Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में बैंकिंग उद्योग का एक नया दौर प्रारंभ हुआ, इस दौर में बैंकों की कार्यप्रणाली एवं उत्तरदायित्व में सुधार के प्रयास प्रारंभ हुए जिसके लिए अनेक समितियों का गठन हुआ और विभिन्न नियमों का निर्माण भी इन कार्यों के अतिरिक्त बैंकों ने स्वयं भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार हेतु अनेक कदम उठाए।
भारतीय रिजर्व बैंक भी इस संदर्भ में बैंकों को लगातार दिशा निर्देश जारी करता रहा है इन प्रयासों के साथ साथ बैंकों की कार्यप्रणाली में तकनीकी का भी समावेश हुआ जिसने इसे सरल व सुद्रण बनाया है।
बैंकिंग नियमन संबंधित महत्वपूर्ण अधिनियम( important acts related to Banking Regulation):
बैंकिंग नियमन अधिनियम 1949
इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य बैंकों को मजबूत बनाने एवं उन पर समुचित नियंत्रण रखने से संबंधित था ।16 मार्च 1949 से यह पूरे देश में लागू हुआ और वर्ष 1965 तक इसमें कई बार संशोधन की आवश्यकता पड़ी।
इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि इसने भारतीय रिजर्व बैंक के व्यापारिक बैंकों पर नियंत्रण को विस्तृत व सुदृढ़ कर दिया साथ ही इस अधिनियम के तहत रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण भी किया गया। इस अधिनियम में बैंकों के कार्यों पर विस्तृत चर्चा की गई है और उनके प्रबंधन से संबंधित व्यापक नियम बनाए गए ।लाभांश शाखा विस्तार ऋण कोष लाइसेंस और खातों पर भी नियम बनाए गए।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1955
भारतीय संसद द्वारा पारित इस अधिनियम द्वारा इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया को भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के रूप में परिवर्तित कर दिया गया, जिसके फलस्वरूप बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार ग्रामीण एवं अर्ध शहरी इलाकों तक होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया( सहायक बैंक) अधिनियम 1959
इस अधिनियम के तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सहायक बैंक के रूप में कुछ सरकारी एवं सरकार से संबंधित बैंकों को स्थापित किया गया।
बैंकिंग सन्नियम विविध प्रावधान अधिनियम 1963
इस अधिनियम के तहत गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं को रिजर्व बैंक के नियंत्रण के दायरे में लाया गया जिसके तहत रिजर्व बैंक इन संस्थाओं के कर्ज व अग्रिम के बारे में जानकारी प्राप्त करने हिसाब की जांच पड़ताल करने तथा व्यापार संबंधी आदेश जारी करने हेतु अधिकृत हो गया।
इसके साथ इसमें व्यापारिक बैंकों पर रिजर्व बैंक के नियंत्रण को और भी मजबूत बनाया गया और स्टेट बैंक के बारे में भी प्रावधान किए गए।
बैंकिंग विधि( संशोधन) अधिनियम 1968
बैंकों के राष्ट्रीयकरण एवं सामाजिक नियंत्रण की अवधारणा इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण पहलू है ।इस अधिनियम में बैंक किस प्रकार एवं किन उद्योगों के लिए कर्ज देंगे यह निश्चित किया गया साथ ही आर्थिक एवं सामाजिक विकास के क्षेत्र में बैंकों की भूमिका को भी स्पष्ट किया गया।
बैंकिंग कंपनी( उपक्रम अर्जन एवं हस्तांतरण) अधिनियम 1970
वर्ष 1970 में जारी इस अध्यादेश के तहत 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था तथा इसे 19 जुलाई 1969 से ही प्रभावी माना गया आगे चलकर वर्ष 1970 में उच्च न्यायालय ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण को अवैध घोषित किया और इन बैंकों को उपरोक्त अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कृत किया गया ।इस अध्यादेश को बाद में अधिनियम के रूप में स्थापित किया गया।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम 1976
इस अधिनियम के अंतर्गत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों(RRBs) की स्थापना की गई ताकि दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंच सके।
इन बैंकों का मूल उद्देश्य उन स्थानों पर समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को रियायती दर पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराना है जहां बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध नहीं है साथ ही यह ग्रामीण बचत को जुटाकर उत्पादक गतिविधियों में लगाने को प्रोत्साहन देती हैं।
सरफेयसी अधिनियम 2002
प्रतिभूति करण और वित्तीय आस्तियों का पुनर्गठन और प्रतिभूति हित को प्रभावी करने का अधिनियम 2002( सरफेयसी) बैंकों \वित्तीय संस्थाओं को अपनी गैर निष्पादित आस्तियों को न्यायालय की पहल के बगैर वसूल करने हेतु अधिकार देता है।
