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व्यास का नाम हमारे देश में अनेक बातों के स्मृति ताजा कर देता है। वे महाकवि थे धर्म के आचार्य थे समाज को मार्ग दिखाने वाले थे राजनीतिक नेता थे। संपादक थे विश्वकोश के रचयिता थे। हमारे देश के इतिहास की परंपरा में जो लोग हमारे धार्मिक ग्रंथों का संग्रह तथा संपादन करते थे उन्हें व्यास कहते हैं। जिस व्यास का जीवन चरित्र हम लिख रहे हैं वह 28वें व्यास थे। इनके पहले 27 व्यास हो गए हैं।उनका जन्म यमुना नदी के किनारे एक छोटे से व्दीप में हुआ था। इनके पिता पराशर ऋषि थे इनकी माता मछुए की कन्या थी।इनका रंग काला था ।इसलिए इनका नाम कृष्ण रखा गया और व्दीप में पैदा होने के कारण व्दैपायन कहते हैं इसलिए इन्हें कृष्ण व्दैपायन व्यास कहा जाता है।
महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे।
कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ...
जन्म स्थल: यमुना तट हस्तिनापुर
अन्य नाम: कृष्णद्वैपायन, बादरायणि, पाराशर्य
नाम: कृष्णद्वैपायन वेदव्यास
माता-पिता: सत्यवती और ऋषि पराशर
यह बहुत बड़े विद्वान और तपस्वी थे। इनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ महाभारत है ।यह इतने महत्व का ग्रंथ है कि हिंदू लोग इसे पांचवा वेद मानते हैं. हिंदू धर्म हिंदू समाज का यह विश्वकोश है इसमें कौरवों और पांडवों के युद्ध का वर्णन है किंतु पग पग पर इतनी कथाएं मिलाई गई है कि हमें धर्म नीति राजनीति आचार व्यवस्था की पूरी शिक्षा मिलती है.
आरंभ में व्यास ने 24000 श्लोकों में महाभारत . इसके पश्चात इनके शिष्य तथा उनकी मृत्यु के बाद और लोग उसमें कुछ ना कुछ जुड़ते गए यहां तक कि 100000 श्लोकों तक वह ग्रंथ पहुंच गया ।अब इस बात का पता लगाना कठिन हो गया है कि कौन सा श्लोक व्यास का है कौन दूसरों का बड़े-बड़े विद्वान इस बात का पता लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं इतना अवश्य है कि इधर 1500 वर्षों में कुछ नहीं जोड़ा गया। जो कुछ जोड़ा गया है इसके पहले.
व्यास ने इसका नाम जय रखा था। महाभारत इसका नाम पीछे पड़ा । व्यास ने यह ग्रंथ इसलिए लिखा था कि मनुष्य को जिन जिन बातों का अपने जीवन में सामना करना पड़े उसका विवरण इस पुस्तक में हो जिन जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़े उस समय उन पर विजय करने के लिए किन बातों की आवश्यकता होगी इस पुस्तक में बताया गया है. जब तक मनुष्य जीवित है सफलता के लिए उसे किन किन बातों की आवश्यकता है मरने के बाद पर लोग के लिए किन बातों की आवश्यकता है यह इस ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है व्यास ने इस बात का ध्यान भी रखा है कि पुस्तक केवल राजा महाराजाओं के बीच ही ना रह जाए साधारण से साधारण व्यक्ति भी इससे लाभ उठा सके यही इस ग्रंथ की विशेषता है.
उन्होंने समाज के धर्म का बहुत व्यावहारिक चित्र खींचा है उन्होंने महाभारत का युद्ध देखा था ऐसा माना जाता है वह देख रहे थे कि समाज का आदर्श गिरता चला जाता रहा है मनुष्य का पतन हो रहा है इसलिए उन्होंने इस ग्रंथ की रचना की उन्होंने कहा मैं बैठा कर कहता हूं किंतु मेरी बात कोई नहीं सुनता धर्म से ही सब वस्तुएं सब अभिलाषाओं को प्राप्त होती है इसलिए किसी एक धर्म का सहारा क्यों न लिया जाता है.
जिस प्रकार विश्वकोश (encyclopaedia) में सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है उसी प्रकार इस पुस्तक में भी धर्म और समाज की जानकारी हो जाती है गीता इसी का अंग है इस खजाने में से कालिदास ऐसे महाकवि तथा अन्य कितने ही लेखक कवि नाटककार सामग्री लेकर महान साहित्यकार हो गए.
व्यास के बारे में कहा जाता है कि वह बाल्यावस्था में ही तप करने हिमालय गए थे और वही बद्रीनाथ में इन्होंने बहुत दिनों तक तप किया हस्तिनापुर आए दृष्ट राष्ट्र और पांडु इन्हीं के पुत्र थे. व्यास ने बहुत चेष्टा की की महाभारत का युद्ध ना हो किंतु इनकी बात किसी ने नहीं सुनी तब इन्हें बहुत दुख हुआ.
व्यास ने कितनी पुस्तकों की रचना की कहना बहुत कठिन है हमारे प्राचीन समय के अनेक ग्रंथों के रचयिता यह माने जाते हैं भागवत के बनाने वाले भी यही माने जाते हैं. महाभारत का तो निश्चित रूप से कहा जाता है और ग्रंथों के संबंध में अभी तक ठीक-ठीक पता नहीं चला है कि यही व्यास थे कि दूसरे. किंतु महाभारत केवल एक ऐसा ग्रंथ है जो पचासों ग्रंथों के समान है संसार में कोई एक ग्रंथ इतना बड़ा नहीं है यह इस बात का प्रमाण है कि कृष्ण द्वैपायन व्यास असाधारण विद्वान तथा लेखक थे. इनकी बराबरी का आज तक कोई भी हुआ नहीं. आजकल इतने बड़े ग्रंथ जिसमें अनेक विषय रहते हैं एक आदमी नहीं लिखता 20 आदमी जो अपने अपने विषय के विद्वान होते हैं लिखते तथा संपादन करते हैं. व्यास ने अकेले ही पुस्तक बनाई और समाजशास्त्र का कोई विषय छूट गया हो ऐसा नहीं दिखाई देता.
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