Skip to main content

Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के नायक स्वामी विवेकानंद कौन थे?( indian spiritual culture hero Swami Vivekananda

भारतीय सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पुनर्जागरण में स्वामी विवेकानंद के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भारत के वह ऐसे संत थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत था। उनके सारे चिंतन का केंद्र बिंदु राष्ट्र था।वे नए भारत के निर्माण के प्रणेता थे। स्वामी विवेकानंद ,गौतम बुद्ध ,भगवान महावीर स्वामी और महात्मा गांधी की  ही तरह अहिंसा ,सत्य और धर्म कर्म के योगी थे। वह भास्कर संता थे, जो एक सुर्निर्दिष्ट प्रयोजन के लिए एक उच्चतम मंडल से इस मातृभूमि पर अवतरित हुए थे। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि हिंदू धर्म केवल हिंदुओं के लिए नहीं वरन समस्त संसार के लिए अत्यंत उपयोगी है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान करने तथा मानवता दीन दुखियों दरिद्र नारायण की सेवा मे अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया। नैतिक आध्यात्मिक और अंतरराष्ट्रीय वाद के तथा राजनैतिक चेतना के उन्नायक थे। भारत की स्वतंत्रता प्रगति और मानव समाज के उत्थान के लिए उनका चिंतन राष्ट्रीय था।


जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म 1863 में कोलकाता में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता के प्रसिद्ध वकील और माता भुनेश्वरी देवी एक धर्म परायण हिंदू महिला थी। उनका वंश कुल छत्रिय राजपूत था। नरेंद्र दत्त बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे। उनका प्रारंभिक जीवन तैराकी  दौड़ कुश्ती और संगीत आदि के अर्जन में बीता। ज्ञान विज्ञान और सत्य की खोज में वह बचपन से ही थे। सफल वक्ता के साथ-साथ कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों में वह सम्मिलित रहते थे। अपने हिंदू छात्र साथियों के समान ही यूरोप के  उद्गार   और और विवेकशील चिंतकों के विचारों दर्शन का अध्ययन मनन करने की प्रेरणा उनको छात्र जीवन से ही मिल गई थी। कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। जॉन स्टूअर्ट मिल फ्रांसीसी क्रांति के दार्शनिक कांत और हीगल की रचनाओं का अध्ययन उन्होंने कर लिया था।हर्बर्टस्पेन्सर से तो उन्होंने पत्र व्यवहार करके अपने संबंधों को वैयक्तिक आधार पर सहेज लिया था। वह हर्बर्टस्पेन्सर और जान स्टुअर्ट मिल के प्रशंसक थे।


         फ्रांसीसी राज्य क्रांति का प्रभाव उस समय साहित्य के माध्यम से पराधीन भारत में जोरो से फैल रहा था। भला नरेंद्र नाथ पर कैसे इसका प्रभाव नहीं पड़ता। नरेंद्र नाथ भी उनके स्वतंत्रता समानता और भ्रातृत्व के सिद्धांत में उत्साह से विश्वास करते थे। वे देश को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्र करा कर अपने देश के प्राचीन आध्यात्मिक व सांस्कृतिक पूर्व दोनों को पुनः लौट आना चाहते थे।


आध्यात्मिक भारत के  निर्माता

नरेंद्र नाथ मूलतः  एक धर्म पुरुष थे। भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा के सजग प्रहरी। उन्होंने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था बल्कि करोड़ों देशवासियों की आजादी नए भारत के निर्माण और उत्थान को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था। राष्ट्र के दिन ही जनों की सेवा को ही वे  ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। मानव सेवा की इस प्रबल संभावना को उन्होंने शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा था भले ही मुझे बार-बार जन्म लेना पड़े और जन्म मरण की अनेक यातनाओं से गुजरना पड़े, लेकिन मैं चाहूंगा कि मैं उस एकमात्र ईश्वर की सेवा कर सकूं जो असत्य आत्माओं का विस्तार है और मेरी भावना सभी जातियों वर्गों का धर्मों के निर्धनों में बसती है। उनकी सेवा ही मेरा अभीष्ट है।


