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इजरायल ईरान war और भारत ।

इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4  मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं।                    इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे  कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है।  [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव:   सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...

अपने कर्मचारियों द्वारा किए गए अप कृतियों के लिए राज्य के दायित्व की विवेचना: Discuss the liability of state for the torts committed by its servant

विधि के शासन में प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिए वाद लाने का अधिकार होता है वह किसी भी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो अधिकारों के अति लंघन का दोषी है वाद ला सकता है चाहे वह राज्य अथवा सरकार ही क्यों ना हो आपके मन में यहां यह विचार आ सकता है कि आप का यह विचार सही है कि राज्य और सरकार जीवित व्यक्ति नहीं है उन्हें व्यक्तिशः न्यायालयों में लाकर खड़ा नहीं किया जा सकता लेकिन इसका भी उपाय किया गया है राज्य को इस प्रयोजनार्थ  विधिक अथवा न्यायिक व्यक्ति माना गया है विधिक अथवा न्यायिक  व्यक्ति के रूप में उसके नाम पर वाद लाया जा सकता है और जब उसके विरुद्ध वाद लाया जा सकता है तो वह स्वयं भी अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध वाद ला सकता है इस प्रकार यदि केंद्रीय सरकार की ओर से अथवा उसके विरुद्ध वाद लाया जाना है तो पक्षकार यूनियन आफ इंडिया अर्थात भारत संघ होगा और यदि किसी राज्य सरकार की ओर से अथवा उसके विरुद्ध वाद लाया जाना है तो पक्षकार वह  राज्य  होगा जैसे राजस्थान राज्य पंजाब राज्य आदि.

                  (अनुच्छेद 300)

            उक्त   विश्लेषण से शायद यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य विधिक अथवा न्यायिक व्यक्ति होने के नाते वाद लाने का अधिकारी है और साथ ही उसके विरुद्ध भी वाद लाया जा सकता है.

                किन  कार्यकलापों के बारे में ऐसा वाद लाया जा सकता है इस बात का भी निश्चय विधान मंडल द्वारा किया जाता है।

अपकृत्य के मामले में राज्य का दायित्व: - अपकृत्य के मामलों में राज्य का दायित्व सदैव विवादास्पद रहा है लोक सेवक के रूप में राज्य कृत्यो का निर्वहन करते समय यदि कोई अपकृत्य हो जाती है तो क्या राज्य को उसके लिए उत्तरदाई ठहराया जा सकता है इस संबंध में हमारे यहां एक सिद्धांत विकसित हुआ है कि यदि कोई अपकृत्य प्रभुता संपन्न शक्ति के अंतर्गत कार्य करते हुए  हुआ है तो उसके लिए राज्य को उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता लेकिन विवाद यहीं समाप्त नहीं हुआ और प्रश्नों का तांता फिर भी लगा रहा प्रश्न यह रहा कि किस कार्य को प्रभुसत्ता संपन्न शक्ति के अंतर्गत किया गया माना जाए और किसे नहीं.

यात्रा पेनिनसुलर एंड ओरिएंटल स्टीम नेवीगेशन कंपनी से श्याम सुंदर और थंगराजन तक की: -
इस बिंदु पर हमारे न्यायालयों ने p&o स्टील नेवीगेशन कंपनी से लगाकर श्याम सुंदर और थंगराजन तक की एक लंबी यात्रा तय की है इस यात्रा में इसके कई खट्टे मीठे अनुभव रहे हैं अंन्तः जनसाधारण को भी अभी तक अप कृतियों से कार्य क्षति के मामलों में कोई सरभूत राहत नहीं मिल पाई है न्यायालयों ने कहकर हाथ खड़े कर दिए कि ऐसे मामलों में राहत प्रदान करना संसद के हाथ में है और संसद को विधि बनाकर सभी प्रकार के अप कृतियों के लिए संघ और राज्यों को दायित्व के अधीन कर देना चाहिए.

          खेद इस बात का है कि न्यायालयों की यह राय मात्र निर्णय के दस्तावेजों में ही यथावत है अब तक ना तो संघ सरकार ने इस पर विचार किया है और ना ही किसी राज्य सरकार ने.