अधिनियम द्वारा गैर निष्पादन आस्तियों की वसूली के लिए वैकल्पिक पद्धतियां उपलब्ध कराई जाती है जो इस प्रकार है-
- प्रतिभूति करण
- अस्ति का प्रतिभूति करण
- न्यायालय के दखल के बगैर प्रतिभूति को प्रभावी बनाना
अधिनियम के प्रावधान सिर्फ ₹100000 से अधिक बकाया वाले गैर निष्पादित ऋणों के लिए ही लागू है जिन एनपीए खातों में राशि मूलधन और ब्याज के 20% से कम है। ऐसे खातों को इस अधिनियम के तहत नहीं लाया जा सकता ।गैर निष्पादक आस्तियों के विषय में बंधक या समानुदेशन द्वारा बैंक के पास प्रतिभूति का होना आवश्यक है। ग्रहणाधिकारी, गिरवी, किराया ,खरीद द्वारा उपलब्ध प्रतिभूति हित सीपीसी के खंड 60 के तहत जब्तीर के लिए पात्र नहीं है ।अतः इन्हें भी इस अधिनियम के तहत नहीं लाया जा सकता।
अधिनियम बैंक को निम्न अधिकार देता है-
- चूककर्ता ऋणी को और गारंटी कर्ता को मांग नोटिस देना और नोटिस की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर देयों को चुकाने के लिए सूचित करना।
- ऐसे किसी भी व्यक्ति जिसने ऋणी से कोई भी आस्ति अ अर्जित की है उसे बैंक को लौटाने के लिए नोटिस देना।
- ऋणी के किसी भी ऋणकर्ता को ऋणी को देय या देय होने वाली राशि चुकाने के लिए कहना।
बैंकिंग( संशोधन) अधिनियम 2011
बैंकिंग क्षेत्र में नए दौर के सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने हेतु यह अधिनियम लाया गया। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार RBI की नियामक शक्ति में वृद्धि होगी तथा नए बैंकों की स्थापना हेतु लाइसेंस जारी करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
साथ ही बैंकों के प्रबंधक मंडलों के निर्णयों के ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक को प्राथमिकता दी गई है। बैंकों के शेयरधारकों के मताधिकार की सीमा में वृद्धि भी की गई है (राष्ट्रीय कृत बैंक के संदर्भ में 1% से बढ़ाकर 10% व निजी बैंकों के संदर्भ में 10% से बढ़ाकर के 26 प्रतिशत किया गया है)।
बैंकिंग क्षेत्र सुधार से संबंधित महत्वपूर्ण समितियां( key committees related to banking sector reform)
नरसिंहम समिति 1991
भारत सरकार ने वित्तीय प्रणाली की तत्कालीन संरचना तथा उसके विभिन्न अवयवों के आलोचनात्मक विवेचन के लिए रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर एम नरसिहम की अध्यक्षता में अगस्त 1991 में एक 9 सदस्य समिति का गठन किया था।इस समिति की रिपोर्ट 17 नवंबर 1991 को संसद में पेश की गई ।
नरसिम्हन समिति के मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) बैंकिंग संरचना में चार स्तर होने चाहिए ।सबसे ऊपर के स्तर पर स्टेट बैंक के साथ तीन-चार और बड़े बैंक होने चाहिए( जिनका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो सकता है) तथा सबसे निचले स्तर पर ग्रामीण बैंक( जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक भी शामिल हैं) होने चाहिए।
(2) बैंकों तक वित्तीय संस्थाओं पर निगरानी या निरीक्षणात्मक काम की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक के तत्वाधान में गठित एक अर्ध स्वायत्त संस्था को सौंप देनी चाहिए।
(3) 8% पूंजी पर्याप्तता अनुपात( capital adequacy ratio) को प्राप्त करने का लक्ष्य होना चाहिए ।यह काम विभिन्न चरणों में संपन्न किया जा सकता है।
(4) शाखा लाइसेंसिंग नीति को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
(5) वर्ष 1991,92 से वैधानिक तरलता अनुपात( statutory liquidity ratio SLR) मे धीरे-धीरे क्रमबद्ध कमी की जानी चाहिए।
(6) ब्याज दरों का नियमन समाप्त करके उन्हें चक्रवर्ती कमेटी के सुझाव के अनुसार बैंक दर से संबंधित किया जाना चाहिए।
(7) वित्तीय संस्थाओं के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिए।
(8) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक द्वारा केवल पुनर्वित्त का काम अपने पास रख कर प्रत्यक्ष ऋण देने का काम एक पृथक निगम इकाई को सौंप देना चाहिए।
(9) वित्तीय संस्थाओं की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए विवेकपूर्ण आचार संहिता बनाई जानी चाहिए।
(10) बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं की परिसंपत्तियों का ठीक-ठीक वर्गीकरण किया जाना चाहिए तथा खातों में पूरा विवरण दिया जाना चाहिए।
नरसिंहम समिति 1997:
इस समिति का गठन 26 दिसंबर 1997 को वित्तीय प्रणाली के ढांचे ,संगठन ,कार्यप्रणाली व कार्य विधियों से संबंधित सभी पहलुओं की जांच उद्देश्य हेतु किया गया ।समिति ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 1988 को केंद्रीय वित्त मंत्री के समक्ष प्रस्तुत कर दी।
