्यक्ति के अनुसार लगभग दो हजार करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड प्रतिवर्ष वातावरण में जाती है, जिसका उपभोग पृथ्वी के सभी वृक्षों द्वारा नहीं किया जा सकता है और इनमें से कुछ वातावरण में ही बची रहती है। यह विश्वास किया जाता है कि अगले 100 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड से ग्रीन हाउस प्रभाव( greenhouse effect) के कारण पृथ्वी का तापमान 3 से 7 सेंटीग्रेड तक जा सकता है। तापमान में यह वृद्धि ध्रुव  के बर्फ को पिघला सकती है जिसके कारण महासागर के जलस्तर में वृद्धि हो सकती है। यह नीचे स्थित क्षेत्रों में बाढ़ ला सकती है और कई द्वीपों को विलीन भी कर सकती है।

           औद्योगिक के क्रियाकलापों के कारण धूल तथा धुयें  की पर्याप्त मात्रा वातावरण में छोड़ी जाती है। वातावरण में इनका संचयन पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य की गर्मी को कम करता है, जो तापमान में वैश्विक कमी को कारित करता है और इस प्रकार पृथ्वी पर नया बर्फ युग ला सकता है। जब वातावरण में धूल और धुआं जल के वाष्प  के साथ संलग्न होता है तो इससे वह निर्मित होता है जिसे धूम्र कोहरा कहा गया है। यह धूम्र कोहरा खतरनाक प्रभाव उत्पन्न करता है। 1952 में लंदन में लगभग 4000 व्यक्तियों  की इससे मृत्यु हुई थी और लगभग 8000 व्यक्ति जापान के टोक्यो में इसके कारण कान, नाक तथा गले की परेशानी से पीड़ित हुए थे।

        औद्योगिक क्रियाकलापों का दोषपूर्ण प्रभाव पहले ही यूनियन कार्बाइड संयंत्र के भोपाल में मिथाइल आईसोसाइनाइट( methyl isocyanate gas) के रिसाव चेर्नोबिल एटॉमिक संयंत्र से रूस डियोएक्टिव पदार्थ के रिसाव और जापान में हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम गिराने से पहले ही देखा गया है।अन्य उदाहरण सुपर टैंक अटलांटिक एक्सप्रेस तथा एजीएम टैंकर से तेल बहने से है जब यह 1979 टोबैगो में भिड़ गए थे। जिसमें2,36,000 टन तेल बह गया था, जिसके परिणाम स्वरूप संपत्ति को काफी हानि हुई थी,और पर्यावरण को भी।

         वर्तमान समय में विश्व में औद्योगिक क्रियाकलाप पर्यावरण प्रदूषण का अत्यधिक महत्वपूर्ण कारण है और प्रदूषण का कार्य संभवतया तब से प्रारंभ हुआ है, जब से मनुष्य ने अग्नि की खोज की थी।


(4) कृषि विकास: मानव ने आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी में विकास, प्रभाव, प्रौद्योगिकी, रासायनिक खादों के उत्पादन तथा उभोग में वृद्धि, सिंचाई के साधनों एवं सुविधाओं में वृद्धि अधिक उत्पादन वाले बीजों के विकास आदि के माध्यम से कृषि में पर्याप्त विस्तार एवं विकास किया है तथा निरंतर बढ़ती मानव जनसंख्या के कारण बढ़ती खाद्यान्नों की मांग की पूर्ति तो कर दी है लेकिन साथ ही साथ घातक पर्यावरणीय समस्याओं को भी जन्म दिया है। खेती में रासायनिक तत्व वर्षा के जल के साथ बहकर तालाबों ,झीलों तथा नदियों में पहुंचते हैं। इस तरह इन जल भंडारों में लगातार भंडारण के कारण कुछ पौधों में तेजी से वृद्धि होने लगती है तथा अन्य पौधों एवं जीवो में मृत्यु की दर बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया द्वारा जल भंडारों का जल प्रदूषित हो जाता है तथा जैव ऑक्सीजन मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


