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छत्रसाल देश के उन गिने-चुने महापुरुषों में है जिन्होंने अपने बल अपनी बुद्धि तथा अपने परिश्रम से बहुत साधारण स्थिति में अपने को बहुत बड़ा बना लिया। सोचने में तो ऐसा लगता है कि ऐसा संभव भी नहीं हो सकता। ऐसा विश्वास नहीं होता कि ऐसा कैसे संभव हो गया।
छात्रसाल के पिता का नाम चंपत राय था। उनका जीवन सदा रणक्षेत्र में ही बीता। वे बड़े वीर थे। उनकी रानी भी सदा उनके साथ लड़ाई के मैदान में जाती थी। उन दिनों रानियां बहुधा अपने पति के साथ रण में जाती थी और पति को उत्साहित करती थी। जब छात्रसाल अपनी माता के पेट में थे तब भी उनकी माता चंपत राय के साथ रण क्षेत्र में ही थी। चारों तरफ तलवारों की खनखनाहट और गोलियों की वर्षा हो रही थी। रक्त से पृथ्वी लाल हो रही थी और मारकाट के शब्द हवा में गूंज रहे थे। ऐसे ही वातावरण में छत्रसाल का जन्म हुआ। यूरोप का विख्यात महापुरुष नेपोलियन भी ऐसे ही वातावरण में पैदा हुआ था। वह बड़ा ही योग्य सैनिक और विश्व विख्यात सेनापति हुआ। कहा जाता है कि जन्म के समय जो वातावरण होता है उसी का प्रभाव संतान पर पड़ता है। छत्रसाल पर रणभूमि का पूरा प्रभाव पड़ा।
इनका जन्म एक पहाड़ी गांव में सन 1648 ईस्वी में हुआ था। उस समय इनके पिता इनकी माता के साथ मुगलों की सेना से बचकर भागे हुए थे। इसलिए जन्म के समय कोई विशेष समारोह अथवा उत्सव नहीं मनाया गया। जन्म के बाद 6 महीने पहाड़ी तथा जंगली प्रदेश में छत्रसाल के बीते। एक ओर रण की भयंकरता थी और भय था कि कब बैरी की सेना आक्रमण कर दे दूसरी ओर प्रकृति की सुंदर निर्मल छटा थी। इस समय की एक घटना ने उस अवस्था का चलता है छत्रसाल के पिता इनकी माता और कुछ सैनिक एक जंगल में भोजन बनाकर खा रहे थे छत्रसाल की अवस्था उस समय 7 माह की थी अचानक मुगलों की सेना ने घेरा। सब सैनिक अपनी रक्षा के लिए भाग गए और उन्हीं के साथ चंपत राय और इनकी रानी गई इस भगदड़ में छत्रसाल को लोग भूल गए वेरी की सेना आई और चंपत राय को ना पाकर लौट गई। एक कोने में धरती पर पड़े इस बालक को किसी ने देखा नहीं और यह वही पड़े रहे ।बाद में चंपत राय ने जब देखा कि छत्रसाल मेरे साथ नहीं है तब उन्हें ढूंढने के लिए सिपाही भेजे गए एक सिपाही उन्हें उठाकर लाया ।छत्रसाल को पाकर चंपत राय के आनंद का ठिकाना नहीं रहा परंतु उन्होंने सोचा कि इस प्रकार के जीवन में छत्रसाल को अपने पास रखना ठीक नहीं। दूसरे ही दिन रानी छत्रसाल को लेकर चली गई ।4 साल तक छत्रसाल वही रहे उसके बाद पिता के पास आए।
इस अवस्था में भी छत्रसाल बड़े साहसी और निर्भीक थे। जहां मारकाट से लोग भय खाते छत्रसाल तनिक भी नहीं डरते थे। बंदूकों और तोपों की गरज से उन्हें आनंद आता और वह यह सब देखने को उत्सुक रहते थे। इनके खिलौनों में असली तलवार भी थी ।इनका मुख तेज से भरा था ।इनके खेल भी लडाई के खेल होते थे। प्राय: सभी लोग कहते थे कि वह अपने जीवन में पराक्रमी और साहसी पुरुष होंगे। इनके गुणों के कारण ही इनका नाम छत्रसाल रखा गया। इसके अतिरिक्त आचार व्यवहार के गुण भी इनमें थे।बलवान मन से ही थे जो सरदार चंपत राय से मिलने आते थे उनसे यह विनम्रता से मिलते और वहां की रस्म के अनुसार वंदना करते थे
