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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

पंडित जवाहरलाल नेहरू से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर: Some important question and answer related to jawaharlal Nehru in UPSC exam mains

प्रश्न: - अपनी आत्मकथा में नेहरू ने लिबरल वर्ग की इतनी अधिक आलोचना क्यों की थी? या नेहरू द्वारा उदारवादी नेताओं की आलोचना के संबंध में लिखना और उसके कारण को बताना है.

उत्तर: - मांटेग्यू घोषणा (20 अगस्त, 1917) की स्वीकृति  स्वीकृति को लेकर कांग्रेस एक बार पुनः विभाजित हो गई इस बार कांग्रेस से नरमपंथी अलग हो गये और उन्होंने उदारवादी नीतियों के माध्यम से अपना हित साधने  का प्रयास किया और ऐसा ना होने पर उन्होंने लिबरल फेडरेशन नामक संस्था का निर्माण कर लिया ऐसे नेताओं में दिनशा वाचा ,सुरेंद्रनाथ बनर्जी, अंबिका चरण मजूमदार आदि प्रमुख थे.

          नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इन उदार वादियों की जमकर आलोचना इसलिए की है कि इन्होंने कांग्रेस का साथ देने की बजाय उसकी एकता और अखंडता को तोड़ रहे थे  जबकि कांग्रेस इस समय असहयोग आंदोलन की तैयारी में थी नेहरू ने लिबरल नेताओं की नीतियों कार्यक्रमों को सिर्फ दिखावा बताया लिबरल  नेताओं द्वारा ब्रिटिश शासन को वरदान के रूप में देखा गया तथा असहयोग आंदोलन में सरकार का समर्थन किया और उनका साथ दिया उन्होंने विधानसभाओं का बहिष्कार नहीं किया तथा अनेक मंत्रियों एवं सरकारी पदों को स्वीकारा इसलिए इन सब बातों से नेहरू नाराज थे और इन लिबरल लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन को सीमित करने वाला तथा ब्रिटिश राज भक्त बताया और उनकी जमकर आलोचना की।


QUESTION:-  क्या जवाहरलाल नेहरू वास्तव में गांधी की भाषा बोलते थे? उनके मध्य सहमति एवं असहमति के बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए.

              जवाहरलाल नेहरू तथा महात्मा गांधी के बीच प्रमुख बिंदुओं पर समानता एवं असमानता को स्पष्ट करते हुए नेहरू को गांधी का समर्थक बताना है.


 ANSWER:-    राष्ट्रीय आंदोलन में नेहरू और गांधी महत्वपूर्ण व्यक्तित्व  थे nehru-gandhi  में काफी श्रद्धा रखते थे वह गांधी जी को चमत्कारी नेतृत्वकर्ता मानते थे उनकी नीतियों और कार्यक्रमों में नेहरू की अटूट आस्था थी परंतु कुछ बातों को लेकर नेहरू उनसे असहमत थे जैसे उनका 1 वर्ष में स्वराज प्राप्त करने (असहयोग आंदोलन के दौरान) के लक्ष्य को नेहरू ने सुनहरी कल्पना बताया गांधी के पूर्ण अहिंसात्मक आंदोलन ट्रस्टीशिप के विचार किसी भी जन आंदोलन के बीच में रोक देने राजनीति में धर्म के महत्त्व विशाल उद्योगों का विरोध वैज्ञानिक सोच की अवहेलना आदि मुद्दों पर नेहरू गांधी से असहमत थे जबकि गांधी के मानवतावादी विचार असहयोग तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन के रचनात्मक कार्यों ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देश के प्रति प्रेम तथा जन आंदोलनों के महत्व जैसे मुद्दों पर वे महात्मा गांधी से सहमत थे.


              परन्तु  नेहरू द्वारा महात्मा गांधी का अधिकतर मामलों में सहयोग किया गया और अंग्रेजी हुकूमत से छुटकारा पाने हेतु साथ-साथ कार्य किया गया वह गांधी की मांगों को अक्षरशः  सबके सामने उठाते थे अर्थात वह गांधी की भाषा ही बोलते थे और स्वतंत्रता आंदोलन में दोनों ने अपनी अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया.


QUESTION:-   नेहरू की आधुनिकीकरण की योजना 1951 - 1961 के दशक के दौरान किस प्रकार तेजी से आगे बढ़ी?

          इस प्रश्न में स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा अपनाई गई आधुनिकीकरण की योजनाओं के बारे में लिखना है.

 ANSWER:-  भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश का कायाकल्प कर उसका आधुनिकीकरण करने हेतु निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ा -

  • आत्मनिर्भरता के आधार पर विकास

  • विकास के उच्च स्तर का लक्ष्य

  • समानता का लक्ष्य

  • जनसाधारण को जीवन के न्यूनतम आवश्यकताओं की प्राप्ति करवाना अर्थात और चित्र एवं न्याय का लक्ष्य

                   इन समस्याओं के समाधान हेतु नेहरू ने उसे आधुनिक स्वरूप प्रदान करने हेतु सर्वप्रथम अर्थव्यवस्था एवं आर्थिक नियोजन पर ध्यान दिया तथा समाजवादी समाज की कल्पना को साकार करने का प्रयत्न किया एक लोकतंत्रात्मक समाजवाद की स्थापना हेतु मिश्रित अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को अपनाया तथा भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों के साथ-साथ बृहद उद्योगों की स्थापना पर भी बल दिया गया मशीनीकरण द्वारा वस्तुओं का उत्पादन कर देश की आर्थिक दशा सुधारने का प्रयत्न किया गया साथ ही साथ भारी उद्योगों की स्थापना एवं नियोजित अर्थव्यवस्था के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का भी विकास किया गया नेहरू द्वारा भारत का आधुनिकीकरण करने हेतु वैज्ञानिक संस्थाओं उपलब्धियों तथा सोच के विकास पर पूरा ध्यान दिया गया इन कार्यों से भारत का आधुनिकीकरण हुआ और विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।


QUESTION  :-  भारत की विदेश नीति की आधारशिला के रूप में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाने में क्या जवाहरलाल नेहरू न्याय संगत थे?

