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इजरायल ईरान war और भारत ।

इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4  मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं।                    इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे  कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है।  [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव:   सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...

Tulsidas कौन थे ?(गोस्वामी तुलसीदास)

गीता में कृष्ण ने कहा है कि जब जब संसार में धर्म का लोप हो जाता है और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं धर्म की स्थापना के लिए संसार में किसी न किसी रूप में प्रकट होता हूं। आज से तीन चार सौ साल पहले भारत की अवस्था बहुत गिर गई थी ।देश की स्वतंत्रता छीन गई थी , हिंदू धर्म शक्तिहीन हो गया था और सबसे बड़ी बात यह थी  कि लोगों मे उत्साह  नहीं रह गया था। लोगों का मन मर चुका था ।ऐसे ही समय तुलसीदास आए और उन्होंने हिंदू जाति के मरते हुए शरीर में प्राण फूंक दिया।


             इनके जन्म की कथा विचित्र है। यह बांदा जिले में यमुना के किनारे राजापुर में पैदा हुए। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी कहा जाता है ।यह भी कहा जाता है कि जब उन्होंने जन्म लिया दांत जमे हुए और रोने की बजाय इनके मुख से राम नाम निकला था। जिस नक्षत्र में इनका जन्म हुआ वह भी माता-पिता के लिए अनिष्ट कारक समझा जाता है ।स्त्रियां इस शिशु को अभागा समझने लगी और 3 दिनों के पश्चात इनकी माता की मृत्यु हो गई ।मरने के समय उन्होंने अपनी दासी से कहा इसे लेकर तू चली जा नहीं तो घरवाले पता नहीं इसके साथ क्या व्यवहार करें?

                दासी इन्हें लेकर अपने घर चली गई किंतु चार-पांच साल में वह भी मर गई और तुलसीदास राह के भिखारी हो गए ।भिक्षा मांगना और द्वार द्वार घूमना ही इनकी जीवन चर्या हो गई ।एक साधु ने इन्हें देखा और वह अपने साथ सूकरखेत ले गए ।यह स्थान एटा जिले में है जो अब तक पवित्र स्थान माना जाता है ।उन्होंने यज्ञोपवीत कराया और शिक्षा दी वहीं इन्होंने राम की कथा सुनी।

               इनका स्वंयम  कहना है कि गुरु ने अनेक बार मुझे राम की कथा सुनाई। गुरु जी ने इनका नाम रामबोला रखा। वही इन्होंने 15 वर्ष तक अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया। धर्म तथा साहित्य की पुस्तकें पढ़ी और वहां से राजापुर चले आए।

              इसी समय एक ब्राह्मण ने अपनी कन्या से इनका विवाह कर दिया ।अपनी पत्नी के रूप तथा गुण पर वह मुग्ध हो गए। यहां तक कि उसे कभी अपने घर नहीं जाने देते थे ।एक दिन यह कहीं बाहर गए थे ।उनकी पत्नी अपने भाई के साथ में मैके चली गई ।तुलसीदास ने घर लौटने पर जब पत्नी को नहीं देखा तब वह व्यथित हुए और पत्नी के घर की ओर चल पड़े। जब यह ससुराल पहुंचे इनकी पत्नी ने धिक्कारा। उसने कहा तुम्हे  लाज नहीं लगती हाड़ मांस के शरीर से इतना लगाव रखते हो। इतना प्रेम यदि ईश्वर से करते  तो अब तक न जाने क्या हो जाता। यही तीखी बात तुलसीदास को लग गई ।उल्टे पांव वहां से चल पड़े घर द्वार छोड़कर निकल पड़े। देश के अनेक भागों में घूमे और मनुष्य तथा समाज का ज्ञान प्राप्त किया।


             यह बड़े विद्वान पंडित और राम के गहरे भक्त थे ।इनकी ख्याति एक पुस्तक के कारण है जिसका नाम रामचरितमानस है। जिसे साधारण लोग रामायण भी कहते हैं। ऐसी दूसरी पुस्तक हमारे देश में तो लिखी नहीं गई ।संसार में भी इस कोटि की पुस्तकें गिनी चुनी है। इसी पुस्तक का प्रभाव हिंदू समाज पर बहुत है।

                     यह पुस्तक संवत् 1631 में अयोध्या में आरंभ की गई और 2 वर्ष 7 माह में समाप्त हुई ।तुलसीदास अयोध्या  से काशी चले आए और ग्रंथ का अंतिम अंश यही लिखा गया।


            रामचरितमानस का प्रभाव भारतीय जनता पर कितना है कहा नहीं जा सकता ।आरंभ से अंत तक राम का चरित्र इसमें दिया गया है और जीवन के सब पहलू दिखाए गए हैं ।भाई व्यवहार भाई के साथ कैसा होना चाहिए। पत्नी को पति के साथ पति को पत्नी के साथ किस प्रकार का बर्ताव करना चाहिए। गुरु तथा शिष्य का संबंध कैसा होना चाहिए ।इन सब का आदर्श इस पुस्तक में मिलेगा ।मनुष्य के जीवन के संबंध की और भी अनेक शिक्षाएं इस ग्रंथ पर भारी पडी हैं।

