इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4 मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं। इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है। [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव: सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...
भारत विश्व का प्राचीन एवं महान सभ्यता वाला देश है जिसकी आकृति विभिन्नता अद्भुत है दक्षिण एशिया में इसकी स्थिति हिमालय पर्वत मालाओं के दक्षिण एवं हिंद महासागर के उत्तर में है इसके पूर्वी एवं पश्चिमी किनारों पर क्रमसा बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर स्थित ह ै . इस 32, 87, 263 वर्ग किलोमीटर में फैले देश की प्राकृतिक विविधता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके दक्षिण पश्चिमी तट पर उष्णकटिबंधीय वन फैले हुए हैं तो पश्चिम में थार के मरुस्थल का विस्तार है.
- इसकी मुख्य भूमि 8अंश 4 डिग्री उत्तरी अक्षांश (हमारे देश के दक्षिणी सीमा बंगाल की खाड़ी में 6 अंश 4 डिग्री उत्तरी अक्षांश के साथ निर्धारित होती है) से 37°6' डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 68°7' पूर्वी और 97°25'डिग्री पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई है. भारत का सबसे उत्तरी बिंदु इंदिरा कॉल जो जम्मू एवं कश्मीर में अवस्थित है तथा सबसे दक्षिणी बिंदु इंदिरा पॉइंट है जो ग्रेट निकोबार में है.
- इसका उत्तर से दक्षिण 3, 214 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक 2, 933 किलोमीटर का विस्तार है भारत की स्थलीय सीमा लगभग 15200 किलोमीटर की है तथा इसकी तटीय सीमा का विस्तार 7, 516.6 किलोमीटर है.
कर्क रेखा भारत के 8 राज्यों (गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड , पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा एवं मिजोरम) से होकर गुजरती है.
भारत में 28 राज्य व 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं.
भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर हैं.
- केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी का फैलाव भारत के 3 राज्यों में है इसके अंतर्गत पुद्दुचेरी यमन कराईकल तथा माहे आते हैं जिसमें माहे केरल की सीमा में यमन आंध्र प्रदेश की सीमा में कराई कल तथा पुद्दुचेरी तमिलनाडु की सीमा में अवस्थित है।
- भारत दक्षिण एशिया में क्षेत्रफल व जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है जबकि एशिया में भारत क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से चीन के पश्चात दूसरे स्थान पर है.
- अगर इसके सीमावर्ती क्षेत्रों की बात की जाए तो इसके उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान व अफगानिस्तान उत्तर में चीन नेपाल और भूटान सुदूर पूर्व में म्यांमार तथा पूर्व में बांग्लादेश स्थित है.
- श्रीलंका के मध्य स्थित मन्नार की खाड़ी तथा पाक जलडमरूमध्य इन दोनों देशों के एक दूसरे से अलग करता है.
भारत के पड़ोसी देशों के साथ सीमा उसकी लंबाई: -बांग्लादेश: - 4, 096.7चीन: - 3488पाकिस्तान: - 3, 323नेपाल : - 1751म्यांमार : - 1643भूटान : - 699अफगानिस्तान: - 106
भारत के 17 राज्य पड़ोसी देशों की सीमाओं को स्पर्श करते हैं.
विभिन्न देशों के मध्य सीमा रेखाएं: -रेडक्लिफ : भारत व पाकिस्तान के मध्यमैक मोहन : भारत और चीन के मध्यडूरंड : पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मध्य
भारत का मानक समय: -
- भारत में 82 1\2° शांत रेखा को पूरे देश का मानक समय माना गया है यह रेखा इलाहाबाद के निकट मिर्जापुर से गुजरती है इस देशांतर के स्थानीय समय को पूरे देश का मानक समय माना गया है भारत की स्थिति ग्रीनविच के पूर्व में होने के कारण यहां का समय ग्रीनविच के समय से 5 घंटा 30 मिनट आगे रहता है।
भारत की भूगर्भिक संरचना एवं भू आकृतिक प्रदेश:
- भारत की भूगर्भिक संरचना में प्राचीन एवं एवं नवीनतम दोनों प्रकार की चट्टाने पाई जाती हैं एक और प्रायद्वीपीय भारत में जहां आर्यन युग की प्राचीनतम चट्टाने पाई जाती है वहीं दूसरी ओर मैदानी भागों में क्वार्टरनरी युग की नवीनतम चट्टानों की बहुलता है भूगर्भिक संरचना की उपयोगिता धात्विक अधात्विक खनिज दोहन एवं मृदा के रूप में है।
- विभिन्न समय के अनुसार निर्मित संरचना के कारण भारत की भूगर्भिक संरचना में पर्याप्त भिन्नता है।
आर्कियन क्रम की चट्टाने
- आर्कियन ग्रेनाइट और नीस चट्टान से निर्मित भारत की प्राचीनतम संरचना है।जिसकी उत्पत्ति गर्म गलित पदार्थ (मैग्मा) पदार्थ के शीतलीकरण के द्वारा हुई है.
