Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
भारत का भूगोल महत्वपूर्ण टॉपिक भाग - 2 Indian geography important topics for one day exam and civil services exams part 2
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण नदियों के आधार पर हुआ प्रादेशिक वर्गीकरण को ही हिमालय का क्षैतिज वर्गीकरण कहते हैं.
सिंधु: - पंजाब या कश्मीर हिमालय ( चौड़ाई सर्वाधिक अधिक)सतलज: - कुमायूं हिमालय( हिम नदियां( glacier))काली: - नेपाल हिमालय (ऊंचाई सर्वाधिक)तीस्ता: - असम हिमालय ( विविधता सर्वाधिक)
उत्तरी मैदान: -
उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिंधु गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों से निर्मित है यह मैदान जलोढ़ मृदा से निर्मित है.
- यह मैदान लगभग 3200 किलोमीटर लंबा एवं डेढ़ सौ से 300 किलोमीटर चौड़ा है.
- यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है जो समृद्ध मृदा आवरण पर्याप्त पानी की उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से भारत का अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र है।
- उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है सिंधु तथा सहायक नदियों द्वारा निर्मित इस मैदान का अधिकांश हिस्सा पाकिस्तान में है मैदान के इस भाग में तो दोआबो की संख्या अधिक है दोआब का सामान्य अर्थ दो नदियों के मध्य के भाग से है।
दोआब भाग : नदियांरचना : रावी व चिनाबविस्ट. व्यास व सतलजचाज या छाझ. चिनाब या झेलमबारी व्यास व रावीसिंधु सागर. सिंधु व झेलम
ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय पर्वत तथा मेघालय पठार के मध्य विस्तृत क्षेत्र है ब्रह्मपुत्र व सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपण से इस मैदान का विकास हुआ है इस क्षेत्र में कई नदी द्वीप हैं जिनमें माजुली विश्व का सर्वाधिक बड़ा नदी द्वीप है जो असम राज्य में स्थित है यह भारत का पहला द्वीप जिला (Island District )भी है.
गंगा का मैदान गंगा की हिमालई तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र की सहायक नदियों के अवसादो से निर्मित है.
- उत्तरी मैदान की व्याख्या सामान्यता इसके उच्चावचों में बिना किसी भी विविधता वाले समतल स्थल के रूप में की जाती है जो कि सही नहीं है इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृति में भी विविधता है आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदान को चार भागों में विभाजित किया गया है
भाबर का मैदान
- यह शिवालिक के पर्वतीय क्षेत्र में 8 से 10 किलो मीटर की चौड़ाई में विस्तृत है ढाल के मंद हो जाने के कारण शिवालिक से नीचे उतरने वाली नदियां अपने साथ लाए गए कंकड़ पत्थर के द्वारा जलोढ़ पंख एवं जलोढ़ शंकु का निर्माण करती है जिनके आपस में मिलने के कारण भाबर के मैदान का निर्माण हुआ भाबर के मैदान में पारगम्यता अधिक होने के कारण नदियां यहां विलुप्त हो जाती है।
तराई का मैदान
- यह भाबर के दक्षिण में 10 से 20 किलो मीटर की चौड़ाई में विस्तृत है भाबर प्रदेश में विलुप्त नदियां तराई प्रदेश में धरातल पर प्रकट होती है क्योंकि इनकी निश्चित वाहिकायें नहीं होती है यह क्षेत्र अनूप बन जाता है जिसे तराई कहते हैं नदियों के जल फैलाव के कारण तराई प्रदेश में अनेक दलदली क्षेत्रों का निर्माण हुआ है।
बांगर का मैदान
- यह पुराने जलोढ़ से निर्मित मैदान है जिसका विस्तार पंजाब हरियाणा राजस्थान एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है पंजाब हरियाणा एवं राजस्थान के मैदान का निर्माण सिंधु तंत्र की नदियों द्वारा हुआ जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मैदान गंगा यमुना तंत्र की नदियों द्वारा निर्मित है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदान निर्माण में बालू के निक्षेपण द्वारा कटकनुमा स्थलाकृति का विकास हुआ है जिसे भूड के नाम से भी जाना जाता है।
खादर का मैदान
