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UPSC परीक्षा में मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार के बारे में परिचर्चा करो?

सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय कला एवं संस्कृति एक महत्त्वपूर्ण विषय है। इसमें भारतीय कला एवं संस्कृति से सम्बन्धित प्रारंभिक परीक्षा तथा मुख्य परीक्षा में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण Topic में रखा गया है। इसमें अगर महत्वपूर्ण Topic की बात की जाये भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला और मृद्भाण्ड, भारतीय चित्रकलायें, भारतीय हस्तशिल्प, भारतीय संगीत से सम्बन्धित संगीत में आधुनिक विकास, जैसे महत्वपूर्ण विन्दुओं को UPSC Exam में पूछे जाते हैं।                      भारतीय कला एवं संस्कृति में भारतीय वास्तुकला को भारत में होने वाले विकास के रूप में देखा जाता है। भारत में होने वाले विकास के काल की यदि चर्चा कि जाये तो हड़प्पा घाटी सभ्यता से आजाद भारत की कहानी बताता है। भारतीय वास्तुकला में राजवंशों के उदय से लेकर उनके पतन, विदेशी शासकों का आक्रमण, विभिन्न संस्कृतियों और शैलियों का संगम आदि भारतीय वास्तुकला को बताते हैं।          भारतीय वास्तुकला में शासकों द्वारा बनवाये गये भवनों की आकृतियाँ [डिजाइन] आकार व विस्तार के...

पानी और हवा का हमारे जीवन में क्या उपयोग है ?: Water and air important

हमारे चारों ओर हर जगह हवा उपस्थित है. कोई भी सजीव वस्तु बिना हवा के जीवित नहीं रह सकती है.

  • पृथ्वी सब ओर से हवा से ढकी हुई है हवा का यह आवरण वायुमंडल कहलाता है. हम वायुमंडल में रहते हैं इसका विस्तार सैकड़ों किलोमीटर तक है 16 किलोमीटर तक हम बादल वर्षा और बर्फ देखते हैं जैसे-जैसे हम वायुमंडल में ऊपर की ओर जाते हैं वह आयु कम होती जाती है जेट विमान साधारण रूप से बादलों के ऊपर उड़ते हैं.

  • वायु पदार्थ है. वह स्थान गिरती है तथा इसमें द्रव्यमान होता है इसका कोई रंग नहीं होता है हम इसके आर पार देख सकते हैं यह सभी जगह उपलब्ध रहती है और यह सभी उपलब्ध स्थान को भर देती है.

  • वायु कई गैसों का एक मिश्रण है वायु का लगभग 4/5 भाग नाइट्रोजन 1/ 5 भाग ऑक्सीजन तथा थोड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड आर्गन हीलियम जलवाष्प तथा धूल के कण होते हैं.

ऊंचाई पर वायु विरल होती है और उसमें सांस लेना कठिन हो जाता है इसलिए पहाड़ों पर चढ़ने वाले तथा समुद्र की गहराई में जाने वाले गोताखोर अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाते हैं क्योंकि वहां कोई हवा नहीं होती है जिन रोगियों को सांस लेने में कठिनाई होती है उन्हें भी ऑक्सीजन दी जाती है.

  • ऑक्सीजन जीव जंतुओं द्वारा स्वसन के लिए उपयोग की जाती है स्वसन के समय ऑक्सीजन भोजन का दहन करके ऊर्जा देती है इस प्रकरण में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जलवाष्प बनते हैं और बाहर निकल जाते हैं.

  • हरे पेड़ पौधे अपना भोजन बनाने के लिए सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जलवायु का उपयोग करते हैं यह प्रक्रम प्रकाश संश्लेषण कहलाता है इस प्रकरण में ऑक्सीजन निकलती है इस प्रकार प्रकृति में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बना रहता है.

मानव जाति के लिए वायु के उपयोग: -

  • मानव जाति को स्वसन के लिए हवा की आवश्यकता होती है.

  • वस्तुओं को जलाने के लिए भी वायु आवश्यक है अर्थात चूल्हा या केरोसिन stove तभी जलते हैं जब उन्हें वायु पर्याप्त मात्रा में मिलती है.

  • साइकिल, स्कूटर ,कार ,ट्रक तथा वायुयान जैसे वाहनों में संपीड़ित वायु से भरे टायर होते हैं या टायर ही परिवहन की गति को तीव्र और आसान बना देते हैं.

