सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
(1)जेट स्ट्रीम का संचरण ऊपरी क्षोभ मंडल में 7.5-14 किलोमीटर की सकरी पट्टी में पश्चिम से पूर्व दिशा में दोनों के गोलाद्धों में 20° डिग्री अक्षांशों से ध्रुवों के मध्य होता है।
केवल उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केंद्र या मध्य भाग में चक्रवात की आंख(वाताक्षि) उत्पन्न होती है। इस क्षेत्र में वायु का आरोहण नहीं होता है, जिसके कारण वर्षा के लिए प्रतिकूल स्थिति बनी रहती है। चक्रवात की वाताक्षि के अंदर का तापमान आसपास के तापमान से अधिक होता है।
(2) ओस(dew) का निर्माण तभी होता है ,जब निम्नलिखित परिस्थितियां या अवस्थाएं एक साथ मौजूद हो
आकाश साफ हो; हवा शांत हो; उच्च सापेक्षिक आर्द्रता हो; ठंडी एवं लंबी रातें हो; ओसांक बिंदु(Dew point), हिमांक बिंदु(freezing point) से ऊपर हो।
मेघाच्छादित रात में ओस की बूंदे नहीं बनती क्योंकि मेघ भौमिक विकिरण के मार्ग में अवरोध हैं।मेघाच्छादन के कारण पृथ्वी की विकिरण को बादलों द्वारा परावर्तित कर दिया जाता है, जिससे वायु और सतह गर्म बने रहते हैं। फलतः दैनिक तापांतर कम होने की वजह से उसका निर्माण नहीं हो पाता है।
(3) 21 जून को सूर्य कर्क रेखा(23'1\2° उत्तरी अक्षांश)पर लंबवत होता है। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में दिन सबसे बड़ा तथा रात सबसे छोटी होती है। इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत(Summer Solstice) या उत्तर अयनांत भी कहते हैं। इस तिथि को पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव का सूर्य की ओर अक्षीय झुकाव अधिकतम होता है तथा इस स्थिति में उत्तरी गोलार्ध में सूर्य अधिकतम ऊंचाई पर होता है। इस अवस्था में उत्तरी ध्रुव पर रात नहीं होती अर्थात सूर्य उत्तर ध्रुवीय वृत्त (आर्कटिक वृत्त ) पर क्षितिज के नीचे नहीं डूबता है।
(4) उष्णकटिबंधीय अक्षांशों में दक्षिण अटलांटिक एवं दक्षिण पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में चक्रवातों की उत्पत्ति नहीं होती है क्योंकि इन क्षेत्रों में प्रचंड कारी रूप में क्षोभमंडलीय ऊर्ध्वाधर वायुकर्तन(Tropospheric vertical Windsheer) पाई जाती है।अतः यहां पवनों का अवरोहण होता है जिससे सतह पर ITCZ(intertropical Convergence Zone) कमजोर पड़ जाता है तथा यहां की सागरीय सतह पर ITCZ अनुपस्थित हो जाता है।ITCZ के अभाव में इन क्षेत्रों में निम्न गर्तों का निर्माण एवं पवनों का सर्पिल परिसंचरण बाधित हो जाता है जिससे इन क्षेत्रों में चक्रवातों की उत्पत्ति नहीं हो पाती है।
चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं जिन की उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय महासागरों में होती है, परंतु दोनों गोलार्द्धों में 0° से5° अक्षाशों के बीच इन चक्रवातों की अनुपस्थिति होती है जिसका कारण यहां कोरिओलिस बल का अभाव होना है।
हिंद महासागर में यह चक्रवात, अटलांटिक महासागर में हरिकेन के नाम से, पश्चिम प्रशांत एवं दक्षिण चीन सागर में टाइफून और पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में willy-willy के नाम से जाने जाते हैं।
(5) असमान सूर्यातप की प्राप्ति के कारण पृथ्वी पर दोनों गोलार्द्धों में उच्च एवं निम्न वायुदाब की विशिष्ट पेटियों का सृजन होता है जिनके बीच पवनों का प्रवाह प्रारंभ होता है।
दोनों गोलार्द्धों में 30 35° अक्षांश पर स्थापित उपोष्ण उच्च वायुदाब एवं 60 65° अक्षांश पर स्थापित उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियां के बीच पवन प्रवाह को पछुआ पवनें कहा जाता है। क्योंकि पश्चिमी पवनें दोनों गोलार्द्धों में 30°N से 60°N एवं 30°S से60°S अक्षांशों के बीच बहती है ना कि 30°Nसे60°S अक्षांश के बीच।
भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र, यथा पंजाब हिमाचल प्रदेश हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जम्मू कश्मीर इत्यादि में शीतकाल के दौरान वर्षा होती है। यह वर्षा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से होती है जिन्हें पछुआ पवनें प्रवाहित होने के क्रम में भारत के उत्तर पश्चिमी भाग पर लाती हैं। भूमध्य सागर से गमन करते हुए ये वायुसंहतियाँ आर्द्रता ग्रहण करती है जो पश्चिमोत्तर भारत में वर्षा करती है, इस प्रक्रिया को पश्चिमी विक्षोभ की संज्ञा दी जाती है।
(5) सवाना: इस क्षेत्र में तापमान वर्ष भर उच्च बना रहता है किंतु वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीत ऋतु शुष्क होती है।
विषुवतीय: विषुवत रेखा पर सूर्य की किरणें वर्षभर सीधी पड़ती हैं अतः तापमान वर्ष भर उच्च बना रहता है। सुबह तापमान कम होने तथा जल की अपेक्षा थल के जल्दी गर्म हो जाने के कारण समुद्र तटीय क्षेत्र में गर्म हवा ऊपर उठती है जिसका स्थान लेने के लिए समुद्र की ठंडी हवा आती है जिसे समुद्री समीर कहते हैं। परंतु जैसे-जैसे सूर्य आकाश में ऊपर चढ़ता है तापमान तेजी से बढ़ता है जिससे वाष्पीकरण की दर भी पड़ती है तथा घने बादल बनते हैं और दोपहर के बाद तेजी से बादलों की गरज तथा बिजली की चमक के साथ संवहनीय वर्षा होती है। यह प्रक्रिया विश्वतरेखीय क्षेत्र में प्रतिदिन होती है। अतः इस क्षेत्र में गर्मी तथा शीत ऋतु नहीं होती है और ना ही अलग-अलग वर्षा तथा वर्षारहित ऋतु ।
मानसून: यहां अलग-अलग वर्षा तथा शुष्क ऋतुएं पाई जाती हैं। वर्षा प्रायः 4 माह( जून जुलाई-अगस्त सितंबर) होती है।
भूमध्यसागरीय:30 40° अक्षांशों के मध्य अवस्थित होने के कारण इस क्षेत्र में तापमान कम पाया जाता है। वर्षा शीत ऋतु में होती है एवं ग्रीष्म ऋतु प्रायः शुष्क होती है।
(6) मानसून का उद्भव अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ पवनों का ऋतुवत् उत्क्रमण है। ऐसे मानसूनी पवनों के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों में मानसूनी जलवायु का निर्माण हुआ।
विश्व में मानसूनी जलवायु वाले प्रमुख क्षेत्र भूमध्य रेखा के दोनों ओर5° से30° अक्षांशों के बीच दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीका का पूर्वी तटीय भाग, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्व तटीय भाग है। वास्तव में यह प्रदेश व्यापारिक हवाओं की पेटी में आते हैं, जिनमें ऋतुवत् उत्तर तथा दक्षिण की ओर खिसकाव होता रहता है, जिसके कारण मानसून प्रकार की विशेष जलवायु की उत्पत्ति होती है। इसमें 6 महीने तक पवनें सागर से स्थल एवं से 6 महीने तक स्थल से सागर की ओर चला करती हैं।
भूमध्य रेखीय जलवायु विषुवत रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में 5° से10° अक्षांश तक अमेजन बेसिन, अफ्रीका का कांगो बेसिन, गिनी तट, पूर्वी मध्य अमेरिका( पनामा, कोस्टारिका, निकारागुआ, होडुरास) तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में पाई जाती है।इस प्रकार की जलवायु का विकास वर्ष भर पड़ने वाली सूर्य की सीधी के किरणों के कारण उत्पन्न उच्च तापमान व संवहनीय वर्षा के कारण होता है।
भूमध्यसागरीय जलवायु, भूमध्य रेखा के30° से 40° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में पाई जाती है। इसका विस्तार भूमध्य सागर के परिधि देशों कैलिफोर्निया, चिली, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में है। इस जलवायु में जाड़े में यह प्रदेश पछुआ हवा की पेटी में आ जाते हैं, परिणाम स्वरूप चक्रवाती वर्षा होती है। ग्रीष्म काल में यह अयनवर्तीय उच्च दाब के क्षेत्र में आ जाते हैं, जिस कारण प्रतिचक्रवातीय दशाओं का सृजन होता है तथा वर्षा नहीं हो पाती है।