                नीति का  ही नहीं बहुत से हिंदू इसे धर्म का ग्रंथ मानते हैं और बड़ी श्रद्धा भक्ति से इसे देखते हैं ।साहित्य की दृष्टि से यह बहुमूल्य रत्नों का भंडार है ।यह हिंदी का सबसे उत्तम महाकाव्य है ।300 साल से अधिक हुए इस स्तर का कोई ग्रंथ नहीं लिखा गया ।संसार के यदि तीन महान ग्रंथ चुने जाएं तो उनमें एक रामचरितमानस अवश्य होगा ।विद्वान से विद्वान को तथा साधारण से साधारण मनुष्य को इसमें रस मिलता है। उत्तरी भारत का कोई अनपढ़ भी ऐसा ना होगा जिसे एकाद पंक्तियां इस ग्रंथ की स्मरण ना हो। इस पुस्तक इतनी खपत है कि बहुत से प्रकाशकों ने इससे बहुत लाभ उठाया ।इसका अनुवाद अंग्रेजी तथा रूसी भाषाओं में भी हो गया है ।जिस भाषा में यह पुस्तक लिखी गई है उसे अवधि कहते हैं।


                तुलसीदास ने और भी बहुत से ग्रंथ लिखे हैं। उनमें सबसे अधिक पांडित्य से भरा ग्रंथ विनय पत्रिका है। इसे पढ़ने से जान पड़ता है कि तुलसीदास भाषा के ऊंचे पंडित विनय पत्रिका काशी में लिखी गई थी। वह स्थान अभी तक है जहां बैठकर इनकी रचना की थी ।कवित्त, सवैया, गीत तथा दोहों में भी तुलसीदास ने राम की कथा लिखी है।


                तुलसीदास जिस समय हुये अकबर का शासन काल था। देश में कुछ शांति थी ।अकबर के अनेक दरबारियों से तुलसीदास का परिचय था। विशेषता रहीम खानखाना से जो स्वयं अच्छे कवि थे ।इन्होंने तुलसीदास की प्रशंसा में यह दोहा कहा था -

       
सुर तिय, नर तिय, नाग तिय ,यह चाहत सब कोय ।

        गोद लिये हुलसी फिरै ,तुलसी सो सुत होय ।।



        इनके घनिष्ठ मित्र टोडर भी थे ।वे अकबर के दरबारी राजा टोडरमल नहीं थे ।काशी के भूमिहार जमींदार टोडर थे ।दोनों में गाढी मित्रता थी और आज भी इस परिवार के लोग तुलसीदास के श्राध्द  दिवस पर सीधा देते हैं।


           तुलसीदास के संबंध में बहुत सी बातें प्रचलित हैं कि इन्हें अलौकिक शक्ति प्राप्त थी। इन्होंने मुर्दे को जिला दिया तथा इस प्रकार के अनेक कार्य किए ।यह बातें कहां तक सच है कोई नहीं कह सकता ।महान पुरुषों के संबंध में बहुत सी ऐसी बातें प्रचलित हो जाती है। बहुत सी बातें सच भी हो जाती है किंतु सभी बातें यह बताती है कि तुलसीदास बड़े महात्मा विद्वान और आचारवान साहित्यकार थे।


             पहले हमने बताया है कि तुलसीदास ने रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा। उस समय कुछ पंडितों ने इसका विरोध किया कि हिंदी में यह ग्रंथ नहीं लिखना चाहिए था ।उन्होंने उनसे संस्कृत में लिखने के लिए कहा। तुलसीदास ने कहा हिंदी हो या संस्कृत भगवान से प्रेम सच्चा होना  चाहिए। भाषा से भक्ति को कोई मतलब नहीं है। तुलसीदास ने यह भी देखा कि संस्कृत में बाल्मीकि रामचरित्र लिख चुके हैं ।दूसरे संस्कृत उस समय जनता की भाषा नहीं रह गई थी और इन्हें अपनी बात घर घर पहुंचाने थी ।इसलिए इन्होंने हिंदी की चुनी और उसी का फल यह हुआ कि देश के घर घर में इनका प्रचार है।


              अंतिम समय में यह काशी में गंगा के किनारे अस्सी घाट पर रहते थे। उनकी खडाऊँ अभी तक वहां एक मंदिर में रखी है। कुछ लोगों के मत से यह 100 साल से अधिक जीवित रहे ।कुछ लोगों के अनुसार 90 साल तक ।महात्माओं के लिए 100 साल तक जीवित रहना कोई अचंभे की बात नहीं है। इनकी मृत्यु की तिथि निश्चित है संवत 1680 का एक दोहा है -

संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर ।।
 भारत वासियों को तथा हिंदी वालों को तुलसीदास पर बड़ा गर्व था ।यह हमारे देश की विशेषता है कि यहां की मिट्टी से ऐसे व्यक्ति का निर्माण हुआ जो अद्वितीय था। सब साहित्यकार जिसे अपना आदर्श मानते हो उसी की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं। हिंदी माता के गले के हार में यह सब उज्जवल और अनोखे रत्न हैं।




    

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