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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

भारतीय वित्तीय एवं पूंजी बाजार( indian financial and capital market)

वित्तीय बाजार का अर्थ एवं कार्य:

वित्तीय बाजार ऋण दाता व ऋणी के मध्य अंतरण प्रक्रिया है ,जिसके माध्यम से वित्तीय कोषों  के हस्तांतरण में सुगमता आती है ।इसमें निवेश वित्तीय संस्थाओं और अन्य मध्यस्थों को शामिल किया जाता है जिन्हें विभिन्न संपत्तियों व साखपत्रों के व्यवसायिक विक्रय हेतु औपचारिक नियमों और संचार माध्यमों से जोड़ दिया जाता है अर्थात वे व्यक्ति जिनके पास अधिक धन है वे अपना धन उन व्यक्तियों को उनकी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उधार देते हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता है।


     व्यवसाय के क्षेत्र में भी मुद्रा आधिक्य   निवेशको एवं ऋण दाताओं से व्यवसायियों की तरफ माल व सेवाओं के उत्पादन अथवा विक्रय के लिए प्रवाहित होता है । प्रकार हम दो विभिन्न समूहों को पाते हैं जिनमें एक समूह वह है जो धन का निवेश करता है अथवा ऋण प्रदान करता है ।दूसरा समूह वह है जो ऋण प्राप्त करता है और धन का उपयोग करता है।


       वित्तीय बाजार में क्रेता और विक्रेता के मध्य पारस्परिक वार्तालाप के फल स्वरुप के क्रय विक्रय की जाने वाली वित्तीय संपत्ति के मूल्य निर्धारण से संबंधित सूचना दी जाती है ।यह वित्तीय संपत्ति के लेनदेन को सुरक्षा प्रदान करता है ।यह निवेशकों को वित्तीय संपत्ति की बिक्री प्रक्रिया में तरलता प्रदान करता है साथ ही यह लेनदेनों व संबंधित सूचना की न्यूनतम लागत सुनिश्चित करता है।

वित्तीय बाजार के विभिन्न घटक( components of financial market):

मुद्रा बाजार: मुद्रा बाजार का संबंध उन वित्तीय संपत्ति और प्रतिभूतियों के व्यापार से है जिनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष तक होती है। इस प्रकार यह बाजार वित्तीय परिसंपत्तियों के अल्पकालीन लेनदेन के लिए है।

पूंजी बाजार: पूंजी बाजार उन वित्तीय परिसंपत्तियों के व्यापार के लिए होता है जिनकी परिपक्वता अवधी लंबे समय या अनिश्चित समय की होती है। सामान्यतः यह बाजार दीर्घ अवधि प्रतिभूतियों जिनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से अधिक होती है के लिए होता है।

कमोडिटी बाजार: इस बाजार में विनिर्मित वस्तुओं का नहीं, बल्कि प्राथमिक वस्तुओं का व्यापार होता है। वायदा अनुबंध वस्तुओं में निवेश का सबसे पुराना तरीका है। कमोडिटी बाजार में प्राइसेज, फारवर्ड्स, फ्यूचर, और फ्यूचर्स पर ऑप्शन का प्रयोग करते हुए डेरिवेटिव   व्यापार किया जा सकता है।

डेरिवेटिव बाजार : डेरिवेटिव बाजार व वित्तीय बाजार है जिसमें संपत्ति के अन्य रूपों से निकाली गई डेरिवेटिव  वायदा अनुबंध या विकल्पों जैसे वित्तीय साधनों में व्यापार होता है।

वायदा बाजार: यह एक नीलामी बाजार होता है जिसमें प्रतिभागी वस्तुओं या भविष्य के उपबंधों  जो भविष्य की एक निर्दिष्ट तारीख को देय हो की खरीद और बिक्री का कार्य करते हैं।

बीमा बाजार: इस बाजार में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की खरीद और बिक्री होती है ।यह बाजार अनिश्चित हानि के जोखिम से बचाव के लिए अपनाया जाने वाला जोखिम प्रबंधन का एक तरीका है।

विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार: मुद्राओं के व्यापार के लिए यह एक वैश्विक विकेंद्रीकृत बाजार है। इस बाजार के भागीदार बड़े अंतरराष्ट्रीय बैंक हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से कार्य करता है। विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार मुद्रा रूपांतरण करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश में सहायता करता है।


भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड( securities and exchange Board of India SEBI):

सेबी की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा संसद मे कानून पास करके 12 अप्रैल 1988 को की गई थी। बाद में 30 जनवरी 1982 को एक अध्यादेश द्वारा इस संस्था को वैधानिक दर्जा भी प्रदान कर दिया गया। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसके क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता दिल्ली तथा चेन्नई में स्थापित किए गए हैं। यह एक गैर संवैधानिक संस्था है।

        सेबी शेयर बाजार में चलने वाले वृहद कारोबार को नियंत्रित और विनियमित करता है। यह कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में होने वाली गड़बड़ियों को रोकने के लिए बने विभिन्न कानूनों को लागू करवाने के लिए उत्तरदाई है।

              भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों का विश्वास बनाए रखने और उन्हें संरक्षण प्रदान करने में इसका विशेष योगदान रहा है। सेबी की वर्ष 1988 में प्रारंभिक पूंजी 7.5 करोड़ निर्धारित गई थी। जो इसकी प्रवर्तन कंपनियों iDBI , iCICI तथा iFCI द्वारा लगाई गई है।


सेबी के प्रमुख कार्य( function of SEBI):

सेबी के लिए निर्धारित किए गए प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

(1) प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाजार को उचित उपायों के माध्यम से विकसित करना एवं नियमित करना।


(3) स्टॉक एक्सचेंजों  तथा किसी भी अन्य प्रतिभूति बाजार के व्यवसाय को नियमित करना।

(3) स्टॉक ब्रोकर्स सब ब्रोकर शेयर ट्रांसफर एजेंट ट्रस्टीज मर्चेंट बैंकर अंडर राइट्स पोर्टफोलियो मैनेजर आदि के कार्यों का नियमन करना एवं उन्हें पंजीकृत करना।

(4) म्यूच्यूअल फंड की सामूहिक निवेश की योजनाओं को पंजीकृत करना एवं उसका नियमन करना।

(5) स्वयं नियमित संगठनों को प्रोत्साहित करना।

(6) प्रतिभूतियों के बाजारों से संबंधित व्यापार व्यवहारों  को समाप्त करना।

(7) प्रतिभूतियों के बाजारों से जुड़े हुए लोगों को प्रशिक्षित करना तथा निवेशकों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना।

(8) प्रतिभूतियों के अंतरंग व्यापार पर रोक लगाना।

(9) प्रतिभूतियों के बाजार में कार्यरत विभिन्न संगठनों के कार्यकलापों का निरीक्षण करना एवं व्यवस्था सुनिश्चित करना।

(10) उपरोक्त  उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शोध कार्य करना।


सेबी गाइडलाइंस 1999 में संशोधन:

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड( SEBI) ने 17 जनवरी 2013 को एम्पलाई स्टॉक ऑप्शन स्कीम(ESOS) तथा एम्पलाई स्टॉक परचेज स्कीम(ESPS) गाइड लाइन में संशोधन किए गए हैं। इन दिशा निर्देशों के माध्यम से कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए बेनिफिट योजनाओं का संचालन कर रही थी। इन योजनाओं के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी की प्रवृत्तियों को देखते हुए सेबी ने उन दिशानिर्देशों में संशोधन किया है। कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए चलाई जा रही बेनिफिट योजनाओं की जानकारी सेबी को देना अनिवार्य बना दिया गया है।


भारतीय पूंजी बाजार( indian capital market):

पूंजी बाजार वह बाजार है जो मध्यकालीन व दीर्घकालीन कोषो में व्यवसाय करता है। दीर्घ कालीन एवं मध्यकालीन ऋण के लिए यह संस्थागत प्रबंध है, जो की प्रतिभूतियों के विपणन एवं व्यापार की सुविधा प्रदान करता है। अतः इसमें बैंकों व वित्तीय संस्थाओं से सभी दीर्घकालीन ऋण विदेशी बाजारों से ऋण और विभिन्न प्रतिभूतियों जैसे अंशों ऋण पत्रों एवं बाॅण्ड् से संबंधित पूंजी का व्यवसाय होता है।

