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इजरायल ईरान war और भारत ।

इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4  मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं।                    इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे  कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है।  [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव:   सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...

रविंद्र नाथ टैगोर और असहयोग आंदोलन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर सहित व्याख्या: Rabindranath Tagore and non cooperation movement related some important UPSC exam mains question answer

( 1) प्रजातंत्र पर रविंद्र नाथ टैगोर के विचारों का परीक्षण कीजिए.

       इस प्रश्न पर रविंद्र नाथ टैगोर के प्रजातंत्र पर दिए गए प्रमुख विचारों का वर्णन करना है.

उत्तर: - रविंद्र नाथ टैगोर स्वतंत्रता समानता एवं न्याय के बहुत बड़े हिमायती थे उन्होंने कहा है कि ऐसे समाज में प्रजातंत्र कभी सफल नहीं हो सकता है जहां लालच ,स्वार्थपन आदि विकसित एवं प्रोत्साहित हों उनका मानना था कि जनता आत्मज्ञानी तथा क्षमतावान बनने हेतु धर्म का पालन करें तथा आपसी संबंधों में मधुरता लाए.

        उनके अनुसार सच्चा प्रजातंत्र केवल उसी स्थिति में हो सकता है जबकि राजनीति नैतिकता पर आधारित हो तथा सरकार पर से नेताओं का कब्जा समाप्त हो उनका मानना था कि वास्तविक प्रजातंत्र की स्थापना हेतु सेवा भावना पर जोर दिया जाना चाहिए इसके अतिरिक्त आत्म केंद्रित होने की प्रवृत्ति तथा स्वार्थवादिता को समाप्त करना अति आवश्यक है.

             केवल राजनीतिक अधिकारों का प्राप्त होना तथा उन्हें निर्वाचन में प्रयुक्त करना मात्र नहीं है बल्कि सब का कल्याण तथा राष्ट्र का विकास प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए एक अच्छा और मजबूत प्रजातंत्र तभी स्थापित किया जा सकता है जब सभी को न्याय समानता धर्म विश्वास स्वतंत्रता आदि प्राप्त हो.


प्रश्न (2): - टैगोर की कविता उनके धार्मिक अनुभव का लिखित रिकॉर्ड है प्रकाश डालिए.

       इस प्रश्न में टैगोर की कविताओं में धर्म का प्रभाव दर्शना है.

उत्तर: - गुरु रविंद्र नाथ टैगोर एक देशभक्त के साथ-साथ साहित्यकार तथा चित्रकार भी थे वे हिंदू धर्म के प्रबल समर्थक थे उनके द्वारा रचित पुस्तकों में हमें इसी धार्मिक भावना का एहसास होता है उनकी कविताओं में नैसर्गिकता का पुट तथा धार्मिक मनोभावनाओं के दर्शन होते हैं.

        उनके द्वारा रचित गीत आमार सोनार बांग्ला जो स्वदेशी आंदोलन के दौरान बहुत प्रसिद्ध हुआ तथा बाद में पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत बना इसी प्रकार जन गण मन में उनके भारत माता रूपी उस देवी की प्रार्थना की गई है जो सर्वोच्च तथा सर्वशक्तिमान थी इसमें हमें धार्मिक भावना की संपूर्ण झलक मिल जाती है यह हमारा राष्ट्रगान बना इसी तरह उन्हें वर्ष 1913 में गीतांजलि नामक काव्य संग्रह पर विश्व प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला इस संग्रह में हमें धार्मिक भावना का ही पुट मिलता है.

         अर्थात टैगोर की प्रत्येक कविता या रचना उनके धार्मिक अनुभव पर ही लिखी गई प्रतीत होती है उनमें ओजस्विता तेज नैसर्गिकता एकता आदि के दर्शन होते हैं जिसने राष्ट्रीय आंदोलन में उत्साह वर्धन का कार्य किया उन्होंने अपनी समस्त आस्था को पुस्तकीय जामा पहनाया.


प्रश्न (3): - स्वराज पार्टी के निर्माण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए उनकी मांगे क्या थी?

