Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
आज हम सत्याग्रह की कहानी घर-घर सुनते हैं। महात्मा गांधी ने इस अमोघ अस्त्र का प्रयोग किया और हमारे देश को स्वराज्य दिलाया किंतु सत्य के लिए हर्जाना सत्य के लिए सब कुछ त्यागना और बलिदान कर देना हमारे देश के महापुरुषों की परंपरा रही है । हमारे पूर्वजों की कहानी जब हम पढ़ते हैं तब ऐसे अनेक व्यक्तियों के नाम हमें मिलते हैं जिनका आधार सदा सत्य रहा है और इसी कारण उन्हें सफलता मिली.
बात बहुत पुरानी है। उस समय की जब हमारे यहां वेदों का पठन पाठन चारों ओर था । इतने बड़े-बड़े नगर न थे । प्रकृति की गोद में ही विशेषता लोग रहते थे । उस युग को लोग वैदिक युग कहते थे। उन दिनों एक महर्षि थे। जिनका नाम वाजश्रवा था। वह महान विद्वान तपस्वी और चरित्रवान थे। उन्होंने बहुत बड़ा यज्ञ किया ।कई दिनों बाद यज्ञ की समाप्ति हुई। यज्ञ की समाप्ति पर उन्होंने अपनी गायों को जिन्होंने उन्हेंने बड़े परिश्रम से पाला था और जो उनकी संपत्ति थी यज्ञ करने वालों को दक्षिणा में दे दिया। उनकी गाय जर्जर थी।देखने में वह केवल हड्डी का ढांचा जान पड़ती थी। महर्षि ने सोचा कि यही मेरी संपत्ति है । इनके अतिरिक्त मेरे पास कुछ है नहीं ।अतः यही मेरी सबसे मूल्यवान वस्तुएं हैं इन्हें दान देकर मैं मुक्त हो जाऊंगा। दान देकर वह संतुष्ट हुए और तब उन्होंने जल ग्रहण किया.
महर्षि ने दान दे तो दिया किंतु आश्रम वालों को यह ठीक नहीं जचा।लोगों के मन में आया कि इन पशुओं को वृद्धावस्था में दान देकर महर्षि ने अच्छा नहीं किया। इस अवस्था में इन्हें अपने पास ही रखना चाहिए था । जब गाय इस योग्य नहीं रह गई कि वह दूध दे सके और बुढ़ापे से जर्जर हो गई तब उन्हें दक्षिणा में नहीं देना चाहिए। परंतु यह कौन कहे तपस्वी के तपोबल से सब परिचित थे पता नहीं कि विरोध करने पर उन्हें क्रोध आ जाए और श्राप दे दे। तब क्या होगा। किंतु बालक नचिकेता के मन में गायों को दे देना बहुत अखर रहा था । नचिकेता अपने को रोक नहीं सका उसने अंत में पूछ ही लिया पिताजी आप मुझे किसे देंगे । महर्षि ने समझा बालक कुछ यूं ही कह रहा होगा । उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया । नचिकेता ने इस प्रश्न को दो-तीन बार दोहराया अंत में महर्षि ने कहा मैं समझ नहीं सका कि तुम्हारे इस प्रश्न का अभिप्राय क्या है ? क्यों पूछ रहे हो क्या बात है? नचिकेता ने कहा है मै इसलिए पूछ रहा हूं कि आपने इन निरपराध पशुओं को दान में दे दिया इनकी अवस्था ऐसी नहीं थी यह दूसरों को दे दी जाए.
महर्षि बोले तुम अभी इन बातों को समझ नहीं सकते । मैंने प्रतिज्ञा की थी कि इस यज्ञ में अपनी सारी संपत्ति दान कर दूंगा। अगर दान ना कर देता तो मेरा यज्ञ अधूरा रह जाता। प्रतिज्ञा के अनुसार मैंने अपनी सारी संपत्ति यज्ञ कराने वालों को दे दी। गायें भी तो मेरी संपत्ति थी नचिकेता ने कहा पिताजी आप ठीक कहते हैं वह आपकी संपत्ति है किंतु इस अवस्था में वे रक्षा के पात्र हैं। वह दान के योग्य नहीं थी। नचिकेता के पिता को कुछ क्रोध आ गया उन्होंने कहा मैंने जो उचित समझा वही किया। अपने कर्तव्य का पालन किया नचिकेता ने कहा मैं बहुत विनम्र भाव से कहना चाहता हूं कि मेरा मत यह है कि यज्ञ में देवताओं को आपने सबसे प्रिय वस्तु है वह जो सबसे सुंदर हो जो सबसे मूल्य में अधिक हो अर्पित करनी चाहिए। गायें सबल तथा समर्थ होती तब तो ठीक था। मै आप का प्रिय पुत्र हूं बतलाइये आप मुझे किसे देंगे.
पिता इन बातों को सुनकर चुप रहे किंतु नचिकेता ने बार-बार यही प्रश्न पूछना आरंभ किया इसका परिणाम यह हुआ कि महर्षि को क्रोध आ गया । वह जल लाकर बोले मैं तुझे यमराज को दूंगा । नचिकेता आज्ञाकारी पुत्र था । उसने पिता की आज्ञा शिरोधार्य कि उसने सोचा एक दिन तो यमराज के पास जाना ही है पिता की आज्ञा है क्यों ना अभी से चलो वह अपने घर से निकल पड़ा.