इस बाजार के निम्नलिखित 2 मुख्य भाग होते हैं

(1) प्राथमिक बाजार( primary market): इसे नवीन निर्गमन बाजार भी कहते हैं, क्योंकि इस बाजार में कंपनियां अपने नवीन अंशों  व ऋण पत्रों का निर्गमन कर दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करती है। इन  अंशों  व ऋण पत्रों का नवीन निर्गमन कंपनियां अपने गठन व व्यवसाय के विस्तारण के समय कर सकती हैं।

          यह कार्य बहुधा मित्रों संबंधियों व वित्तीय संस्थाओं से व्यक्तिगत रूप से या सार्वजनिक निर्गमन द्वारा किया जाता है, पर इसके लिए कंपनियों को स्थापित वैधानिक प्रक्रियाओं एवं औपचारिकताओं का पालन करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में बैंक व अभिकर्ता( एजेंट) आदि जो प्राथमिक बाजार के आवश्यक अंग है, मध्यस्थ के रूप में शामिल रहते हैं।


द्वितीयक बाजार( secondary market)

द्वितीयक बाजार को शेयर बाजार के नाम से भी जाना जाता है, जो अंशों व ऋण  पत्रों को आवश्यक तरलता प्रदान कर दीर्घकालीन वित्त की व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  यह एक संगठित बाजार है, जहां अशों व ऋण पत्रों के क्रय विक्रय में उच्च श्रेणी की पारदर्शिता व सुरक्षा बरती जाती है। यहां प्रतिभूतियों का नकदीकरण अत्यंत ही सुगमता से बिना किसी विलंब के पारदर्शिता एवं सुरक्षा के साथ किया जाता है।

अतः यह कहा जा सकता है कि एक सक्रिय द्वितीयक बाजार, प्राथमिक बाजार के विकास की प्रक्रिया को सुविधाजनक बना देता है, क्योंकि यह प्राथमिक बाजार के निवेशकों को उनके अंशों  व ऋण  पत्रों में तरलता प्रदान करने हेतु सतत बाजार का कार्य करता है।


आईपीओ( initial public offering IP o):

इनिशियल पब्लिक ऑफर को संक्षेप में आईपीओ कहते हैं। आई पीओ कंपनी अपनी पूंजी में विस्तार के लिए करती है लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है। जो भी कंपनी आईपीओ जारी करता है वह यह घोषित करती है कि वह किसी तरह की सिक्योरिटी जारी करेगी। आई पी ओ  पूरी तरह एक जोखिम भरा निवेश माना जाता है।


पूंजी व मुद्रा बाजार में अंतर( difference between capital market and money market):

Capital market( पूंजी बाजार)

(1) यहां लेनदेन अंश( shares),ऋण पत्र( debentures)बाॅण्ड् व राजकीय (securities)प्रतिभूतियों के माध्यम से होता है।

(2)दलाल (agents), mutual funds,वित्तीय संस्थाएं व अभिगोपक (underwrith) व निवेशक (investor) इस बाजार  मे भाग लेते हैं।

(3)नियमन व नियन्त्रण SEBI द्वारा 


Money market( मुद्रा बाजार)

(1) लेन-देन ट्रेजरी बिल वाणिज्यिक पत्र व्यापार पत्र व जमा पत्र के माध्यम से होता है।

(2) रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंक व गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां(NBFCs) इस बाजार की प्रतिभागी हैं।

(3) नियमन और नियंत्रण आरबीआई द्वारा।


कुछ प्रमुख पूंजी बाजार:

प्रतिभूति बाजार( security market):

वह बाजार जहां शेयर प्रतिभूति बाॅण्ड्  डिवेंचर म्युचुअल फंड इत्यादि माध्यमों द्वारा दीर्घकालिक पूंजी की व्यवस्था की जाती है उसे प्रतिभूति बाजार कहते हैं। इन बाजारों में विभिन्न प्रकार के लेनदेन संपन्न होते हैं जैसे वायदा कारोबार इंसाइडर ट्रेडिंग आदि।