इन्हें बाल काल में चित्र बनाने का बहुत शौक था यह हाथी घोड़े तो बोर बंदूक सवार सैनी का चित्र बनाया करते थे धर्म की और भी बालपन से ही रुचि थी प्रतिदिन मंदिर में जाते थे और बड़ी भक्ति के साथ प्रार्थना करते थे रामायण तथा महाभारत की कथा जब होती तो बड़े मन से सुनते थे साथ में वर्ष से इनकी शिक्षा नियमित ढंग से आरंभ हुई उस समय यह अपने मामा के यहां रहते थे पुस्तकों की शिक्षा के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी इन्हें दी जाती थी 10 वर्ष की अवस्था में ही वे कुशल सैनिक हो गए समय के साथ-साथ उन्हें अस्त्र-शस्त्र में भी कुशलता से चलाना सीख लिया था जंगली जानवरों का शिकार चतुराई तथा निर्भीकता से करते थे हिंदी कविता तथा अनेक धार्मिक पुस्तकें इन्होंने पढ़ ली थी केशवदास केतन रामचंद्रिका इन्हें बहुत प्रिय थी
छत्रसाल की अवस्था लगभग 16 वर्ष की थी जब इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई है सूचना एक सैनिक ने इन्हें भी छत्रसाल उस समय बहुत दुखी हुए कि उन्होंने धैर्य पूर्वक अपने आप को संभाला और भविष्य के संबंध में सोचने लगे छत्रसाल की अवस्था इस समय विचित्र थी मेरी जागीर चिंटू की थी इनके पास से ना थी ना पैसे थे इन्होंने भविष्य का चित्र अपने मन में बना लिया और अपने काका के यहां चले गए वहां कुछ दिन रहने के पश्चात इन्होंने अपनी योजना अपने काका को बताई युद्ध की बात सुनकर इनके काका बहुत डरे उन्होंने मुगलों की महकती शक्ति का विवरण बताया और कहा कि उनसे युद्ध करना बेकार है उन्होंने छत्रसाल को शांत रहने का उपदेश दिया काका की बात उन्हें अच्छी ना लगे और यह बड़े भाई के पास चले गए बड़े भाई और यह एक ही मत के थे ने मिलकर बुंदेलखंड का राज्य पुणे स्थापित करने की घोषणा बनाई
पहला काम तो सेना एकत्र करना था किंतु इसके लिए धन की आवश्यकता थी इनकी माता के गहने गांव में रखे थे दोनों से लाए और उसे बेचकर छोटी सी सेना तैयार की इसके बाद से छत्रसाल का जीवन युद्ध करते ही बीता यह बहुत चतुर्थ है इन्होंने जब जिसे आवश्यकता पड़ी उसकी सहायता की इनके लड़ने का ढंग इतना योग्यता पूर्ण होता था कि कदाचित ही कोई युद्ध ऐसा हुआ हो जिसमें छत्रसाल की हार हुई हो जब यह देखते की बेरी की सेना मेरी सेना से अधिक है तो बड़ी चतुराई से अपनी सेना हटा लेते थे वेरी की सेना की संख्या से इन्हें कभी घबराहट नहीं हुई जहां जहां लड़ते थे वहां जो उनकी अधीनता स्वीकार कर लेता था उसे तो छोड़ देते थे जो आदित्य नहीं स्वीकार करता था उसकी सारी संपत्ति लूट लेते थे लूट की संपत्ति का बहुत अधिक भाग सैनिकों में बांट देते थे लूट चोरों या डाकुओं की बात नहीं होती थी और उस स्थान के निवासियों पर क्रूरता निर्दयता का व्यापार नहीं किया जाता था साधारण जनता की संपत्ति से उन्हें कोई लगाव नहीं था यह तो राजा या जागीरदार की संपत्ति लेते थे
