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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

आयोग ,परिषद, अधिग्रहण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक्स( judicial institution, committees related important topics for UPSC exam)

विधिक सेवा प्राधिकरण( legal service authority )

  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 12 के अंतर्गत विधिक सेवा प्रदान करने हेतु मापदंड निर्धारित किए गए हैं। धारा 12(ज) के अंतर्गत निशुल्क विधिक सेवा प्राप्त करने हेतु न्यूनतम वार्षिक आय निर्धारित करने की शक्ति राज्यों को दी गई है। इस संदर्भ में अलग-अलग राज्यों द्वारा अलग-अलग आय सीमाएं तय की गई है।

  • अधिनियम के अंतर्गत अन्य पिछड़ा वर्ग(OBC) के लोगों को निशुल्क विधिक सेवा प्रदान करने के संदर्भ में कोई चर्चा नहीं की गई है।

  • इसी प्रकार अधिनियम में सभी वरिष्ठ नागरिकों को निशुल्क विधिक सेवा प्रदान करने के संदर्भ में भी चर्चा नहीं की गई है। हालांकि दिल्ली में ₹200000 से कम आय वाले वरिष्ठ नागरिकों को यह सुविधा प्रदान की जाती है परंतु यहां भी सभी वरिष्ठ नागरिकों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।

  • दिल्ली में ही ₹200000 से कम आय वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के व्यक्तियों को निशुल्क विधिक सेवा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।

(2) राष्ट्रीय हरित अधिकरण( एनजीटी) का गठन 18.10.2010 एनजीटी अधिनियम 2010 के अंतर्गत हुआ। सी.पी.सी.बी .का गठन सितंबर 1974 में जल( प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974 के अंतर्गत हुआ।

  •             एन.जी.टी का न्यायिक क्षेत्र पर्यावरणीय विषयों से संबद्ध  है और यह तीव्र पर्यावरणीय न्याय प्रदान करने उच्चतम न्यायालय में मुकदमों के भार को कम करने में सहायता करता है।

  •        सी.पी.सी.बी. संबंधित राज्य सरकारों से परामर्श कर झरनों या कुओं  से संबंधित  मानकों  और वायु की गुणवत्ता से संबद्ध  मानकों में सुधार के प्रयास करता है।

(3) वर्तमान में भारत का निर्वाचन आयोग बहुत सदस्यीय  निकाय है। वर्ष 1993 के उपरांत आयोग में तीन निर्वाचन आयुक्त हैं। आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के लिए चुनाव कार्यक्रम चुनाव आयोग करता है। निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन\ विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।


(4) नीति(NITI) आयोग: भारत सरकार ने योजना आयोग को समाप्त कर उसके स्थान पर नीति आयोग( national institution for transforming India niti) नामक नया संस्थान बनाया है। राजस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करने के साथ उसे निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा।

नीति आयोग के उद्देश्य:

  • विकास प्रक्रिया में निर्देश एवं रणनीतिक परामर्श देना;

  • राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और सहयोग पूर्ण संघवाद को बढ़ावा देना;

  • विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अंतर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करना;

  • कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर देना आदि।


(5) राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन अगस्त 1952 में किया गया। इसका उद्देश्य योजना( planning) के कार्यान्वयन में राज्यों का सहयोग प्राप्त करना था ।


नीति आयोग की स्थापना से पूर्व योजना आयोग द्वारा पंचवर्षीय योजना का ड्राफ्ट केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता था। इसकी संस्तुति  के बाद इसे राष्ट्रीय विकास परिषद के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता था। फिर इसे संसद में प्रस्तुत कर इसकी संस्तुति के बाद आधिकारिक रूप से सरकारी राजपत्र( गजट) में प्रकाशित किया जाता था।

(6) राष्ट्रीय विकास परिषद( national Development Council): प्रधानमंत्री अध्यक्ष के रूप में तथा केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल के सदस्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्री योजना आयोग के सदस्य, योजना आयोग कब समाप्त करके उसकी जगह नीति आयोग का गठन किया गया है तथा केंद्र शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और प्रशासक सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। वित्त आयोग के अध्यक्ष की राष्ट्रीय विकास परिषद में कोई भूमिका नहीं होती है।

