Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
( 1) चार्टर एक्ट 1813 द्वारा कंपनी का भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया यद्यपि उसके चीन के साथ व्यापार तथा चाय के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा इस एक्ट से कंपनी द्वारा अधिकार में लिए गए राज्य क्षेत्रों पर ब्रिटिश राज (क्राउन) की संप्रभुता सुदृढ़ हो गई.
भारत शासन अधिनियम 1858 के द्वारा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर तथा बोर्ड आफ कंट्रोल को समाप्त कर उनके अधिकार एक 15 सदस्य परिषद को सौंप दिए गए जिसके अध्यक्ष को मुख्य राज्य सचिव या भारत राज्य सचिव (secretary of state for India) के नाम से जाना गया गौरतलब है कि 15 सदस्यीय परिषद हुआ भारत सचिव को वेतन भारतीय राजस्व से दिया जाना तय किया गया लेकिन इनका संचालन लंदन से होता था. इसे होम चार्जेस कहा गया.
( 2) भारत शासन अधिनियम 1935 द्वारा स्थापित संघ में अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल को प्रदान की गई थी.
1930- 32 में लंदन में हुए तीन गोलमेज सम्मेलनों में संविधानिक सुधारों से संबंधित संस्तुतियों के फल स्वरुप भारत शासन अधिनियम 1935 का निर्माण किया गया इसके तहत भारत में सर्वप्रथम संघीय शासन प्रणाली की नींव रखी गई केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना अर्थात केंद्र तथा राज्य इकाइयों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया संघ सूची प्रांत सूची तथा समवर्ती सूची । संघ सूची में 59 विषय प्रांत सूची में 54 विषय तथा समवर्ती सूची में 36 विषय शामिल किया जाए तथा अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल में निहित थी.
(3) द्वैध शासन (डायआर्की) का सिद्धांत प्रत्येक प्रांतीय सरकार की कार्यकारी शाखा को आधिकारिक और लोकप्रिय रूप से जिम्मेदार वर्गों में विभाजन को मान्यता देता है ब्रिटिश भारत के प्रांतों के लिए द्वैध शासन भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा प्रारंभ किया गया था.
( 4) भारत शासन अधिनियम 1919 को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है मांटेग्यू के साथ एक उच्चस्तरीय दल स्थिति का जायजा लेने भारत आया दल के अध्ययन के आधार पर जुलाई 1918 में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित की गई है रिपोर्ट 1919 के भारत शासन अधिनियम का आधार बनी इसी के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 1919 में भारत के औपनिवेशिक प्रशासन के लिए नया विधान बनाया जो 1921 में क्रियान्वित किया गया.
माउंटेन ड्यू चेम्सफोर्ड प्रस्ताव की विशेषताएं: -
- इस अधिनियम में सर्वप्रथम उत्तरदाई शासन शब्द का स्पष्ट प्रयोग किया गया था.
- सांप्रदायिक आधार पर निर्वाचन प्रणाली को सिखों यूरोपियन व अन्य भारतीयों पर भी लागू किया गया.
- इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन पद्धति को लागू किया गया.
- इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया तथा भारत सचिव को भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति का अधिकार दिया.
अतः मांटेग्यू चेम्सफोर्ड प्रस्ताव संवैधानिक सुधारों से संबंधित था.
(5) क्रिप्स मिशन में पूर्ण स्वतंत्रता के स्थान पर भारत को डोमिनियन स्टेटस (dominion status) देने का प्रस्ताव दिया था अर्थात भारत का राष्ट्र प्रमुख ब्रिटेन का राजा या रानी ही बने रहते.
डोमिनियन स्टेटस (स्वतंत्र उपनिवेश का दर्जा) की मांग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार 1908 ईसवी में की थी .उस समय इसका अर्थ केवल इतना ही था कि आंतरिक मामलों में भारतीयों को स्वशासन का अधिकार दिया जाए जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत कनाडा को प्राप्त था .बाद में कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन के तहत भारत का लक्ष्य पूर्ण स्वतंत्रता या पूर्ण स्वाधीनता घोषित किया. 15 अगस्त 1947 को भारत में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अंतर्गत पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त कर ली यह स्थिति 1949 ईस्वी में और अधिक स्पष्ट हो गई जब भारत को सार्वभौम प्रभुसत्ता संपन्न स्वाधीन गणराज्य के रूप में मान्यता प्राप्त कर दी गई.
भारत शासन अधिनियम 1919 की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों की अ( 6) धिकारिता से संबंधित -
- 1919 के अधिनियम में पहली बार उत्तरदाई शासन शब्द का स्पष्ट रूप से प्रयोग किया गया.
- प्रांतों में आंशिक उत्तरदाई शासन व द्वैध शासन की स्थापना की गई.
- इसके अनुसार सभी विषयों को केंद्र तथा प्रांतों में बांट दिया गया.