वह लोगों से पूछता कि यमराज के पास जाना चाहता हूं लोग हंसते और कहते आज तक कोई इस शरीर सहित यमराज के पास नहीं जा सका। किंतु नचिकेता को तो पिता की आज्ञा पालन करनी थी । कई दिन दिन तक वनों में भटकता फिरा ।अंत में एक स्थान पर थक कर गिर पड़ा और आंख लग गई ।जब आंख खुली तब उसने देखा कि यमराज सामने खड़े हैं.
यमराज ने कहा मैं तो जब लोगों को बुलाता हूं लोग बड़ी कठिनाई से मेरे पास यहां आते हैं। किसी को मेरे पास आने का साहस नहीं होता और तुम्हारे ऊपर ऐसी कौन सी विपक्ति आ पड़ी है जो मेरी शरण आना चाहते हो । तुम अभी अबोधबालक हो । मैंने तो तुम्हें बुलाया नहीं । इस समय क्यों मेरे पास आने की इच्छा है । नचिकेता ने कहा मैं तो पिता की आज्ञा से यहां आया हूं और मेरे लिए उन्हीं की आज्ञा संसार में सबसे ऊपर है। अब मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूं । यमराज बोले मेरे यहां तो वही आता है जिसकी आयु समाप्त हो जाती है.
नचिकेता ने उत्तर दिया मुझे तो यह सोचना नहीं है जब पिता जी ने आपके पास भेजा है तब उसका मर्म वही जानते होंगे । मुझे तो अब आपकी आज्ञा पालन करनी है.
यमराज बालक की पितृभक्ति से बहुत प्रसन्न हुए ।नचिकेता से बोले मैं तुम्हारी पितृ भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं।तीन दिनों से तुम मेरी खोज कर रहे हो इसलिए मैं तुम्हें तीन वरदान दूंगा। जो चाहो मांग लो। नचिकेता को आश्चर्य तथा आनंद हुआ । उसे आश्चर्य हुआ कि यमराज मुझे वरदान क्यों दे रहे हैं और आनंद इस बात पर कि मैं अपनी इच्छा अनुसार वरदान मांगूंगा। उसने कहा यदि आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न है तो कृपा करके ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाए और यहां से लौटने पर वह मुझे फिर पहचान ले और मुझ पर प्रसन्न रहें.
यमराज ने कहा ऐसा ही होगा । दूसरा वर मांगो। नचिकेता ने कहा आप वह विद्या जानते हैं जिसकी साधना करने से मनुष्य स्वर्ग लोक में पहुंच जाता है। यमराज ने बड़े परिश्रम से वह विद्या नचिकेता को सिखा दी विषय कठिन था। किंतु यमराज कह चुके थे और नचिकेता बुद्धिमान बालक था । इसलिए थोड़ी समय में उसने सब बातें ग्रहण कर ली ।इसके पश्चात यमराज ने तीसरा वरदान मांगने के लिए कहा ।नचिकेता ने कहा की मृत्यु क्यों होती है और मृत्यु के पश्चात मनुष्य का क्या होता है ? वह कहां जाता है ? यह प्रश्न सुनते हैं यमराज के मुख मुद्रा बदल गई ।उन्होंने कहा संसार की जो वस्तु चाहो मांग लो किंतु यह प्रश्न न पूछो । किंतु नचिकेता ने कहा महाराज आप ने वरदान दिया है ।मेरी कामना है कि आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें ।यमराज फेर में पड़ गए । जो बात किसी की समझ में नहीं आती जो इतनी दूरूह है कि बड़े-बड़े पंडितों और विद्वानों की समझ में नहीं आती । क्या बालक नचिकेता समझेगा । उन्होंने नचिकेता को अनेक प्रलोभन दिए ।संसार की बड़ी से बड़ी वस्तु व सुंदर से सुंदर वस्तु उन्होंने मांगने के लिए कहा किंतु नचिकेता ने सब अस्वीकार कर दिया वह तो जानना चाहता था कि मृत्यु क्यों होती है वह क्या है?
दोनों बहुत देर तक अपने-अपने आग्रह पर डटे रहे। यमराज कहते रहे दूसरा वर जो कुछ मांगो हम दे देंगे मृत्यु के संबंध में हमसे कुछ ना पूछो ।नचिकेता कहता ही रहा कि मैं तो यही जानना चाहता हूं और संसार का सब कुछ मेरे लिए बेकार है । नचिकेता की दृढ़ता और लगन देखकर यमराज को बहुत आश्चर्य हुआ और अंत में नचिकेता के सत्याग्रह के सामने उन्हें झुकना पड़ा.
उन्होंने नचिकेता को बताया कि मृत्यु क्या है? उसका असली रूप क्या है ? यह विषय कठिन है और यहां नहीं समझाया जा सकता है कि मृत्यु क्या है ?किंतु इतना कहा जा सकता है कि जिसने पाप नहीं किया जिसने दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाई जो सच्चाई की राह पर चला है उसे मृत्यु की पीड़ा नहीं होती और कोई कष्ट नहीं होता एक उपनिषद में यमराज और नचिकेता का संवाद ब्यौरा वार लिखा है।
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