P&o स्टीम नेवीगेशन कंपनी बनाम सेक्रेट्री आफ स्टेट फॉर इंडिया का मामला: -

वादी कंपनी का एक कर्मचारी अपनी बग्गी में बैठकर जा रहा था मार्ग में सरकारी कर्मचारी एक लोहे का खंभा धो रहे थे और उपेक्षा से बग्घी के घोड़ों को चोट आ गई उक्त सरकारी कर्मचारी सरकार द्वारा स्थान पर सरकारी डाकयार्ड के नियोजित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पीकॉक ने अपने निर्णय में कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी दो प्रकार के कृत्य करती थी एक तो सरकारी कृतिया प्रभु सत्तात्मक कृत्य जिन्हें करने की अधिकारिता उसे ब्रिटिश सरकार से विशेष रूप से दी गई थी और दूसरे गैर सरकारी कृत्य जो वह एक व्यापारी कंपनी की हैसियत से करती थी इनमें सरकारी या प्रभु सत्तात्मक कृतियों के संबंध में वह अपने कर्मचारियों के अप कृतियों के लिए दायित्व के अधीन नहीं थी परंतु गैर सरकारी कृत्यों के संबंध में वह किसी भी अन्य प्राइवेट व्यक्ति की तरह ही दायित्व के अधीन थे इन मामलों में न्यायालय ने सेक्रेट्री आफ स्टेट फॉर इंडिया को दायित्व के अधीन माना क्योंकि जहाजों की मरम्मत और डॉकयार्ड का काम और इस कृत्य के संबंध में ईस्ट इंडिया कंपनी को यदि वह प्रतिवादी होती है तो दायित्व के अधीन घोषित किया जाता.

                इस निर्णय के अनुसार अनुच्छेद 300 के अधीन राज्य की सरकार का अपने कर्मचारी के अपकृत्य के लिए दायित्व इस बात पर निर्भर करता है कि कर्मचारी कोई प्रभु सत्तात्मक कृत्य कर रहा था या कोई ऐसा काम कर  रहा था जिसे प्रभु सत्तात्मक नहीं कहा जा सकती.

स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम विद्यावती का मामला: - लोकूमल नामक व्यक्ति राजस्थान सरकार का कर्मचारी था और वह जिलाधीश की जीप चलाता था दिनांक 11 फरवरी 1952 को वे उदयपुर शहर में जीत की मरम्मत करवाने के पश्चात उसे कारखाने से वापस ले जा रहा था गाड़ी को शहर में उपेक्षा और उतावलापन से चलाने के कारण जगदीश लाल जो फुटपाथ पर चल रहा था दुर्घटनाग्रस्त होकर मारा गया उसकी विधवा पत्नी ने अपने और अपने 3 साल की बच्ची की ओर से नुकसानी का दावा किया जिसमें उसने लोकूमल को प्रथम तथा राज्य को द्वितीय प्रतिवादी बनाया था उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या राजस्थान राज्य अपने कर्मचारी लोकूमल  के अपकृत्य के लिए उत्तरदाई है और उसे दायित्व आधीन ठहराया जा सकता है न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि जिस समय दुर्घटना हुई उस समय जीप प्रभु सत्तात्मक कृत्य के लिए काम में नहीं लाई जा रही थी वह केवल कारखाने से न्यायाधीश के निवास पर लाई जा रही थी राज्य  नुकसानी के लिए उत्तरदाई है।

मेसर्स कस्तूरीलाल रलिया राम जैन बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश का मामला इस मामले में कस्तूरी लाल को रात के समय मेरठ शहर से इस संदेह से गिरफ्तार किया गया कि ताकि वह कहीं चोरी का माल तो लेकर नहीं जा रहा हो उसके पास से लगभग 103 तोला सोना और दो मन से अधिक चांदी का अधिग्रहण कर लिया गया तत्पश्चात कस्तूरी लाल को तो दूसरे दिन जमानत पर छोड़ दिया गया और उसकी चांदी उसे वापस कर दी गई परंतु उसका सोना पुलिस के माल खाने में रखा रहा और उसके बार-बार मांग करने पर भी उसे नहीं लौटाया गया तब उसने सोने के लिए राज्य के विरुद्ध दावा किया जिसमें साक्ष्य के आधार पर यह सिद्ध हुआ की सोना पुलिस की उपेक्षा के कारण मोहम्मदअमीर नामक हेडकस्टेबल  माल खाने से चुराकर पाकिस्तान भाग गया है उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपीलार्थी का दावा था कि ऐसी स्थिति में जबकि राज्य के कर्मचारियों के अपकृत्य के कारण नुकसान कारित हुआ हो तो राज्य को दायित्व के अधीन घोषित किया जाना चाहिए और अपीलार्थी  को नुकसानी दिलाई जानी चाहिए परंतु उच्चतम न्यायालय में अपीलार्थी के दावे को अस्वीकार कर दिया और कहा कि पुलिस अधिनियम द्वारा प्रदत्त प्रभु सत्तात्मक शक्तियों को प्रयोग कर रही थी अतः कर्मचारियों की उपेक्षा और अपकृति के लिए राज्य पर दायित्व अधिरोपित  नहीं किया सकता है।

सत्यवती बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का मामला वायु सेना के एक ट्रक चालक की उपेक्षा के कारण सत्यवती के पति की मृत्यु हो गई घटना के समय वायु सेना की टीम को वाई सेना के ट्रक द्वारा मैच खेलने के लिए ले जाया जा रहा था राज्य की ओर से वह तर्क प्रस्तुत किया गया कि यह कृत्य प्रभु सत्तात्मक शक्ति के प्रयोग में किया गया क्योंकि सैनिकों को स्वस्थ और चुस्त रखने के लिए खेल शारीरिक व्यायाम आदि करना अनिवार्य है अतः राज्य उत्तरदाई नहीं है न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए यह अभी निर्धारित किया कि टीम को मैच खेलने के लिए जाने का कार्य प्रभु सत्तात्मक सत्य के प्रयोग में किया गया कृत्य नहीं है अतः सत्यवती राज्य से नुकसानी पाने की हकदार है.

