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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

Cop26 क्या है और भारत के जलवायु परिवर्तन मे इसकी क्या उद्देश्य है?(What is conference of parties26?)

England के शहर ग्लास्गो में संपन्न 26 वाँ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन conference of parties( cop) का आयोजन किया गया। तमाम अंतर्विरोध के बावजूद जलवायु परिवर्तन प्रयासों में यह एक मील का पत्थर साबित होगा।इसके 2 सबसे बड़े कारण हैं।

(1) पहला कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती के समाधान को लेकर विश्व समुदाय की बढ़ती हुई  चिंता है।

(2) भारत की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है विश्व समुदाय के प्रति चिंता का प्रमुख कारण संयुक्त राष्ट्र की संस्था inter government panel on climate change( iPCC) द्वारा अगस्त 2021 में प्रकाशित जलवायु परिवर्तन पर छठी आकलन रिपोर्ट है, जिसमें निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन संकट की अत्यंत चिंताजनक तस्वीर उजागर की गई है।


        सन 1988 से  inter government panel on climatechange लगातार जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करती रही है । इस रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि वर्तमान में विश्व समुदाय द्वारा जलवायु परिवर्तन के जो उपाय किए जा रहे हैं उनके विषय में विश्व के औसत तापमान में पूर्व औद्योगिक युग के तापमान की तुलना में, 2040 तक1.5 डिग्री तथा 2050 तक 2.0 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाएगी। औद्योगिक युग की शुरुआत 1850 से मानी जाती है। इसका तात्पर्य है कि विश्व समुदाय के प्रयास पेरिस समझौते में दिए गए लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। यदि विश्व तापमान में उक्त स्तर तक बढ़ोतरी हुई परिवर्तन के अपरिवर्तनीय परिणाम होंगे। अतः विश्व समुदाय के प्रयासों में तेजी लाने की आवश्यकता है, रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में उक्त बड़ोती से बचने के लिए विश्व समुदाय के देशों को 2050 तक कार्बन तटस्थता( carbon neutrality) की स्थिति प्राप्त करनी होगी। कार्बन तटस्था का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें कार्बन का उत्सर्जन इतना होगी जिसे पर्यावरण द्वारा सोख लिया जाए तथा तापमान  में वृद्धि ना हो सके। पर्यावरण में कार्बन की बढ़ती मात्रा ही तापमान की वृद्धि तथा जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। इसके अलावा रिपोर्ट में विश्व समुदाय की चिंता बढ़ाने वाली कुछ अन्य बातें भी हैं जो कि इस प्रकार हैं: ध्रुवों  पर  जल पिघलने के कारण समुद्रों के जलस्तर में तेजी से वृद्धि, तापमान अतिवृद्धि, अतिवर्षा अथवा सूखा की स्थिति आदि। विश्व समुदाय ने अब तक 86% कार्बन बजट खर्च कर लिया है। कार्बन बजट का तात्पर्य सुरक्षित सीमा से है जिस सीमा तक विश्व समुदाय कार्बन की मात्रा बढ़ा सकता है, जो अधिकतम एकदम 100% ही हो सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि अब विश्व समुदाय के लिए 14% कार्बन बढ़ाने की क्षमता बची है। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन की आपदा अब भविष्य में होने वाली आपदा नहीं है वरन् ऐसी आपदा है जो आ चुकी है इसका हाल ही में घटी कई घटनाएं हैं जैसे यूरोप के ठंडे क्षेत्रों में हाल ही के वर्षों में तापमान में वृद्धि, ध्रुवों  पर तेजी से पिघलती बर्फ, अप्रत्याशित वर्षा तथा सूखा की स्थिति आदि। इस बदलाव से गरीब तथा समुद्रों के बीच बसे हुए द्वीपीय देश सर्वाधिक प्रभावित हैं।