इस समिति के मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) इस समिति ने पूंजी खाते में रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता कि सिफारिश की पर इसके पहले देश की वित्तीय व्यवस्था को मजबूत एवं स्थाई बनाने पर बल दिया।
(2) बैंक की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार गैर निष्पक्षीय परिसंपत्तियों में कमी पूंजी पर्याप्तता अनुपात में वृद्धि की अनुशंसा की है।
(3) इसके साथ ही बैंकों की खराब परिसंपत्तियों के अधिग्रहण के लिए ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन फंड की स्थापना की सिफारिश की।
(4) भारतीय रिजर्व बैंक की नियामक वा देखरेख संबंधी क्रियाओं को पृथक करने हेतु बोर्ड फॉर फाइनेंशियल सुपरविजन( BFS) को स्वायत्तता प्रदान करने की सिफारिश की।
(5) बैकों को राजनीति से मुक्त करने निर्देशक बोर्ड में पेशेवर व्यक्तियों को शामिल करने तथा बैंक के किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध कार्रवाई से पूर्व समुचित जांच पड़ताल करने की संस्तुति भी की है।
ऐसी बैंकिंग व्यवस्था जिसमें बैंक अपनी शाखा खोले बिना सेवाएं प्रदान करता है शाखा रहित बैंकिंग कहलाती है।जब कमर्शियल बैंक अपने कार्य के अलावा औद्योगिक इकाइयों के दीर्घकालीन वित्तीयन के कार्य भी संपन्न करें तो इसे यूनिवर्सल बैंकिंग कहते हैं।जून 1991 में भारत में पीवी नरसिम्हा राव सरकार के सत्ता ग्रहण के पश्चात अपनाई गई नीति के तहत उदारीकरण का प्रारंभ 24 जुलाई 1991 को प्रारंभ हुआ।
दामोदरन समिति 2011:-
सेबी( SEBI) के पूर्व अध्यक्ष एम. दामोदर की अध्यक्षता वाली समिति ने बैंकिंग सेवाओं में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें अपनी रिपोर्ट में की है। यह रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर अगस्त 2011 में जारी की गई थी। इस समिति के प्रमुख सुझाव है-
- बचत खातों में चेक बुक व एटीएम कार्ड जैसी सुविधाओं के लिए खाते में न्यूनतम बैलेंस का कोई बंधन नहीं हो।
- न्यूनतम बैलेंस से कम बैलेंस होने की स्थिति में बैंकों द्वारा वसूला जाने वाला दंडात्मक शुल्क उतने अनुपात में ही हो जितनी राशि से खाते में बैलेंस कम हुआ हो।
- सावधि जमाओं को खातेदार की लिखित अनुमति के बिना स्वता ही रिन्यू ना किया जाए।
- बचत खातों में जमा राशि के लिए उपलब्ध बीमा सुरक्षा ₹100000 की बचाए ₹500000 तक की जमाओं पर उपलब्ध कराई जाए।
- होम लोन अकाउंट समय पूर्व बंद कराने की स्थिति में कोई दंडात्मक शुल्क बैंक द्वारा वसूल नहीं किया जाए।
- होम लोन के नए ग्राहकों को रियायती ब्याज दर पर यह लोन उपलब्ध कराए जाने पर ऐसी रियायत पुराने ग्राहकों को भी उपलब्ध कराई जाए।
- बैंक ग्राहकों की बैंकिंग संबंधी शिकायतों व अन्य सुनवाईयों के लिए सभी बैंकों का एक ही कॉमन निशुल्क कॉल सेंटर नंबर( फोन नंबर) हो।
नवीन\ प्रवर्तक बैंकिंग( प्रणालीगत का सुधार)( innovative banking):-
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने भी अब बैंकिंग क्षेत्र में नवाचारी( innovative) गतिविधियों को प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया है ।इन गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
अपने ग्राहक को जानिए( know your customer KYC):-
अपने ग्राहक को जानिए दिशा निर्देशों का उपयोग ग्राहक पहचान प्रक्रिया के लिए किया जाता है ।इसमें खातों के हितार्थी स्वामी की सही पहचान ,निधि के स्रोत, ग्राहक के उद्योग का स्वरूप, ग्राहक के कारोबार के संबंध में खाते के परिचालन में उचितता इत्यादि शामिल है ,जिससे बैंकों को विवेक सम्मत जोखिम प्रबंधन से मदद मिलती है।
KYC के तहत बैंक द्वारा मांगी जाने वाले दस्तावेज:-
के खाते के स्तन दम संबंध में:-
विधिक नाम और प्रयोग में लाए जाने वाले अन्य नाम:- पासपोर्ट पैन कार्ड मतदाता पहचान पत्र ड्राइविंग लाइसेंस पहचान पत्र( बैंक की संतुष्टि की शर्त पर) बैंक क ित ं नियमष्टि के लिए मान्यता प्राप्त सरकारी प्राधिकारी या सरकारी कर्मचारी पहचान तथा निवास को सत्यापित करते हुए पत्र
सही स्थाई पता:- टेलीफोन बिल बैंक खाता विवरण किसी मान्यता प्राप्त सरकारी प्राधिकरण से पत्र बिजली का बिल राशन कार्ड नियोक्ता का पत्र ऐसा कोई भी एक दस्तावेज पर्याप्त है जो बैंक को ग्रह की जानकारी के संबंध में संतुष्टि प्रदान करें
केवाईसी संबंधी नए दिशा निर्देश:-
भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों के द्वारा अपने ग्राहकों की पहचान हेतु कराए जा रहे kYC( know your customer) प्रक्रिया को पूरा करने में आ रही है व्यावहारिक दिक्कतों से निपटने के लिए ऐसी मानदंडों में संशोधन किया ।आरबीआई द्वारा इस संबंध में दिशानिर्देश 23 जुलाई 2013 को जारी किए गए।