- यह प्रायद्वीपीय पठार की आधारभूत जीवाश्म रहित संरचना है जो खनिज संसाधनों के भंडार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
- नीचे की परतों में मिलने के साथ जटिल संरचना होने के कारण आर्थिक दृष्टि से दोहन अत्यंत कठिन कार्य है इसलिए इस संरचना का आर्थिक महत्व नहीं है.
- महाद्वीपीय पठार के अधिकांश क्षेत्रों में इस संरचना का विकास हुआ है लेकिन दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्र बुंदेलखंड नीस तथा पश्चिम बंगाल नीस में इस संरचना का सर्वाधिक विकास हुआ है यहां तक कि हिमालय पर्वत की जड़ों और अरावली पर्वत की आधारभूत परतों में भी यह संरचना मिलती है.
धारवाड़ क्रम की चट्टाने: -
- आर्कियन संरचना में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के द्वारा प्राप्त और अवसादों के निक्षेपण से धारवाड़ संरचना का विकास हुआ है जो जीवाश्म रहित प्राचीनतम अवसादी चट्टान से बनी है इसका सर्वाधिक कायांतरण हुआ है।
- खनिज संसाधनों के भंडार और उत्पादन की दृष्टि से इस संरचना का आर्थिक महत्व है.
- कर्नाटक के धारवाड़ जिले में इस संरचना का सर्वाधिक विकास हुआ है इसके अतिरिक्त छोटा नागपुर पठारी क्षेत्र अरावली पर्वत और सिलांग पर्वत में भी इस संरचना का विकास हुआ है.
- धारवाड़ क्रम की चट्टाने परतदार चट्टाने है तथा इसमें जीवाश्म का अभाव पाया जाता है यही कारण है कि यहां खनिज तेल और कोयले का अभाव होता है.
- मारवाड़ क्रम की चट्टाने आर्थिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है इनमें कई प्रमुख खनिज जैसे लोहा सोना मैग्नीज अभ्रक कोबाल्ट क्रोमियम तांबा टंगस्टन की शीशा पाए जाते हैं.
कुडप्पा क्रम की चट्टाने
- आर्कियन और धारवाड़ संरचना में भौतिक व रासायनिक परिवर्तन के कारण प्राप्त और साधनों के निक्षेपण से कुंडप्पा संरचना का विकास हुआ है।
- इन चट्टानों का रूपांतरण धारवाड़ क्रम की चट्टानों की तुलना में कम हुआ है।
- यह भी जीवाश्म रहित अवसादी चट्टान से निर्मित संरचना है जिसमें चूना पत्थर का सर्वाधिक भंडार है।
- आंध्र प्रदेश के कुडप्पा क्षेत्र में इस संरचना का सर्वाधिक विकास हुआ है इसके अलावा छोटानागपुर पठारी क्षेत्र और अरावली पर्वत में भी इस संरचना का विकास हुआ है।
- कुडप्पा क्रम की चट्टाने बलुआ पत्थर चूना पत्थर संगमरमर आदि के लिए प्रसिद्ध है।
विंध्य क्रम की चट्टाने
- इन चट्टानों का निर्माण कुंडप्पा क्रम की चट्टानों के बाद हुआ है।
- कुडप्पा संरचना के विकास के बाद अवसादो के निक्षेपण से विंध्य संरचना का विकास हुआ जो लाल बालू का पत्थर और चूना पत्थर चट्टान से निर्मित संरचना है जिसमें जीवाश्म के प्रमाण मिलते हैं लेकिन धात्विक खनिजों का अभाव है।
- भवन निर्माण के पदार्थों के भंडार के कारण इसका आर्थिक महत्व इसका सर्वाधिक विकास विंध्यन पर्वतीय क्षेत्रों में हुआ है।
गोंडवाना क्रम की चट्टाने
- इस क्रम की चट्टानों का निर्माण ऊपर ही कार्बोनिफेरस काल से लेकर जुरैसिक काल के मध्य हुआ है।
- कार्बोनिफरस पर्मीयन युग में भू संचलन के द्वारा धसाव की प्रक्रिया से संरचनात्मक बेसिन का निर्माण हुआ है जहां कार्बनिक अवसादो का निक्षेपण होने के कारण गोंडवाना संरचना का विकास हुआ है जो कोयला भंडार की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिन घाटियों में इस संरचना का विकास हुआ उन्हीं घाटियों का संबंध वर्तमान समय में दामोदर सोन महा नदी नर्मदा और गोदावरी नदी बेसिन से है।
- यह संरचना क्रम भारत के ऊर्जा आवश्यकताओं का आधार है भारत का 98% को कोयला इसी संरचना में पाया जाता है.
