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इजरायल ईरान war और भारत ।

इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4  मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं।                    इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे  कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है।  [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव:   सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...

Harshavardhana (c. 590–647 CE)ruled North India from 606 to 647 CE हर्षवर्धन कौन था? (590-647 ई.)

हमारे देश में  ऐसे सम्राट   हो गए हैं जो राज्य तो करते थे किंतु राज्य का लालच उन्हें नहीं था। लोगों की सेवा के लिए शासन अपने हाथों में ले रखा था किंतु राज्य के मोह में फंसे नहीं। बिहार में राजा जनक थे आज से सदियों पहले राज्य करते हुए भी वही योगी थे। इसी प्रकार इधर भी कोई 1400 वर्ष पहले एक राजा हुआ उनका नाम हर्षवर्धन था। जिन्हें साधारण बोलचाल में हर्ष कहते हैं।

           हर्ष का जन्म संवत 590 में हुआ था ।इनके पिता प्रभाकर वर्धन थानेश्वर में राज्य करते थे। थानेश्वर दिल्ली के निकट था राज्य छोटा था फिर भी प्रभाकर वर्धन शक्तिशाली राजा थे। सम्वत् 661 में प्रभाकर वर्धन का देहांत हो गया ।उनके बड़े पुत्र सिंहासन पर बैठे किंतु 2 वर्ष उन्होंने राज्य किया मर गए। हर्ष उस समय केवल 16 वर्ष के थे। राज्य का उत्तर दायित्व संभालने योग्य अपने को नहीं समझते थे किंतु मंत्रियों के आग्रह से उन्होंने राज्य भार लेना स्वीकार किया। सम्वत् 663 में उनका राज्याभिषेक हुआ। राज्य ग्रहण करने के बाद 6 साल तक हर्ष को लड़ते ही बीता। सब विरोधी राजाओं को इन्होंने परास्त किया और धीरे-धीरे अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक पश्चिम से पूर्व और हिमालय से विंध्य तक तथा उत्तर से दक्षिण इन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। दक्षिण में भी इन्होंने अपना राज्य फैलाया होता किंतु उस समय दक्षिण में चालुक्य  नरेश पुलकेशिन द्वितीय प्रतापी राजा था। हर्ष सेना लेकर गए भी किंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार युद्ध ही नहीं हुआ दोनों में संधि हो गई और हर्ष लौट आए इसके बाद शांति से  वह राज्य करने लगे।

             उसी युग में दूसरे देशों से भारत में बहुधा यात्री आया करते और लौटने पर पुस्तकों में भारत के विषय में जो कुछ अपनी आंखों से देखते उसका वर्णन करते थे ।हर्ष के समय में चीन से यात्री आए थे इनका नाम है हुएनसांग था। यह बौद्ध थे बड़े विद्वान थे। अपने धर्म के स्थापित करने वाले का देश देखना चाहते थे और उनके जन्म मरण के नगरों तथा उन नगरों का दर्शन करना चाहते थे जिनसे बौद्ध धर्म का संबंध था। उन्होंने बड़ी कठिनाई तथा कष्टों का सामना यात्रा में किया और तब भारत आए। हर्ष ने जब सुना कि चीन से बौद्ध धर्म के विद्वान भिक्षु आए हैं तुरंत अपने यहां रहने के लिए आमंत्रित किया किंतु वे असम के राज्यपाल के यहां ठहरे इसलिए नहीं आए। बहुत कहने पर वे हर्ष के यहां आये। हर्ष ने उनका बहुत सम्मान किया। हुएनसांग कई वर्ष तक हर्ष के साथ रहे। उन्होंने हर्ष के राज्य का पूरा विवरण लिखा है।


          हर्ष पहले हिंदू धर्म मानते थे ।बाद में बौद्ध हो गए ।हिंदू धर्म का उन्होंने विरोध नहीं किया। हिंदुओं की पूजा में वे सम्मिलित होते थे और धर्म के प्रति बहुत उदार थे ।किंतु धार्मिक भावना उनमें बहुत अधिक थी। वह बड़े उत्साह के साथ धार्मिक कार्यों में सहयोग करते थे। बौद्ध तथा हिंदू धर्म के पंडित एकत्रित होते थे। उनमें धार्मिक विषयों पर वाद विवाद होते थे और सब को भी पुरस्कार देते थे। प्रत्येक 5वर्ष बाद प्रयाग जाते थे। वहां बड़े-बड़े पंडित धार्मिक आचार्य एकत्रित होते थे। कई दिनों तक इस प्रकार का धार्मिक मेला लगा रहता था। राज्य के कोष से सब को दान दिया जाता था। करोड़ों रुपए वस्त्र रत्न सब दान दे दिए जाते थे और जितना धन वहां दिया जाता था जब तक समाप्त नहीं हो जाता जब तक हर्ष लौटते नहीं थे। शासनकाल में अनेक बार इस प्रकार के अधिवेशन हर्ष ने किए।