  • (7) राष्ट्रीय विकास परिषद एवं योजना आयोग का गठन केवल कार्यपालिका के आदेश द्वारा हुआ है। अतः यह ना तो संवैधानिक निकाय है और ना ही संविधानिक निकाय।

  • क्षेत्रीय परिषदों का गठन राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत किया गया था आता यह संविधिक निकाय हैं। किंतु यह संवैधानिक निकाय नहीं है।

  • भारत में 5 क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की गई जो केंद्र एवं राज्यों के बीच एवं राज्यों के आपसी विवादों को विचार-विमर्श वार्ताओं एवं परामर्श के द्वारा समझा कर शांत एवं सहयोग के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देती हैं।

(8) परिसीमन आयोग(Delimitation Commission ): भारत सरकार द्वारा परिसीमन आयोग का गठन समय-समय पर परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत किया जाता है

  • परिसीमन आयोग का प्रमुख कार्य हाल की जनगणना के आधार पर विभिन्न विधानसभा एवं लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा का पुनः  सीमांकन करना होता है।


  • परिसीमन आयोग के आदेशों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

  • परिसीमन आयोग के आदेशों को लोकसभा एवं संबंधित राज्य विधानसभाओं में रखा जाता है लोकसभा एवं राज्य विधानसभायें परिसीमन आयोग के आदेशों में कोई सुधार या संशोधन नहीं कर सकती हैं। परिसीमन आयोग के द्वारा प्रत्येक राज्य के प्रदत्त प्रतिनिधित्व में कोई बदलाव नहीं किया जाता है किंतु जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित सीटों में परिवर्तन कर दिया जाता है।

  • अभी तक केवल 4 बार( 1952, 1963,1973 और 2002) परिसीमन आयोग की स्थापना की गई है।

(9) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के द्वारा प्राण एवं दैहिक  स्वतंत्रता के संरक्षण का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके तहत प्रत्येक सरकार का  यह दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराएं।

  • उपयुक्त उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में कदम उठाते हुए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया। अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई है।

  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश में पर्यावरण से संबंधित मामलों के लिए उत्तरदाई है।

  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठ है भोपाल, पुणे ,कोलकाता और चेन्नई में है।


(10) वित्त आयोग का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया गया है। इसका गठन राष्ट्रपति के द्वारा 5 वर्ष या उसके पहले आवश्यकतानुसार किया जाता है।

वित्त आयोग के प्रमुख कार्य:

  • वित्त आयोग के द्वारा संघ एवं राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों का वितरण और राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन किया जाता है।

  • वित्त आयोग भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में बताता है।

  • राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगर पालिकाओं और पंचायतों के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए जरूरी उपाय करता है।

  • राष्ट्रपति के द्वारा वित्त आयोग को सूत्रण वित्त के हित में निर्दिष्ट कोई अन्य विषय सौंपे जाने पर वित्त आयोग अपनी सलाह देता है।


(11) भारत के संविधान की पांचवीं  अनुसूची के अधीन जनजातीय भूमि के खनन के लिए निजी पक्षकारों को अंतरण अकृत और शून्य (Null and Void ) घोषित किया जा सकता है। पाँचवीं  अनुसूची में राज्यों( असम ,मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के अतिरिक्त) में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध है।


(12) प्रथम संविधान( संशोधन) 1951 के द्वारा भारत के संविधान में नौवीं अनुसूची को पुनः स्थापित किया गया था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे।


(13) अनुच्छेद 356: यदि भारत का राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन या उपबंधित  अपनी शक्तियों का किसी विशेष राज्य के संबंध में प्रयोग करें तो उस राज्य के विधानसभा निलंबित हो सकती है और संसद उस राज्य के लिए राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है अथवा राष्ट्रपति राज्य सूची के विषय पर अध्यादेश जारी कर सकता है।


(14) संविधान के प्रथम संशोधन(1951) द्वारा 9वीं अनुसूची का प्रावधान किया गया था। इस अनुसूची में किसी कानून विशेष को सम्मिलित कर न्यायिक समीक्षा से बचने का प्रयास किया जा सकता था।

            वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि 24 अप्रैल 1973 को सर्वोच्च न्यायालय केशवानंद भारती मामले में आए फैसले के बाद संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।