प्रतिभूतियों का चल निपटान( rolling settlement of securities):

कुछ वर्ष पहले तक शेयर बाजार में प्रतिभूतियों का व्यापार एक सार्वजनिक चिल्लाहट या नीलामी प्रणाली के माध्यम से होता था जिसमें कंप्यूटर एवं आधुनिक सॉफ्टवेयर का प्रयोग नहीं होता था। यह कार्य सप्ताह में एक निश्चित तिथि( शनिवार या बुधवार)को होता था। इसे स्थाई सौदों का निपटारा कहते थे।

           अंत समय में शेयरों का व्यापार एवं उनका लेखा-जोखा कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक के आधार पर होता है, जिसके कारण शेयर बाजार चल निपटान( rolling settlement) व्यापार करने लगा है। सौदों का निपटारा सप्ताह  में एक निश्चित दिन की अपेक्षा कुछ निश्चित दिनों के पश्चात होता है। उदाहरण के लिए शेयर बाजार में टी+2(T+2) दिनों का चल सौदा होता है तो सौदे का निपटारा वास्तविक  सौदे की तिथि से 2 दिन के अंदर किया जाता है।


बांड बाजार( bond market):

बांड बाजार वह वित्तीय बाजार होता है जिसमें भागीदार नया डेब्ट जारी कर सकते हैं और डेब्ट सिक्योरिटीज को खरीद और बेच सकते हैं। सामान्यतः इस बाजार में कार्य बाॅण्ड्  के रूप में होता है लेकिन नोट्स बिल अन्य वित्तीय उपकरणों का प्रयोग भी इस बाजार में होता है। बाॅण्ड्  बाजार को डेब्ट बाजार या क्रेडिट बाजार भी कहते हैं। बाॅण्ड्  बाजार का प्राथमिक उद्देश्य निजी और लोक व्यय के लिए दीर्घकालीन वित्तीय व्यवस्था करना है।


सिक्योरिटी इन इंडस्ट्रीज और फाइनेंशियल मार्केट एसोसिएशन( securities industries and financial market Association,SIFMA) वृहत बाॅण्ड्  व्यापार को निम्नलिखित भागों में बांटा है

  • Corporate Bond market

  • Municipal bond market

  • Mortgage bond market

  • Funding bond market

         बॉन्ड मार्केट के भागीदार अन्य सभी वित्तीय बाजारों के भागीदारों के समान हैं। बाॅण्ड्  बाजार के भागीदारी या तो कोष के खरीददार हैं या तो कोषों  के विक्रेता या फिर दोनों। बॉन्ड मार्केट के भागीदारों में शामिल है

  • संस्थागत निवेशक

  • सरकारें 

  • व्यापारी

  • व्यक्ति विशेष


शेयर बाजार( stock market):

यह संस्थानीकृत वित्तीय संगठन है,जहाँ केवल सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में ही व्यवसाय होता है। ये वे प्रतिभूतियां है जो स्टॉक मार्केट द्वारा स्वीकृत सूची में दर्ज होती है। दूसरे शब्दों में यह एक ऐसी संस्था है जो सूचीबद्ध प्रतिभूतियों का व्यवस्थित क्रय विक्रय संभव बनाती है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं


(1) यह प्रतिभूति बाजार के विभिन्न घटकों की  संस्थानीकृत नियमों एवं प्रक्रियाओं के अनुपालन द्वारा कटिबद्ध ताकि गारंटी करता है।

(2)यह स्टाॅक के मूल्य का निर्धारण करता है तथा निवेशकों को इसकी सूचना उपलब्ध कराता है।

(3) सूचीबद्ध कंपनियों को उनके वर्तमान स्टॉक धारकों की सूची प्रदान करता है।

(4) प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री की सुविधा के द्वारा प्रतिभूति बाजार में तरलता उपलब्ध कराता है।


(5) अपने सूचकांकों द्वारा प्रतिभूति बाजार की वर्तमान स्थिति रुझान आदि की सूचनाएं उपलब्ध कराता है।

            शेयर बाजार शब्द सामान्यतः द्वितीयक बाजार के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द हैं। यहां विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों जैसे अंशों , ऋण पत्रों, बॉन्ड तथा सरकारी प्रतिभूतियों का नियमित क्रय विक्रय होता है।

