इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4 मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं। इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है। [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव: सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...
टीपू सुल्तान हैदर अली का पुत्र था और इसका जन्म सन 1753 ईस्वी में हुआ था ।इसके पिता मैसूर के शासक थे ।कुछ लोग समझते हैं कि हैदर अली मैसूर का राजा था ।यह बात नहीं है ।हैदर अली बहुत चालाक आदमी था ।उसने अपने को कभी राजा नहीं बनाया ।बहुत दिनों तक तो वह बहुत ऊंचे सैनिक पद पर भी था ।इसके बाद जब मैसूर का राजा मर गया तो उसके छोटे पुत्र को जिसकी अवस्था 3 से 4 वर्ष की थी उस ने उसको राजा घोषित कर दिया और उन्हीं के नाम पर सब राजकाज करता रहा ।हैदर अली भी महान व्यक्ति था ।उसने धीरे-धीरे मैसूर राज्य की सीमा बढ़ा दी थी। कुछ पढ़ा लिखा ना होने पर भी उसको सेना संबंधी अच्छा ज्ञान था। उसका सहायक खंडेराव एक मराठी व्यक्ति था।
टीपू जब तीस साल का हुआ, हैदर अली की मृत्यु हो गई। युद्ध का तथा शासन का तब तक उसे बहुत अच्छा ज्ञान हो गया था ।उस समय भारत में इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी अपना राज्य फैला रही थी ।हैदर अली कई बार कंपनी से लड़ा और लड़ाईयों में लड़ने के कारण टीपू को अंग्रेजों के लड़ने के रंग ढंग की अच्छी खासी जानकारी हो गई थी। इन युद्धों में टीपू ने स्वंय नये ढंग का आक्रमण निकाला था। वह एकाएक बहुत जोरों से बिजली की भांति आक्रमण करता था और बैरी के पैर उखड जाते थे। हैदर अली स्वंय पढ़ा लिखा नही था परन्तु टीपू की शिक्षा कि उसने अच्छी व्यवस्था कर दी थी। अतःयह शिक्षित भी था और घुडसवारी मे माहिर था ।दिन भर घोड़े पर चढ़ा रहता था।
जिस समय उसे पिता की मृत्यु का समाचार मिला भारत के पश्चिम मालाबार में वह अंग्रेजों से लड़ रहा था ।उसे बड़ी चिन्ता थी, यदि लड़ाई छोडता है तो अंग्रेज वहां जम जाते है यदि लड़ाई नही छोड़ता है तो इसके दूसरे भाई राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं ।लड़ाई छोड़ना ही छोडना ही उसने उचित समझा ।वहां सभी दरबारियों तथा मंत्रियों ने इसको ही सहायता दी और मैसूर की बड़ी सेना का सेनापति बनाया गया।
इसके बाद उसे अंग्रेजों से लड़ने का प्रबंध करना था ।अंग्रेजी शासक उस समय दक्षिण भारत में ऐसी चालें चल रहे थे दो देशी राज्यों को आपस में लडा देते थे और स्वयं उससे लाभ उठाते थे ।अंग्रेजों ने मराठों से सन्धि कर ली और टीपू पर मिलकर आक्रमण किया। इस लड़ाई मे टीपू ने लडाई का वही तरीका अपनाया जिसमें उसको माहरत हासिल थी और अंग्रेजों को पराजित किया। टीपू ने अपनी सहायता के लिये कुछ फ्रेंच सिपाही भी रखेथे जो उन दिनों भारत मे ही थे । अग्रेजों ने टीपू से संधि की प्रार्थना की। इस संधि बातें करने के लिए अंग्रेजों की ओर से एक दल आया और टीपू से अंग्रेजों की सन्धि हो गयी। अंग्रेजो ने यह संधि इसलिए की थी कि थोड़ा सा समय मिल जाए हम और अच्छी तैयारी कर ले और टीपू की शक्ति को चूर कर डालें ।