        Cop26 के महत्व का दूसरा कारण इसमें भारत की बढ़ती हुई भूमिका है, जहां इस सम्मेलन में चीन, रूस तथा ब्राजील जैसे बड़े उद्देश्यों के शासन अध्यक्ष अनुपस्थित थे वही इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने बढ़चढ़ हिस्सा लिया। इतना ही भारत ने विश्व समुदाय से कदमताल मिलाते हुए कार्बन उत्सर्जन के नए लक्ष्यों को भी घोषणा की। भारत ने विकासशील देशों के हितों से संबंधित मुद्दों को उठाया तथा मिलन के अंतिम दस्तावेज के पक्ष में सहमति बनाने  में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


Cop26 सम्मेलन के मुख्य प्रस्ताव



जलवायु परिवर्तन संकट की चिंता के विषय में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर 2021 तक ग्लासगो में cop26 जलवायु सम्मेलन का आयोजन किया गया था। विभिन्न मुद्दों पर चर्चा व सहमति के लिए आखिरी वक्त पर सम्मेलन का समय 13 नवंबर तक बढ़ाया गया तथा इसी दिन अंतिम दस्तावेज पर आम सहमति बन पाई। सम्मेलन की शुरुआत लीडर्स कॉन्फ्रेंस से हुई। जिसे भारत सहित प्रमुख देशों के शासन अध्यक्षों ने संबोधित किया। इस सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित है

(1) कम समय यानी 2030 तक के जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को पूरा करना तथा उन की रूपरेखा तैयार करना। इस प्रस्ताव में कहा गया कि पेरिस समझौते के अंतर्गत सभी देश 2025 की बजाय 2022 तक ही अपने बढे हुए कार्बन कटौती लक्ष्यों की घोषणा करें। भारत तथा चीन सहित कई अन्य देशों ने भी सम्मेलन के दौरान अपने बढे हुए कार्बन कटौती लक्ष्यों की घोषणा की है।


(2) सभी देशों से यह अपेक्षा की गई है कि वे कार्बन तटस्थता से संबंधित अपनी समय सीमा की घोषणा करें। इस सम्मेलन के पहले ही अमेरिका ,कनाडा तथा यूरोपीय संघ के देशों ने 2050 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करने की घोषणा की है। वहीं चीन ने 2060 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की घोषणा की है। भारत ने इस सम्मेलन में 2070 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की घोषणा की है।

(3) ग्लोबल मीथेन प्लेज( global Methane pledge): मेथेन गैस की कटौती वाली इस प्लेज अथवा शपथ का प्रस्ताव अमेरिका तथा यूरोपीय संघ द्वारा संयुक्त रूप से रखा गया था। इस पर कुल मिलाकर 90 देशों ने भाग लेने पर अपनी सहमति व्यक्त की है। तगत 2020 के स्तर की तुलना में 2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्जन में 30% की कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है। उल्लेखनीय है कि कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन गैस में हीट अथवा ताप को सोखने की 25% अधिक क्षमता होती है।अतः  वैश्विक तापमान बढ़ाने में इस गैस का ज्यादा योगदान है। मेथेन गैस के उत्सर्जन के मुख्य स्रोत हैं: कचरा, प्राकृतिक गैस व तेल का उत्पादन व शोधन, कृषि संबंधी गतिविधियां, पशुपालन, प्रत्येक प्रकार के ईधन का जलना, दूषित जल का शोधन तथा कई औद्योगिक क्रियाएं आदि।

भारत तथा चीन ने इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया है। उल्लेखनीय है कि विश्व में सर्वाधिक पशु संख्या तथा कृषि कार्य अधिकता के कारण भारत वर्तमान में मीथेन गैस का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है, लेकिन भारत ने दो कारणों से इस कार्यक्रम में भाग लेने में असमर्थता जताई है। पहला यह कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विशेष योगदान है। अतः भारत इसमें किसी प्रकार की कटौती करने में असमर्थ है। दूसरा भारत में मीथेन गैस के प्रयोग द्वारा ग्रामीण अंचलों में बायोगैस के उत्पादन का बड़ा कार्यक्रम चलाया हुआ है। किस में मीथेन गैस को सुरक्षित तौर पर ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