जिस समय उन्होंने अपनी माता के गहने बेचकर सेना तैयार की थी लगभग 300 सैनिक इनके पास थे किंतु धीरे-धीरे इनकी सेना भर्ती गई यहां तक कि औरंगजेब को भी इनकी बड़ी सेना का समाचार पाकर चिंता होने लगी और उस शक्ति की बाढ़ को रोकने के लिए अनेक बार उसने अपनी सेना भेजी अपनी पड़ी छत्रसाल की शक्ति भांजे की सैनिक शक्ति की तुलना में कुछ भी नहीं थी फिर भी छत्रसाल को वह हरा ना सका इसके 3 कारण थे पहली बात तो यह कि छत्रसाल के लड़ने का डर बहुत कौशलपुर उठाइए और इनके भाई सेना का संचालन करते थे यह पहाड़ी प्रदेशों में लड़ते थे इन्हीं स्थानों की इन्हें विशेष रूप से जानकारी थी जब अवसर मिलता था वह भाग जाते और औरंगजेब की सेना लाख सिर मारने पर भी इन्हें हारी रही पहुंचा सकती थी तीसरी बात यह थी कि इनके सैनिक बड़े साहसी और वीर थे इनकी विजय का हाल तो बुंदेला सुनता है इनकी सहायता करने के लिए तैयार हो जाता और सदा सहायता देता कारणों से यह बात हुई जो कभी संभावना थी और वह यह थी कि बड़े-बड़े सेनापति औरंगजेब की ओर से आए अनेक स्थानों पर मैं छत्रसाल से लड़े पर दुख का ही किसी युद्ध में विजय ना पा सके छत्रसाल सदा विजई रहे
छत्रसाल का राज्य धीरे धीरे बढ़ता गया और सारा बुंदेलखंड इनके राज्य में आ गया इनके राज्य का प्रबंध भी बहुत उत्तम और प्रजा को सुखी बनाने वाला था वह प्रजा से बहुत प्रेम करते थे और प्रजा को कोई कष्ट नहीं था प्रजा उनसे संतुष्ट नहीं थी थी आज यह आश्चर्य की बात जान पड़ती है कोई भी स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करता तो उसे कठोर दंड देते थे उनके राज्य में संसद याद धारा संभावना थी सारा राजकाज उन्हीं की आज्ञा से होता था महाराज का नियम था कि प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कितना ही छोटा हो उनसे मिल सकता है किसी प्रकार की रोक ठोकना थी इसका अनुमान किया जा सकता है कि यह कार्य कितना कठिन है इतना बड़ा राज्य कितने लोग मिलने आते रहे होंगे जिनकी विनती और बात छत्रसाल सुनते रहे होंगे उनके दरबार में नेक मंत्री भी थे जिन से परामर्श किया करते थे
एक बार यह छत्रपति महाराज शिवाजी के पास भी गए थे वे शिवाजी से अवस्था में छोटे थे शिवाजी इन से बहुत प्रेम से मिले और उन्होंने इन का बहुत सम्मान किया उन्होंने उपदेश दिया की वीरता से लड़ो लालच कभी मत करना और अधर्म कभी मत करना किसी धर्म या जाति से द्वेष ना करना शिवाजी की यह बातें उन्होंने सदा याद रखें महाराजा शिवाजी के बाद उन्होंने मुगल शासकों से लड़ाई की कि उन्हीं की बात इस्लाम धर्म के प्रति कोई ऐसी बात नहीं की जो अनुचित कहीं जा सके
शिवाजी के बाद उन्होंने मराठों से सहायता मांगी सिंहासन पर अब कोई राजा नहीं रह गया था और मुगल राज के वंशजों में ही झगड़ा हो रहा था छत्रसाल को भी इस समय अपने राज्य की रक्षा के लिए लड़ना पड़ा छत्रसाल बूढ़े हो चले थे वीरता और साहस ने इनका साथ ना छोड़ा था फिर भी इस समय इन्हें सहायता की आवश्यकता आ पड़ी उनके पुत्र बिजी थे किंतु इनकी क्षमता उनमें कहां उन्होंने पेशवा बाजीराव से सहायता मांगी और उन्होंने सहायता दी