(7) वार्षिक ताप परिसर: वार्षिक ताप परिसर में भिन्नता निम्नांकित कारकों पर निर्भर करती है
- तट के समांतर फैली पर्वत श्रेणियां
- भूमि एवं जल के बीच तापीय अंतर
- अक्षांशीय स्थिति\ वृद्धि( सौर विकिरण की प्राप्ति एवं बहिर्गमन)
- समुद्र तट से दूरी
- समुद्री धाराएं
स्थल तीव्रता से गर्म होता है तथा तीव्रता से ठंडा होता है जबकि जल मंद गति से गर्म होता है तथा मंद गति से दीर्घकाल में ठंडा होता है। इससे स्थलीय भागों का तापांतर अधिक तथा सागरों का न्यूनतम ताप परिसर निर्धारित होता है।
वार्षिक तापांतर: किसी स्थान के सबसे गर्म तथा सबसे ठंडे महीने के मध्यमान तापमान के अंतर को वार्षिक तापांतर कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान क्रमशः जून तथा दिसंबर होने चाहिए लेकिन सूर्य की किरण क्रमशः कर्क और मकर रेखा पर लंबवत पड़ती है। क्योंकि पृथ्वी गर्म और ठंडा होने में समय लेती है। अतः अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान क्रमशः जुलाई तथा जनवरी में होता है।
(8)तडित् झंझा: तडित् (मेघगर्जन Thunder) की उत्पत्ति बिजली चमकने(Lightning ) के कारण होती है।Lightning करण बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज वायु में आती है जिस कारण वायु के कण कंपन करने लगते हैं। यही कंपन हमारे कानों द्वारा ध्वनि के रूप में सुने जाते हैं। बिजली चमकने से उच्च मात्रा में ऊष्मा भी उत्पन्न होती है, जिस कारण तापमान अचानक बढ़ जाता है। इस उच्च तापमान के प्रभाव से वायु तीव्रता से अचानक फैलती है, जिससे भयंकर आवाज उठती है। इसे ही मेघ गर्जन कहते हैं।
(9) मध्य एशियाई स्टेपी जलवायविक प्रदेश
इसका विस्तार शीतोष्ण घास प्रदेश में पाया जाता है। स्टेपी जलवायु मध्य अक्षाशों में महाद्वीपों के आंतरिक भागों में पाई जाती है। यद्यपि यह प्रदेश पछुआ हवाओं की पेटी में अवस्थित है परंतु अपनी आंतरिक एवं महाद्वीपीयता के प्रभाव के कारण पर्याप्त वर्षा प्राप्त नहीं कर पाता है। यहां पर औसत वर्षा 25 से 75 सेंटीमीटर तक होती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्मी तथा शीतकाल में अत्यधिक सर्दी पड़ती है। गर्मियों में तापमान 20 सेंटीग्रेड तक तथा सर्दियों में तापमान -20 सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है, जो इसकी चरम जलवायु को प्रतिबिंबित करता है।
कम वर्षा होने एवं जलवायु चरम होने के कारण इस प्रदेश में वनस्पतियों के स्थान पर मात्र घासें ही उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि यहां चलवासी पशु चालक निवास करते हैं।
अफ्रीकी सवाना में औसत वर्षा 50 से 150 सेंमी. तथा गर्मियों में तापमान 28 से 38°C के बीच रहता है तथा सर्दियों में15°C से कम नहीं हो पाता। अतः यहां चरम जलवायु नहीं पाई जाती है।
उत्तरी अमेरिकी प्रेअरी संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के पश्चिमी राॅकी पर्वतमाला की पदस्थली से प्रारंभ होकर पूर्व में शीतोष्ण पर्णपाती वनों के मध्य विकसित हुआ है। यहां पर औसत वर्षा(105 सेमी.) से पश्चिम(40 सेमी.) की तरफ घटती जाती है तथा यहां वाणिज्य कृषि की जाती है।
साइबेरियाई टुंड्रा रूसी टैगा प्रदेश के उत्तर में अवस्थित है इस प्रकार की न्यूनतम वनस्पति वाली ध्रुवीय आर्कटिक जलवायु को टुंड्रा कहते हैं जिसमें पारिस्थितिकी उत्पादकता न्यूनतम होती है यह औसत वार्षिक तापमान12°C रहता है व सर्दियां लंबी अवधि वाली होती हैं। गर्मियां भी सर्द होती हैं। जलवायु की प्रचंडता के कारण वनस्पति वृद्धि न्यून होती है। यहाँ मवेशी ,भेड़ ,सुअर आदि का मांस एवं ऊन लिए पशुपालन किया जाता है अतः यहां चलवासी पशुचारण नगण्य है।