(4) वनों के विनाश तथा भूप्रयोग पर ग्लासगो  को लीडर की घोषणा( glasgow leaders declaration on deforestation and land use): इस घोषणा का प्रस्ताव ब्रिटेन द्वारा रखा गया था तथा इसमें 30 देशों ने भाग लेने पर अपनी सहमति जताई है इस घोषणा में तीन लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं:

(a) व्यवसायिक गतिविधियों के लिए प्राकृतिक वनों के कटान पर रोक लगाना

(b) औद्योगिक वन कटान( industrial logging ) पर रोक लगाना

(c) वन भूमि व वनों पर मूल निवासियों व अनुसूचित जातियों के अधिकारों को मजबूत कराना

         उल्लेखनीय है कि चीन इस कार्यक्रम में भाग लेने पर अपनी सहमति जाहिर की है लेकिन भारत ने दो कारणों से इस कार्यक्रम में भाग लेने में असमर्थता जाहिर की है।

         पहला यह कि भारत औद्योगिक व व्यावसायिक प्रयोग के लिए वनों के विकास का एक बड़ा कार्यक्रम बनाना चाहता है। भारत का मानना है कि औद्योगिक व व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने के कारण यह घोषणा विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुकूल नहीं है।


(5) विकासशील देशों के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धि: गरीब व विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना करने के लिए वित्तीय साधनों की उपलब्धि जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। 2015 के पेरिस समझौते के समय यह सहमति बनी थी कि विकसित देश 2020 तक इन देशों के लिए 100 बिलीयन डॉलर की राशि उपलब्ध कराएंगे। उल्लेखनीय है कि वर्तमान अनुमानों के अनुसार 2030 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के लिए एक ट्रिलियन डॉलर की धनराशि की आवश्यकता होगी।


(6) कोयला के उपयोग को कम से कम करना: सम्मेलन के अंतिम दिन सभी देशों में इस बात पर सहमति बनी कि कोयले के उपयोग को कम से कम किया जाएगा। आरंभिक प्रस्ताव में कोयले के प्रयोग को बिल्कुल समाप्ति (Phasing down) की बात थी। लेकिन भारत सहित अन्य दबाव के कारण इसे केवल कम करने पर सहमति बनी। इस संबंध में महत्वपूर्ण बात यह है कि विकसित देश गैस के प्रयोग पर अधिक निर्भर है, इस प्रस्ताव में गैस को कम करने की कोई बात नहीं थी, यद्यपि कोयले को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भारत की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन भारत का मानना था कि अधिकांश देश केवल कोयले के प्रयोग के काम करने पर सहमत थे। विकसित देश यह चाहते थे कि कोयले के प्रयोग को एकदम समाप्त किया जाए।

           उक्त बिंदुओं के आलोक में हम कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के संकट की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए cop26 सम्मेलन में अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। इस दृष्टि से हम इस सम्मेलन को सफल मान सकते हैं।

भारत तथा cop26 {conference of parties 26}


भारत जलवायु परिवर्तन उपायों में सदैव अग्रणी रहा है। पेरिस समझौते के आलोक में भारत ने पहले से ही अपने व्यापक कार्बन लक्ष्यों को घोषित किया हुआ है। भारत ने cop26 सम्मेलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व स्वयं भारत के प्रधानमंत्री ने किया था। उन्होंने भारत की स्थाई नीति के अंतर्गत गरीब व विकासशील देशों के हित में भारत की जलवायु न्याय( climate justice) की धारणा को दोहराया। जलवायु धारणा के अंतर्गत विकासशील और गरीब देशों के हित में विशेष कार्यवाही की अपेक्षा की गई है। इसका मूल आधार united Nations frameworks convention on climate change का वह सिद्धांत है जिसमें जलवायु परिवर्तन उपायों में देशों की क्षमता के अनुसार विभेदीकरण जिम्मेदारी की बात कही गई है। इसका निहितार्थ यह है कि चूकिं जलवायु परिवर्तन के वर्तमान संकट के लिए धनी देश अधिक जिम्मेदार हैं, अतः धनी देशों की इस संबंध में अधिक जिम्मेदारी बनती है। धनी देशों द्वारा गरीब देशों को इस संबंध में तकनीकी तथा वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। cop26 एक सम्मेलन में भारत के योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है;