        इसमें स्वराज पार्टी की स्थापना से संबंधित तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए उनकी मांगों को स्पष्ट करना है.

उत्तर: - महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के माध्यम से स्वराज की प्राप्ति का जो लक्ष्य रखा था प्राप्त होने से पहले ही आंदोलन स्थगित कर दिया गया इससे कांग्रेस के एक वर्ग में घोर निराशा एवं असंतोष फैल गया इसने कांग्रेस के आगे होने वाले कार्यक्रमों को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास कांग्रेस की नीतियों में परिवर्तन लाना चाहते थे और एक सशक्त नीति अपनाने पर जोर देते थे वर्ष 1922 के गया अधिवेशन  में काउंसिल में प्रवेश के मुद्दे पर मतदान भी हुआ जिसमें इन परिवर्तन वादियों की हार हो गई परिणाम स्वरूप वर्ष 1923 में मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी की स्थापना की.

  •          इन परिवर्तन वादियों ने स्वयं को कांग्रेस का ही प्रतिनिधि मानते हुए एक अलग नीति का क्रियान्वयन करने का निश्चय किया उनका वास्तविक उद्देश्य स्वराज की प्राप्ति था परंतु इसे प्राप्त करने का तरीका अलग था.

        प्रमुख मांगे इस प्रकार थी - कांग्रेस को असेंबली के बहिष्कार की नीति त्यागकर काउंसिलों में प्रवेश करके सरकारी नीतियों का डटकर विरोध करना चाहिए . इसके अतिरिक्त सरकार विरोधी जनमत तैयार किया जाए कोई भी व्यक्ति सरकारी पद ग्रहण ना करें तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाए बाद में कांग्रेस ने उनकी यह मांगे मान का राष्ट्रीय आंदोलन को गति प्रदान की।

प्रश्न (4): - खिलाफत आंदोलन के उद्देश्यों और लक्ष्य का विवेचन कीजिए यह कहां तक सफल रहा.

       प्रश्न के अनुसार खिलाफत आंदोलन के उद्देश्यों में टर्की के विषय पर दृष्टिपात करते हुए इस निष्कर्ष पर आना है कि अपनी असफलता के बावजूद या आंदोलन कुछ समय के लिए हिंदू मुस्लिम एकता के लिए प्रेरणा स्रोत रहा.

उत्तर: - खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य टर्की में चल रही समस्या का समाधान भारतीय पक्ष में करना था इस आंदोलन में शौकत अली, मोहम्मद अली ,डॉक्टर अंसारी, मौलाना आजाद एवं महात्मा गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

  •        प्रथम  विश्व युद्ध में टर्की के खलीफा ने ब्रिटेन के विरुद्घ जर्मनी का साथ दिया था इसी दौरान ब्रिटिशों ने भारतीय मुस्लिम समुदाय का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्हें आश्वासन दिया था कि युद्ध की समाप्ति के बाद टर्की के विरुद्ध कोई प्रतिशोधात्मक नीति नहीं अपनाई जाएगी लेकिन युद्ध समाप्ति के पश्चात टर्की के खलीफा को अपदस्थ कर दिया गया एवं सेवर्स की संधि द्वारा टर्की के साम्राज्य को विकसित कर दिया गया.

  •          अतः खलीफा की पुनः स्थापना तथा अविभाजित टर्की को प्राप्त करने के लिए खिलाफत आंदोलन भारत में प्रारंभ किया गया.

  •          लेकिन टर्की में मुस्तफा कलाम पाशा द्वारा खलीफा के पद को समाप्त कर देने से खिलाफत आंदोलन का मूल प्रश्न ही समाप्त हो गया.

  •           कुल मिलाकर अपनी असफलताओं के बावजूद भी खिलाफत आंदोलन थोड़े समय के लिए ही सही हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बना.


प्रश्न (5): - असहयोग आंदोलन का समालोचनात्मक आकलन कीजिए?

    उत्तर में असहयोग आंदोलन को प्रेरित करने वाले तत्वों का स्पष्टीकरण तथा आंदोलन की वापसी पर अपने विचार अभिव्यक्त करने हैं.