आरबीआई के द्वारा संशोधित नियमों के अनुसार बैंक अधिक जोखिम वाले ग्राहकों से 2 वर्ष में एक बार मध्यम जोखिम वाले ग्राहकों से 8 वर्षों में एक बार तथा निम्न जोकिंग वालों की आंखों से 10 वर्षों में एक बार केवाईसी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए आदेश दिए।
आरबीआई के नए नियमों के तहत बैंकों को अपने ग्राहकों से कारोबारी संबंध बनाने के लिए वर्तमान पहचान की प्रणाली को ही अपनाया जाने की भी छूट होगी।
म्यूच्यूअल बैंकिंग( mutual banking):-
वर्तमान समय में म्यूचुअल फंड वितरण तथा रिटेल बैंकिंग सुविधा व्यापारिक बैंकों की सामान्य क्रियाओं का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है ।आजकल रिटेल बैंकिंग की प्रगति हुई है उसमें महत्वपूर्ण भूमिका बैंकों द्वारा म्युचुअल फंड का वितरण है इसलिए बैंकों तथा म्युचुअल फंड के बीच गठबंधन (alliances)दिन प्रतिदिन हो रहा हैं।
इसके अंतर्गत म्यूच्यूअल फंड ग्राहकों को एक विशिष्ट क्रेडिट कार्ड दे देते हैं जिसके द्वारा ग्राहक किसी स्कीम के तहत म्युचुअल फंड की निर्धारित सीमा के भीतर बैंकों से ऋण प्राप्त कर सकता है। ग्राहकों को बैंक तथा म्युचुअल फंड की सुविधा को अधिकतम करना ही म्यूच्यूअल बैंकिंग की आधारभूत मान्यता है।
उद्यमी पूंजी( venture capital):-
ऐसी परियोजनाएं जो नई तकनीकी वस्तुओं से संबंधित होती है पर उसके प्रोत्साहक के पास परियोजना शुरू करने हेतु पर्याप्त वित्तीय स्रोत नहीं होते ऐसी स्थिति में इस प्रकार की परियोजनाओं का वित्तपोषण उद्यम पूंजी के माध्यम से किया जाता है जो कंपनी के प्रारंभ में ही पूंजी निवेश के रूप में किया जाता है।
माइक्रो फाइनेंस( microfinance):-
लघु वित्त अथवा माइक्रोफाइनेंस उन लोगों को ऋण मुहैया कराती है जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऋण नहीं देते क्योंकि उनके पास सिक्योरिटी या बंधक रखने के लिए कुछ भी नहीं होता।
बैंक सिक्योरिटी के बगैर उन्हें कर्ज देने को तैयार नहीं होते माइक्रोफाइनेंस ऐसे ही लोगों को कर्ज देने का उपहार है।
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की ओर से इन गरीबों को दिए जाने वाले ऋण भी ऋण की मात्रा भी काफी कम रहती है इसमें सूद की दर 20 से 40% तक रहती है तथा कर्जे की वसूली 98% तक दिखाई जाती है ।यह एक ऐसा वर्ग है जो हमेशा ही सरकारी बैंकों और निजी कारपोरेट संस्थाओं द्वारा संचालित कर्जे की योजनाओं से बाहर रहा है।
फैक्टरिंग( factoring):-
Factor शब्द का प्रयोग एक कमीशन एजेंट के लिए होता है जो ग्राहक को निधियां उपलब्ध तो कराता ही है पर साथ ही खातों का प्रबंधन ,ऋण की वसूली तथा ऋणों के चुकता ना होने पर जोखिम की सुरक्षा भी प्रदान करता है।
लघु उद्योग के क्षेत्र में देय राशि की उगाही को ध्यान में रखकर वाघुल समिति ने फैक्टरिंग सेवाओं को प्रारंभ करने संबंधी अनुशंसा की ।कल्याण सुंदर समिति ने भारत में फैक्टरिंग सेवाओं को व्यवहारिकता स्वीकार की है।
इस्लामिक बैंकिंग( islamic banking):- भारतीय रिजर्व बैंक ने केरल में भारत के पहले इस्लामिक बैंक को खोलने संबंधी हरी झंडी अगस्त 2013 में दी थी।
चूकि इस्लाम धर्म में रीबा यानी ब्याज लेने को पाप माना जाता है और ब्याज लेने व देने वाले दोनों इस्लाम की नजर में गुनहगार है। इस्लामिक बैंकिंग की अवधारणा इसी विश्वास पर काम करती है और यह बैंक इस्लामिक कानूनों( शरिया) के अनुसार लेनदेन करते हैं ।परंपरागत बैंकों के विपरीत इस्लामिक बैंक में ब्याज नहीं लिया जाता और कर्ज लेने के लिए संपत्ति भी गिरवी नहीं रखनी पड़ती है।
इस्लामिक बैंक की कार्यप्रणाली:-
- इस्लामिक बैंक कर्जदार को होने वाले मुनाफे से एक छोटी रकम लेते हैं जो इनके परिचालन खर्च में काम आती है ।परिचालन खर्च से ज्यादा पैसे आने पर वह रकम बैंक के हिस्सेदारों में बांट दी जाती है और कर्जदारों से ली जाने वाली रकम कम कर दी जाती है।
- इस्लामिक बैंकों के मुनाफा कमाने का दूसरा तरीका यह है कि बैंक की रकम का इंश्योरेंस ,म्युचुअल फंड ,आधारभूत ढांचे, विनिर्माण जैसे विकासात्मक कार्यों में भी निवेश किया जाता है।
- इस्लामिक बैंकिंग के इस ब्याज रहित कारोबार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अनिश्चित व जोखिम पूर्ण जगहों पर पैसा नहीं लगाया जाता है।संबंधित देश के केंद्रीय विनियामक बैंकों के अलावा इस्लामिक धार्मिक स्कॉलरो का समूह इन बैंकों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है।
इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग( electronic banking):- इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा बैंकिंग सेवाओं को उपलब्ध कराना इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग कहलाता है। इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग इस समय बैंकिंग विकास का स्तंभ माना जा रहा है।
इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के प्रमुख संघटक:-
- टेली बैंकिंग( tele banking):- इसमें ग्राहक का परिसर पीएसटीएन( public switched Telephone Network) लाइनो नियमित टेलीफोन लाइनों और माॅडमों के जरिए शाखा से जुड़ा होता है। स्वयं अपने कार्यालय या डेस्क से ही सूचनाओं को प्राप्त करने की सामर्थ के कारण ग्राहक को भी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।
- पीसी बैंकिंग या होम बैंकिंग( pC banking aur home banking) इसके अंतर्गत ग्राहक घर बैठे ही अपेक्षित राशि निकालने या जमा करने आदि के लिए बैंक को ही कंप्यूटर पर आदेश दे सकते हैं।
- टेलीफोन द्वारा भुगतान( payment by telephone) यह प्रणाली आपको अपनी वित्तीय संस्थाओं को टेलीफोन के जरिए आप के बिल के भुगतान व विभिन्न खातों में निधियों के अंतरण का अनुदेश देने की सुविधा देती है।
- मोबाइल बैंकिंग( mobile banking): मोबाइल बैंकिंग प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें मोबाइल फोन या किसी अन्य मोबाइल युक्ति के प्रयोग के द्वारा किसी ग्राहक के खाते के साथ जोड़कर वित्तीय व्यवहार करते हैं ।मोबाइल बैंकिंग के लिए इंटरबैंक मोबाइल भुगतान सेवा से जुड़े मोबाइल फोन सहित बैंक में खाते की आवश्यकता होती है। sms banking में one टाइम पासवर्ड द्वारा संचालित होती है।
- डायरेक्ट जमा प्रणाली( direct deposit system): इसके माध्यम से आप अपने विशेष जमा ,जैसे वेतन चेक ,कमीशन चेक, पेंशन चेक आदि नियमित रूप से जमा कर सकते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणाली( electronic reserve transfer system): इसके अंतर्गत इस प्रकार की भुगतान प्रणालियों में लिखित चेक के बिना भी एक खाते से दूसरे खाते में धन अंतरित किया जा सकता है।
- डायरेक्ट क्रेडिट( direct credit): इसमें ग्राहक सीधे पहले से धनराशि निकालने के लिए बैंक को प्राधिकृत कर सकते हैं। ताकि आपके आवर्ती बिल जैसे बीमा किश्त आदि का स्वतः भुगतान होता रहे।
- स्मार्ट कार्ड व क्रेडिट कार्ड( smart Card and Credit Card): यह वास्तव में एक सूक्ष्म कंप्यूटर होता है जो कार्ड के आकार का होता है। इसमें कार्ड धारक के बैंक खाते से संबंधित जानकारी रहती है ।इसकी सहायता से कहीं भी लेनदेन किया जा सकता अर्थात यह एक इलेक्ट्रॉनिक पर्स है।
- इंडियन फिनेंशियल नेटवर्क( indian financial network) भारतीय वित्तीय नेटवर्क जोकि वृहद् सेटेलाइट आधारित नेटवर्क है वी सैट प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर रहा है।
- इंटरनेट बैंकिंग( internet banking): इंटरनेट बैंकिंग स्वयं एक लक्ष्य नहीं है परंतु यह बैंकों के लिए ऑनलाइन लेनदेन सेवाएं प्रदान करने तथा उनकी पूर्ति का एक साधन है ।यह पारस्परिक बैंकिंग से आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के विपणन का क्रांतिकारी परिवर्तन है। इंटरनेट सुविधा होने से ऑनलाइन बैंकिंग अब भारत में की आसान होने लगी है।
अन्य प्रमुख तत्व जिन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों को नया आयाम प्रदान किया है निम्नलिखित हैं
- म्यूचुअल फंड निवेश योजनाओं का संचालन।
- प्लास्टिक मुद्रा का प्रयोग।
- एटीएम का तेजी से बढ़ता प्रचलन।
- ग्राहक सेवा सुधार।
- कैशलैस ट्रांजैक्शन।
- बैंकिंग सेवाओं का दायरा विस्तार।
- ई बैंकिंग।
- बैकिंग लोकपाल आदि।
बैंकिंग मशीनीकरण में नई तकनीकों का समावेशन( inclusion of new technology in banking mechanism):
भारत में बैंक के मशीनीकरण में नई तकनीकों का समावेश बैंकिंग सुधार में एक प्रमुख तत्व है।भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की तीव्र वृद्धि ने भी इस तत्व को प्रोत्साहन प्रदान किया है।
इलेक्ट्रॉनिका एकाउंटिंग मशीन व लेजर पोस्टिंग मशीन ,बैंक शाखाओं का पूर्ण कंप्यूटरीकरण ,एम आई सी आर आधारित बैंक बुक ,स्विफ्ट से जुड़ाव आदि इस नई प्रवृत्ति के उदाहरण है।
वर्चुअल बैंकिंग( virtual banking):
इसका अर्थ बैंकिंग और उससे संबंधित सेवाओं को सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तृत उपयोग द्वारा ग्राहकों को बिना अपने बैंक में उपलब्ध कराना है। वर्चुअल बैंकिंग शुरुआत 70 के दशक में एटीएम की स्थापना से हुई ।इसके अंतर्गत एटीएम ,फोन बैंकिंग ,इंटरनेट बैंकिंग स्मार्ट कार्ड आते हैं।
ऑटोमेटिड टैलर मशीन( Automated Teller machine ,ATM):
एटीएम एक ऐसी दूरसंचार नियंत्रित व कंप्यूटरीकृत उपकरण है जो ग्राहकों को वित्तीय हस्तांतरण से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराता है। इस हस्तांतरण प्रक्रिया में ग्राहकों को कैसियर, क्लर्क ,बैंक टैलर की मदद की आवश्यकता नहीं होती।