स्वतंत्रता के संदेशवाहक

वे अंधविश्वास छुआछूत जातीय भेदभाव तथा धार्मिक आडंबर ओं के कटु आलोचक थे। स्वामी जी का कहना था कि भाईचारे व प्रेम की भावना से निम्न लोगों को इतना ऊंचा उठाओ कि वह उच्च वर्ग के बराबर समानता में खड़े हो जाएं। विवेकानंद एक सुखी संपन्न और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए बेचैन थे। उनका राष्ट्रीय चिंतन था सभी पिछड़े लोगों का उत्थान उनको स्वतंत्रता और समानता का अधिकार महिलाओं को भी पुरुषों के समान बराबरी का दर्जा व समतावादी समाज की स्थापना शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार। इस प्रकार स्वामी जी ने भारत के निर्माता और भारतीय राजनीतिक स्वतंत्रता के संदेशवाहक थे।

गुरु से मिलन

स्वामी विवेकानंद मनुष्य जाति को उस स्थान पर पहुंच जाना चाहते थे जहां न वेद है ना बाइबिल है ना कुरान है परंतु वेद बाइबल और कुरान के संमन्वय से ही ऐसा हो सकता है। सत्य की यही अनवरत खोज नरेंद्र को दक्षिणेश्वर के संत श्री रामकृष्ण परमहंस तक ले गई और परमहंस की वह सच्चे गुरु सिद्ध हुए जिनका सान्निध्य पाकर नरेंद्र की ज्ञान पिपासा शांत हुई। अपने गुरुदेव में विवेकानंद को जीवन की कुंजी मिल गई। अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से प्रेरित होकर स्वामी विवेकानंद ने साधना प्रारंभ की और परमहंस के जीवनकाल में ही समाधि प्राप्त कर ली किंतु विवेकानंद को तो इस जीवन में कोई दूसरा ही कार्य करना था। जब स्वामी विवेकानंद ने दीर्घकाल तक समाधि अवस्था में रहने की इच्छा प्रकट की तो उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को एक महान लक्ष्य की ओर प्रेरित करते हुए कहा मैंने सोचा था कि तुम जीवन में एक प्रकाश पुंज बनोगे। और तुम हो कि एक साधारण मनुष्य की व्यक्तिगत मोक्ष  आनंद में डूब जाना चाहते हो। तुम्हें संसार में महान कार्य करने हैं। तुम्हें मानवता में आध्यात्मिक चेतना उत्पन्न करनी है। दीन हीन दलित दुखी मानवों  के दुखों का निवारण करके उनको उनके स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों को दिलाना है। स्वामी विवेकानंद के लिए यह संदेश आंखें खोलने वाला था। सन 1886 में गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया। लगभग 6 वर्षों तक वे एकांतवास करके भारतीय धर्म तथा दर्शन का अनुशीलन करते रहे और अथक परिश्रम से वेदांत दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।


स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रीय चिंतन

राजनीतिक विचारों को विवेकानंद ने कई प्रकार से आत्मसात किया था। उन्होंने जिस नींव की स्थापना की थी स्वतंत्रता का महल उसी  आधारशिला पर निर्मित हो सका। स्वामी जी के मन में वसंत पराधीन भारतीयों की आजादी के साथ उनके जीवन को सुखी बनाने की अदम्य लालसा थी। उनका राष्ट्र और मानवता की सेवा का निर्णय महान था। स्वामी विवेकानंद के अनुसार कोई भी राजनीतिक सफलता तब तक अर्थहीन है जब तक साधारण जनता के भरण पोषण का प्रश्न हल नहीं हो जाता। किसी देश में कुछ ही व्यक्ति सुखी संपन्न रहें और असंख्य व्यक्ति गरीबी का अभाव का जीवन जिए दुखी रहे उस राष्ट्र का कल्याण व प्रगति संभव नहीं।

              उनका कहना था राजनीतिक जीवन में गति लाने के लिए यह आवश्यक है कि जनसाधारण के जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जाए।  वह कहते थे कि गरीबों दलितों और दुखी जनों की सेवा ईश्वर और सच्चिदानंद की की सेवा है। जनसाधारण की उपेक्षा करके कोई भी राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता।