- यह मैदान पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल और असम में स्थित है लगभग प्रति वर्ष बाढ़ से प्रभावित होने के कारण इस मैदान में नवीन जलोढ का निक्षेप पाया जाता है मध्य एवं निम्न गंगा के मैदान में नदियां विसर्पण करती हुई प्रभावित होती हैं मध्य गंगा के मैदान में नदियों के निकट समांतर रूप से स्थिति निम्न भूमि को टाल भूमि या चौड़ी भूमि के नाम से भी जाना जाता है जो वर्ष के अधिकांश महीनों में जलमग्न रहती है निम्न गंगा का मैदान वितरिका प्रधान है ढाल के अत्यंत मंद हो जाने के कारण नदियां अनेक शाखाओं में विभाजित हो जाती है डेल्टाई प्रदेश में अनेक झीलें पाई जाती हैं जिन्हें बील के नाम से जाना जाता है ब्रह्मपुत्र का मैदान मुख्य रूप से असम में स्थित है ब्रह्मपुत्र नदी सर्वाधिक मात्रा में अवसाद लेकर आती है जिसके कारण अनेक नदि प्दीपों का निर्माण हुआ है माजुली प्दीप विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है अपरदन के कारण वर्तमान में इस पदीप का अस्तित्व संकट में है।
प्रायद्वीपीय भारत की रचना को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है -
( 1) प्रायद्वीपीय भारत के पर्वत
( 2) प्रायद्वीपीय भारत के पठार
प्रायद्वीपीय भारत के पर्वत
अरावली श्रेणी: -
- विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में से एक है ।
- यह उत्तरी गुजरात के पालनपुर से प्रारंभ होकर अजमेर होते हुए दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है ।
- यह एक क्रम बद्ध श्रंखला के रूप में पालनपुर से अजमेर तक ही है नदिया वर्षा जल एवं पवन के सम्मिलित अपरदन के कारण यह अजमेर से दिल्ली तक कटे छठे रूप में है।
- दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर ऊंचाई कम होती जाती है की है. उत्तर की ओर जाने पर यह समतल होता जाता है अर्थात गुजरात में इसकी ऊंचाई और चौड़ाई दोनों ही ज्यादा है तथा उत्तर जाने पर यह समतल होता जाता है.
- अरावली के पश्चिम में थार मरुस्थल है अरावली का सर्वोच्च शिखर माउंट आबू स्थित गुरु शिखर है जिसकी ऊंचाई 1722 मीटर है दिलवाड़ा का जैन मंदिर माउंट आबू में ही है.
- यहां शीशा तांबा जस्ता एस्बेस्टस अभ्रक संगमरमर चूना पत्थर अधिक प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं इस क्षेत्र में अवस्थित खेतड़ी से तांबा सिंधु सभ्यता से पहले से ही निकाला जाता रहा है.
विध्यंन श्रेणी
- यह श्रेणी विध्यंन भांडेर कैमूर श्रेणी के रूप में गुजरात से लेकर बिहार तक विस्तृत है ।
- विंध्यन श्रेणी के दक्षिण में भ्रंशन के कारण नर्मदा भ्रंश घाटी का निर्माण हुआ अतः इसे विंध्यन कगार के नाम से जाना जाता है यह श्रेणी दक्षिण भारत को उत्तर भारत से अलग करती है इस क्षेत्र में चूना पत्थर की उपलब्धता के कारण सीमेंट उद्योग का विकास हुआ है नर्मदा कर्मनाशा टोंस केननदी क्षेत्र से प्रभावित होने वाली प्रमुख नदियां है यह उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के मध्य जल विभाजक का भी कार्य करती है.
सतपुड़ा श्रेणी: -
- इस श्रेणी को गुजरात में राजपीपला मध्यप्रदेश में महादेव एवं छत्तीसगढ़ में मैकाल श्रेणी के रूप में भी जाना जाता है यह नर्मदा एवं ताप्ती की भ्रंश घाटियों के मध्य स्थित है अतः यह एक प्राचीन ब्लॉक पर्वत है इस की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ है जो महादेव श्रेणी में अवस्थित है.
- मैंकाल श्रेणी का अपरदन हो चुका है इस श्रेणी पर अमरकंटक का पठार स्थित है जहां से नर्मदा सोन एवं महा नदी निकलती है.
- मध्य भारत का प्रसिद्ध हिल स्टेशन पचमढ़ी धूपगढ़ के निकट स्थित है महादेव एवं मैकाल के मध्य जबलपुर गैप की स्थिति है.
पश्चिमी घाट: -
- पश्चिमी घाट पर्वत वास्तविक पर्वत ना होकर एक कगार है क्योंकि उसके समांतर र्भ्शन की क्रिया हुई तथा पश्चिम का भाग और अवतलित हो गया अतः इसका पश्चिमी ढाल काफी तीव्र है।
- यह श्रेणी उत्तर में सूरत से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी के निकट तक क्रमबद्ध रूप से विस्तृत है.