(11) पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य से आने वाली लघु विकिरण तरंगों से गर्म नहीं होता है अपितु पृथ्वी की सतह से परावर्तित दीर्घ विकिरण तरंगों द्वारा गर्म होता है यही कारण है कि पृथ्वी का वायुमंडल नीचे से ऊपर की ओर गर्म होता है तथा क्रमशः ऊपर की ओर तापमान में कमी होती जाती है।
वायुमंडल में पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर तापमान में क्रमशः कमी हो जाती है।यह कमी 6.5°C प्रति किलोमीटर की दर होती है जिसे सामान्य ताप ह्रास दर कहा जाता है।
वायुमंडल के निचले भागों में वायु की सघनता अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति है, जो वायु में प्रत्येक कण पर गुरुत्व बल अधिकृत करती है। जिससे वायु की सघनता धरातल के समीप अधिक होती है एवं ऊपर जाने पर वायु में विरलता आने लगती है। वायु में आर्द्रता की मात्रा निचले भागों में अधिक होती है तथा ऊपरी वायुमंडलीय भाग में कम आर्द्रता पाई जाती है।
(12) उष्णकटिबंधीय सवाना प्रदेश की जलवायु में स्पष्ट शुष्क एवं आर्द्र ऋतुएं होती हैं। किसी भी महीने का तापमान20°C से नीचे नहीं जाता तथा दैनिक तापांतर अधिक होता है। इस जलवायु प्रदेश में वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है तथा शीत ऋतु शुष्क रहती है।
(13) ला- नीना (La Nina) एक शीतल जलधारा है जिसकी उत्पत्ति पेरू के तटवर्ती क्षेत्रों में होती है, वही एल नीनो एक गर्म जलधारा है जिसकी उत्पत्ति पेरू के तट के समांतर उत्तर से दक्षिण की ओर होती है। इस प्रवाह के कारण दक्षिण पूर्व प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के ताप क्रम में अभूतपूर्व वृद्धि होती है। कई बार इसका प्रभाव संपूर्ण प्रशांत महासागरीय सतह पर दृष्टिगत होता है। ला- नीना का प्रवाह क्षेत्र एल नीनो की तरह प्रशांत क्षेत्र विशेष रूप से पेरू का तटीय क्षेत्र होता है। यह कभी भी हिंद महासागरीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं करती किंतु इन दोनों का प्रभाव वैश्विक होता है।
जिस वर्ष ला- नीना जलधारा की गहनता होती है उस वर्ष भारतीय मानसून ज्यादा तीव्र होता है, वही एल नीनो भारतीय मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
(14) दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा अधिक सशक्त व स्थाई होती है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल खंड उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा कम है तथा सागरीय विस्तार अधिक है। न्यून स्थल खंड पछुआ पवनों के प्रभाह पथ में आने वाले अवरोधों में कमी लाता है जिससे ये पवनें बिना किसी अवरोध के हजारों किलोमीटर तक अनवरत बहती हैं।
कोरिआॅलिस बल पृथ्वी की चपटी आकृति एवं इसके परिभ्रमण के कारण उत्पन्न होता है। इसका मान ध्रुवों पर सर्वाधिक तथा विषुवत रेखा पर न्यूनतम होता है। कोरिओलिस बल का मान दोनों ही गोलार्द्धों में समान होता है।
(15) समताप मंडल की औसत ऊंचाई 50 किलोमीटर मानी गई है। समताप मंडल की ऊपरी सीमा को स्ट्रेटोपाज कहते हैं। स्थिर दशा, शुष्क पवन, मंद पवन संचार, बादलों का प्रायः अभाव, ओजोन के सांद्रण आदि के कारण इस मंडल में मौसम की घटनाएं कम ही घटित होती हैं। कभी-कभी निचले समताप मंडल में सिरस बादल जिन्हें मदर ऑफ पर्ल क्लाउड्स\नैक्रियस क्लाउड कहते हैं, दिखाई पड़ जाते हैं। समताप मंडल के निचले भाग में ऊर्ध्वाधर पवनों का अभाव होता है।
ओजोन गैस का विस्तार सामान्यतः 15 30 किलोमीटर में पाया जाता है, जो समताप मंडल में ही अवस्थित है। यह पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर जीवन रक्षक का कार्य करती है।
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