सर्व धर्म सम्मेलन भाषण

11 सितंबर 1883 को शिकागो( अमेरिका) मे स्वामी विवेकानंद ने सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लेकर हिंदू धर्म तथा वेदांत दर्शन की बड़ी योग्यता पूर्ण व्याख्या करके अमेरिका वासियों का दिल जीत लिया था। उन्होंने उस सम्मेलन में घोषणा की कि वेदांत संसार का भव्य व्यापक तथा सर्वश्रेष्ठ धर्म है। सिस्टर निवेदिता ने शिकागो भाषण के संबंध में लिखा है यहां पर स्वामी जी ने जब बोलना शुरू किया तब वे हिंदू धर्म के विचारों के विषय में बोले लेकिन जब भाषण समाप्त हुआ तो ऐसा लगा कि उन्होंने हिंदू धर्म की सृष्टि कर दी। अपनी स्वागत के प्रति आभार प्रकट करते हुए स्वामी जी ने कहा था मैं एक ऐसे धर्म का अनुयाई होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता  तथा सार्वभौमिक दोनो की शिक्षा दी है। हम लोग सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे महान देश का व्यक्ति होने का अभिमान है किसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। यदि एक धर्म सच्चा है तब निश्चय ही अन्य सभी धर्म सच्चे हैं।

         कांग्रेसनल चर्च में स्वामी विवेकानंद ने घोषणा की घर में धर्मांधता अंधविश्वास और जड़ विधान का कोई स्थान नहीं है। 27 सितंबर 1893 को अंतिम अधिवेशन में भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि ईसाई को हिंदू या बौद्ध  नहीं हो जाना चाहिए और ना ही हिंदू और बौद्ध ईसाई है। स्वामी जी नैतिक पवित्रता और त्याग में जीवन को आध्यात्मिक महत्व देते थे।

सभी धर्मों और संप्रदायों के मध्य समन्वय स्थापित किया

स्वामी विवेकानंद सभी धर्मों और संप्रदायों के बीच समन्वय और सद्भावना स्थापित करना चाहते थे। उनका विचार था कि ईश्वर एक महान शक्ति है जिसकी प्रेरणा से ब्रह्मांड का सृजन एवं विनाश होता है। वह हिंदू सभ्यता व संस्कृति को सबसे प्राचीन और सर्वश्रेष्ठ मानते थे। उनका विचार था कि हिंदू राष्ट्र संसार का शिक्षक गुरु रहा है तथा भविष्य में भी रहेगा। गीता के उपदेश के समान स्वामी विवेकानंद मानते थे कि फल की इच्छा छोड़कर ईश्वर की भक्ति सफलता है। वह गरीबों बीमारों की सेवा सहायता को यज्ञ के समान ही पवित्र और महत्वपूर्ण समझते थे।

Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है किंतु उसका सार एकात्मक है . इस कथन पर टिप्पणी कीजिए? (the Indian constitutional is Federal in form but unitary is substance comments

संविधान को प्राया दो भागों में विभक्त किया गया है. परिसंघात्मक तथा एकात्मक. एकात्मक संविधान व संविधान है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियां एक ही सरकार में निहित होती है जो कि प्राया केंद्रीय सरकार होती है जोकि प्रांतों को केंद्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है. इसके विपरीत परिसंघात्मक संविधान वह संविधान है जिसमें शक्तियों का केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजन रहता और सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है यह संविधान विशेषज्ञों के बीच विवाद का विषय रहा है. कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान एकात्मक है केवल उसमें कुछ परिसंघीय लक्षण विद्यमान है। प्रोफेसर हियर के अनुसार भारत प्रबल केंद्रीय करण प्रवृत्ति युक्त परिषदीय है कोई संविधान परिसंघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना जरूरी है कि उस के आवश्यक तत्व क्या है? जिस संविधान में उक्त तत्व मौजूद होते हैं उसे परिसंघात्मक संविधान कहते हैं. परिसंघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व ( essential characteristic of Federal constitution): - संघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं...