Skip to main content

Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

Mirabai (मीराबाई) कौन थीं?

हम उन सम्राटों को भूल सकते हैं जिन्होंने जीवन भर तलवार म्यान में नहीं रखी और पृथ्वी का कोना कोना जीतते चले गए किंतु हमारा इतिहास उन महान व्यक्तियों को नहीं भूल सकता ।जिन्होंने बड़े-बड़े प्रलोभनों को ठुकरा दिया। मनुष्य की सेवा में अपना अथवा भगवान की भक्ति में। दूसरी श्रेणी में मीराबाई थी। इनके जन्म की ठीक-ठीक तिथि का पता नहीं है ।ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म संवत 1555 और संवत 1561 के बीच हुआ था।


                राजस्थान में एक राज्य था जोधपुर। इसके संस्थापक राठौर राजा जोधा जी थे। इनके पुत्र राव दूदा जी को मेवाड़ की जागीर मिली थी। दूदाजी  के पुत्र रतन जी थे ।रतन जी की पुत्री मीराबाई थी। इनकी माता उसी समय मर गई थी जब वह बच्ची थी ।इसलिए उनका बाल काल अपने दादा के साथ ही बीता। दादा वैष्णो भक्त थे और भगवान की उपासना में ही इनका अधिक समय बीता था। इसमें संदेह नहीं है कि अपने दादा का प्रभाव मीरा पर पड़ा।

              मीरा को बाल काल से ही गिरधर लाल जी के प्रति भक्ति हो गई। इसकी एक कहानी भी प्रचलित है ।एक साधु मीरा के पिता के घर आकर ठहरा। उसके पास गिरधर लाल जी की एक मूर्ति थी ।जिस पर मीरा आकृष्ट हो गई ।उन्होंने साधु से मूर्ति माँगी किन्तु उसने न दी। मीरा मूर्ति के लिए बहुत व्याकुल हुई खाना पीना छोड़ दिया ।रात को साधु को स्वप्न हुआ कि यदि अपना भला चाहते हो तो वह मूर्ति बालिका को दे दो। विवश हो साधु ने वह मूर्ति मीरा को दे दी। मीरा  मूर्ति पाकर अपार प्रसन्नता हुई और मीरा उसी की आराधना में रहने लगी ।एक बार पड़ोस में एक कन्या का विवाह पड़ा। विवाह में मीरा तथा उसकी माता भी गई थी। बाल स्वभाव में मीरा ने पूछा मेरा पति कौन है ?माता ने हंसकर कहा तेरा पति गिरधर लाल जी है ना ।उस समय से मीरा ने सच में गिरधर लाल को अपना पति मान लिया।


         संवत् 1573 के लगभग उनका विवाह मेवाड़ के प्रसिद्ध वीर राणा सांगा के बड़े राजकुमार कुंवर भोजराज से हुआ ।यह संयोग सुंदर था और दोनों बहुत प्रेम से जीवन बिताने लगे। यह सदा पति की सेवा में रहती। भोजराज भी इनकी ओर आकृष्ट रहे थे किंतु भगवान की कुछ ऐसी लीला हुई कि भोजराज की मृत्यु 10 साल के बाद हो गई। मीरा के जीवन में बड़ा परिवर्तन हो गया। गिरधर लाल की मूर्ति वह अपने साथ लाई थी उन्हीं की पूजा और आराधना में अपने को उन्होंने लगा दिया। इनकी भक्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैली और साधु संत  दर्शन के लिए आने लगे। मंदिर में कीर्तन होता था। यह भजन गाती और कभी-कभी भक्ति में विह्लल हो संतो की मंडली के बीच मूर्ति के सम्मुख नाचने लगती।


             इतने बड़े राणा की पुत्रवधू इस प्रकार सब के सम्मुख नाचे। परिवार को यह अच्छा ना लगा ।इन्हें अनेक बार मना किया गया कि उन्होंने किसी की परवाह ना कि जब तक राणा सांगा जीवित है इन्होंने इनकी भक्ति पर ध्यान रखा। जब मीरा के देवर सिंहासन पर बैठे उन्होंने मीरा रहन सहन उचित नहीं समझा और उनकी ओर से इनको  कष्ट दिए जाने लगे। यहां तक कि उन्होंने चरणामृत के बहाने कटोरी में विष भेज दिया। मीरा चरणामृत समझकर पी गई ।भगवान की कृपा से मीरा के ऊपर विश का कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ।


            कष्टों से जब इनका जीवन भारी हो गया तब उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास को एक पत्र लिखा। वह इस प्रकार बताया जाता है -


श्री तुलसी सुख निधान, दुख हरन गुसाईं

बारहिं  बार प्रनाम करूं ,हरो सोक  समुदाई

घर के स्वजन हमारे जेते ,सबन्ह उपाधि बढ़ाई


साधु संग अरु भजन करत ,मोहि देत कलेस महाई

बालपने ते मीरा कीन्हीं, गिरधरलाल मिताई

सो तो अब छूटै नहिं क्यों हूँ, लगी लगन बरियाई

 मेरे मात पिता के सम ,हौ हरिय  ज्ञान सुखदाई

हमको कहा उचित है करिबों, यह लिखियो समुझायी ।।


इस पत्र में मीरा ने पूछा है कि घर के लोग हमें सता रहे हैं। हम क्या करें परामर्श दीजिए ।तुलसीदास ने भी पद में इसका उत्तर दिया है कि जिसे भगवान प्रिय नहीं उसकी संगति छोड़ देनी चाहिए वह पद इस प्रकार है -

जाके प्रिय न राम वैदेही

ताजिए ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम स्नेही

तज्यो पिता प्रहलाद विभीषण बंधु भरत महतारी

गुरु बल तज्यो कन्त बृज बनितनि भे सब मंगलकारी 

तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।

जासों होय सनेह राम पद एतो मतो हमारो।



        इसके पश्चात मीरा मेवाड़ छोड़कर अपने मायके चली आई। वहां कुछ समय तक रही। फिर तीर्थ यात्रा करने के लिए वहां से चल पड़ी। वृन्दावन पहुची और वहां से द्वारिका चली गई।


            मीरा के मेवाड़ छोड़ते ही मेवाड़ पर अनेक आपत्तियां  आने लगी आक्रमण होने लगे। मीरा को बुलाने कुछ लोग द्वारिका भेजे गए किंतु लौटकर फिर नहीं गई है। द्वारिका में ही इनका देहावसान  माना जाता है। इनकी मृत्यु के संबंध में ठीक-ठीक पता नहीं लगता यह भी कहा जाता है कि अकबर तानसेन के साथ मीरा के दर्शन के लिए गया था.

                ऊपर की अनेक कथाओं में कहां तक सच्चाई है कहा नहीं जा सकता किंतु इतना निश्चित है कि वही गिरधरलाल की भक्त और उनकी पूजा में उपासना में सदा लीन रहती थी और पद बना बना कर गाया करती  थी।


           मीरा की कविता में मिठास और टीस है। उन्होंने अपनी रचना में बड़े-बड़े शब्द नहीं ठूँसे है जो किसी की समझ में ना आए। थोड़ी सरल भाषा में अपने हृदय का प्रेम भगवान के प्रति लिखा है। जो शब्द मुंह से निकल गए ब्रजभाषा राजस्थानी गुजराती वही लिख दिया है। इसी से सच्चे भाव उनकी कविता में पाए जाते हैं और जिस समय में अपने पद गाती थी सुध बुध खो देती थी इनकी कविता बनावटी नहीं है अच्छे-अच्छे गाने वाले इनकी रचना गाते हैं उनका हृदय पर तुरंत प्रभाव पड़ता है।

                इनके पहले कि किसी महिला कभी की अच्छी कविता नहीं मिलती इन के बाद कई महिलाओं ने कविता की किंतु इनकी सी मिठास और स च्चाई उसमें नहीं मिलती ।भक्ति के सामने राजपाट को उन्होंने तुच्छ समझा अपने परिवार की फटकार की परवाह ना कि इनके जीवन काल में ही उनका नाम दूर-दूर तक पहुंच गया था। उन्होंने किसी से झगड़ा नहीं किया कटु वचन नहीं कहा ।जब तक पति जीवित थे ।उनकी सेवा आदर्श नारी के भांति ही करती रही ।भारतीय नारी समाज के अलंकार थी उनकी देन हिंदी साहित्य को थोड़ी है किंतु जो कुछ है वह अमूल्य है।

Comments

Popular posts from this blog

पर्यावरण का क्या अर्थ है ?इसकी विशेषताएं बताइए।

पर्यावरण की कल्पना भारतीय संस्कृति में सदैव प्रकृति से की गई है। पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। भारत में पर्यावरण परिवेश या उन स्थितियों का द्योतन करता है जिसमें व्यक्ति या वस्तु अस्तित्व में रहते हैं और अपने स्वरूप का विकास करते हैं। पर्यावरण में भौतिक पर्यावरण और जौव पर्यावरण शामिल है। भौतिक पर्यावरण में स्थल, जल और वायु जैसे तत्व शामिल हैं जबकि जैव पर्यावरण में पेड़ पौधों और छोटे बड़े सभी जीव जंतु सम्मिलित हैं। भौतिक और जैव पर्यावरण एक दूसरों को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण में कोई परिवर्तन जैव पर्यावरण में भी परिवर्तन कर देता है।           पर्यावरण में सभी भौतिक तत्व एवं जीव सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसकी जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। वातावरण केवल वायुमंडल से संबंधित तत्वों का समूह होने के कारण पर्यावरण का ही अंग है। पर्यावरण में अनेक जैविक व अजैविक कारक पाए जाते हैं। जिनका परस्पर गहरा संबंध होता है। प्रत्येक  जीव को जीवन के लिए...

सौरमंडल क्या होता है ?पृथ्वी का सौरमंडल से क्या सम्बन्ध है ? Saur Mandal mein kitne Grah Hote Hain aur Hamari Prithvi ka kya sthan?

  खगोलीय पिंड     सूर्य चंद्रमा और रात के समय आकाश में जगमगाते लाखों पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं इन्हें आकाशीय पिंड भी कहा जाता है हमारी पृथ्वी भी एक खगोलीय पिंड है. सभी खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा गया है जो कि निम्नलिखित हैं - ( 1) तारे:              जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और प्रकाश होता है वे तारे कहलाते हैं .पिन्ड गैसों से बने होते हैं और आकार में बहुत बड़े और गर्म होते हैं इनमें बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा और प्रकाश का विकिरण भी होता है अत्यंत दूर होने के कारण ही यह पिंड हमें बहुत छोटे दिखाई पड़ते आता है यह हमें बड़ा चमकीला दिखाई देता है। ( 2) ग्रह:             जिन खगोलीय पिंडों में अपनी उष्मा और अपना प्रकाश नहीं होता है वह ग्रह कहलाते हैं ग्रह केवल सूरज जैसे तारों से प्रकाश को परावर्तित करते हैं ग्रह के लिए अंग्रेजी में प्लेनेट शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ होता है घूमने वाला हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है जो सूर्य से उष्मा और प्रकाश लेती है ग्रहों की कुल संख्या नाम है।...

भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है किंतु उसका सार एकात्मक है . इस कथन पर टिप्पणी कीजिए? (the Indian constitutional is Federal in form but unitary is substance comments

संविधान को प्राया दो भागों में विभक्त किया गया है. परिसंघात्मक तथा एकात्मक. एकात्मक संविधान व संविधान है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियां एक ही सरकार में निहित होती है जो कि प्राया केंद्रीय सरकार होती है जोकि प्रांतों को केंद्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है. इसके विपरीत परिसंघात्मक संविधान वह संविधान है जिसमें शक्तियों का केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजन रहता और सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है यह संविधान विशेषज्ञों के बीच विवाद का विषय रहा है. कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान एकात्मक है केवल उसमें कुछ परिसंघीय लक्षण विद्यमान है। प्रोफेसर हियर के अनुसार भारत प्रबल केंद्रीय करण प्रवृत्ति युक्त परिषदीय है कोई संविधान परिसंघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना जरूरी है कि उस के आवश्यक तत्व क्या है? जिस संविधान में उक्त तत्व मौजूद होते हैं उसे परिसंघात्मक संविधान कहते हैं. परिसंघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व ( essential characteristic of Federal constitution): - संघात्मक संविधान के आवश्यक तत्व इस प्रकार हैं...