एटीएम के विभिन्न प्रकार(Types of ATM) ऑनसाइट एटीएम(on site ATM) इन एटीएम की स्थापना बैंक शाखा के प्रांगण में की जाती है ताकि ग्राहकों द्वारा बैंक शाखा और एटीएम दोनों का प्रयोग किया जा सके।
आफ साइड एटीएम(off site ) इन एटीएम की स्थापना स्टैंडअलोन आधार पर की जाती है। इन एटीएम के आसपास बैंक शाखा नहीं होती है। इन एटीएम की स्थापना और भौगोलिक क्षेत्रों को कवर करने के लिए की जाती है जहां बैंक की कोई शाखा नहीं है।
ब्राउन लेबल एटीएम(Brown level ATM) इन ऑटोमेटिक टेलर मशीनों का हार्डवेयर और पट्टा सेवा प्रदाता के स्वामित्व में होता है लेकिन नकदी प्रबंधन और बैंकिंग नेटवर्क के साथ कनेक्टिविटी उस प्रयोजक बैंक द्वारा प्रदान की जाती है जिसका ब्रांड एडीएम पर प्रयोग किया जाता है। ब्राउन लेबल एटीएम बैंक के स्वामित्व वाले एटीएम और व्हाइट लेबल एटीएम के बीच का एक विकल्प होता है।
व्हाइट लेबल एटीएम (white label ATM) ऑटोमेटिक टेलर मशीनों का स्वामित्व और संचालन गैर बैंकिंग संस्थाओं के अंतर्गत आता है ।किसी भी बैंक का ग्राहक एक सेवा शुल्क का भुगतान करके व्हाइट लेबल एटीएम से धन निकाल सकता है। व्हाइट लेबल एटीएम पर किसी भी बैंक का लोगो नहीं होता है।भारत के प्रथम व्हाइट लेबल एटीएम की स्थापना टाटा कंपनी ने मुंबई के निकट चंद्रपाड़ा नामक स्थान पर की है।
पहला मोबाइल बैंक मध्य-प्रदेश के खरगोन जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है। लक्ष्मी वाहिनी बैंक नाम के इस चलते-फिरते बैंक की स्थापना 10000000 रुपए की लागत से एक मोबाइल वैन में की गई है।स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा देश का पहला तैरता एटीएम कोच्चि में 9 फरवरी 2004 को लांच किया गया था। यह एटीएम केरला शिपिंग एंड इनलैंड नेवीगेशन कारपोरेशन के झंकार नाम कि स्ट्रीमर में लगाया गया है। यह स्टीमर एर्नाकुलम और व्यपीन के बीच चलती है।गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी से बैंकिंग बैंक रूप में रूपांतरित होने वाला पहला बैंक कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड है। पहले यह कोटक महिंद्रा फाइनेंस कंपनी के रूप में कार्यरत था।निजी क्षेत्र के नए बैंकों में सर्वप्रथम यूटीआई बैंक ने 2 अप्रैल 1994 में कार्य करना प्रारंभ किया था इस बैंक का मुख्यालय अहमदाबाद है।तृतीय पक्ष एटीएम उपयोग के संबंध में बैंकों द्वारा जारी नई अधिसूचना के अनुसार एक बैंक के ग्राहक दूसरे बैंकों के एटीएम से अब तक सीमित राशि निकाल पाएंगे अधिक बार राशि निकालने पर कार्ड धारकों को अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा।
प्लास्टिक मनी( plastic money) plastic money आजकल लोगों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक कार्ड्स के लिए प्रयुक्त terms है। ये cards हार्ड प्लास्टिक से बने होते हैं ।इनका प्रयोग हम दैनिक जीवन में कैश निकालने हेतु सामान खरीदने हेतु बिल जमा कराने हेतु करते हैं।
क्रेडिट कार्ड( credit card) credit card एक तरीके से व्यक्ति को सामान खरीदने या एक सीमा तक cash निकालने की सुविधा प्रदान की जाती है ।यह एक तरह से उसे एक सीमा तक दी गई ऋण की रकम है। जिसे वह क्रेडिट कार्ड के माध्यम से उपयोग कर सकता है। इस कार्ड से निकाली गई राशि पर बैंक ब्याज चार्ज करता है ।कई बैंक कस्टमर को यह सुविधा भी देते हैं कि यदि वह क्रेडिट कार्ड से निकाली गई राशि 15 दिन में जमा करा देता है तो उसे कोई ब्याज भी नहीं देना पड़ता ।क्रेडिट कार्ड इस प्रकार से एक कार्ड द्वारा प्रयुक्त की जा सकने वाली ऋण सीमा( credit limit) है।
Debit card डेबिट कार्ड
इस तरह के कार्ड्स जो आपके खाते में विद्यमान राशि को निकालने की सुविधा आपको प्रदान करते हैं ।यह कोई ऋण सुविधा नहीं बल्कि आप अपनी ही राशि इन कार्ड्स के जरिए निकाल सकते हैं या खरीदारी कर सकते हैं ।यदि आपने पहले से ही कोई ओवरड्राफ्ट सीमा मंजूर करा रखी है एवं उस खाते में अपने डेबिट कार्ड जारी करवा रखा है तो डेबिट कार्ड से आप ओवरड्राफ्ट की सीमा तक राशि का उपयोग कर सकते हैं।
बैंकिंग लोकपाल योजना( banking ombudsman scheme): Banking ombudsman योजना 14 जून 1995 मई से प्रारंभ हुई है।यह योजना भारतीय रिजर्व बैंक के नियंत्रण और देखरेख में काम करती है ।विवादों को जल्दी और कम खर्च में निपटाने की कानूनी शक्तियों के साथ बैंकिंग ओंबुद्समैन एक स्वतंत्र संस्था है।रिजर्व बैंक ने पूरे देश में 15 बैंकिंग ओंबुद्समैन नियुक्त किए हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य ज्यादा कानूनी पेचीदागियों के बिना शिकायतों का जल्दी निपटारा सुनिश्चित करना है। कोई भी ग्राहक जिसकी शिकायत का बैंक द्वारा संतोषजनक समाधान न किया गया हो बैंकिंग ओंबुद्समैन के पास जा सकता है।