 (5)नगरीकरण:नगरीय केंद्रों में जनसंख्या में लगातार वृद्धि से बढ़ते सांद्रण एवं औद्योगिक करण के फल स्वरुप नए नगरों के निर्माण एवं पूर्व स्थिति नगरों में विस्तार के कारण विकसित एवं विकासशील देशों में पर्यावरण प्रदूषण की नई समस्या उत्पन्न हो गई हैं। रोजगार की तलाश में व्यक्तियों का पलायन गांव से शहर की ओर हो रहा है। शहर से लगे हुए गांव का परिवर्तन नगर के रूप में हो रहा है। पेड़ पौधे काट काट कर जमीनों पर भवनों का निर्माण हो रहा है। जहां पहले व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर रिक्शा , तांगा, साइकिल से जाता आता रहता था अब स्थल की दूरी के कारण व टेंपो स्कूटर तथा कार से आता जाता है। स्कूटर तथा कार व टैंपू में डीजल व पेट्रोल का प्रयोग होता है। इस डीजल और पेट्रोल  के कारण आज प्रदूषण ने भयानक रूप ले लिया है। जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।


        उपयुक्त कारणों के अलावा पर्यावरण पर ऊर्जा उपयोग जलवायु परिवर्तन ओजोन परत की क्षीणता, वन विकास इत्यादि का भी प्रभाव पड़ता है। आपूर्ति का भी पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जल वास्तव में पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्रत्येक जीवधारी का जीवन स्रोत है। मानव जाति को आज ताजा पानी के प्रवाह में कमी और प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। बहुत से क्षेत्रों में जिनमें अधिकांश यूरोप ,संयुक्त राष्ट्र के बड़े भागों ,भारत में गंगा घाटी, चीन के उत्तर पश्चिमी प्रांत में असल में अपने अफवाह का प्रयोग किया जाता है। इसके कारण मनुष्य को शुद्ध जल प्राप्त करने में अत्यंत कठिनाई होती है। प्रदूषण का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है।


प्रदूषण के कारक( factors of pollution)

(1) मनुष्य का जल के संसाधनों का प्रयोग, अर्थात जल में प्रदूषकों का स्खलन

(2) वायु में प्रदूषकों को छोड़ना

(3) गंदगी तथा अपशिष्ट जल का निस्तारण

(4) ठोस अपद्रवों का अनुचित प्रबंधन

(5) रोग वाहक को नियंत्रित करने की असफलता

(6) खाद्य संरक्षण में असफलता

(7) आयनीकरण विकिरण(Ionising radiation ) उत्सर्जन(Emission) को निवारित करने की असफलता

(8) विद्युत चुंबकीय ऊर्जा( electromagnetic energy) का अनुचित प्रबंधन

(9) ताप तथा शोर का अनुचित प्रबंधन

(10) रासायनिक उद्योगों का अनुचित प्रबंधन


         इंडियन काउंसिल फॉर इनवायरो लीगल एक्शन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया( ए .आई .आर 1996 एस.सी.1446) में उच्चतम न्यायालय ने एन .ई .आर. आई. और आर.पी.सी.बी. की रिपोर्ट के परीक्षण के बाद यह घोषित किया कि रासायनिक उद्योग प्रदूषण के मुख्य अपराधी हैं, क्योंकि इन्होंने विधि पूर्ण  प्राधिकारियों तथा न्यायालयों के आदेश का उल्लंघन किया है और अभी भी कर रहे हैं। न्यायालय ने दंड मुक्ति के साथ यह परीक्षण  किया था:

           रासायनिक उद्योग पर्यावरण को प्रदूषित करने के मामले करने के मामले में मुख्य अपराधी हैं, इसलिए  उनके संस्थापन और कार्य की व्यापक रूप से समीक्षा करने की आवश्यकता है इसके लिए बड़े उद्योग तथा छोटे उद्योग के बीच अंतर नहीं किया जाना चाहिए। यह प्रतीत होता है कि इन उद्योगों में से अधिकतर जल आधारित उद्योग हैं। यदि ऐसा है तो अंदर के क्षेत्रों में इन उद्योगों की स्थापना की आज्ञा देने भी वांछनीय ता परीक्षण की अपेक्षा कर सकती है। विधि के इनके लगातार निरंतर तहसील के उल्लंघन के कारण उत्तर दाता के रूप में उद्योग को दोषपूर्ण उद्योग कहा गया है। जिसने गरीबी आ संदिग्ध ग्रामीणों पर उनकी भूमि तथा उनके जल के स्रोतों को प्रदूषित करके फोन किया है और उनके संपूर्ण पर्यावरण को छिन्न-भिन्न करके खतरा उत्पन्न किया है।

(11) ग्रीन हाउस प्रभाव( greenhouse effect)

(12) सैन्य उत्सर्जन( military Emission)
    

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