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भारत का संवैधानिक विकास का क्या अर्थ है? इस पर विस्तार से चर्चा करो?

भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन हेतु पारित अधिनियमः→ ब्रिटिश संसद के 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिये एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया, जिनका कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया। इस एक्ट के अनुसार वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बना तथा फ्रांसिस, क्लेवंरिग, मानसन और बारवेल काउंसिल के सदस्य नियुक्त हुए । सपरिषद गवर्नर जनरल को बंगाल में फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी के सैनिक एवं असैनिक शासन का अधिकार दिया गया था तथा इसे प्रमुख मामलों (यथा - विदेश नीति) में मद्रास और बम्बई की प्रेसीडेंसियों का अधीक्षण भी करना था। इसी एक्ट के तहत कलकत्ता में 1774 ई० में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे।        1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट में Company के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने तथा भारतीयों से उपहार लेने से प्रतिबंधित किया गया। पिट्स इंडिया Act द्वारा 1784 company के राजनीतिक और व्यापारिक कार्यों का पृथक्करण किया गया। ...

महर्षि दयानंद सरस्वती का संक्षिप्त परिचय: Short introduction of Swami Dayanand Saraswati

अध्यात्म और देश प्रेम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि बिना आध्यात्म के एक सुंदर व्यक्तित्व की कल्पना करना असंभव है बिना सुंदर व्यक्तित्व के एक सुंदर राष्ट्र की कल्पना करना असंभव है। जो स्वयं सुंदर नहीं बना वह औरों को  क्या सुंदर बनाएगा क्या मात्र कुछ कर्मकांड कर देने से धर्म का वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है। वास्तव में जब तक मनुष्य धर्म की गहरी परतों को समझेगा नहीं तब तक मानव निर्माण और राष्ट्र निर्माण की मजबूत इमारत को खड़ा करना असंभव है. जब भी धर्म का विकृत स्वरूप प्रारंभ हुआ है बहुत सारे आध्यात्मिक चिंतकों ने धर्म का परिमार्जित रूप हमें बताया इन्हीं चिंतकों और समाज सुधारकों  में स्वामी दयानंद सरस्वती का स्थान प्रमुख है।

( 1) आधुनिक भारत के निर्माता: -

       स्वामी जी का चिंतन भी ऐसा ही था स्वामी जी आधुनिक भारत के निर्माता थे. स्वामी जी ने अपने उपदेशों में बहुदेववाद , मूर्ति पूजा, अवतारवाद ,पशु बलि ,जंत्र तंत्र मंत्र झूठे कर्मकांडों की आलोचना की है स्वामी जी का मुख्य उद्देश्य था बुराइयां दूर हों अच्छाइयों का मार्ग प्रशस्त हो. इन्हीं विचारों को धारण करने के लिए स्वामी जी ने 1875 ईस्वी में आर्य समाज की स्थापना की उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक पुस्तक की भी रचना की स्वामी जी ने विदेशी शासन को ललकारा उन्होंने कहा - बुरे से बुरा देसी राज्य भी अच्छे से अच्छा विदेशी राज्य से बेहतर होता है.

       स्वामी जी स्वदेशी और देशभक्ति के प्रबल समर्थक थे इन्होंने शुद्धि आंदोलन चलाया .जिसका प्रभाव यह पड़ा कि जिन लोगों ने किसी कारणवश इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था वे लोग पुनः हिंदू हो गए.

(2) वेदों में गहन आस्था: -

        वेदों के प्रति उनकी गहन आस्था थी यह कहते थे वेद ही सत्य ज्ञान के स्रोत है .आता वेदों को सुनना सुनाना प्रत्येक आर्य का परम धर्म एवं कर्तव्य होना चाहिए सदा सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने से बुराइयां नष्ट हो सकती हैं सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य का विचार करके करने चाहिए संसार का उपकार करना समाज का मुख्य उद्देश होना चाहिए अर्थात समाज को मानव की शारीरिक आत्मिक और सामाजिक उन्नति में सहयोग देना चाहिए मनुष्य का कर्तव्य है एक सबसे प्रेम पूर्वक धर्मानुसार और यथा योग्य व्यवहार करें सर्वे भवंतू सुखिना: सर्वे संतु निरामया: की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए.

