Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
यह तो सभी जानते हैं कि राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न चारों भाई महाराज दशरथ के पुत्र थे. किंतु राम के महान चरित्र के सामने और लोगों की बातें साधारण लोग भूल जाते हैं. भरत का चरित्र बहुत ऊंचा और इतना महान है कि उन्हें भी हम अपने देश के विशेष महापुरुषों में ही गिनते हैं.
राजा दशरथ की तीन रानियां थी. कौशल्या कैकेई और सुमित्रा. भरत केकई के पुत्र थे कैकई बहुत सुंदर थी और राजा दशरथ उसे बहुत मानते थे और उसी के कहने पर रामचंद्र वन भेजे गए रामचंद्र के वन जाने के पश्चात दशरथ की मृत्यु हो गई उसी समय भरत बुलाए गए भरत उस समय अपने नाना के यहां थे.
भारत के चरित्र में अनेक विशेषताएं हैं चरित्र की विशेषताएं उसी समय दिखाई देती है जब काम पड़ता है रामचंद्र यदि वन्ना गए होते तो उनकी वीरता साहस तब कहां देखे जाते अयोध्या में उन्हें देखने का अवसर कब मिलता भारत की विशेषताएं उसी समय देखी जाती है जब वह घर पहुंचे और उन्होंने सब बात सुनी माता से बढ़कर संतान को और कोई प्रिय नहीं होता किंतु भरत जी को सारा समाचार सुनकर इतना कष्ट हुआ कि उन्होंने अपनी माता को कठोर वचन सुनाएं भरत उन लोगों में नहीं थे जो तनिक बाद से विचलित हो जाते थे किंतु जब उन्होंने सुना कि राम को वन भेजने में मेरी माता का हाथ है तब उनका कलेजा तिलमिला उठा उन्होंने यह सोचा कि लोग सोचेंगे कि सिंहासन के लालच में भारत भी इस में मिल ले रहे होंगे यद्यपि उनकी आशंका निर्मूल थी सभी लोग जानते थे कि भारत का ह्रदय इन बातों से परे है.
अपने पिता का जब सब धार्मिक कार्य भरत समाप्त कर चुके तब सब लोगों ने उनसे यही अनुरोध किया कि राजा दशरथ की मरते समय यही आज्ञा थी कि आप अयोध्या के राजा बने. इसलिए राजकाज संभाली और प्रजा इस प्रकार का पालन कीजिए कि वह सुखी हो. मुनियों ने विद्वानों ने रानियों ने उन्हें समझाया परंतु भरत नैतिक दृष्टि से इसे बहुत अनुचित समझते थे पुराने नियमों के अनुसार सिंहासन का अधिकार सबसे बड़े पुत्र का होता है राम सबसे बड़े थे उन्हें वन में भेजकर दूसरा उनका सिंहासन हड़प ले यह कैसे हो सकता था सभी लोगों ने यह भी समझाया कि यह तो पिता की आज्ञा है इसका पालन करना चाहिए राम है भी नहीं ऐसी अवस्था में सिंहासन पर बैठना अन्याय नहीं समझना चाहिए. किंतु भारत ने उन लोगों की बातें नहीं मानी उनका ह्रदय कह रहा था कि सिंहासन पर बैठना अन्याय होगा जो वस्तु मेरी नहीं है उसे मैं कदापि नहीं ले सकता.
बड़े अनुनय विनय के साथ उन्होंने लोगों से प्रार्थना की कि मुझे राम से भेंट करने की आज्ञा दी जाए और उन लोगों से आज्ञा प्राप्त कर वह रामचंद्र से भेंट करने वन में गए.
अनेक वनों में घूमते लोगों से पूछते नदियों को पार करते हुए उस पहाड़ पर पहुंचे जहां रामचंद्र थे . हमको जब यह समाचार मिला तब सब को छोड़कर वह सामने पहुंचे और भारत उनके चरणों में गिर गए भारत के साथ और सब लोग भी थे उनकी माताएं भी थी भारत ने जिस जिस प्रकार राम से विनती की सारा दोष अपने सिर पर मार कर जो ढंग से क्षमा याचना की वह हमारे देश के धर्म की परंपरा का ऐसा उदाहरण है जिसकी तुलना दूसरा उदाहरण संसार में नहीं मिलता मिक्सी भूमि के टुकड़े के लिए आज लोग एक दूसरे के बैरी हो जाते हैं दूसरों के देश जीतने के लिए उन पर आक्रमण करते हैं. सेना ही सेना सजाई जाती है युद्ध होते हैं यहां राज्य फुटबॉल का केंद्र बना है राम कहते हैं पिताजी की आज्ञा है कि तुम्हारा अधिकार है तुम उस पर शासन करो और उधर लुड़क आते हैं भारत राज्य को लात मारते हैं और कहते हैं आपका राज्य है नियम से विधान से आपको मिलना चाहिए मेरा कोई अधिकार नहीं आप चलें और राजकाज करें तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस में इसका बहुत मार्मिक वर्णन किया है.
भारत की अनुनय विनय के साथ लोगों ने भी रामचंद्र को बहुत समझाया किंतु वह टस से मस नहीं हुए. उन्होंने कहा कि मुझे तो जितने दिनों को बल मिला है उतने दिन रहना ही है उसमें किसी प्रकार कमी नहीं हो सकती कई दिनों तक विवाद होता रहा अंत में जब राम ने किसी प्रकार नहीं माना तब भारत ने यह आज्ञा मांगी कि आपके नाम पर राज्य करूंगा सिंहासन पर बैठेंगे आपकी खड़ा हूं. राज्य आपका ही रहेगा मैं आपका प्रतिनिधि ही रहूंगा.
भरत इसी रूप में अयोध्या लौट आए वहां उन्होंने सिंहासन पर राम की खड़ाऊ रखें और अपना रहन-सहन तपस्वी के समान रखा और 14 वर्षों तक राज का संभाला इतने दिनों तक उन्होंने बड़े विवेक से न्याय से और धर्म से राज्य किया.
पृथ्वी पर ऐसे कम प्राणी होंगे जिन्होंने धर्म का व्रत इतनी कठोरता से पालन किया हो. राम के चरित्र में चाहे ऐसे स्थान मिले जहां आपको कहना पड़ेगी राम का यह कार्य ने आयुक्त नहीं था किंतु भारत के किसी कार्य में कहीं एक भी त्रुटि नहीं मिल सकती भरत धर्म की दूरी समझे जाते हैं किसी देश में इतिहास में ऐसे कम लोग मिलते हैं जिनका चरित्र बल इतना ऊंचा जितना कि भारत का. जो बातें न्याय और धर्म के विरुद्ध थी उन्हें उन्होंने कभी नहीं माना चाहे किसी ने कहा हो बड़े मुनि पंडित तथा ज्ञानी भी भारत की बात सुनकर चुप हो जाते थे भारत की स्त्री का नाम मांडवी था वह भी उन्हीं के समान तपस्विनी थी.
Comments