Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
GLOBAL Climate change वार्ताओं के लिए वर्ष 2021 एक important year है क्योंकि इस वर्ष climate change पर अंतरराष्ट्रीय पैनल (intergovernmental panel on climate change IPCC) Report जारी करेगा और यूनाइटेड किंग्डम (united Kingdom uK) मे आयोजित climate convention में पक्षकारों की उत्सर्जन सीमाओं पर राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को अद्यतन किए जाने की अपेक्षा है। इसके अतिरिक्त president of America Joe Biden के नेतृत्व में संयुक्त राज्य अमेरिका ने PARIS CLIMATE AGREEMENT में फिर से शामिल होने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इसके अलावा हाल ही में भारत ने वर्ष 2050 तक NET ZERO उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है । यह प्रतिबद्धता जलवायु नेतृत्व को स्वीकार करते हुए भारत को कूटनीतिक श्रेय प्रदान करेगी हालांकि यह राजनीतिक लाभ घरेलू विकासात्मक उद्देश्यों को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि नीति और प्राधोगिकी में बड़े बदलाव के बिना भारत को कम उत्सर्जन करते हुए अधिक विकास के विकल्प की आवश्यकता है इसलिए भारत को अपने रणनीतिक कार्बन उत्सर्जन को सीमित रखते हुए अधिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
वैश्विक जलवायु राजनीति में भारत की चुनौतियां (Chanllenges of india in Global climate Politics):-
(A) लक्ष्य प्राप्त न होने की आशंका: -(Doubtful success);-
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा किया गया विश्लेषण परिवर्तन के इस पैमाने को दर्शाता है कि भारत को अपने कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लिए सामान्य नीतियों को स्थाई विकास से स्थानांतरित करने हेतु तत्काल बड़े बदलाव की आवश्यकता है। इसके अलावा इस बड़े बदलाव के बाद भी नेट जीरो उत्सर्जन की स्थिति वर्ष 2065 तक प्राप्त की जा सकेगी ऐसे में वर्ष 2050 का लक्ष्य निर्धारण एक चुनौती है साथ ही वर्तमान लक्ष्य तत्कालिक कार्यवाही के बजाय भविष्य के वादों और वातावरण से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अनिश्चित प्रौद्योगिकियों पर भरोसा करता है.
( B) साइलो आधारित जलवायु निर्णय: -
भारत की जलवायु शासन संरचना साइलो आधारित निर्णयों के लिए डिजाइन की गई है जबकि जलवायु संकट के लिए पार अनुभागीय (cross-sectoral) सहयोग की आवश्यकता होती है भारत के नीति निर्धारण में अभी भी पार अनुभागीय सहयोग का अभाव है.
विकास के लिए जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता: -
यदि भारत नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है तो उसे उत्सर्जन को तत्कालिक रूप से सीमित करना होगा लेकिन इस प्रकार की कार्यवाही से उसकी अब तक की विकास की स्थिति भी प्रभावित हो सकती है हालांकि वर्तमान में भारत का GREEHOUSE GAS EMISSION बढ रहा है और क्यों की जटिल ऊर्जा तथा आर्थिक प्रणालियों को चालू होने में कुछ और समय लग सकता है इसके अलावा वर्तमान में उद्योग से होने वाले उत्सर्जन को सीमित करना एक दीर्घकालिक संभावना है क्योंकि भारत में प्राधोगिकीयों की स्थिति शैशवावस्था में है और नई तकनीक एवं दृष्टिकोण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है.
NEXT LEVEL (आगे की राह)
क्षेत्र गत संक्रमणीय योजना (sectoral transition plans): - वर्तमान में एक व्यापक महत्वकांक्षी लक्ष्य की बजाय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों के लिए क्षेत्रीय परिवर्तन योजनाओं से संबंधित भविष्य की प्रतिबद्धता को पहचानने और नीति निर्माण की आवश्यकता है.
क्षेत्रगत बदलावों पर ध्यान दिए जाने की संभावना व्यापक और विकसित होती अर्थव्यवस्था के जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में निवेश पैटर्न को निजी क्षेत्र की ओर स्थानांतरित करने की आवश्यकता पर जोर देती है उदाहरण के लिए विद्युत क्षेत्र के संक्रमण में तेजी लाने के लिए वितरण कंपनियों में सुधार करने कोयला को सीमित करते हुए नवीकरणीय उर्जा निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है.
जलवायु शासन को सुदृढ़ बनाना: -
भारत को जलवायु शासन के लिए अपने घरेलू संस्थानों के सृजन और पहले से स्थापित संस्थानों को मजबूत करने की आवश्यकता है इसके लिए विकास जरूरतों और कम कार्बन और अवसरों के बीच संबंधों की पहचान करना होगा जिसके लिए एक जलवायु कानून उपयोगी हो सकता है.
सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी: -
इस आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में भारत को सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी (common but differentiated responsibility - CBDR ): - के दीर्घकाल के सिद्धांत की पुनः पुष्टि करने की आवश्यकता है जिससे विकसित देशों को किसी भी प्रतिबद्धता का विरोध करने के लिए विशेष कारणों की आवश्यकता होगी जैसे विकासशील देशों में विकास के लिए उपयोग में लाई जा रही ऊर्जा उपयोग की नीति के प्रभाव को सीमित कर रही है.
निष्कर्ष ( conclusion): - भारतीय नेतृत्व की राह विशिष्ट निकट अवधि की कार्यवाही संस्थागत मजबूती और मध्य तथा दीर्घकालिक लक्ष्यों के संयोजन पर आधारित होनी चाहिए शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के दीर्घकालिक लक्ष्यों को भविष्य के सीमित कार्बन निर्धारण के संक्रमण के हिस्से के रूप में पूरा करने के लिए कार्य करने के तरीकों से सीखते हुए कार्बन उत्सर्जन के निर्धारण की प्रतिबद्धता को अधिक स्पष्ट एवं मजबूती से लागू किया जाना चाहिए.
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