3 फरवरी 2009 को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत सरकार की सलाह से बैंकिंग ओंबुद्समैन स्कीम वर्ष 2006 को पुनः संशोधित कर दिया गया। शिकायतों के नए कारणों को शामिल करने के लिए योजना का दायरा बढ़ा दिया गया हालांकि यदि शिकायतों के निर्णय ग्राहक संतुष्ट नहीं हो तो अपनी शिकायत को आरबीआई के उप गवर्नर के सामने रख सकते हैं।
बैंकिंग लोकपाल योजना के दायरे में आने वाली शिकायतें निम्न प्रकार है-
- क्रेडिट कार्ड से संबंधित शिकायतें।
- पेंशन से संबंधित शिकायतें।
- बैंक के प्रतिनिधियों द्वारा सीधे भेजी गई सुविधाओं सहित वादे के मुताबिक सेवाएं प्राप्त ना होने से संबंधित शिकायतें।
- किसी बैंक द्वारा अपनाए गए उचित व्यवहार कोड का पालन न करने संबंधी शिकायतें।
- चेकों और ड्राफ्टों बिलों इत्यादि का भुगतान ना करना अथवा चेकों के भुगतान या कलेक्शन में अनुचित देरी।
- अन्य पार्टियों द्वारा हस्तांतरित धन का भुगतान न करना या देर से भुगतान करना।
- ड्राफ्ट पे आर्डर या बैंकर्स चेक्स का जारी न करना या देर से जारी करना।
- निर्धारित समय का पालन न करना।
- भारत में खाता धारी अनिवासी भारतीयों की विदेश से हस्तांतरित धन जमाओं तथा बैंक से संबंधित अन्य शिकायतें।
- ग्राहकों को बिना पर्याप्त पूर्व सूचना दिए बैंक द्वारा प्रभार लगा देना।
- बैंकों द्वारा रिकवरी एजेंटों की नियुक्ति के संबंध में रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों का पालन न करना।
- बैंकिंग या अन्य सेवाओं से संबंधित रिजर्व बैंक के निर्देशों के उल्लंघन से संबंधित कोई अन्य मामला।
बैंकिंग क्रियान्वयन एवं नियंत्रण बोर्ड:
सरकार द्वारा बैंकों की कार्यप्रणाली सुचारू रूप से चलाने के लिए विभिन्न संस्थाओं की स्थापना की गई है जो कि ना केवल बैंक के कार्यों का निरीक्षण करती है वरन उन पर नियंत्रण भी रखती है।
वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड( board of financial supervision):- board of financial supervision की स्थापना वर्ष 1994 में भारतीय रिजर्व बैंक के अंतर्गत हुई। यह बोर्ड परिसंपत्तियों के वर्गीकरण ,आय अभिज्ञान ऋण प्रबंधन ,पूंजी पर्याप्तता आदि से संबंधित नियमों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करता है ।वर्ष 1997 से बोर्ड द्वारा कैमल प्रणाली के आधार पर वार्षिक वित्तीय निरीक्षण प्रारंभ किए गए हैं।
Camels:- C - capital adequacyA- asset qualityM - managementE- earningL - LiquidityS- system of corporal
Central Board for enquiry in banking fraud( बैंकिंग धोखाधड़ी जांच हेतु केंद्रीय बोर्ड) इसका गठन वर्ष 1997 में वित्त मंत्रालय द्वारा किया गया इसकी स्थापना महाप्रबंधक के स्तर तक बैंक अधिकारियों के विरुद्ध चलाई जा रही सीबीआई जांच के मामलों की जानकारी हेतु की गई। बोर्ड उन सभी मामलों में बैंक को सलाह देता है जो महाप्रबंधक व उससे उच्च अधिकारियों के खिलाफ जांच पड़ताल के लिए सीधे सीबीआई के पास भेजे गए हो।
ऋण वसूली न्यायाधिकरण( debt recovery Tribunal):- बैंकों द्वारा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रदान किया गया ऐसे ऋणों जो वसूल नहीं हो पा रहे हैं कि वसूली में तेजी लाने के लिए सरकार ने 8 शहरों कोलकाता, दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई ,गुवाहाटी तथा पटना में ऋण वसूली न्यायाधिकरण( debt recovery Tribunal) स्थापित किए हैं।अपीलीय न्यायाधिकरण( appellate Tribunal) मुंबई में कार्यरत है।वर्ष 1994 में ऐसा पहला न्यायाधिकरण कोलकाता में स्थापित किया गया था।
बैंकिंग क्षेत्र में तकनीकी नवाचार से संबंधित महत्वपूर्ण प्रणालियां:-
NEFT( national electronics fund transfer):- यह देश में इंटरनेट के माध्यम से फंड स्थानांतरण करने का तरीका है ।इसके अंतर्गत कोई व्यक्ति फर्म या कंपनी एक बैंक शाखा से दूसरी बैंक या उसी बैंक की शाखा में किसी व्यक्ति फार्म या कंपनी के खाते में पैसा ट्रांसफर किया जा सकता है।
NEFT के अंतर्गत बिना स्वयं का उस बैंक में खाता होते हुए भी नगद राशि जमा कराने पर दूसरी बैंक की शाखा में पैसा अंतरण किया जा सकता है ।इसके लिए पैसा जमा कराने वाले को अपना पहचान प्रमाण देना होगा।
RTGS( real time gross settlement):- इस System में एक बैंक से दूसरे बैंक में फंड का स्थानांतरण real time में एवं grosslove basis पर होता है। real time का जिसमें फंड ट्रांसफर तुरंत होता है बिना किसी समय अंतराल के होता है। Gross settlement का अर्थ है किसी अन्य transaction के साथand RTGS का कोई netting या लिंक नहीं होता ।एक बार प्रक्रिया होने के बाद यह अंतिम व अपरिवर्तनीय माना जाता है।