(3 ): - समाज में फैली कुरीतियों से बचाया

      आर्य समाज ने बाल विवाह छुआछूत और जाति प्रथा का डटकर विरोध किया विवाह के लिए लड़कों की आयु 25 वर्ष एवं लड़कियों की आयु 16 वर्ष निर्धारित की सन उन्नीस सौ आठ में आर्य समाज ने दलितों के उद्धार के लिए आंदोलन चलाया आर्य समाज ने ही भारत के अनेक स्थानों पर दयानंद एंग्लो वैदिक कालेजों की स्थापना कि इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वामी जी के अध्यात्म दर्शन का मुख्य उद्देश्य देश प्रेम और मानव मूल्यों के प्रति मनुष्य को जागरूक करना था.

( 4) ईश्वर के स्वरूप की व्याख्या: - आर्य समाज के माध्यम से स्वामी जी ने जन चेतना को उत्साहित किया स्वामी जी ने कहा समस्त सत्य विद्या और पदार्थ आदि का मूल परमेश्वर है इन सभी को विद्या के आधार पर जाना जाता है इन्होंने ईश्वर के स्वरूप को बड़े ही सरल ढंग से समझाया इनका मानना था ईश्वर अजन्मा अमर सबका रूपक अजेय अनंत सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है यही पालन कर्ता और विनाश कर्ता भी है

अध्यात्म की यात्रा का खाका तैयार किया: -
स्वामी जी ने धर्म की सुप्त चेतना को सशक्त चेतना के रूप में लिया इन्होंने आध्यात्मिक की लोहपथ गामिनी पर यात्रा कर देश प्रेम का एक सशक्त खाका तैयार किया स्वामी जी का जन्म 1824 ईस्वी में गुजरात के मौरवी नामक स्थान पर हुआ था बचपन में स्वामी जी को मूल शंकर के नाम से जाना जाता था स्वामी जी के जीवन की एक घटना है यह बचपन में महादेव जी के मंदिर में गए और वहां उन्होंने देखा है चुहिया प्रसाद में से एक लड्डू ले जा रही थी मूल शंकर ने सोचा यह कैसे भगवान है जो कुछ बोल नहीं रहे हैं जो ईश्वर स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकता वह हमारी रक्षा क्या करेगा बस यही से मूल शंकर को मूर्ति पूजा से विरक्ति हो गई उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया और वैदिक धर्म को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया क्योंकि जिस समय स्वामी जी को  आविर्भाव हुआ उस समय भारत वर्ष धार्मिक सामाजिक व राजनीतिक रूप से कई रूपों में विभक्त हो चुका था स्वामी जी साधु सन्यासियों के साथ भ्रमण करते करते वह मथुरा पहुंचे वहीं पर उनकी मुलाकात विरजानंद से हुई विरजानंद से इन्होंने शुद्ध वैदिक धर्म के विषय में ज्ञान प्राप्त किया उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन किया ईश्वरीय ज्ञान ग्रहण करते हुए स्वामी जी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमें वेदों की तरफ पुनः लौटना होगा हमारे यजुर्वेद में कहा गया है कि आनो भद्रा:क्रतवो यंतु विश्वतोअदब्धासो अपरीतासअउभ्दिद: 
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे

यजुर्वेद 25\14
अर्थात कल्याणकारी विघ्नरहित अप्रतिहत शुभ फल प्रद विचार हमें सभी ओर से प्राप्त हों जिससे आलस्य रहित और रक्षा करने वाले देवता प्रतिदिन सदा ही हमारी समृद्धि करें स्वामी जी के प्रति अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए महर्षि अरविंद घोष ने कहा था -

परमात्मा की इस विचित्र सृष्टि के अद्वितीय योद्धा तथा मनुष्य और मानवीय संस्थाओं का साक्षात्कार करने वाले अद्भुत शिल्पी थे मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है अतः उसे चिंतन करना चाहिए और आर्य समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए.

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