सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं। भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...
घने वृक्षों के समुदाय को देखकर वह यकायक चिल्ला उठी - “कितना मनोरम दृश्य है?” वृक्षों की भीड़ को देखकर मन हरा भरा हो जाता है जबकि मनुष्यों की भीड़ को देखकर जी घबराता है और हम भागकर खुली हवा में जाना चाहते हैं आप तुरंत सहमति प्रकट करते हुए कहेंगे कि प्रकृति का उन्मुक्त वातावरण किस को नहीं सुहाता है प्रकृति के वन वृक्ष उन पर लगे हुए फूलों की सुगंध उन पर बैठे पक्षियों का कलरव मन को निहाल कर देते हैं ऐसा प्रतीत होता है कि मानव साहचार्य की अपेक्षा प्रकृति का साहचर्य हमारे स्वभाव के अधिक अनुकूल है हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद ने एक स्थान पर लिखा है कि साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है जो जीवन में प्रकृति का स्थान है हम जब समाज की घुटन ऊब दुर्गन्ध एवं कुंठा भरे जीवन से ऊब जाते हैं तब खुली हवा पाने के लिए किसी वन उपवन या उधान मे जाना चाहते हैं उसी प्रकार जीवन की विषमताओं एवं विडंबना से युक्त काव्य की ऊब एवं घुटन मिटाने के लिए हम आदर्शवाद की ओर देखते हैं कहने का तात्पर्य यह है कि माता की गोद की भांति प्रकृति हमारे लिए सुखचैन प्रदान करके एवं संकट मोचन क्रोड का विधान करती है वह सचमुच परमात्मा की कलाकृति है उसी ने मानव को कला की प्रेरणा प्रदान की है प्लेटो अरस्तु आदिक प्राचीन दार्शनिक काव्यशास्त्रियों ने कला को प्रकृति का अनुकरण बताया है प्रकृति में सुनाई देने वाली विभिन्न ध्वनियों के आधार पर ही संगीत के शब्द स्वरों का विधान एवं नामकरण किया गया है कवींद्र रवींद्र के शब्दों में प्रकृति ईश्वर की शक्ति का क्षेत्र है और जीवात्मा उसके प्रेम का क्षेत्र है.
प्रकृति में प्रत्येक कार्य एवं विशेष नियमानुसार होता है हमारा समस्त भौतिक विज्ञान उसके नियमों के उद्घाटन का विनम्र प्रयास है तथा मानव की आचार संहिता है उसकी नियमित एवं अविचल प्रक्रियाओं के साक्षात्कार के महोत्सव का दिव्य संगीत है प्रकृति हमें अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाती है प्रकृति अनुशासन में चलती है और एक शिक्षिका की भांति मानव को भी अनुशासन कीशिक्षा देती है ऋतु चक्र एक निश्चित अनुशासन का अनुवर्तन करता है हुकुम बिना न झूले पाता वाली उक्ति प्रकृति मे व्याप्त अनुशासन की ओर इंगित करती है.
प्रकृति में शून्य के लिए स्थान नहीं है जो दोगे उसका स्थान उसी वस्तु से बाहर जाएगा जो तुमने दी है महात्मा कबीर का कथन है -
ऋतु बसंत नायक भया हरष दिया द्रमपातताते कब पल्लव भया दिया मूर नहि जात
प्रकृति एक सामान्य नियम है कि प्रकृति के नियमों का पालन करके हम उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं नदी के ऊपर पुल बनाने के लिए आवश्यक है कि हम उसके प्रवाह युक्त जल को रोके नहीं अपितु उस को बहने के लिए अन्य मार्ग का निर्माण कर दे मानव जीवन में हम देखते हैं कि विरोध एवं संघर्ष की अपेक्षा प्रेम एवं सहयोग का मार्ग समर सत्ता का हेतु बनता है जब कभी और कहीं मनुष्य प्रकृति पर शक्ति के बल का अधिकार करने का प्रयास करता है अथवा उसके विनाश का मार्ग अपनाता है तब उसको मुंह की खानी पड़ती है और संकटों का सामना करना पड़ता है वर्तमान में ऋतु परिवर्तन की घटनाएं ये सिद्ध करती है कि मानव के कार्यकलाप प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जा रहे हैं उसने समस्त प्रकृति वातावरण एवं पर्यावरण को प्रदूषण एवं विनाश लीला से भर दिया है प्रकृति बार-बार कहती है कि वह एवं अंता प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए तथा जीवन को त्रासदी मुक्त करने के लिए नियम पालन एवं अनुशासन के मार्ग पर चलने का प्रयास करो किसी ने ठीक ही कहा है कि इस शक्ति उन्हीं को प्राप्त होती है जो प्रकृति के क्षेत्र में साधना करते हैं जो वह प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए अंता प्रकृति पर विजय प्राप्त करते हैं जो नवीन मर्यादाओं की स्थापना करते हैं वह पूर्व में स्थापित मर्यादाओं के पालन में सक्षम बनते हैं.
सूर्योदय एवं चंद्रोदय से लेकर फूलों फलों के विकास तक की समस्त प्रक्रिया विशेष नियमों के अंतर्गत कार्य करती हैं यह नियम शाश्वत एवं अविचल हैं प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव के जीवन के संदर्भ में भी इसी कोटि के कतिपय नियम मनुष्य उनको जानता है और मानता है उसको विश्व जान लेता है और प्रेरक रूप में उस को मान्यता प्रदान करता है अंग्रेजी के विश्व प्रसिद्ध नाटककार कभी शेक्सपियर ने लिखा है कि
the poem Hangs on the Berry bush when comes the poets.
अर्थात कवि की आंख को झरबेरी की झाड़ी में कविता के दर्शन होते हैं आप समझ लीजिए कि अपरिमित ज्ञान का भंडार है उसके पत्ते पत्ते पर शिक्षा पूर्ण पाठ है उसके कण-कण में प्रेरणा समाहित है उनका साक्षात्कार करने के लिए बाहर के चरण छू छू नहीं भीतर की हृदय की आंखें चाहिए प्रकृति अपना द्वार उसके लिए खुलती है जो धैर्य पूर्वक अनवरत साधना करते हैं कभी नहीं ने कहा है कि -
धीरे धीरे रे मना धीरज में सब होयमाली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय
आप धैयपूर्वक अपने कर्तव्य पथ पर चलते रहिए परिणामों के प्रति उतावले मत बनिए सफलता आपको अवश्य मिलेगी.
प्रकृति के चरण चिन्ह ऊपर चलो धैर्य रहस्य (इमर्शन)
समुद्र तट पर किसी स्थान पर समुद्र की ओर निकलती हुई चट्टान को ध्यान से देखिए विशाल समुद्र की लहरें वालों की तरह फन फैलाए हुए उसे टक्कर टक्कर मार दी और क्षेत्र आकर समुद्र में विलीन हो जाती है परंतु दृढ़ चट्टान अपने स्थान पर ज्यों की त्यों प्रभावित बनी रहती है शादी जिज्ञासु को हुआ यह पाठ में आती रहती है कि अपने स्थान पर अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ता पूर्वक जमे रहो विघ्न बाधाएं कितनी भी भयंकर एवं प्रजा कार हूं आपका कुछ नहीं थी नहीं बिगाड़ सकेंगी और स्वयं ही विलीन हो जाएंगी इसी प्रकार नदी नाले झरने आदि अपने किनारे के छोटे उन दुर्लभ लता कुछ को नष्ट करते रहते हैं परंतु सूत्र और बच्चों को बाहर आने पर भी नष्ट नहीं कर पाते हैं प्रकृति का मंतव्य स्पष्ट है विघ्न बाधाओं का सामना धैर्य पूर्वक करो उदारता एवं सफलता अवश्य मिलेगी.
अविश्वास पूर्वक प्रकृति के कोड जाइए और उसका संदेश सुनें आप देखेंगे कि आपको अपने कार्य एवं लक्ष्य के प्रति नवीन दिशा एवं दृष्टि प्राप्त होगी अपेक्षित हैं की दृढ़ता धैर्य और लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव प्रकृति में ना धोखा है और ना पक्षपात उसके द्वारा सबके लिए समान रूप से खुले हुए हैं प्रकृति में कहीं भी विकृति नहीं होती है.
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