महाराज छत्रसाल कविता और साहित्य के प्रेमी भी थे केवल लड़ाई और तलवार के ही पुजारी ना थे उनके दरबार में सदा अच्छे-अच्छे कभी रहते थे और सदा उन्हें पुरस्कार मिलता रहता था ऊपर कहा जा चुका है कि इन्हें केशवदास की रामचंद्रिका बहुत प्रिय थी वह लड़ाई में भी उसे अपने साथ ले जाते थे केशवदास हेतु बुंदेलखंड के किंतु 36 साल से पहले हुए थे कवियों का यह कितना सम्मान करते थे इसका पता एक घटना से लग सकता है भूषण कविराज शिवाजी के यहां रहते थे वे एक बार 36 साल के यहां आए जब वे इनके महल के निकट पहुंचे छत्रसाल बाहर आए और आगे जाकर भूषण की पालकी में अपना कंधा भी लगा दिया जूही भूषण को पता लगा वह तुरंत ही कूद पड़े बोले महाराज यह आपने क्या किया छत्रसाल ने उत्तर दिया आप ऐसे महान कवि का सम्मान शिवाजी महाराज के यहां होता है मैं उनकी क्षमता मुंबई इसी प्रकार का आपका सम्मान कर सकता हूं
शिवाजी की मृत्यु के बाद भूषण छत्रसाल के यहां आने पर आए भूषण ने छत्रसाल की प्रशंसा में भी कविताएं लिखी
कितने ही अन्य कभी भी इनकी कृपा से पन पर इन के दरबार में जो कभी रहते थे इनमें लाल कभी भी एक कवि थे जिन्होंने छत्रसाल के संबंध में एक पुस्तक लिखी जिसका नाम है छत्र प्रकाश छत्रसाल स्वयं कविता करते थे और उनकी अनेक कविता में भारी रचनाएं तथा कविता में अनेक पत्र मिलते हैं विख्यात छतरपुर नगर महाराज छत्रसाल का ही बसाया हुआ है
यह बात भी ज्ञात है कि शिवाजी के गुरु रामदास थे जिन्होंने उन्हें बहुत अच्छे अच्छे उपदेश दिया शिवाजी को अजी भी उन्होंने ही बनाया इसी प्रकार महाराज छत्रसाल के भी गुरु थे इनका नाम प्राणनाथ था एक बार लड़ाई में एक जंगल में से छत्रसाल जा रहे थे वहीं बाबा प्राणनाथ से भेंट हो गई प्राणनाथ जामनगर के एक बड़े धनी व्यक्ति के लड़के थे घर बार छोड़कर साधु हो गए थे कहा जाता है कि अपनी साधना से इन्होंने सिद्धि प्राप्त कर ली थी छत्रसाल को योग्य देखकर उन्होंने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और सदा उन्हें धर्म तथा देश रक्षा कार्य में उपदेश देते रहे बाबा प्राणनाथ में छत्रसाल से कहा था
छत्ता तेरे राज में धक-धक धरती होए
जिद जिद घोड़ा मुख करे तितित खाते हुए
कहा जाता है कि जिस और छत्रसाल का घोड़ा मुंह करता था उस और वह विजय के लिए जाते थे और निश्चित रूप से विजई होते थे आपको जब कभी लड़ाई में से अवकाश मिलता वह प्राण नाथ के दर्शन के लिए जाते थे परामर्श के लिए उनके विश्वस्त आदमी तो सदा आते जाते रहते थे छत्रसाल ऋषि मुनि या साधु नहीं थे किंतु उनका सारा कार्य धार्मिक दृष्टि से होता था युद्ध में हो या घर पर कभी उन्होंने अपनी नित्य की पूजा अर्चना नहीं छोड़ी उनकी पूजा केवल दिखाने के लिए नहीं होती थी
बुंदेलखंड को शक्तिशाली राज्य बना कर भी छत्रसाल को शांति ना मिले दूसरी शक्तियां सदा ईर्ष्या की दृष्टि से इनका राज्य देखते रहे इसलिए राज्य की रक्षा के लिए इन्हें जीवन भर लड़ना पड़ा उनकी मृत्यु सन 1731 में 80 वर्ष की आयु में इन्होंने
हमारे देश के महापुरुषों की माला में यह अंतिम तिथि इनके जैसा वीर फिर कोई नहीं हुआ जिसने अपने बाहुबल से इतना यस कमाया हुए एक गांव की 5 ना रहते हुए उन्होंने राज्य स्थापित किया छल से नहीं लड़ाई लड़कर और वेरियो को पराजित करके 300 सिपाहियों की सेना लेकर हीरो ने युद्ध प्रारंभ किया और अंत में इनके राज्य की सेना कई हजार थी जिसमें तो पर और घुड़सवार भी थे यह भारत माता की वीर संतान थे जिनको हम गर्व के साथ स्मरण करते हैं
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