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम शुगर हवाई का मामला इस मामले में प्रतिरक्षा विभाग के एक ट्रक चालक द्वारा ट्रक को उपेक्षा और असावधानी से चलाने के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु कार्य कर दी गई घटना के समय चालक ट्रक की वर्कशॉप से मरम्मत कराकर एक मशीन सैनिक प्रशिक्षण विद्यालय को ले जा रहा था जिसमें सैनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था राज्य की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया था कि यह कृत्य प्रभु सत्तात्मक शक्ति के अंतर्गत किया गया था अतः नुकसानी के लिए राज्य दायित्व के अधीन नहीं है बंबई उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि चालक के अपकृत्य के लिए राज्य उत्तरदाई है क्योंकि मशीन को सैनिक विद्यालय तक भेजने का कार्य किसी प्राइवेट व्यक्ति द्वारा भी किया जा सकता था म्यूजिक प्रभु सत्तात्मक शक्ति के प्रयोग में किया जा सकता.

रूपलाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का मामला: - इसमें प्रतिरक्षा विभाग के कुछ सैनिक रावी नदी के किनारे पर रखी हुई अपीलार्थी की लकड़ी कैंप फायर के लिए एक सैनिक ट्रक में लाद कर ले गए जिस समय सैनिक लकड़ी उठाकर ले गए उस समय वह मान रहे थे कि लकड़ी राज्य की संपत्ति है और कोई प्राइवेट व्यक्ति इसका स्वामी नहीं है लकड़ी के स्वामी ने राज्य के विरुद्ध नुकसानी हेतु दावा किया जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि सैनिकों ने यह अपकृत्य राज्य की सेवा के अनुक्रम में किया था अतः राज्य नुकसानी के लिए उत्तरदाई है सैनिक द्वारा किया गया वह अपकृत्य प्रभु सत्तात्मक शक्ति का प्रयोग में किया गया कार्य नहीं था.

बक्शी अमीर सिंह बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया का मामला सेना के एक ट्रक के चालक की उपेक्षा व लापरवाही के कारण अपीलार्थी दुर्घटनाग्रस्त हो गया घटना के समय चालक ड्यूटी पर तैनात  सैनिकों को निरीक्षण के लिए जा रहा था न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि दुर्घटना प्रभु सत्तात्मक शक्ति के प्रयोग में किए गए कृत्य के निर्वहन में हुई थी क्योंकि ऐसे कार्य के लिए केवल सेना के व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जा सकता है प्राइवेट व्यक्ति को नहीं आता राज्य नुकसानी के लिए दायित्वाधीन नहीं है.

स्टेट आफ उड़ीसा बनाम पदमालोचन का मामला इस मामले में उड़ीसा के सैनिक जवानों द्वारा लाठीचार्ज किए जाने पर विद्यार्थियों को काफी चोटें इस घटना के समय यह घटना तब घटी जब छात्रों को एक जुनून उपखंड अधिकारी के कार्यालय में अपनी कुछ मांगे लेकर पहुंचा कार्यालय तथा राज्य संपत्ति के सुरक्षा हेतु रुणिचा की सैनिक पुलिस ने पहले से ही कार्यालय की घेराबंदी कर रखी थी भीड़ उत्तेजित हो गई और उसने घेराबंदी तोड़ने की चेष्टा की इस पर पुलिस के जवानों ने उच्च अधिकारियों की आज्ञा के बिना ही भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया जिससे घायल हो गया उड़ीसा उच्च न्यायालय ने यह अभी निर्धारित किया कि राज्य पुलिस के अपकृत्य के लिए उत्तरदाई नहीं है क्योंकि उन्होंने जो कुछ किया वह प्रभु सत्तात्मक शक्ति के प्रयोग में किया था.

श्यामसुंदर बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान का मामला: - राज्य की सिविल सेवा का एक कर्मचारी रीतलाल अकाल मुक्त कार्य संबंधी अपने कर्तव्य के अनुपालन में राज्य की एक मालवाहक मोटर गाड़ी में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते समय चालक की उपेक्षा और वाहन की खराबी कारण दुर्घटनाग्रस्त होकर मारा गया उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि अकाल राहत का कार्य नहीं है जिसे केवल सरकार ही करती है प्राइवेट व्यक्ति भी इसे कर सकते हैं और वास्तव में करते हैं अतः यह कोई प्रभु सत्तात्मक कार्य नहीं है राज्य इसके लिए नियोजक की हैसियत से दायित्व के अधीन है

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