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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

What is freedom of trade, commerce and intercourse throughout the territory of India)भारत के संपूर्ण भूभाग में व्यापार, व्यवसाय एवं गमनागमन की स्वतंत्रता रहेगी।

भारतीय राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार ,वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता( freedom of trade, commerce and intercourse throughout the territory of India)

समस्त भारत क्षेत्र में मुक्त परिवहन एवं मालो के आगमन को कायम रखना देश की आर्थिक एकता के लिए परम आवश्यक है। भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था दी गई है कि जिससे सभी राज्यों के बीच स्वतंत्र वाणिज्य पनप सके। अनुच्छेद 301 से लेकर 307 के तहत अंतर्राज्यिक व्यापार व वाणिज्य को स्वतंत्र बनाया गया है  ,यह व्यवस्था ऑस्ट्रेलिया के संविधान की धारा 92 से ली गई है ।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 में व्यापार ,वाणिज्य तथा समागम के बारे में उपबंधित किया गया है कि इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य और समागम आबाद होगा।


        भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में सभी व्यापार, वाणिज्य एवं समागम बिना किसी अवरोध के होंगे यह स्वतंत्रता केवल अंतर्राज्यिकीय व्यापार के लिए नहीं बल्कि राज्य के अंदर होने वाले वाणिज्य के लिए भी है। ऐसी स्वतंत्रता संपूर्ण नहीं है। अनुच्छेद 302 से 305 के तहत कुछ निबंधन लगाए जा सकते हैं। किंतु यह निर्बंधन केवल अनुच्छेद को विनियमित करने के लिए लगाए जा सकते हैं। वाहनों के लिए लाइसेंस, ट्रैफिक निगम, मूल्य नियंत्रण इत्यादि व्यापार, वाणिज्य एवं समागम को विनियमित करने के उद्देश्य से ही लगाए जाते हैं, इसलिए यह संवैधानिक हैं। यदि सड़क या पुल का टैक्स लिया जाता है तो भी गैर संवैधानिक नहीं है। क्योंकि इनका उद्देश्य भी समागम के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना ही है।

महत्वपूर्ण मामले:

अटियाबारी टी कम्पनी बनाम असम राज्य :ए.आई.आर.1961 एस.सी.232,के मामले के असम राज्य ने असम से बाहर जाने वाली चाय पर टैक्स लगा दिया जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने गैर संवैधानिक माना क्योंकि इनका उद्देश्य व्यापार विनिमय के लिए प्रतीत नहीं होता था।

मैसूर राज्य बनाम एच. संजीवेया:ए.आई.आर. 1967 एस.सी. 1989 के मामले मे मैसूर सरकार द्वारा बनाए गए नियम की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसके अंतर्गत शाम से लेकर सुबह तक की अवधि में जंगल की पैदावार ले जाने के ऊपर रोक लगा दी गई थी। न्यायालय ने इस नियम की असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि वह विनियात्मक(regulatory) नहीं बल्कि प्रतिबंधात्मक( Restricted )था, जो अनुच्छेद 301 द्वारा प्रदत स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण करता था।

तमिलनाडु राज्य बनाम मेसर्स  ट्रेडिंग कंपनी:ए .आई .आर.1993 एस.सी.237, के मामले में तमिलनाडु सरकार ने टिंबर की लकड़ी को राज्य से बाहर ले जाने पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी। ऐसा क्षेत्रीय आवश्यकता को देखकर किया। न्यायालय ने इसे विधिमान्य घोषित किया और कहा कि यह अनुच्छेद 301तथा 304(बी) का उल्लंघन नहीं करता है तथा यह विनियात्मक उपाय है।


अनुच्छेद 301 के सिद्धांत(Principles of Article 301):

उपयुक्त विनिश्चयों में दिए गए निर्णय के आधार पर अनुच्छेद 301 के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांत सामने आते हैं:

(a) अनुच्छेद 301 अंतर्राज्यों तथा राज्यों के आंतरिक भागों में व्यापार ,वाणिज्य एवं अंतर व्यवहारों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।

(b) व्यापार  ,वाणिज्य और समागम शब्दावली बड़ी विस्तृत अर्थों  वाली है और इसके अंतर्गत व्यक्तियों और वस्तुओं दोनों का आवागमन सम्मिलित है।

(c) यह स्वतंत्रता केवल विधायिका द्वारा प्रदत्त शक्ति के अधीन निर्मित ऐसी विधियों के विरुद्ध की संरक्षण नहीं है जो व्यापार और वाणिज्य तथा उत्पाद आपूर्ति और मालों के वितरण से संबंधित है वरन कर अधिरोपित करने वाली सभी प्रकार की विधियों के विरुद्ध संरक्षण है ।

(d) केवल वही विधियां जो कि प्रत्यक्ष एवं तत्काल प्रभाव से व्यापार अथवा वाणिज्य की स्वतंत्रता को निर्बंधित करती हैं, अनुच्छेद 301 की स्वतंत्रताओं के प्रतिकूल मानी जाएंगी।

(e) ऐसी विधियाँ जो केवल विनिमय करती हैं या प्रतिकारात्माक कर लगाते हैं और जिनका उद्देश्य व्यापार की स्वतंत्रता को बढ़ाना है, अनुच्छेद 301 के क्षेत्र के बाहर मानी जाएंगे।


संसद तथा राज्य विधानमंडल की प्रतिबंध लगाने की शक्ति( Power of Parliament and the state legislature to impose restrictions)


(1) लोकहित में व्यापार तथा वाणिज्य को विनियमित करने की संसद की शक्ति: संसद विधि द्वारा एक राज्य तथा दूसरे राज्य के बीच भारतीय राज्य क्षेत्र के किसी भाग के अंदर ऐसे निरबंधन लगा सकती है जो कि लोकहित में हो। लोकहित शब्द की जांच न्यायालय द्वारा की जा सकती है।

          संसद भारतीय राज्य क्षेत्र के किसी भाग में वस्तुओं की दुर्बलता से उत्पन्न किसी भी स्थिति से निपटने के लिए भेदभाव करते हुए विधि बना सकते हैंं।


(2) कर लगाने की शक्ति: अनुच्छेद 304 का खंड(क) राज्यों को यह अधिकार देता है कि दूसरे राज्यों से आयात की गई किसी वस्तु पर कोई ऐसा कर लगा सकते हैं जो उसी प्रकार की राज्य के अंदर उत्पादित या निर्मित वस्तु पर लगाया गया हो।

           परंतु इसके लिए निम्नलिखित शब्दों का पूर्ण होना आवश्यक है:

(a) उस विषय पर राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

(b) विधि को लोकहित में होना चाहिए।

(c) लगाये गये निरबंधन युक्ति युक्त होने चाहिए।

मद्रास राज्य बनाम भाई लाल भाई, ए.आई.आर. 1964 एस.सी.1006, मामले में राज्य द्वारा तमाखू पर लगाया गया विक्रीकर असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था क्योंकि यह केवल दूसरे राज्य से आयात की गई तम्बाकू पर लगा था।


मेहताब भजीद बनाम मद्रास राज्य, ए.आई.आर.1964 एस.पी.1729, में चमड़े पर लगाया गया बिक्री पर इसलिए असंवैधानिक घोषित कर दिया गया कि कर का भार आयात किए गए चमड़े पर राज्य के अंदर तैयार किए गए चमड़े से अधिक था।




    

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