  • खेलने में प्रयोग आने वाले के ball  में भी हवा भरी जाती है बिना हवा भरे फुलाया नहीं जा सकता है।

  • खुदाई करने खान खोदने तथा पत्थर तोड़ने की मशीनों में संपीड़ित हुआ उपयोग की जाती है संपीड़ित वायु खानों में द्रव्य पदार्थों को उड़ाने के लिए भी उपयोग में लाई जाती है.

रेलगाड़ी को रोकने के लिए ब्रेक तंत्र में संपीड़ित वायु का ही उपयोग किया जाता है.

  • कृषि के उत्पाद जैसे अनाज और दालों सूखे में हूं और गीले कपड़ों को सुखाने में वह आयु सहायता करती है.

  • गर्मियों में पंखे के नीचे बैठने से हवा लगती है क्योंकि पंखा वायु को चारों ओर घूम आता है और पसीने की शीघ्रता से वाष्पीकरण करने में सहायता करता है.

  • वायु नौका ग्लाइडर पैराशूट और वाहनों को चलाने में सहायता करती है चिड़िया चमगादर तथा मक्खियां हवा में ही हवा के कारण ही उड़ती है.

वायु पवन चक्की को चलाती है पवन चक्की का उपयोग ट्यूब जल से जल निकालने के लिए तथा आटे की चक्की चलाने के लिए किया जाता है समुद्र के किनारे पवन चक्की विद्युत उत्पादन करने के लिए भी प्रयुक्त की जाती है.

जल: -

  • हमारे चारों ओर जल एक अत्यधिक सामान्य तथा महत्वपूर्ण पदार्थ है यह हमारे प्रतिदिन के सभी कार्यों के साथ-साथ कृषि तथा उद्योगों के लिए भी बहुत ही आवश्यक है.

  • सभी जंतु तथा पौधों को जल की आवश्यकता होती है मनुष्य के शरीर में भार के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत जल होता है इसी प्रकार हाथी एवं वृक्ष में क्रमश 80% एवं 60% जल की उपस्थिति होती है.

  • जंतु तालाबों झरनों तथा नदियों से जल की प्राप्ति करते हैं जबकि पौधे अपनी जड़ों के द्वारा मिट्टी से जल प्राप्त करते हैं जड़ों से जल पौधों के विभिन्न अंगों में जाता है पौधे इस जल का उपयोग अपने जीवन पर आक्रमण में करते हैं वह लगातार पत्तियों के छोटे-छोटे क्षेत्रों से जल्द होते रहते हैं यह प्रक्रम वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।

जल के बिना बीजों का अंकुरण संभव नहीं है इसी प्रकार जल जंतुओं को ठंडा रखने का भी कार्य करता है.

भारतवर्ष में एक अनुमान के अनुसार गांव में रहने वाले प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 12 लीटर पानी का उपयोग करता है जबकि नगरों में एक व्यक्ति प्रतिदिन 50 से लेकर 2000 लीटर तक जल का उपयोग करता है अर्थात जैसे-जैसे रहन-सहन का स्तर सुधरता है जल की आवश्यकता भी बढ़ती है.

  • जल की अधिक खपत खेती-बाड़ी के कार्यों में और कई उद्योगों में जैसे कागज रयान पेट्रोलियम शुद्धीकरण उर्वरक रंग औषधि तथा रसायन आदि उद्योगों में जल की खपत बड़ी मात्रा में होती है.

  • कुछ देशों में लोग अपने घरों को गर्म करने वस्तुओं को शीतल रखने के लिए जल का प्रयोग करते हैं जैसे कार के इंजन को ठंडा रखने के लिए कार रेडिएटर में जल भरा जाता है.

  • पृथ्वी पर सर्वाधिक जल की मात्रा समुद्र में है अर्थात पृथ्वी का दो बटे तीन से अधिक भाग समुद्र से गिरा हुआ है परंतु समुद्र का जल नमकीन होने का कारण दैनिक एवं कृषि कार्य में प्रयुक्त नहीं होता इसलिए जल के अन्य स्रोत जैसे तालाब झड़ने नदियां कुएं वर्षा का जल चश्मा एवं भूमिगत जल के प्रयोग पर हमारी निर्भरता बनी रहती है परंतु जल के यह शोध भोजन बनाने और पीने के लिए सदैव उपयुक्त नहीं होते क्योंकि इसमें कई अशुद्धियां तथा जीवाणु उपस्थित होते हैं.