             यह  बाजार केवल उन्हीं सदस्यों के लिए खुला रहता है जो क्रेता और विक्रेता के लिए दलाल के रूप में कार्य करते हैं। एक मान्य शेयर बाजार में सभी प्रतिभूतियों के लेनदेन करने की अनुमति नहीं होती, बल्कि लेनदेन मात्र उन सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में हो सकता है, जो स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों द्वारा स्वीकृत है। कंप्यूटर द्वारा उपलब्ध ऑनलाइन स्क्रीन सेवा काफी तेज व्यवस्था है, क्योंकि इसके कारण कुछ ही मिनटों में दलालों( जो कि तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं) के माध्यम से प्रतिभूतियों का लेनदेन किया जा सकता है।


शेयर बाजार निम्नलिखित सुविधा प्रदान करती है

  • तत्कालिक एवं अनवरत बाजार उपलब्ध कराना

  • लेनदेन एवं निवेश में सुरक्षा प्रदान करना

  • मूल्य  एवं विक्रय संबंधी सूचना प्रदान करना।

  • बचत की गतिशीलता एवं पूंजी नियंत्रण में सहायक।

  • व्यापारिक एवं आर्थिक स्थिति का मापक।

  • कोष उचित आवंटन।


डीमैट अकाउंट( demat account):

डीमैट का मतलब होता है डी मैटेरीलाइज्ड अकाउंट। यह एक प्रकार का बैंक खाता है जिसमें रुपयों की जगह शेयर वह बॉन्ड रखे जाते हैं। इस खाते में रुपए का लेन देन नहीं होता है। सेबी के नियमों के मुताबिक अगर आपको शेयर बाजार में खरीद-फरोख्त करनी हो तो वह डीमैट खाते के जरिए ही हो सकता है। यही नहीं अगर किसी कंपनी के आईपीओ में निवेश करना हो तो भी डीमैट खाता जरूरी है।


शेयर बाजार के लाभ( profits of share market)

For company( कंपनी के लिए)

  • वे कंपनियां जिनकी प्रतिभूतियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो चुकी हैं, वे अन्य कंपनियों की अपेक्षा अधिक ख्याति एवं साख की स्थिति प्राप्त करती हैं क्योंकि वह आर्थिक दृष्टि से अधिक सुदृढ़ मानी जाती हैं।


  • इन कंपनियों की प्रतिभूतियों का बाजार विस्तृत हो जाता है क्योंकि पूरे विश्व के सभी निवेशक इस प्रकार की प्रतिभूतियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और साथ ही इसमें निवेश के अवसर भी पाते हैं।


  • उच्च ख्याति एवं अधिक मांग के परिणाम स्वरूप उनके प्रतिभूतियों के मूल्य में वृद्धि हो जाती है और उनके सामूहिक उपक्रम एवं विलयन आदि में उनके सौदेबाजी की शक्ति में भी वृद्धि हो जाती है।


  • कंपनी को अपने निर्गमन के आकार मूल्य एवं समय के संबंध में निर्णय करने की सुविधा होती है।


निवेशकों के लिए( for investors):

  • निवेशक प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय की तत्कालीन उपलब्धता  की सुविधा इच्छित व उचित समय पर प्राप्त कर सकते हैं।

  • शेयर बाजार के माध्यम से किए जाने वाले लेनदेन में सुरक्षा के कारण निवेशक प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी एवं भुगतान संबंधी कठिनाई से चिंता मुक्त रहता है।


  •  शेयर बाजार  में लेन-देन की जाने वाली प्रतिभूतियों की कीमत कि नियमित में सूचना होने के कारण निवेशकों को उनके क्रय विक्रय करने का समय निर्धारित करने में सहायता मिलती है।

  • शेयर बाजार में लेनदेन की जाने वाली प्रतिभूतियों पर बैंक से ऋण प्राप्त करना सुगम होता है क्योंकि इन प्रतिभूतियों की तरलता एवं सुगम मूल्यांकन के कारण बैंक ऋण देना पसंद करते हैं।