                हर्ष बौद्ध थे और धार्मिक कार्य लगन के साथ करते थे और सच्चे हृदय से करते थे ।किंतु यदि आवश्यकता पड़ी तो युद्ध से भी नहीं हिचके। जहां उन्होंने आवश्यकता समझी लड़ाई की और देश में शांति स्थापित कि। उनके पास विशाल सेना थी ।5000 हाथी 20000 घोड़े तथा 50,000 पैदल की सेना में थे ।उस समय के लिए यह बड़ी सेना समझी जाती थी। इतनी बड़ी सेना के सामने किसी का ठहरना कठिन ही था।


              वे राजनीति में चतुर और शासन में कठोर थे। उन्होंने अपनी राजधानी थानेश्वर से हटाकर कन्नौज बनाई। इसलिए कि कन्नौज केंद्र में पडता था। प्राचीन युग में लोग राजधानी बहुधा वही बनाते थे जो राज्य का केंद्र हो। कन्नौज नगर उनके समय में बहुत बड़ा और धनधान्य से पूर्ण बन गया। बड़े-बड़े बिहार उचे उचे महल. वहां खड़े हो गए कितने ही मंदिर बन गए।


             हुएनसांग का कहना है कि हर्ष का शासन आदर्श था। राजा स्वयं राज्य के एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते थे। इनके अधीन जो राजा थे तथा इनके कर्मचारी सब काम सावधानी से करते थे ।सारा कामकाज लिखा  पढी द्वारा होता था। राज्य भर में विद्या का अच्छा प्रचार था। इनके राज्य का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय नालंदा में था। जहां दूर-दूर से देश विदेश के विद्यार्थी आकर पढ़ते थे। पढ़ाई का स्तर बहुत ऊंचा था । सहस्त्रों विद्यार्थी वहां पढ़ते थे। वहां का पुस्तकालय भी विशाल था। विश्व विद्यालय  के खंडहर अब भी मौजूद है।


               राजा के विरुद्ध अथवा अपराध करने वालों को कठोर दंड दिया जाता था। यदि कोई चोरी करता था तो उसका हाथ काट लिया जाता था। अब इस प्रकार का दंड निर्दयी समझा जाता है। उस समय इसका परिणाम यह हुआ था कि चोरी प्रायः बंद हो गई थी ।उसके राज्य में देश में बहुत संपत्ति थी। लोग आनंद से रहते थे और देश वैभवशाली हो गया था। हर्ष की एक बहन थी जिसका नाम राज्यश्री था। वह बहुत चतुर वीर और विदुषी थी । हर्ष का उसके प्रति बहुत स्नेह था। वह भी हर्ष को राजकाज में सहायता देती थी।


              हुएनसांग के वर्णन से पता चलता है कि अपराधी और विद्रोही देश में प्रायः नहीं थे। व्यभिचार के अपराध में नाक कान काट कर व्यभिचारियों को जंगल में छोड़ दिया जाता था। अपराधी के प्रति अपराध स्वीकार करने के लिए क्रूरता नहीं की जाती थी। जो अपना अपराध स्वीकार कर लेता था उसके प्रति दया और उदारता का भाव दिखाया जाता था। बेगार की प्रथा नहीं थी। राज्य की जमीन चार भागों में विभाजित की गई थी। एक भाग आय राज्य के कोष में जाती थी। दूसरे भाग की आय से कर्मचारियों का वेतन दिया जाता था। तीसरे की आय से विद्वानों को पुरस्कार दिया जाता था। और चौथे भाग कि आय है धार्मिक कामों में वह उपयोग होती थी राज्य कर हल्का था।


                  हर्ष का दरबार कवियों तथा पंडितों से भरा रहता था। इनमें सबसे प्रसिद्ध बाण कवि था। जिसने हर्ष चरित्र लिखा है। हर्ष का जीवन चरित्र तथा उसके राज्य और युद्धों का वर्णन है ।हर्ष स्वयं संस्कृत का कवि तथा पंडित था। उसने रत्नावली तथा प्रियदर्शिका की रचना की है। उसके समय में अजंता में भी कुछ गुफाएं बनी ।अनेक स्तूप बिहार तथा मठों का निर्माण भी उसने कराया।


             कुछ हिंदू ब्राह्मण हर्ष से इसलिए रूष्ट हो रहे थे कि उस ने बौद्ध धर्म क्यों ग्रहण किया। कुछ शंका करते थे कि बौद्धों के प्रति वह पक्षपात करता है। इसलिए उसके मंत्री ने जिसका नाम अर्जुन था हर्ष की हत्या कर डाली। यद्यपि इसमें कोई लाभ न हुआ क्योंकि अर्जुन भी मार डाला गया और हर्ष के बाद  कोई उतना योग्य शासक नहीं हुआ है। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतवर्ष में अव्यवस्था फैल गई और उससे देश की बड़ी हानि हुई।

                     हर्ष अंतिम हिंदू राजा हुआ। जिसने सारे उत्तर भारत पर एकछत्र राज्य किया। यदि उसे कुछ समय मिला होता तो संभव है उसने कोई सुदृढ़ व्यवस्था की  होती ।उसके बाद फिर कोई ऐसा राजा ना हुआ। वह चरित्र का बली शासन में योग्य विद्या में पंडित धर्म में महान था। भारत का वह गौरव था। उसका राज्य हमारे इतिहास का पन्ना है जिसमें सोने के अक्षर लिखे हैं।

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