MICR ( Magnetic Ink character recognition code: )यह चेक बुक (cheque book)के नीचे के हिस्से पर छपा रहता है । micr के अक्षर विशेष प्रकार की लिखावट में होते हैं और इसमें चुंबकीय स्याही का प्रयोग होता है ।शाखा का अलग माइक नंबर होता है और माइक में संख्याएं होती है। प्रथम तीन अंक जिला कोर्ट जहां बैंक की शाखा स्थित होती है को व्यक्त करते हैं अगले 3 अंक बैंक कोड को तथा अंतिम तीन अंक बैंक शाखा कोड को व्यक्त करते हैं ।बैंकों के तीव्र गति से भुगतान की प्रणाली में MICR का महत्वपूर्ण योगदान है।
CTS (Check transaction system):- Online chequechat की क्लीयरिंग का ऐसा तरीका है जिसमें बहुत शीघ्रता से Cheques की clearing हो जाती है ।इसके अंतर्गत चेक ग्रहण करने वाले बैंक द्वारा चेक का छायाचित्र एवं MICR( magnetic ink character recognition) डाटा को लेकर उसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से संबंधित बैंक को भेजा जाता है। इस तरीके से चेक को अमूर्त रूप( image) से संबंधित बैंक को भेजा जाता है इस तरीके से चेक को और साथ ही अन्य आवश्यक सूचना जैसे MICR Field, date ofa presentation , Name of presenting bank के साथ भेजा जाता है ।इस प्रणाली में चेक के निपटारा में बहुत कम समय लगता है तथा सत्यापन एवं मिलान भी शीघ्र एवं अधिक उचित तरीके से हो जाता है तथा गलती की संभावना कम रहती है।इस system में खर्चा भी कम होता है।
IFSC( indian financial system code):- इसका उपयोग RTGS,NEFT इत्यादि प्रणालियों में होता है। इसका विकास भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया गया है।इसमें 11 कैरेक्टर होते हैं ।प्रथम चार कैरेक्टर्स बैंक को प्रदर्शित करते हैं ।पांचवा करैक्टर शून्य है जो भविष्य में उपयोग आने के लिए रखा गया है ।अंतिम छह कैरेक्टर बैंक की शाखा को इंगित करते हैं।
लिबोर( Libor):- london inter bank offered rate वह औसत ब्याज दर होती है जो लंदन के प्रमुख बैंक दूसरे बैंकों से उधार लिए गए धन पर अदा करने पर सहमत होते हैं ।इस दर को ब्रिटिश बैंक का एसोसिएशन लेबर(BBA LIBOR) भी कहते हैं ।यूरीबोर(EURIBOR) के साथ लिबोर वैश्विक स्तर पर अल्पकालिक ब्याज दरों के लिए प्राथमिक बेंच मार्क है ।लिबोर दरों का आकलन 10 मुद्राओं तथा 15 उधार अवधियो के आधार पर किया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सुधार के प्रमुख प्रयास( major effect of international banking reform)
Basal standard( बेसल मानक):- स्विट्जरलैंड के शहर बेसन में वर्ष 1980 में वैश्विक स्तर पर बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थाओं को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने के संदर्भ में बेसल कमिटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन( basal committee on banking) ने कुछ मानदंडों का निर्धारण किया। इन्हीं को बेसन मानक के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1980 में हुए इस सम्मेलन में बैंकों हेतु जो मानदंड निर्धारित किए गए मुख्यतः न्यूनतम पूंजी अपेक्षा एवं ऋण जोखिम से संबंधित थे ।वर्ष 2004 में पुनः बेसल2 मानको का निर्धारण किया गया जिसका मुख्य बल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय जोखिमों से निपटने पर था।
अतः इस संदर्भ में यह निर्धारित किया गया कि बैंक तथा वित्तीय संस्थाएं अपने पास एक निश्चित धनराशि सुरक्षित रखेंगे ।इसी प्रयास को जारी रखते हुए दिसंबर 2010 में बेसल 3मानकों का निर्धारण किया गया।
बेसल मानक व भारत:- भारत ने बेसन मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए लक्ष्यों को प्राप्त हेतु लगातार प्रयासरत रहा है ।भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों के तहत कार्यरत सभी बैंकों ने बेसल2 मानकों का अनुपालन कर लिया है।
सोसायटी फॉर वर्ल्ड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन( society for worldwide interbank financial telecommunication( swift):- Swift एक संस्था है जो एक नेटवर्क उपलब्ध कराती है जिसके माध्यम से वित्तीय संस्थाएं वैश्विक स्तर पर एक सुरक्षित भरोसेमंद और मानकीकृत वातावरण में वित्तीय लेनदेन संबंधी सूचनाओं का आदान प्रदान कर पाती है ।Swift वित्तीय संस्थाओं को सॉफ्टवेयर और सेवाओं का विक्रय भी करती है। अधिकांश अंतरराष्ट्रीय इंटरबैंक मैसेज swift network का प्रयोग करते हैं ।swift फंड ट्रांसफर में सहयोग नहीं करती है।स्विफ्ट की स्थापना 1973 में कोऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में बेल्जियम में की गई।
Comments