        इस प्रश्न में समकालीन समय में गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाना कहां तक न्याय संगत था तथा जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपनाई गई यह नीति कहां तक तर्कपूर्ण थी यही बताना है.


ANSWER:-    भारत की स्वतंत्रता के समय विश्व दो ध्रुवों में बट गया था एक का नेतृत्व पूंजीवादी अमेरिका करता था तो दूसरे का नेतृत्व साम्यवादी रूस इसी समय विश्व के अनेक औपनिवेशिक राष्ट्र स्वतंत्र हो रहे थे तथा अमेरिका द्वारा उन्हें अपने-अपने खेमों में शामिल करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा था.

       
ऐसे में पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा मिस्र के राष्ट्रपति एवं युगोस्लाविया के प्रधानमंत्री ने मिलकर गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण किया क्योंकि ये नवोदित राष्ट्र एक बंधन से छुटकारा पाकर पुनः  किसी नए बंधन में बंधना नहीं चाहते थे और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करना चाहते थे.

             नेहरू द्वारा इस नीति के अगुआ का कार्य किया गया यह नीति पंचशील पर आधारित स्वतंत्र नीति थी इस नीति पर चलकर ही विकासशील देशों के साथ-साथ गरीब देशों के हितों की रक्षा की जा सकती थी तथा नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र शक्ति राजनीति के गुट बंदी एवं खेमे बंदी से बच सकते थे.

            नेहरू द्वारा बनाई गई गुटनिरपेक्षता की इस नीति का परिणाम था कि भारत विश्व में अपनी शांतिप्रिय तथा आचरण के 5 सिद्धांतों पर आधारित नीति के कारण प्रतिष्ठित हो सका दोनों गुटों द्वारा भारत का समर्थन किया गया इससे भारत एक शांतिप्रिय एवं न्याय प्रिय राष्ट्र के रूप में उभरा निश्चित रूप से तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार यह नीति तब भी सही थी और आज भी सही है.



QUESTION:-  समय में दूरी के होते हुए भी लॉर्ड कर्जन और जवाहरलाल नेहरू के बीच अनेक समानताएं थीं चर्चा कीजिए?

       नेहरू तथा कर्जन की नीतियों में श्रद्धा निक समानता को स्पष्ट करते हुए नीतियों के स्वरूपों की भिन्नता का वर्णन करना है.


ANSWER  :- लॉर्ड कर्जन की छवि भारत में एक साम्राज्यवादी की थी यह वर्ष 1899 - 1905 तक भारत का वायसराय रहा वहीं दूसरी ओर पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने नेहरू ने भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए फिर भी लॉर्ड कर्जन तथा जवाहरलाल नेहरू की सोच में कुछ समानताएं भी थी भले ही उनके उद्देश्य भिन्न-भिन्न थे तद्नुसार दोनों ने ही वैदेशिक संबंधों को प्राथमिकता दी जिसमें लॉर्ड कर्जन आक्रमक विदेश नीति का पक्षधर था इस नीति का उद्देश्य भारत में अंग्रेजों की स्थिति को और भी सुदृढ़ बनाना था अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर्जन ने तिब्बत सिक्किम बर्मा तथा अफगानिस्तान पर आक्रमण किए तो वहीं दूसरी ओर नेहरु जी की नीति शांतिपूर्ण सह अस्तित्व पर आधारित है उन्होंने गुटनिरपेक्षता पंचशील परमाणु नि:शस्त्रीकरण जैसे आदर्शों के माध्यम से वैश्विक व्यवस्था के एकीकरण का प्रयास किया.


              दोनों ही देशों का विकास चाहते थे एक ओर कर्जन के विकास का उद्देश्य भारत में ब्रिटिश लोगों के हितों की पूर्ति करना था जिसके लिए उसने दुर्भिक्ष भूमि कर सिंचाई कृषि रेलवे और टकसाल इत्यादि से संबंधित कई अधिनियम पारित किए.

         वहीं दूसरी और नेहरु जी की नीति में मिश्रित अर्थव्यवस्था सार्वजनिक उपक्रमों का विकास भारी एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन तथा अपनी समाजवादी संकल्पना के द्वारा देश की प्रगति के लिए प्रयास किए.

            शिक्षा व्यवस्था की ओर दोनों का ध्यान आकर्षित था एक ओर कर्जन का शिक्षा सुधार भारत में बढ़ रहे विद्रोह को सीमित करने का प्रयास था जिसके लिए उसने विश्वविद्यालयों को भी अपने नियंत्रण में लाना चाहा तो वही नेहरू जी वैज्ञानिक शिक्षा के अधिक पक्षधर थे वे देश के हित में शिक्षा प्रणाली को नियमित बनाना चाहते थे.

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