Bombay online trading(BOLT) वर्ष 1995 से शुरू की गई है इसने खुली बोली का स्थान ले लिया है।

Delhi online trading system(DOTS) की शुरुआत वर्ष 1996 से हुई।

Bombay Stock Exchange विश्व में 11 सबसे बड़ा एक्सचेंज है।


अंश (shares):

अंश वह सबसे छोटी इकाई है जिसमें कंपनी की कुल पूंजी विभाजित होती है।

             प्रत्येक अंश का मूल्य और निर्गमित किए जाने की संख्या निश्चित करने के पश्चात कंपनी इन अंशों  को बेचने के लिए जनता को आमंत्रित करती है। विनियोजन कर्ता अपनी क्षमता अनुसार अंशों को खरीदता है या अंशों मे निवेश करता है। अंश धारक( shareholders) कहलाते हैं। उन्हें अपने निवेश पर प्रतिफल के रूप  में लाभांश प्राप्त होता है।

               कोई भी कंपनी दो प्रकार के अंशों का निर्गमन कर सकती है जो निम्नलिखित हैं

(1) समता अंश( equity shares):

      वह अंश जिनको लाभांश के भुगतान अथवा पूंजी के पुनः भुगतान के संबंध में कोई पूर्वाधिकार( preferential right) प्राप्त नहीं होता है इन्हें पूर्वाधिकार वाले अंश धारकों को लाभांश भुगतान करने के बाद लाभांश प्राप्त होता है। समता अंश धारकों के लिए लाभांश की कोई निश्चित दर नहीं होती बल्कि यह अतिरिक्त लाभ पर निर्भर करती है।

         अधिक लाभ होने की दशा में कंपनी समता अंश धारकों को ऊंची दर से लाभांश का भुगतान करती है। इस प्रकार के अंशो के निर्गमन से प्राप्त धन को समता अंश पूंजी कहते हैं। इसे स्वामित्व पूंजी या स्वामित्व कोष भी कहते हैं।


(2) पूर्वाधिकार अंश( preferences share)

वे अंश जिनको लाभांश एवं पूंजी की वापसी के संबंध में अधिमान अधिकार प्राप्त होते हैं। समता अंशों  के लाभांश भुगतान से पूर्व  पूर्वाधिकार अंश धारकों के पास कोई भी मताधिकार नहीं होता है इसलिए वह कंपनी के प्रबंध में भाग नहीं ले सकते। पूर्वाधिकार अंशों  को निर्गमित करना कंपनी के लिए अनिवार्य नहीं है।


ऋण पत्र( debentures):

ऋण पत्रों के निर्गमन द्वारा कंपनियां दीर्घकालीन वित्त प्राप्त कर सकती हैं, इनसे निवेशकों को निश्चित ब्याज दर के रूप में एक निश्चित आय प्राप्त होती है। इसे कंपनी की ऋण पूंजी या उधार पूंजी भी कहते हैं। ऋण पत्र उधार ली गई राशि की लिखित पावती( रसीद) है। इसमें नियत एवं शर्तें जैसे ब्याज दर, भुगतान वापसी का समय एवं दी गई जमानत विशेष रूप से लिखी हुई होती है। ऋण पत्र धारक कंपनी के ऋण दाता होते हैं। जो निश्चित ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकारी हैं चाहे कंपनी को लाभ हुआ हो अथवा नहीं। इनको कोई मताधिकार प्राप्त नहीं होता है। सामान्यतः  ऋण पत्र पूर्ण सुरक्षित होते हैं। कंपनी यदि ऋण पत्र पर ब्याज देने या मूल धन को वापस करने में असफल रहती है, तब ऋण पत्र धारक कंपनी की संपत्तियां बेचकर इन्हें वसूल कर सकते हैं।


ऋण पत्रों के गुण( merits of debenture):

  • ऋण पत्र सुरक्षित है। कंपनी का समापन होने पर क्षमता एवं पूर्वाधिकार अंश धारक को कोई भी भुगतान करने से पूर्व इनका भुगतान किया जाता है।

  • लाभ ना होने पर ऋण पत्र धारकों को निश्चित दर से आय प्राप्त होती है।

  • जब कंपनी को अधिक लाभ होते हैं ऋण पत्रों का निर्गमन कंपनी को उसके समता अंश धारकों को ऊंची दर से लाभ प्रदान करने की सामर्थ्य प्रदान करता है।