  • अशुद्ध एवं जीवाणु युक्त जल को पीने योग्य बनाने के लिए बहुत से उपाय किए जाते हैं जैसे शहरों में जल नल से प्राप्त किया जाता है और नल तथा तक जल को पहुंचाने के लिए लंबा मार्ग तय करना पड़ता है कई स्थानों पर पहले जल पंप द्वारा किसी स्रोत जैसे नदी या झील से निकाला जाता था और बड़े-बड़े टैंकों में कट्ठा किया जाता था इसके बाद पानी जल संस्थानों में जाता था जहां से इसे स्वच्छ किया जाता था यहां पर जल को चिकने कंकड़ और रेत की तरह कुकर छोड़ने के लिए दिया जाता है धूल रेत में ही रह जाती है अब कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन की अभिक्रिया द्वारा जल को कीटाणु रहित किया जाता है स्वच्छ जल मुख्य पाइपों के द्वारा नगर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है जो छोटे पाइपों से होकर हर घर में पहुंचता है.

  • ऐसे स्थान जहां नल के माध्यम से जल प्राप्त नहीं होता है उन्हें स्थानों पर जल के अनुरोध जैसे नदी झील तालाब एवं को से जल प्राप्त किया जाता है और जल के शुद्धिकरण के लिए जल को उबालकर छानकर तथा पोटेशियम परमैग्नेट जैसे कुछ रसायनों से शुद्ध करके पीने योग्य बनाया जाता है.

  • शुद्ध जल रंगहीन गन अधीन स्वाधीनता का पारदर्शक होता है जबकि थोड़ी मात्रा में भूले घुलनशील नवर जैसे गैस से जल को स्वाद देते अर्थात गुरु ट्यूबवेल तथा नल से प्राप्त पानी में घुलनशील पदार्थ होते हैं.

  • जल जिसमें अधिक मात्रा में घुलनशील लवण होते हैं वह खारा जल कहलाता है.

प्रकृति में जल चक्र: -

  • समुद्रों तालाबों झीलों और नदियों के जल को गर्म कर देता है इन स्रोतों से जल लगातार वायु मे वाष्पीकृत होता है सूर्य की गर्मी पृथ्वी की सतह के निकट वायु को गर्म कर देती है यह गर्म वायु जल वाष्प के साथ ऊपर उठती है वायुमंडल से ऊंचाई के साथ ताप कम होता जाता है जबकि अधिक ऊंचाई पर जलवाष्प ठंडी होती है तो जल की छोटी-छोटी बूंदे बन जाती है बल्कि यह छोटी बूंदे बादल बनाती हैं जब बादलों में जल कि यह छोटी-छोटी बूंदे पास पास आती हैं तो वे जल की बड़ी बूंदे बनाती हैं जल की यह बूंदे वर्षा के रूप में गिर सकती है यदि वायु अधिक सीमा तक ठंडी हो जाती है तो जल की बूंदें बर्फ के कणो में जम जाती हैं और यह कण आपस में मिलकर बर्फ की पतली परते बनाती है जो ठंडे क्षेत्रों में बर्फ  के रूप में गिरती है।

  • कुछ स्थानों पर जाड़ों में बर्फ गिरती है जब बर्फ पिघलती है तब जल चश्मा और नदियों में बहता है इसमें से काफी नदियां समुद्र में गिरती अधिकतर जल  जो   वर्षा के रूप में गिरता है चश्मा तथा नदियों से होकर समुद्र में ही पहुंचता है.

  • वर्षा के जल का कुछ भाग वाष्पीकृत  हो जाता है तथा कुछ भारी मिट्टी द्वारा अवशोषित हो जाता है और पृथ्वी के भीतर चला जाता है पृथ्वी पर जल सजीवों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है इसमें मनुष्य भी सम्मिलित है अंत में यह जल बहुत से जीवन प्रकरणों के द्वारा प्रकृति में वापस आ जाता है इस प्रकार जल प्रकृति में सदैव चलता रहता है।

कठोर एवं मृदु जल: -

  • जल में घुलने घुलनशील लवणों के कारण जल जल साबुन के साथ आसानी से झाग नहीं बनाता है तो ऐसा जल कठोर जल कहलाता है इसके विपरीत जो जल साबुन के साथ आसानी से झाग बनाता है उन्हें मृदु जल कहलाता है.