टीपू को उसका ध्यान न रहा। वह समझता था कि मैंने अंग्रेजों को हरा दिया मेरी उनकी शक्ति से बड़ी नहीं बराबर तो है ही। यही उसने धोखा खाया। उसने बैरी की शक्ति का अनुमान ठीक नहीं लगाया।फ्रेंच सैनिको ने भी टीपू के इस विचार का समर्थन किया। इतना ही उन लोगों ने उसे भडकाया भी था।
उन लोगो का विचार था यदि अवसर मिले तो टीपू की सहायता अंग्रेजो भारत के दक्षिण से निकालकर स्वंय राज करे ।इन बातों से टीपू का उत्साह बढ गया। टीपू ने फ्रास से कुछ सहायता पाने की आशा की और कुछ जगह पत्र भी लिखा ।उसका यही अभीप्राय था कि अंग्रेजों को भारत से निकाल दिया जाए। अंग्रेजों को इस बात का पता लग गया और उन्होंने टीपू को समय देना उचित न समझा। उन्होंने टीपू के विरुद्ध सेना भेज दी। इस बार अंग्रेजों और टीपू के बीच कई भीषण लड़ाइयां हुई और अन्त मे टीपू घिर गया। कुछ दिनों के बाद टीपू लड़ते हुये मारा गया।
टीपू को विजय प्राप्त नहीं हुई और उसके राज्य का अंत हो गया , यह उसका दुर्भाग्य था। किंतु वह स्वंय महान था और उसे सचमुच सहायता मिली होती तो अंग्रेजो का राज्य भारत वर्ष मे जम न पाते और हमारे देश का इतिहास बदल गया होता।उसने जो कुछ किया और जो उसकी इच्छा थी और जिसके लिए उसने चेष्टा कि उससे उसकी महत्ता नाप सकते हैं । वह वीर था । इसमे किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।वे लोग भी जिन्होंने उसे बुरा कहा है ,कहते है कि वह वीर था। जब से उसने राज्य का कार्य संभाला मरते दम तक उसका जीवन युद्ध मे बीता और इन युद्धों मे सदा उसने साहस और वीरता दिखाई। कोई अवसर ऐसा नही आया जब वह अपनी राह से वह नी तनिक भी डिगा हो ।ऐसे आनेक अवसर आये यदि तनिक भी झुका होता तो उसका जीवन सुख में हो जाता है ।यदि वह अंग्रेज से संधि कर लेता तो उसे कोई कठिनाई न होती ।किंतु उसने ऐसा नहीं किया और इसी कारण अग्रेज भी उसका विनाश करने पर तुले हुए थे।
उसकी मृत्यु के बाद उसका खजाना लूट लिया गया । ऐसी लूटों का पता ठीक ठीक नही चलता है ।इतिहास लिखने वाला ने बताया 52 लाख रुपए नगद और ₹900000 के रत्न थे। वही लोग यह भी लिखते हैं बहुत साधारण और लोगों ने लूट लिया।
टीपू ने अपने राज्य में अनेक सुधार किए थे। उस समय वहां ऐसी प्रथा थी कि एक स्त्री कई पतियों से विवाह कर सकती थी।यह प्रथा उसने बंद कर दी और नियम बनाया कि जो ऐसा करेगा उसे कठोर दंड दिया जाएगा ।आज हम जिसके लिए प्रयत्न कर रहे हैं की शराब पीना बंध हो उसने उस युग में बंद कर दिया था।वह स्वंयम शराब नहीं पीता और ना उसके राज्य मे शराब पीने की आज्ञा थी ।उसे पढने लिखने में बड़ी रूचि थी।अपने अफसरों को वह स्वंयम पत्र लिखता था। उसके लिखने की शैली मंझी हुई और सुन्दर थी। उसको पढ़ने मे अभिरुचि थी उसका स्वंयम का पुस्तकालय था। उन दिनों पुस्तक बनाना कठिन क्योकि उन दिनो छापा खाना नहीं था और हाथ से लिखी पुस्तके ही मिलती थी ।उन पुस्तकों से पता चलता है कितनी ही विषयों में उसे रुचि थी। साहित्य, कविताएं ,ज्योतिष ,विद्यान, कला पर भी पुस्तके थी। रहस्यवाद पर 115 पुस्तकें थी । 27 पुस्तके हिंदी कविता तथा गद्द की थी।यही सब पुस्तके अंग्रेजों ने कलकत्ता भेज दीं।एक इंग्लैंड भी भेज दी गई।