- दक्षिण से उत्तर की ओर समानता इसकी ऊंचाई कम होती जाती है.
- पश्चिमी घाट एवं पूर्वी घाट के मिलन स्थल पर नीलगिरी की पहाड़ी एवं गांठ के रूप में मौजूद है जिस की सर्वोच्च चोटी दोदाबेट्टा है.
- नीलगिरी के दक्षिण में पश्चिमी घाट अन्नामलाई एवं के रूप में विस्तृत है दक्षिण भाग गई सर्वोच्च चोटी अनाईमुडी अन्नामलाई पर्वत पर स्थित है.
- अन्नामलाई के पूर्व में पालनी की पहाड़ी है जिस पर कोडाईकनाल नामक हील स्टेशन है.
- नीलगिरी पर्वत श्रेणी पर म ऊंटकमांड या ऊटी की अवस्थिति है.
- पश्चिमी घाट पर्वत पर जोग या गरसोप्पा जलप्रपात स्थित है जो शरावती पर है पश्चिमी घाट कृष्णा कावेरी तथा तुंगभद्रा नदियों का उद्गम स्थल है.
- पश्चिमी घाट की पर्वत चोटियां काल्सुबयीं महाबलेश्वर कुदरेमुख दोदाबेट्टा पुष्पगिरी तथा अनाईमुडी है।
पूर्वी घाट: -
- यह एक प्राचीन मोड़ दार अवशिष्ट पर्वत है जिसकी ऊंचाई पश्चिमी घाट की तुलना में कम है.
- इस की सर्वोच्च चोटी जिंधगाडा (Jindhagada)(1690 मीटर)तथा अन्य महत्वपूर्ण चोटी महेंद्रगिरी है इस श्रेणी का काफी अपरदन हो चुका है
- गोदावरी तथा कृष्णा के मध्य समतल रूप में हैं.
- पूर्वी घाट पर्वत पर मलयगिरी गढ़जात या नियामगिरी उड़ीसा नल्ला मलाई पालकोंडा आंध्र प्रदेश जवादी शेवराय मेलागिरी तमिलनाडु प्रमुख पहाड़िया है मेला गिरी पहाड़ी चंदन के वनों के लिए विख्यात है.
- पूर्वी घाट पहाड़ी अपने मध्यवर्ती भाग में उनकी तथा उत्तर व दक्षिण में सापेक्षता कम ऊंची है
प्रायद्वीपीय भारत के पठार: -
- प्रायद्वीपीय पठार पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रूपांतरित शैलो से निर्मित है।
- यह पठार गोंडवाना भूमि के टूटने पर अफवाह के कारण बना है यह यही कारण है कि यह प्राचीनतम भु भाग का एक हिस्सा है.
- नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा पठार के अधिकांश भाग पर विस्तृत है उसमें मध्य उच्च भूमि के नाम से जाना जाता है.
- इस क्षेत्र में बहने वाली नदियां चंबल सिंधु बेतवा तथा केन है जो दक्षिण पश्चिम से उत्तरी पूर्व की तरफ बहती है यह उच्च भूमि पश्चिम में चौड़ी तथा पूर्व में संकीर्ण है.
- इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के नाम से जाना जाता है.
- दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भूभाग है जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रंखला है जबकि महादेव कैमूर तथा मैकाल श्रंखला इसकी पूर्वी विस्तार है.
- दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊंचा एवं पूर्व में कम ढाल वाला है इस पठार का एक भाग उत्तर पूर्व में भी है जिसे स्थानीय रूप से मेघालय कार्वी आंगलांग पठार तथा उत्तरी कछार के नाम से जाना जाता है इसी पठार पर पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्वपूर्ण श्रंखला गारो खासी जयंतिया है यह माल्दा गैप द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग होता है।
- दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर क्रमशः पूर्वी तथा पश्चिमी घाट स्थित है पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के समांतर स्थित है तथा यह सतत हैं इन्हें दर्रों के द्वारा ही पार किया जा सकता है पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले प्रमुख दर्रो में थाल घाट भोर घाट तथा पालघाट सेनकोट्टा गैप है
थाल घाट दर्रा में मुंबई नागपुर कोलकाता रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग गुजरते हैं.भोर घाट दर्रे से पुणे बेलगांव चेन्नई रेल मार्ग व सड़क मार्ग गुजरते हैं.पालघाट दर्रा से कालीकट त्रिचुर कोयंबटूर रेलवे मार्ग व सड़क मार्ग गुजरते हैं.सेनकोट्टा गैप कार्डेमम पहाड़ियों में स्थित है जो तिरुवंतपुरम को मदुरई से जोड़ता है
प्रायद्वीपीय पठार अनेक पर्वतों नदी घाटियों संरचना तथा उच्चावच में अंतर के कारण अनेक पठारों में विभाजित हो गया है जो कि निम्न वत है
- दक्कन का पठार
- पूर्वी भारत के पठार
- मध्य भारत के पठार
- काठियावाड़ का पठार
दक्कन का पठार: -
(a) दक्कन ट्रैप
(b) कर्नाटक पठार
(c) तेलंगाना पठार
(d) रॉयल सीमा पठार
- यह पठार बेसाल्टिक लावा से निर्मित है क्रस्टेसियस काल में मध्य दरारी ज्वालामुखी उद्गार के फल स्वरुप इस पठार का निर्माण हुआ है
- इस पठार पर लावा का निक्षेप सीढ़ी नुमा परतो के रूप में हुआ है अतः इसे दक्कन ट्रैप कहा जाता है इसके पश्चिम में लावा की मोटाई 2000 मीटर से भी अधिक है जो पूर्व की ओर कम होती जाती है.यह पठार लगभग सपाट है किंतु अनेक स्थानों पर नदियों ने पठारों को काटकर पर्वत का रुप प्रदान किया जैसे अजंता सतमाला बालाघाट एवं हरिश्चंद्र श्रेणी यह पठार काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी का क्षेत्र है।
- तेलंगाना एवं रायलसीमा का पठार दक्कन पठार के ही भाग है तेलंगाना पठार का कुछ भाग लावा से ढका हुआ है जबकि रायलसीमा पठार पर प्राचीन आर्कियन चट्टान है।
- कर्नाटक के पठार को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है इस पठार का पूर्वी भाग अपेक्षाकृत कम विषम है अतः इसे मैदान भी कहा जाता है कर्नाटक पठार का पश्चिमी भाग अधिक दिशा में आता इससे मलनाड के नाम से भी जाना जाता है इस के पश्चिमी भाग में ही बाबा बुदन की पहाड़ी अवस्थित है जो लौह अयस्क लिए प्रसिद्ध है
पूर्वी भारत के पठार: -
(a) बघेलखंड का पठार
(b) दण्डकारण्य का पठार
(c) छोटा नागपुर का पठार
(d) मेघालय शिलांग का पठार
- बघेलखंड का पठार छत्तीसगढ़ में स्थित है इस पठार पर रामगढ़ एवं सोनपुर की पहाड़ियां स्थित है गोंडवाना क्रम की संरचना के अंतर्गत सिंगरौली एवं दुद्धी क्षेत्र कोयले के लिए प्रसिद्ध है
- छत्तीसगढ़ में स्थित दंडकारण्य का पठार काफी कटा छटा है इसे बस्तर का पठार भी कहते हैं छत्तीसगढ़ में बैलाडीला श्रेणी व अबूझमाड़ पहाड़ियों का क्षेत्र लौह अयस्क के सबसे समृद्ध तम क्षेत्रों में से एक है इस पठार पर लौह अयस्क के अलावा मैग्नीज तांबा तथा कोयला भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.
- छोटा नागपुर का पठार मुख्य रूप से झारखंड में अवस्थित है यह पठार अनेक श्रृंखलाबद्ध पठारों के रूप में है इसे उत्थित समप्राय मैदान का उदाहरण माना जाता है छोटा नागपुर का पठार भ को भारत का रूर प्रदेश भी कहा जाता है यह पठार आर्कियन युग की ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों से निर्मित है इसलिए यह पठार धात्विक खनिज के लिए प्रसिद्ध है यहां नदी घाटियों में कोयले के विशाल भंडार है.
- शिलांग का पठार संरचना की दृष्टि से छोटा नागपुर पठार का ही भाग है या पठार प्रायद्वीपीय पठार से मालदा भ्रंश के कारण अलग हुआ है भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान मासिनराम शिलांग के पठार पर स्थित है प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी पठार ओं में यह सबसे ऊंचा है.
मध्य भारत के पठार: -
(a) मेवाड़ का पठार
(b) मालवा का पठार
(c) बुंदेलखंड का पठार
(d) रीवा सतना का पठार
- मेवाड़ का पठार राजस्थान में स्थित है यहां बनास नदी प्रवाहित होती अपरदन के कारण यह तरंगित मैदान में परिवर्तित हो गया है.
- मालवा का पठार मध्य प्रदेश में स्थित है यह बेसाल्टिक लावा से निर्मित पठार है इस पठार से बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर की ओर नदियां प्रवाहित होती है यह काली मिट्टी का क्षेत्र है मालवा का पठार लगभग त्रिकोणीय आकार का है.