  • कैल्शियम क्लोराइड और मैग्नीशियम क्लोराइड की उपस्थिति जल को कठोर बनाती है.

  • जल की कठोरता उबालकर या धावन सोडा जैसे रसायनों के साथ अभिक्रिया द्वारा दूर की जा सकती है.

कठोर जल पीने के लिए उपयुक्त है परंतु कपड़े धोने के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें आसानी से मेल दूर नहीं होता है.


 जल संसाधन( water resources):


जलमंडल का प्रमुख घटक जल है ।पृथ्वी के 70.8% भाग पर जलमंडल का ही विस्तार है। जल का जीवन के साथ अटूट संबंध है। वायु में जलवाष्प के रूप में तथा मिट्टी में मृदा जल के रूप में जल स्थित रहता है। महासागरों एवं सागरों में जल का अधिकांश भाग मिलता है जिसका प्रत्यक्ष रूप से अनुप्रयोग होता है। ग्लेशियर तथा ध्रुवीय हिम के रूप में भी जल मिलता है। इसके अतिरिक्त ,अलवणीय झील, तालाब, छोटी झील, नदी तथा अन्य जलाशयों आदि में जल मिलता है। लगभग 3% जल का उपयोग मनुष्य द्वारा किया जा रहा है। जल जीवो के शरीर का एक अभिन्न अंग है तथा जीवन की क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने हेतु आवश्यक है। मृदा जल, पादपों की वृद्धि, जनन क्रियाओं आदि को प्रभावित करता है। किसी स्थान पर उगने वाली वनस्पति के निर्धारण में भी वर्षा जल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भूमंडलीय जल जलवायु को सर्वाधिक प्रभावित करता है।


            समुद्र एक सक्षम तथा दक्ष ताप अवशोषक है। कि लगभग 80 से 90% वाष्प  वर्षा, नदी  आदि के माध्यम से पुनः समुद्र को प्राप्त होती है। मृदा से प्राप्त होने वाला जल वर्षा से ही मिलता है। भूमि पर अलवणीय जल सीमित रूप से उपलब्ध है। इसका अनियमित वितरण व दुरुपयोग इस सीमित संसाधन द्वारा जलापूर्ति की समस्या को जटिल बना रहा है। मुख्य रूप से इसका उपयोग पेयजल ,कृषि में तथा अन्य उद्योगों में किया जाता है।जैवमंडल में मिलने वाले अन्य जीव भी इसी अलवणीय जल पर आश्रित है। औद्योगिक विस्तार, अनियंत्रित जनसंख्या, योजनाविहिन प्रबंधन ने जल को एक दुर्लभ संसाधन बना दिया है। आज विश्व में विशेषज्ञों का ध्यान इस ओर गया है तथा वे प्रयत्नशील हैं  कि भावी मानव पीढ़ियों के लिए पेयजल की सुचारू रूप से निरंतर उपलब्धता किस प्रकार सुनिश्चित की जाए।

              मृदा में जल की उपलब्धता मृदा के लिए एक संवेदनशील क्रांतिक कारक( critical factor) है जिसका प्रत्यक्ष संबंध मृदा अपरदन, मृदा के पादप आवरण तथा उत्पादकता से है। भारत में बाढ़ से जीवों  तथा संपत्ति को प्रत्येक वर्ष अत्यधिक हानि होती है। बाढ़ के कारण मृदा अपरदन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कृषि योग्य भूमि कम हो रही है तथा उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। असम, विहार, उत्तर प्रदेश ,बंगाल, उड़ीसा आदि बाढ़ से प्रभावित होने वाले राज्य हैं। जलाशयों व सिंचाई के साधनों का उचित प्रबंधन ना होने से यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त मनुष्य जाति द्वारा किया गया इसका दुरुपयोग तथा इसके संरक्षण की जान बूझकर की गई अवहेलना ने जल को एक दुर्लभ संसाधन बना दिया है। यदि इसका योजनाविहीन उपयोग इसी प्रकार जारी रहा तो आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए इसकी पर्याप्त उपलब्धता असंभव है।