(15) भारतीय संविधान की पांचवी और छठी अनुसूचियों में अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं नियंत्रण संबंधी प्रावधान किए गए हैं

पांचवी अनुसूची में किया गया मुख्य प्रावधान:

  • पांचवी अनुसूची के उपबंध असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में से भिन्न किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे। वर्तमान में मुख्य रूप से 9 राज्य झारखंड गुजरात हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ उड़ीसा राजस्थान में यह उपबंध लागू है।

  • राष्ट्रपति देश के किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने के साथ संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह पर घोषित अनुसूचित क्षेत्र की है क्षेत्रफल सीमा एवं नाम को बदलने का आदेश दे सकता है।


  • अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए राज्यपाल पर विशेष जिम्मेदारी होती है। वह अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में राष्ट्रपति को वार्षिक या जब भी राष्ट्रपति मांग करें रिपोर्ट दे सकता है।

  • जिन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र है वहां जनजाति सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है।

  • राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह संसद या राज्य विधानमंडल के किसी विशेष अधिनियम को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करें या ना करें या फिर कुछ परिवर्तन के साथ लागू करें।


छठी अनुसूची में किए गए मुख्य प्रावधान:

  • संविधान की छठी अनुसूची में असम मेघालय त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उपबंध किया गया है।

  • असम मेघालय त्रिपुरा मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासी जिलों का गठन किया गया है। ये स्वशासी जिले राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अंतर्गत ही आते हैं।

  • राज्यपाल के पास इन क्षेत्रों में स्वशासी जिलों को स्थापित करने और हटाने तथा नामों और सीमाओं को बदलने का अधिकार है।

  • प्रत्येक स्वशासी जिले में 30 सदस्यीय  एक जिला परिषद होगी।

  • इन क्षेत्रों की जिला व प्रादेशिक परिषद को ग्राम परिषदों या ग्राम न्यायालयों के गठन का भी अधिकार है।

  • जिलाबा प्रादेशिक परिषद को भू राजस्व के आकलन एवं संग्रहण का भी अधिकार है।


(16) भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची में दल बदल विरोध विषयक  उपबंध किए गए हैं।52वें संविधान( संशोधन) अधिनियम 1985 के द्वारा दसवीं अनुसूची को संविधान में शामिल किया गया है।

  • संविधान की दूसरी अनुसूची में राष्ट्रपति ,राज्यों के राज्यपालों, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति, राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य विधान परिषद के सभापति और उपसभापति, उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के वेतन भत्तों का उल्लेख किया गया है।

  • संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध किया गया है।

  • आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है।

(17) राज्य की नीति के निर्देशक तत्व: अनुच्छेद 45( राज्य 6 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के प्रारंभिक बाल्यकाल की देखरेख और शिक्षा का प्रयास करेगा)

  • ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकाय: अनुच्छेद 243छ के अंतर्गत ग्रामीण स्थानीय निकाय( ग्यारहवीं अनुसूची विषय संख्या 17, 18 एवं 19) तथा अनुच्छेद 243ब( बारहवीं अनुसूची विषय संख्या 13) द्वारा शहरी स्थानीय निकाय में शिक्षा का प्रावधान किया गया है।


  • पांचवी अनुसूची:पांचवीं  अनुसूची  में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के बारे में प्रावधान किए गए हैं। पांचवी अनुसूची में स्पष्टत: शिक्षा की बात तो नहीं की गई है परंतु इस अनुसूची में कई ऐसे प्रावधान है जो अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षा पर प्रकाश डालते हैं।

  • छठी अनुसूची: छठी अनुसूची में असम मेघालय त्रिपुरा मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उपबंध किए गए हैं। छठी अनुसूची में स्पष्ट उल्लेख है कि राज्यपाल ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में किसी भी समय जांच करने तथा प्रतिवेदन देने के लिए एक आयोग नियुक्त कर सकता है जो शिक्षा चिकित्सा संचार संबंध नवीन कानून की आवश्यकता( विधि नियमों विनियमों) के संबंध में जांच कर सकता है।

  • सातवीं अनुसूची सातवीं अनुसूची में केंद्र सूची राज्यसूची एवं समवर्ती सूची को शामिल किया गया है शिक्षा का विषय समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है

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