उत्तर: - भारतीय जनता को उम्मीद थी कि प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात ब्रिटिश सरकार भारतीयों की इच्छा के अनुरूप कोई सकारात्मक कदम उठाएगी किंतु यह भारतीयों का स्वप्न मात्र ही रहा प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात लाया गया रोलेट एक्ट जिसके माध्यम से बंदी प्रत्यक्षीकरण को समाप्त कर दिया गया पंजाब में मार्शल लॉ लागू करना जलियांवाला बाग हत्याकांड की विभीषिका तथा मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार रिपोर्ट ने ब्रिटिशों  के प्रति असंतोष को व्यापक कर दिया था.

  •         परिणाम स्वरूप 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया गया पूरे देश में व्यापक हड़तालें आयोजित की गई प्रदर्शन हुए सभाएं आयोजित की गई तथा खिलाफत आंदोलन को भी असहयोग आंदोलन के साथ जोड़ दिया गया गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन के नेता अली बंधु के साथ पूरे भारत का दौरा किया.

  •         किंतु 12 फरवरी 1922 को चौरी चौरा नामक स्थान पर हुए हत्याकांड में 22 लोग मारे गए जो कि गांधीजी के अहिंसा की नीति के विपरीत परिणाम स्वरूप गांधी जी ने तत्काल आंदोलन को वापस ले लिया गांधीजी के इस निर्णय का अत्यधिक विरोध हुआ तथा विभिन्न नेताओं ने गांधी जी के इस निर्णय की कटु आलोचना की किंतु गांधी जी किसी भी स्थिति में एक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व करने के पक्ष में नहीं थे.

  •        गौर से देखा जाए तो गांधीजी का निर्णय अत्यंत व्यावहारिक था चौरी चौरा घटना के बाद यह आंदोलन नेतृत्वहीन हो चुका था तथा क्योंकि ज्यादातर नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. अस्त्र शस्त्रों के अभाव में एक हिंसक आंदोलन सफल नहीं हो सकता था ब्रिटिश किसी भी हिंसक आंदोलन को कुचलने के लिए व्याकुल थे जो कि जनमनोबल के लिए हानिकारक सिद्ध होता तथा टूटे हुए जनमनोबल के साथ भारत की स्वतंत्रता एक कोरी कल्पना मात्र होती.

प्रश्न (6): - वर्ष 1919 और 1939 के दौरान अपनी में से एक व्यवस्था का संकट सीधे तौर पर संवैधानिक सुधारों में भांग और लड़ाकू उपनिवेश विरोधी संघर्षों से जुड़ा था इसको स्पष्ट कीजिए.

       उत्तर में यह स्पष्ट करना है कि वर्ष 1919 से 1939 तक के संविधानिक सुधार ब्रिटिश ओ द्वारा हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को शिथिल करने के लिए लाए गए थे उनका भारतीय समस्याओं के सुधार में कोई संबंध नहीं था. 


उत्तर: - 1919 का वर्ष भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटनाओं का वर्ष था भारतीयों को उम्मीद थी कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिशों का भारत के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा किंतु रौलट एक्ट के माध्यम से बंदी प्रत्यक्षीकरण का समापन जलियांवाला बाग हत्याकांड में हुए व्यापक नरसंहार तथा वर्ष 1919 में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार बोर्ड के रूप में आई सुधारों की अपर्याप्त किस्त ने भारत में व्यापक आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी.


           इन सभी घटनाओं से क्षुब्ध  होकर गांधी जी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन प्रारंभ कर दिया आगे जाकर खिलाफत आंदोलन को भी असहयोग आंदोलन में सम्मिलित कर लिया गया किंतु चौरी चौरा हत्याकांड ने गांधी जी को आंदोलन को वापस लेने के लिए विवश कर दिया आंदोलन की वापसी से निराशा के कारण आंदोलन क्रांतिकारियों के हाथों में चला गया.

             ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1919 के एक्ट की समीक्षा के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजा किंतु इसे भारत में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा वर्ष 1929 के अधिवेशन के द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता को भारत का लक्ष्य घोषित कर दिया गया.