वह परिश्रम भी था उसका जीवन आमोद प्रमोद में नहीं बीतता था। सवेरे से संध्या तक वह परिश्रम करता रहता था है और चाहता था दूसरे भी इसी प्रकार राज का कामकाज करे ।युद्ध कला पर उसने एक पुस्तक भी लिखी ।जल सेना का भी प्रबंध वह करना चाहता था ।उसने इस संबंध में भी आज्ञा निकाल दी थी किंतु लडाईयों में लगे रहने के कारण इसमें वह सफलता प्राप्त नहीं कर सका। उसका चरित्र उज्जवल था। उसके विरोधी भी स्वीकार करते है कि कभी स्त्रियों प्रति उसने कभी ऐसा भाव दिखाई जिसके कारण किसी को कुछ कहना पड़े ।उसकी स्पष्ट आज्ञा थी युद्ध के पश्चात लूटपाट में स्त्रियों को कोई ना छुएं ।अपनी माता बहुत सम्मान करता था और सदा उनकी आज्ञा का पालन करता था ।ज्यों ज्यों उसकी अवस्था बढती गयी वह अधिक समय ईश्वर की आराधना में लगाने लगा।
खाने और पहनने में उसका जीवन सादा था गहने या जवाहरात वह नहीं पहनता था। कपड़े सादे थे ।अपने पिता के सम्मुख युवावस्था में लिख कर प्रतिज्ञा की थी कि झूठ कभी नहीं बोलूंगा धोखा किसी को नहीं दूंगा चोरी नहीं करूंगा और जीवन के अंत तक उसने इस प्रतिज्ञा का पालन किया। इसलिए उसको जो कुछ होता था स्पष्ट कह देता था। गंदी बातें गन्दी हंसी कभी नहीं करता।और गप्प लडाने की उसकी आदत नही थी। गणित वैध ज्योतिष सब उसने अपने युग के अनुसार पढा था और काम पड़ने पर सबका अनुसरण बताता था।
टीपू हिंदू मुस्लिम मेलजोल का पक्षपाती था। उसने अपने मन्त्रियों में हिंदुओं को भी रख था।उसकी मंत्रिमंडल में हिन्दू थे और वह उनसे हमेशा मेलजोल रखता था। हा धोखा देने वालों के साथ वह व्यवहार कठोर होता था और वह दण्ड भी देता था। अपने हिंदू कार्यकर्ताओं अच्छा व्यवहार करता था और प्रसन्न होने पर उनको पुरस्कार भी देता था। काशी मे एक हिन्दू घराना है जिसके किसी पूर्वज को उसने अपनी कटार भेंट मे दी थी।वह कटार अब तक उनके यहां है जिस पर टीपू सुल्तान का नाम तथा किस लिये दी थी खुदा है।
वह समय भारत के लिए अच्छा न था। जिन लोगो के पास थोड़ी बहुत शक्ति भी थी उनमें स्वार्थ था ।यदि वह सब शक्तियां मिलकर अंग्रेजों का सामना करती तो अंग्रेज अपनी शक्ति वहां नही बढा पाते।समय समय पर टीपू के विरोध मे उन्होने अंग्रेजों की सहायता की जिससे टीपू को हारना पड़ा और विरोधियों के कारण वे सफल नहीं हुआ।
जो भी हो टीपू वीरतापूर्ण सिपाही मौत मरा। टीपू वह वीर था जिसने अपने देश को विदेशियों के हाथ छुड़ाने प्रयास किया ।समय की बात थी उसे सफलता नहीं मिली, निसंदेह वह महान था ।
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