             महासागरों का उपयोग आजकल यात्रा व परिवहन में जलयानों द्वारा किया जा रहा है। महासागर खनिज तथा जैव विविधता के अतुलनीय भंडार है। समुद्र में मिलने वाले शैवाल  खाद्य, आयोडीन आदि के महत्वपूर्ण स्रोत है। समुद्री मछलियां मानव भोजन का एक प्रमुख अंग है। विश्व में खाद्य के रूप में लगभग 75 मिलियन टन मछली का उपयोग होता है। लगभग 3 मिलियन टन पर्ल आयस्टर से प्राकृतिक सच्चे मोती प्राप्त होते हैं। समुद्र में अनेक खनिज जैसे: लौह अयस्क, सीसा, गंधक, सोडियम ,सोना ,निकिल, कोबाल्ट, एलमुनियम, यूरेनियम, मैग्नीशियम आदि मिलते हैं। आजकल पेट्रोल और गैस का भी खनन किया जा रहा है। पर्यावरण के प्राकृतिक रूप को बनाए रखने में जल स्रोतों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। आजकल कच्चे तेल को एक देश से दूसरे देश ले जाने में दुर्घटना के कारण कभी-कभी सारा तेल समुद्र में बह जाता है जिसका कारण समुद्र में रहने वाले जीवो की मृत्यु हो जाती है तथा जल प्रदूषण फैलता है। परमाण्विक विस्फोट तथा रेडियो एक्टिव कचरा जब कुछ देशों द्वारा समुद्र में फेंका जाता है उससे भी जीवो को हानि होती है। कभी-कभी समुद्री जीवो में प्रदूषण कारी तत्व आ जाते हैं, यदि इन चीजों का सेवन मानव द्वारा भोजन के रूप में किया जाता है तो तरह तरह के रोग होने की संभावना रहती है।


जल स्रोतों के मुख्य उपयोग निम्न प्रकार हैं:

(1) सिंचाई के लिए

(2) परिवहन में

(3) पेयजल  प्राप्ति के लिए

(4) जल विद्युत शक्ति के उत्पादन में

(5) जलीय  खेलों में

(6) नहाने के लिए

(7) औद्योगिक तथा नगरीय बस्तियों के व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने हेतु

(8) मछली उत्पादन आदि में

(9) रेडियो एक्टिव कचरे को फेंकने हेतु

(10) खनिज पदार्थों के उत्पादन में

(11) सच्चे मोती के उत्पादन में

(12) नमक. आयोडीन आदि के उत्पादन में


             एक सीमा से अधिक जल स्रोतों का उपयोग किया जाता है तो इससे वायुमंडल का जलीय चक्र प्रभावित होगा जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे जनजीवन पर पड़ेगा; अतः यह नितांत आवश्यक है कि जलीय पारितंत्र का भली प्रकार अध्ययन किया जाए तथा उपलब्ध चलिए स्रोतों का सीमित मात्रा में योजनाबद्ध तरीके से सदुपयोग हो तथा इनका प्रदूषण व दुरुपयोग रोकने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएं। जलीय स्रोतों का उचित प्रबंधन( management) अति आवश्यक है जिसके लिए निम्नलिखित तथ्यों का ज्ञान आवश्यक है:

(1) जल की निकासी

(2) कुल जल की मात्रा

(3) बहने वाले जल तथा खनिज की मात्रा

(4) ऊर्जा प्रवाह

(5) खनिज चक्र निर्जीव कार को से जीवन तक

(6) वाष्प उत्सर्जन आदि द्वारा जल हानि की मात्रा

(7) कुल उत्पादन तथा शुद्ध सकल उत्पादन आदि

          एक उत्तम प्रबंधन किया हुआ जल स्रोत वही है जिसका बहुआयामी उपयोग बिना उसे क्षति पहुंचाया किया जा सके। कुप्रबंधन( mismanagement) के कारण जल स्रोत बहुत कम समय के लिए ही उपयोग  किए जा सकते हैं तथा शीघ्र ही वे प्रदूषण का अधिक उपयोग करने योग्य नहीं रह जाते हैं।

Comments

Business Kmaal said…
Hello bhai muje apse kuch baat krni h site se related please mujhe apne no... Send kro

Es email me kr do

Himanshukumawat262@gmail.com

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