          वर्ष 1930 में व्याप्त असंतोष को देखते हुए गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया इस आंदोलन में गांधीजी ने साबरमती से दांडी तक की पदयात्रा की तथा डांडी पहुंचकर नमक कानून का विरोध किया गाँधी इरविन   समझौते के परिणाम स्वरूप यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया तथा गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हुए.

       लेकिन तीनों गोलमेज सम्मेलन की विफलता के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा एक श्वेत पत्र जारी किया गया श्वेत पत्र को आधार बनाते हुए वर्ष 1935 के अधिनियम के माध्यम से सुधारों की एक और अपर्याप्त किस्त प्राप्त हुई किंतु द्वितीय विश्व युद्ध में जबरन कांग्रेस को साथ ले जाने के प्रयास में ब्रिटिशों के प्रति भारतीय जनता का पूर्व मोह भंग कर दिया.

प्रश्न (7): - स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के उद्देश्यों को भगत सिंह द्वारा निरूपित क्रांतिकारी आतंकवाद के योगदान का मूल्यांकन कीजिए.

      उत्तर में भगत सिंह द्वारा बनाया गया मार्ग तथा उपलब्धियों का वर्णन करना है.

उत्तर: - असहयोग आंदोलन की वापसी से उत्पन्न निराशा से समाज के एक वर्ग को क्रांतिकारी मार्ग के लिए विवश कर दिया जिसमें शहीद भगत सिंह का योगदान अविस्मरणीय है.

           वर्ष 1926 में भगत सिंह ने यशपाल के साथ मिलकर नौजवान सभा की स्थापना की नौजवान सभा के झंडे के तले साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय शहीद  हो गए परिणाम स्वरूप भगत सिंह तथा इनके अन्य साथियों ने ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी अप्रैल 1929 में ट्रेड डिस्प्यूट बिल तथा पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में केंद्रीय विधानसभा पर बम फेंके गए अंन्तत: 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दे दी गई.

  •            केंद्रीय संगठन का अभाव आंदोलन में नव युवकों की सीमित संख्या उच्च मध्यम वर्ग की सीमित सहानुभूति धन तथा अस्त्र शस्त्रों के अभाव में इस आंदोलन की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया किंतु इस आंदोलन ने भारतीय जनता के समक्ष देश प्रेम त्याग तथा बलिदान की एक अद्वितीय मिसाल पेश की।

     
प्रश्न ( 8): - असहयोग आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की स्पष्ट कीजिए?

       उत्तर में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन की भूमिका को स्पष्ट करना है.

उत्तर: - 1919 के वर्ष तक भारतीय जनता व्यापक यापकअसंतोष व्याप्त था प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात ही ब्रिटिश की अपमानित नीतियों और रॉलेक्ट एक्ट जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 के अधिनियम द्वारा दिए गए पर्याप्त सुधार असहयोग आंदोलन को प्रारंभ करने के मुख्य कारण थे.

             आंदोलन का प्रारूप गांधी जी ने निर्मित किया जो कि सत्याग्रह पर आधारित है इस आंदोलने सरकार के प्रत्येक संस्थाएं एवं प्रत्येक कार्य का भी नंबर ता पूर्वक असहयोग करना था परिणामस्वरूप छात्रों ने पढ़ना तथा शिक्षकों ने ब्रिटिश स्कूल कॉलेजों में पढ़ाना वकीलों ने वकालत तथा लाखों कर्मचारियों ने अपनी नौकरियां छोड़ दी खिलाफत आंदोलन को भी इस आंदोलन का हिस्सा बना लिया गया लेकिन चौरी चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने अहिंसक असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.

              सच तो यह था कि गांधीजी के उद्देश्यों की पूर्ति हो चुकी थी गांधी जी ने आंदोलन से पहले भले ही कोई वायदे किए हो लेकिन उनका वास्तविक उद्देश्य प्रमाणित करना था कि साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक अखिल भारतीय जन आंदोलन संगठित किया जा सकता है ब्रिटिश चोर ने इस आंदोलन के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन उन्हें यह स्पष्ट हो चुका था कि उनके लिए दीर्घ अवधि तक भारत में रहना संभव नहीं है.

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