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Indus Valley Civilization क्या है ? इसको विस्तार से विश्लेषण करो ।

🧾 सबसे पहले — ब्लॉग की ड्राफ्टिंग (Outline) आपका ब्लॉग “ सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) ” पर होगा, और इसे SEO और शैक्षणिक दोनों दृष्टि से इस तरह ड्राफ्ट किया गया है ।👇 🔹 ब्लॉग का संपूर्ण ढांचा परिचय (Introduction) सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और समयकाल विकास के चरण (Pre, Early, Mature, Late Harappan) मुख्य स्थल एवं खोजें (Important Sites and Excavations) नगर योजना और वास्तुकला (Town Planning & Architecture) आर्थिक जीवन, कृषि एवं व्यापार (Economy, Agriculture & Trade) कला, उद्योग एवं हस्तकला (Art, Craft & Industry) धर्म, सामाजिक जीवन और संस्कृति (Religion & Social Life) लिपि एवं भाषा (Script & Language) सभ्यता के पतन के कारण (Causes of Decline) सिंधु सभ्यता और अन्य सभ्यताओं की तुलना (Comparative Study) महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजें और केस स्टडी (Key Archaeological Cases) भारत में आधुनिक शहरी योजना पर प्रभाव (Legacy & Modern Relevance) निष्कर्ष (Conclusion) FAQ / सामान्य प्रश्न 🏛️ अब ...

Agastya (अगस्त्य)

लोगों ने अगस्त का नाम इस घटना के संबंध में सुना है कि वह समुद्र पी गए थे। इसका अर्थ यह ना समझना चाहिए कि जिस प्रकार लोग जल या दूध पी जाते हैं उसी प्रकार अगस्त ने समुद्र पी डाला था ।हम लोग अब भी बोलते हैं अमुक व्यक्ति पुस्तक पी गया ।महात्मा अगस्त के समुद्र को पी  जाने वाली बात जो कही जाती है ।वह इसलिए है कि उन्होंने समुद्र पर विजय प्राप्त की थी ।भारत से दूर दूर देशों में समुद्र पार करके गए और वहां अपनी सभ्यता तथा अपने धर्म का उन्होंने प्रचार किया। यह घटना आज कल की नहीं कई हजार वर्ष पहले की है ।उस युग में आजकल के समान अच्छे बड़े जहाज न थे। मनुष्स द्धारा खेने वाले जहाज थे ।ऐसे ही जहाज में वह गए थे ।इसलिए कहा जाता है कि वह समुद्र पी गए थे.

          यह महा तपस्वी महा तेजस्वी बली और बुद्धिमान थे वेदों और पुराणों में उनके संबंध में अनेक कथाएं हैं.

         यह कब हुए थे इसका पता लगाना कठिन है। वेदों मे  इनका नाम आया है राम के समय दक्षिण में इनका आश्रम बन चुका था क्योंकि बाल्मीकि ने लिखा है कि एक ऋषि ने राम को अगस्त का आश्रम बताया। उस समय अगस्त जीवित नहीं थे किंतु उनके आश्रम में उनकी परंपरा के शिष्य रहते थे.

           जहां तक खोज हुई है उससे पता चलता है कि यह काशी के रहने वाले थे ।इनका धर्म शैव था।  यही विश्वनाथ जी के मंदिर में पूजा पाठ करते थे ।इनका काम धर्म का प्रचार था ।यह सदा धार्मिक कार्यों में लगे रहते थे । शैव मत के प्रचार के लिए यह दक्षिण की ओर गए ।विंध्य पर्वत तथा उसके आसपास दक्षिण के गहन वन और भयंकर जंगल थे ऐसा जान पड़ता है कि इन से पहले उत्तर भारत के किसी अन्य व्यक्ति ने विंध्याचल पार नहीं किया था. इसी से कहा जाता है कि उन्होंने विंध्याचल का घमंड चूर चूर किया सारी कठिनाइयों को दूर करके महामुनि अगस्त विंध्याचल के उस पार पहुंचे उन्होंने अपने आश्रम तथा विद्या के बल से और लोगों को शिष्य बना कर दूर दूर तक जंगल कटवाए और वह प्रदेश मनुष्यों के रहने योग्य तथा आने जाने के लिए सुगम बनाया. वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि उस प्रांत को मनुष्यों के बसने योग्य बनाने में वहां के  जंगली लोगों ने अगस्त के कार्य में बड़ी बड़ी बाधाएं डाली परंतु अगस्त ने उन सबों पर विजय प्राप्त कर कितने ही आश्रम तथा नगरों की स्थापना कर दी कहा जाता है कि उन दिनों वहां उन सभी जातियों के दो बड़े सरदार थे हुए बहुत बड़ी और पराक्रमी थे वे सदा उत्पात किया करते थे उन्हें भी अगस्त ने पराजित किया आज भी खोज की जाने पर अगस्त के कार्यों के चिन्ह यहां मिल सकते हैं.