- केंद्रीय सूची में वर्णित विषयों पर सपरिषद गवर्नर जनरल का अधिकार था जैसे विदेशी मामले ,रक्षा, डाक तार, सार्वजनिक ऋण आदि.
- प्रांतीय सूची के विषय थे : स्थानीय स्वशासन , शिक्षा ,चिकित्सा ,भूमि कर, जल संभरण, अकाल सहायता ,कृषि व्यवस्था आदि.
- सभी अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास थी।
(7) भारत में संवैधानिक सुधारों की योजना के साथ मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा. इसमें पैथिक लारेंस ,स्टेफोर्ड क्रिप्स व ए.बी.अलेक्जेंडर शामिल थे इसकी सिफारिशें निम्नलिखित थी
- भारत में एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना होनी चाहिए जिसमें ब्रिटिश भारत और देसी राज्य सम्मिलित हो.
- संघीय विषयों वित्त , संचार तथा विदेशी मामलों में अतिरिक्त सभी विषय एवं अवशिष्ट शक्तियां प्रांतों में निहित होनी चाहिए.
- कैबिनेट मिशन ने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया किंतु प्रांतों का समूहीकरण कर परोक्ष रूप से विखंडन को बढ़ावा दिया.
- भारतीय न्यायालयों की शक्तियों का विस्तार तथा आईसीएस (भारतीय जनपद सेवा) मे भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने संबंधी प्रस्तावों से कैबिनेट मिशन का कोई संबंध नहीं था.
(8) रेडक्लिफ समिति: - रेडक्लिफ समिति की नियुक्ति तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा जुलाई 1947 में की गई थी इस समिति में अध्यक्ष सर रेडक्लिफ के अलावा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुस्लिम लीग के द्वारा नामांकित दो, दो सदस्य भी थे यह एक परामर्श दात्री समिति थी जिसे ब्रिटिश भारत के विभाजन के पश्चात भारत एवं पाकिस्तान के बीच सीमाओं को निर्धारित करने के संबंध में सुझाव देना था.
(9) संविधान सभा के गठन के संबंध में कैबिनेट मिशन में वयस्क मताधिकार पर आधारित निर्वाचन से इनकार कर दिया क्योंकि इसमें अत्यंत विलंब होता.
यह व्यवस्था की गई कि संविधान निर्मात्री सभा का गठन अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा किया जाएगा इसलिए प्रत्येक प्रांत के लिए जनसंख्या के अनुपात में कुछ सीटें आवंटित की गई है सामान्यतया 10 लाख की जनसंख्या पर एक सीट थी.
संविधान सभा के लिए उसके स्थानों हेतु हुए चुनाव में कांग्रेस को ब्रिटिश भारत के 214 सामान्य स्थानों में से 205 स्थानों पर जीत हासिल हुई.
संविधान सभा के चुनाव के आधार पर 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई.
(10) 1919 के भारत शासन अधिनियम की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं: -
इसके तहत केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था स्थापित की गई एक सदन को राज्य परिषद तथा दूसरों को केंद्रीय विधानसभा कहां गया.
इसके द्वारा पंजाब में सिखों को कुछ प्रांतों में यूरोपियन एल्गो इंडियंस तथा भारतीय ईसाइयों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया.
( 11) भारतीय संविधान के एक बड़ा हिस्सा भारत शासन अधिनियम 1935 से संबंधित है इस अधिनियम में केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों के विभाजन संबंधी उपबंध किए गए थे -
1935 के भारत शासन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान: -
- भारत शासन अधिनियम 1935 की सबसे बड़ी विशेषता ब्रिटिश प्रांतों तथा संघ में शामिल होने के लिए तैयार भारतीय रियासतों की एक अखिल भारतीय फेडरेशन की व्यवस्था करना था.
- क्योंकि अपेक्षित संख्या में रियासतें इसमें शामिल नहीं हुई परिणाम स्वरूप अखिल भारतीय संघ कभी भी अस्तित्व में नहीं आ सका.
- 1919 के अधिनियम के द्वारा प्रारंभ किए गए प्रांतीय द्वैध शासन को समाप्त कर दिया गया तथा केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली लागू करने का प्रावधान किया गया किंतु संघ के अस्तित्व ना होने के कारण यह व्यवस्था लागू नहीं हो सकी.
- भारत शासन अधिनियम 1858 के द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया.
- इस अधिनियम के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति में विस्तार किया गया इसके द्वारा दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की गई साथ ही इस अधिनियम के तहत बर्मा (वर्तमान में म्यॉमार) को भारत से अलग कर दिया गया और उड़ीसा (बिहार से अलग करके) तथा सिंध (बम्बई से अलग करके) नये प्रांतों का निर्माण किया गया.
- भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत केंद्र और संबंधित इकाइयों की शक्तियों के बंटवारे के लिए तीन सूचियों (संघ सूची (59 विषय) प्रांत सूची (54 विषय ) तथा समवर्ती सूची (36 विषय)) का प्रावधान किया गया.
- इस अधिनियम के तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई.
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