  • ऋण पत्र धारकों को ना तो मत देने और ना ही कंपनी के प्रबंध में भाग लेने का अधिकार होता है, इसीलिए ऋण पत्रों द्वारा कंपनी प्रबंध नियंत्रण को प्रभावित किए बिना अतिरिक्त पूंजी प्राप्त करती है।

  • ऋण पत्रों पर दिए गए ब्याज को व्यय के रूप में माना जाता है। यह कंपनी के लाभों पर प्रभार होता है। इस प्रकार से कंपनी आयकर बचा लेती है।



केंद्रीय बिक्री कर की शुरुआत अत्यंत अल्प दर से(1%) वर्ष 1982 में की गई थी।

मुंबई स्टॉक एक्सचेंज की मान्यता तिथि 31 अगस्त 1957 है।


कोस्पी ,कोरिया स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक है।

रुपया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के रौप्य से हुई है।

भारतीय रुपए के नोट पर कुल 15 भाषाओं में नोट के मूल्य का उल्लेख होता है।


ऋण पत्रों के प्रकार( types of debentures)

(1) शोधनीय एवं अशोधनीय ऋण पत्र (Recttifiable and irreclaimable Debentures )

ऋण पत्र जिनकी धनवापसी एक निश्चित तिथि को होती है, शोधनीय ऋण पत्र कहलाते हैं। दूसरी ओर अशोधनीय ऋण पत्रों की दशा में कोई निश्चित समय नहीं है जिस पर धन वापसी के लिए कंपनी बाध्य हो।


(2) परिवर्तनीय एवं अपरिवर्तनीय ऋण पत्र( chargeable and non chargeable debentures):

परिवर्तनीय ऋण पत्र धारकों को अपने ऋण पत्रों के समता अंशों  में परिवर्तित करने का विकल्प दिया गया है लेकिन अपरिवर्तनीय ऋण पत्र धारकों को कंपनी द्वारा ऐसा कोई विकल्प नहीं दिया गया है।


(3) सुरक्षित और असुरक्षित ऋण( secured and unsecured debentures):

सुरक्षित ऋण पत्रों को कंपनी जमानत के रूप में अपनी संपत्तियों पर प्रभार के साथ निर्गमित करती है। यह प्रभार निश्चित संपत्तियों पर स्थाई हो सकता है या यह चल(Floating ) हो सकता है। सुरक्षित ऋण पत्र बंधक(Mortgaged) ऋण पत्र के नाम से भी जाने जाते हैं। दूसरी ओर असुरक्षित ऋण पत्र जमानत स्वरूप संपत्तियों पर बिना प्रभार के केवल भुगतान वापसी के वायदे पर निर्गमित किये जाते है।इसलिये ऐसे ऋणपत्रों को सुरक्षित या साधारण ऋणपत्र भी कहते है।वर्तमान मे स्थायी तौर परपर सुरक्षित ऋणपत्र ही निर्गमित किये जाते हैं।


4) पंजीकरण एवं वाहक ऋण पत्र (registration and carrier Debentures)

पंजीकृत ऋण पत्रों के लिए निर्गमित करने वाली कंपनी ऐसे ऋण पत्रों का रिकॉर्ड रखती है । इस प्रकार के ऋण पत्रों की कोई भी बिक्री या हस्तांतरण कंपनी में पंजीकृत होना चाहिए। दूसरी ओर वाहक ऋण पत्र एक तरह से विनिमय साध्य प्रलेख हैं और सुपुर्दगी मात्र से हस्तांतरणीय है।


भारत के शेयर बाजार( indian share market)

भारत में पहले शेयर बाजार की स्थापना 1875 ईस्वी में मुंबई में बाॅम्बे स्टॉक एक्सचेंज के नाम से की गई, जिसके पश्चात अहमदाबाद(1894) कलकत्ता (1908), मद्रास(1937) मे शेयर बाजारों की स्थापना की गई।