             अगस्त ने केवल अपने मत का प्रचार ही नहीं किया वहां के निवासियों को उन्होंने कला कौशल भी सिखाया कितने ही नरेशों को उन्होंने अपना धर्म सिखाया और वे उनके शिष्य बन गए ।पांड्य देश के राजाओं के यहां उनका बहुत अधिक सम्मान हुआ और वे लोग अगस्त को देवता के समान पूजने लगे पहले पहल अगस्त ही ने वहां आयुर्वेद शास्त्र का प्रचार किया और यह विद्या वहां के लोगों को सिखाई। भाषाओं का संस्कार भी उन्होंने किया द्रविड़ देश की वर्णमाला का संशोधन उन्हीं के द्वारा हुआ यह माना जाता है इसका व्याकरण भी उन्होंने बनाया मूर्तिकला के भी वह पंडित है इस विषय पर उन्होंने पुस्तक लिखी महर्षि अगस्त्य ने दक्षिण में केवल जंगल साफ करा कर वह स्थल रहने योग्य नहीं बनाया वहां के निवासियों को भाषाके  साथ धर्म कला भी सीखलाई और उन लोगों में इनका प्रचार किया.

             जब भारत के दक्षिण में उन्होंने धर्म संस्कृति भाषा कला का भली प्रकार से प्रचार कर लिया वहां यह बातें छोड़ ढंग से स्थापित हो गई तब उन्होंने भारत के बाहर जाने का आयोजन किया उन्होंने जहाज बनवाए और भारत के किनारे-किनारे चलकर व पूर्व के तटवर्ती देशों तथा दीपू में जा पहुंचे इन देशों में इन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार आरंभ किया कंबोडिया में एक स्थल पर एक शिलालेख लिखा है उसमें लिखा है -

ब्राह्मण अगस्त आर्य देश के निवासी थे वे सहमत के अनुयाई थे उनमें अलौकिक शक्ति थी उसी के प्रभाव से वे इस देश तक पहुंच सके यहां आकर उन्होंने भद्रेश्वर नामा की शिवलिंग की पूजा अर्चना बहुत काल तक कि यही वह परमधाम को पधारे.

          कंबोडिया में अगस्त मुनि ने बड़े-बड़े शिव मंदिरों का निर्माण कराकर उन्हें मूर्ति की स्थापना की वहां उन्होंने एकनाथजी भी स्थापित किया इस प्रकार उस समय के कंबोडिया के निवासियों में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार किया और वहां के लोगों में सभ्यता शिक्षा फैलाई कहा जाता है कि कंबोडिया के आगे भी पूर्ण नींव तक वह गए थे और वहां तथा उसके आसपास के देशों में भारतीय संस्कृति का प्रकाश फैलाया पुराणों में उनका नाम भी लिखा है आजकल उन दीपों का क्या नाम है पता नहीं लग सका है.

                 जावा कंबोडिया तथा बोर्नियो से जिस अगस्त का नाम आया वह एक ही थे अथवा कई ऋषि कहा नहीं जा सकता हो सकता है अगस्त के वंश वाले ही अपने को अगस्त कहते हैं किंतु यह सत्य है कि 1 अगस्त ने उत्तर भारत से प्रस्थान कर दशक में भारतीय संस्कृति का प्रचार किया और वह भारत के बाहर समुद्र पार कर दूसरे देशों में यहां का कला कौशल यहां की भाषा और यहां का धर्म ले गया पहले इनका नाम था जब उन्होंने बिंद पर्वत पार कर लिया तब इनका नाम अगस्त रखा गया.

        हमारी प्राचीन पुस्तकों में इनकी बढ़ाई बहुत सही है पुराने समय में हमारे देश में प्रकार के साहस व कर्मठ विद्वान होते थे जो इस देश में ही नहीं दूसरे देशों में जाकर अपना धर्म तथा अपनी संस्कृति फैलाते थे समय-समय पर यहां से बराबर लोग जाते थे और इनमें सबसे प्रथम महर्षि अगस्त्य इन्हें सदा स्मरण रखना के लिए हिंदुओं ने एक नक्षत्र का नाम अगस्त रख दिया है.

    

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