- बुंदेलखंड का पठार मध्य प्रदेश एवं दक्षिण पश्चिम उत्तर प्रदेश में विस्तृत है इस पठार पर चंबल एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अवनालिका अपरदन के कारण खड्डे या बीहड का निर्माण हुआ है यह प्राचीन चट्टानों से निर्मित संरचना है जिसमें शिष्ट तथा ग्रेनाइट चट्टान परतदार रूप में मिलती है नदियों के क्रमिक अपरदन के कारण यह संपूर्ण पठार लगभग बंजर भूमि में परिवर्तित हो गया है
- रीवा सतना पठार की संरचना में चूना पत्थर मुख्य रूप में पाए जाते हैं इसलिए यहां सीमेंट उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ है वर्तमान में अनाच्छादन के कारण अत्यधिक निम्मीकृत हो गया है
काठियावाड़ का पठार: -
- यह पठार गुजरात में अवस्थित है क्रिटैशियस काल में लावा के उद्गार के फल स्वरुप इसका निर्माण हुआ है यह काली मृदा का क्षेत्र है इसके दक्षिण में गिर पहाडियां जो एशियाई शेरों की प्राकृतिक शरण स्थली है
भारतीय मरुस्थल: -
- भारतीय मरुस्थल मेसोजोइक काल में समुद्र का भाग था इसकी पुष्टि आकल में स्थित काष्ट जीवाश्म पार्क में उपलब्ध निशानों तथा जैसलमेर के निकट ब्रह्म सर के आस-पास के समुद्री निक्षेपों से होती है इस क्षेत्र की भूगार्भिक चट्टानी संरचना प्रायद्वीपीय पठार का ही विस्तार है.
ढाल के आधार पर मरुस्थल को दो भागों में बांटा जा सकता है: -
- सिंध की ओर ढाल वाला उत्तरी भाग
- कच्छ के रन की ओर ढाल वाला दक्षिणी भाग
- मरुस्थल के दक्षिणी भाग में प्रवाहित होने वाली महत्वपूर्ण नदी लूनी है यह क्षेत्र अंतर स्थली अपवाह का उदाहरण है जहां नदियां झील मैं मिल जाती है इन झीलों का जल खारा होता है जिससे नमक बनाया जाता है.
तटीय मैदान:: -
- तटवर्ती मैदान का निर्माण सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन एवं निक्षेपण और पठारी नदियों द्वारा लाए गए अवसादो के निक्षेपण से हुआ है.
तटीय मैदान को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है -
- पूर्वी तटीय मैदान
- पश्चिमी तटीय मैदान
- पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है पूर्वी तटीय मैदान उभरे हुए तट का उदाहरण है उभरा तट होने के कारण यहां महाद्वीपीय शेल्फ की चौड़ाई अधिक है जिसके कारण यहां पत्तनों तथा पोताश्रयों का विकास कठिन है
- अधिक चौड़ाई तथा उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के कारण पूर्वी तटीय मैदान कृषि की दृष्टि से अधिक विकसित है कृष्णा गोदावरी एवं कावेरी डेल्टा क्षेत्र अत्यंत क्षेत्र है इस क्षेत्र को दक्षिण भारत का अन्न भंडार भी कहा जाता है.
- पूर्वी तटीय मैदान के चौड़े होने का मुख्य कारण नदियों द्वारा डेल्टा का निर्माण है जबकि अरब सागर में गिरने वाली अधिकांश नदियां ज्वारनदमुख का निर्माण करती है.
- पश्चिमी तट प्राकृतिक पोताश्रय के लिए अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल है मालाबार तट पर अनेक लैगून पाए जाते हैं जिन्हें कयाल के नाम से भी जाना जाता है.
- भारत में मालाबार तट सागरी तरंगों द्वारा अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित है.
- पूर्वी तट पर स्थित नई लैगून झीलों में चिल्का तथा पुलीकट प्रमुख है.
- गुजरात से गोवा तक तटीय मैदान कोंकण तट गोवा से कर्नाटक में बेंगलुरु तक मैदान कन्नड़ तक कहलाता है जबकि बेंगलुरु से कन्याकुमारी का तटवर्ती मैदान मालाबार तट कहलाता है।
- ओडिशा व आंध्र प्रदेश के तटवर्ती मैदानों को उत्कल तट कलिंग तट या उत्तरी सरकार कहा जाता है जबकि आंध्र प्रदेश तमिलनाडु के तटीय मैदानों को कोरोमंडल तट कहते हैं लौटते हुए मानसून से इसी तट पर वर्षा होती है।
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