            द्वितीय विश्व युद्ध के समय सट्टा प्रक्रिया में आई तीव्र वृद्धि के फल स्वरुप वर्ष 1945 तक भारत में शेयर बाजारों की संख्या 21 हो गई । वर्तमान समय में भारत में कुल 22 शेयर बाजार है। संगठित शेयर बाजारों के अतिरिक्त बहुत से असंगठित शेयर बाजारों ने भी और अनौपचारिक रूप से स्थापना के बाद कार्य प्रारंभ किया जिन्हें केर्ब मार्केट कहा जाता है।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज( national stock Exchange,)

यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण शेयर बाजार है, जिसकी स्थापना वर्ष 1992 में फेरवानी समिति की सिफारिश के आधार पर हुई, इसका प्रमुख प्रवर्तक भारतीय औद्योगिक विकास बैंक(IDBI)है। इसका मुख्यालय वर्ली( दक्षिण मुंबई )में है।  इसने अपना कार्य वर्ष 1994 से प्रारंभ किया और पूरा देश का कार्यक्षेत्र है।


मिबोर एवं मिबिड (Mibor or Mibid)

अंतर बैंक कॉल मनी मार्केट के ऋणों के लिए शेयर बाजार(NSE) द्वारा नई दरें जून 1998 को प्रारंभ की गई जो निम्नलिखित है।

(1)Mibor (mumbai interbank offer rate) तथा (2)MIBID( mumbai interbank bid rate)।


MIBOR दर ऋणों  के लिए उधार दर(Lending Rate) की, जबकि MIBID दर प्राप्तियों  के लिए उधार दर की सूचक है।


बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज( bombay Stock Exchange, BSE)


  • एशिया के सबसे पुराने बम्बई  स्टॉक एक्सचेंज(BSE) की स्थापना 1875 ईसवी में हुई थी। यह दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। वर्ष 2005 से यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में रूपांतरित हो गया है। इस का वर्तमान नाम बी एस ई वर्ष 2002 में किया गया।


  •        इस प्रकारBSE और दलाल स्ट्रीट अब एक ही है। इसमें वर्तमान में 4800 से भी अधिक भारतीय कंपनियां पंजीकृत हैं। अक्टूबर 2007 में यह दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा तथा विश्व का दसवें नंबर का स्टॉक एक्सचेंज बन गया है।

  •              हमारे देश मेंBSE द्वारा सेंसेक्स के अलावा कुछ सेक्टोरल  शेयर सूचकांकों का भी प्रयोग किया जाता है।


  •  Bombay Stock Exchange का राष्ट्रीय सूचकांक( national index)100 शेयरों का होता है जबकि  बाम्बे  स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी शेयर सूचकांक(Share sensex ) 30 शेयरों का होता है।

     
  •         Sensex सूचकांक की रचना वर्ष 1986 में की गई थी। संवेदी सूचकांक का आधार वर्ष 1978 79 है जबकि राष्ट्रीय सूचकांक का आधार वर्ष 1983 84 है।

  •               भारत में कार्बन इंडैक्स की शुरुआत भी मुंबई शेयर बाजार से हुई ताकि निवेशक  पर्यावरण परिवर्तन संबंधी जोखिम और अवसन का निर्धारण कर सकें।

  • ओवर द काउंटर एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया( over the counter Exchange of India OTCEI)

  • यह लघु मध्यम औद्योगिक इकाईयों के एक्सचेंज के रूप में भारत का प्रथम ऑनलाइन ट्रेडिंग सुविधा संपन्न कंप्यूटराइज एक्सचेंज है। इसकी स्थापना मुंबई में वर्ष 1992 में की गई थी।UTI,ICICI, IDBI ,IFCI ,FIC आदि इस के प्रवर्तक हैं।


  •                 इसमें उन कंपनियों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनकी पूंजी का स्तर ₹300000 से ₹2500000 करोड़ तक है। इसके अतिरिक्त कुछ अंश पत्रों व ऋण पत्रों जो अन्य शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं का भी व्यवसाय इसमें होता है। इसके साथ ही यूटीआई की इकाइयों तथा अन्य में सूअर फंड का व्यापार भी OTCEI मे अनुमति प्राप्त प्रतिभूति के रूप में किया जा सकता है।
    

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