सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मे मुगलसराय (वाराणसी) के एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था. इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक तथा माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. यह परिवार में सबसे छोटे थे। जब यह 18 महीने के थे तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया. परिवार में सबसे छोटे होने के कारण लोग इन्हें नन्हें कहकर पुकारते थे. अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर बालक लाल बहादुर वाराणसी आ गए. इन्हें स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है से विशेष प्रेरणा मिली लाल बहादुर शास्त्री पढ़ाई छोड़ कर आंदोलन में कूद पड़े, लेकिन इन्होंने शिक्षा से नाता नहीं तोड़ा. काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जाति सूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया.
शास्त्री जी उद्योग मंत्री स्वराष्ट्र मंत्री सभी पदों पर रहे उन्होंने पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया.
पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्री जी सर्वसम्मति से भारत के प्रधानमंत्री बने. वे मीडिया से अक्सर दूर रहते थे जब यह लोक सेवा मंडल के सदस्य बने तो यह बहुत ज्यादा संकोची हो गए. यह नहीं चाहते थे कि इनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा करें एक दिन उनके मित्र ने पूछा आपको अखबारों में अपना नाम छपवाने से इतना परहेज क्यों है?
शास्त्री जी कुछ पल सोच कर बोले लाला लाजपत राय ने मुझे लोक सेवा मंडल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था लाला बहादुर ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं एक बढ़िया संगमरमर जिसकी चमक सारी दुनिया देखती है और सराहती है दूसरा पत्थर ताजमहल के नींव में लगा है जो सदा अंधेरे मे टिका रहता है लेकिन ताजमहल की सारी चमक एवं खूबसूरती उसी पर टिकी है.
1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध हो रहा था एक दिन शास्त्री जी दिल्ली छावनी स्थित सैनिक अस्पताल गए इन्होंने वहां हर एक जख्मी सैनिक के स्वास्थ्य का हालचाल पूछा लेकिन एक ऐसा जवान था जो सर से पांव तक जख्मी था जिसका पूरा शरीर पट्टियों से बन्धा था । शास्त्री जी ने जब उससे उसकी सेहत के बारे में पूछा तो जवान की आंखों से आंसू आ गए शास्त्री जी ने कहा मेरे इस बहादुर सैनिक की आंख में आंसू क्यों?
उसने जवाब दिया श्रीमान मैं तो अपने को इसलिए कोश रहा हूं कि मेरे सामने प्रधानमंत्री खड़े हैं और मैं ऐसी हालत में हूं कि उन्हें सैल्यूट भी नहीं कर सकता.
अमेरिका ने जब 2 सितंबर को संदेश दिया कि यदि भारत ने युद्ध नहीं रोका तो हम गेहूं देना बंद कर देंगे. तब शास्त्री जी ने उस समय के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामी नाथन को बुलाया और कहा आप महान कृषि वैज्ञानिक है हमें बताएं कि कितने दिन उपवास करना होगा ताकि हमें गेहूं का आयात ना करना पड़े उन्होंने गणना करके बताया कि दिनों की तो बात नहीं है भारतवासी सिर्फ हफ्ते में एक समय अनाज खाना बंद कर दे तो हमें अमेरिका से गेहूं नहीं मंगाना पड़ेगा. यह प्रयोग शास्त्री जी ने सबसे पहले अपने परिवार पर किया. फिर देशवासियों को संबोधित करके कहा मैं जब तक प्रधानमंत्री हूं आपके स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं कर सकता आज शाम से आप एक समय गेहूं खाना बंद कर दे.
शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा दिया इन्होंने कहा पेट पर रस्सी बांधों और साग सब्जी अधिक खाओ और सप्ताह में एक बार शाम को उपवास रखो, हमें जीना है तो इज्जत से जिएंगे वरना भूखे मर जाएंगे बेज्जती की रोटी से ही इज्जत की मौत अच्छी रहेगी. फिर हरित क्रांति प्रारंभ हुई और भारत को आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई. शास्त्री जी ने कहा था हम रहे ना रहे लेकिन यह झंडा रहना चाहिए और देश रहना चाहिए मुझे विश्वास है कि यह झंडा रहेगा हम और आप रहे या ना रहे लेकिन भारत का सिर ऊंचा रहेगा.10 जनवरी 1966 को हृदय गति रुक जाने से इनका निधन हो गया सोहनलाल द्विवेदी ने लिखा है -
शांति खोजने गया, शांति की गोद में सो गया.मरते-मरते विश्व शांति के बीज बो गया.
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