(1) भारत के बढ़े हुए लक्ष्यों की घोषणा: इस सम्मेलन में जलवायु संकट गंभीरता को ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने 5 नए लक्ष्यों की घोषणा की, जिन्हें उन्होंने पंचामृत की संज्ञा दी। यह 5 बढे हुए नए लक्ष्य निम्नलिखित हैं

  • भारत 2030 तक नवीकरण ऊर्जा स्रोतों से 500 गीगा वाट बिजली का उत्पादन करेगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में 450 गीगा वाट का लक्ष्य प्रस्तुत किया था।


  • भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% हिस्सा नवीकृत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करेगा।

  • भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को 1 बिलियन टन तक काम करेगा।

  •  भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 45% तक की कमी करेगा।

  • भारत 2070 तक कार्बन तटस्थता की स्थिति को प्राप्त करेगा।

        बाद में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने यह भी शर्त रखी कि भारत इन लक्ष्यों को तभी पूरा कर पाएगा जब भारत को कम से कम 1 ट्रिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्राप्त होगी।


(2) वन सन वन वल्र्ड वन ग्रिड का प्रस्ताव  (one sun one world one Grid initiative) 

भारत ने ब्रिटेन के साथ मिलकर वन सन वन वर्ड तथा वन ग्रिड प्रस्ताव रखा था जिसका 80 देशों ने समर्थन किया है। इस प्रस्ताव के अंतर्गत विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के संयंत्र लगाए जाएंगे तथा उनसे प्राप्त बिजली को एक वैश्विक ग्रिड माध्यम से जरूरतमंद देशों को बिजली की आपूर्ति की जाएगी। इस प्रस्ताव में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि 1 घंटे में सूर्य से पृथ्वी को जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है वह पूरी दुनिया के वर्षभर के प्रयोग के लिए पर्याप्त है। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस के मंत्रियों के एक समूह का गठन किया गया है, जो सौर ऊर्जा के संयंत्रों के स्थान तथा कनेक्टिविटी के संबंध मेंअपना प्रस्ताव प्रस्तुत करेंगेयह भी उल्लेखनीय है कि भारत सौर ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी देश है तथा भारत में 2015 में पेरिस सम्मेलन के दौरान अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा एलायंस की घोषणा की थी। यह कार्यक्रम अभी संचालित है।

(3) द्वीपीय देशों के लिए उपयुक्त आधारभूत ढांचा का प्रस्ताव( infrastructure for the resilient island states) भारत ने द्वीपीय देशों को जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ते समुद्री जल स्तर के खतरे को देखते हुए इस कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा है।

           इस कार्यक्रम के द्वारा इन देशों में लोचसील आधारभूत ढांचे के विकास के लिए उपर्युक्त तकनीकी तथा वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था की जाएगी। उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम 2019 में भारत द्वारा घोषित आपदाओं के लिए लोचशील ढांचा कार्यक्रम(coalition for the disaster resilient infrastructure ) का हिस्सा है। यह कार्यक्रम जलवायु न्याय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

           उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत ने सदैव ही भली भांति cop26 में जलवायु परिवर्तन उपायों में अग्रणी भूमिका निभाई है। भारत ने 2008 में ही जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की थी इसमें वनों के संरक्षण, जल तथा सौर ऊर्जा आदि से संबंधित 8 विषय शामिल हैं। इन सभी मिशनों को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जा रहा है। इसके अलावा भारत ने नवीकृत ऊर्जा को बढ़ाने तथा कार्बन की कटौती के लिए कई अन्य योजनाएं भी चलाई हुई हैं। सब प्रयासों के बीच भारत ने सदैव की भांति इस सम्मेलन में भी गरीब व विकसित देशों के हितों का प्रतिनिधित्व किया है। इस संबंध में भारत द्वारा प्रस्तुत जलवायु न्याय का विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

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