- छोटा नागपुर पठार में दामोदर नदी बेसिन कोयला भंडार की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.
दक्कन ट्रैप की चट्टाने: -
- दक्कन ट्रैप का निर्माण क्रिटेशियस से लेकर इयोसीन काल तक माना जाता है।
- इस संरचना का विकास लावा प्रवाह के फल स्वरुप सीढीनुमा आकृति के रूप में हुआ है।
- क्रिटैसियस युग मे शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी प्रक्रिया के द्वारा बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना का विकास हुआ है।
- दक्कन ट्रैप बेसाल्ट एवं डोलोमाइट चट्टानों से निर्मित है इन चट्टानों के विखंडन से ही काली मिट्टी का निर्माण हुआ है।
- रचना का सर्वाधिक विकास महाराष्ट्र के ढक्कन ट्राई क्षेत्र में हुआ है इसके अतिरिक्त गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप मध्यप्रदेश के मालवा पठार छोटा नागपुर के राजमहल पहाड़ियां तेलंगाना पठार तमिलनाडु कोयंबटूर मदुरई पठार और कर्नाटक के बेंगलुरु मैसूर पठार में भी बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना का विकास हुआ है।
टर्शियरी क्रम की चट्टाने
- इस संरचना का विस्तार कश्मीर से लेकर असम तक है
- इस क्रम की चट्टानों का निर्माण इयोसीन काल से प्लायोसीन काल तक हुआ है।
- इसी कालक्रम में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है.
- टर्शियरी क्रम की चट्टानों में उत्तर पूर्वी भारत एवं जम्मू और कश्मीर में निम्न स्तरीय कोयला पाया जाता है हिमाचल प्रदेश एवं गढ़वाल हिमालय में चूना पत्थर के निक्षेप पाए जाते हैं।
क्वाटरनरी क्रम की चट्टाने: -
- यह संरचना मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है.
- पुरानी जलोढ़ मृदा जिसे बांगर कहते हैं का निर्माण मध्य ऊपरी प्लिस्टोसीन काल में हुआ है जबकि नवीन जलोढ़ मृदा जिसे खादर कहा जाता है का निर्माण प्लिस्टोसीन से वर्तमान काल होलोसीन तक जारी है भारत में सामान्यता हिमालय की तरफ गहराई अधिक है जबकि प्रायद्वीपीय पठार की ओर गहराई कम है कश्मीर घाटी का निर्माण प्लिस्टोसीन काल में हुआ है थार के मरुस्थल में भी प्लिस्टोसीन काल के निक्षेप मिलते हैं।
- भारत के भू आकृतिक प्रदेश: - भारत एक विशाल भूभाग है इसका निर्माण विभिन्न भूगर्भिक कालों के दौरान हुआ है भूगर्भीय निर्माणों के अतिरिक्त कई अन्य प्रक्रियाओं जैसे अपक्षय अपरदन तथा निक्षेपण के द्वारा वर्तमान उच्चावचों का निर्माण तथा उनमें संशोधन हुआ है
भारत को निम्नलिखित भू आकृति खंडों में बांटा जा सकता है: -
(a) उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला
(b) उत्तरी मैदान
(c) प्रायद्वीपीय पठार
(d) भारतीय मरुस्थल
(e) तटीय मैदान
(f) द्वीप समूह
उत्तर तथा उत्तर पूर्वी पर्वतमाला: -
- इस पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तर-पूर्वी पहाड़ियां शामिल है हिमालय में कई समांतर पर्वत श्रंखला है इसमें ट्रांस हिमालय श्रृंखलाएं बृहत हिमालय मध्य हिमालय और शिवालिक प्रमुख श्रेणियां हैं.
- भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में हिमालय पर्वत की यह श्रेणियां उत्तर पश्चिम दिशा से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर फैली है दार्जिलिंग और सिक्किम क्षेत्र में यह श्रेणियां पूर्व पश्चिम दिशा में विस्तृत है.
- अरुणाचल प्रदेश में यह श्रेणियां दक्षिण पश्चिम से उत्तर पश्चिम दिशा में घूम जाती है तथा मिजोरम नागालैंड और मणिपुर में हिमालय की पहाड़ियां उत्तर दक्षिण दिशा में फैली है.
- बृहत हिमालय श्रृंखला जिसे केंद्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहा जाता है कि पूर्व पश्चिम लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है.
- हिमालय पर्वतमाला में भी अनेक क्षेत्रीय विभिन्न बताए हैं उच्चावच पर्वत श्रेणियों के सरेखणऔर दूसरी आकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है
कश्मीर या उत्तर पश्चिमी हिमालय: -
- इसमें प्रमुख रूप से ट्रांस हिमालय और वृहत या महान हिमालय आते हैं
- कश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियों में जैसे काराकोरम लद्दाख जास्कर और पीरपंजाल
- कश्मीर हिमालय में काराकोरम लद्दाख व जास्कर श्रेणी ट्रांस हिमालय श्रेणी का हिस्सा है यह श्रेणी हिमालय के उत्तर मे स्थित है तथा हिमालय की तुलना में पुरानी है
- बृहत हिमालय पर्वत श्रेणी पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र( नंगा पर्वत से नामचा बरवा) तक विस्तृत है इन दोनों सीमाओं के मध्य इसकी आकृति एक चाप के समान है
- हिमालय की चौड़ाई में पर्याप्त भिन्नता है पश्चिम में यह 400 किलोमीटर तथा पूर्व में 160 किलोमीटर चौड़ा है इस प्रकार यह कश्मीर में अधिक चौड़ा जबकि पूर्व की ओर इसकी चौड़ाई घटती जाती है
- वृहद हिमालय तथा पीर पंजाल श्रेणी के मध्य विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी तथा डल झील है.दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण हिमनद बाल्टरों तथा सियाचिन इसी प्रदेश में.
- वृहद हिमालय में जोजिला पीरपंजाल में बनिहाल जास्कर श्रेणी में फोटुला तथा लद्दाख श्रेणी में खर्दू गला जैसे महत्वपूर्ण दर्रे स्थित है।
वैष्णो देवी अमरनाथ गुफा तथा चरार ए शरीफ जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल इसी क्षेत्र में अवस्थित है.
- इस प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनुदैर्ध्य घटिया पाई जाती है जिन्हें दून कहा जाता है जम्मू दून तथा पठानकोट दून प्रमुख है.
- महान हिमालय की औसत ऊंचाई लगभग 6000 मीटर है इस श्रेणी का दक्षिणी डाल उतरी ढाल की तुलना में तीव्र है.
एवरेस्ट , कंचनजंगा , मकालू , धौलागिरी , नगा पर्वत तथा नामचा बरवा देश के महत्वपूर्ण शिखर है.
हिमालय में ही भारत में हिमालय की सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा स्थित है यह विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है वह है कि भारत की सर्वोच्च चोटी माउंट K2 ( गॉडविन ऑस्टिन ) है जो काराकोरम श्रेणी में अवस्थित है यह विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है.
लघु हिमालय या हिमाचल तथा उत्तराखंड हिमालय: -
- इसे मध्य हिमालय भी कहते हैं.
- हिमालय का यह हिस्सा पश्चिम में रावी नदी और पूर्व में काली नदी के मध्य स्थित है.
- हिमाचल हिमालय का सुदूर उत्तरी भाग लद्दाख के ठंडे मरुस्थल का विस्तार है.
- लघु हिमालय को जम्मू कश्मीर में पीर पंजाल हिमाचल में धौलाधार उत्तराखंड में नागटिबा तथा नेपाल में महाभारत रेंज कहा जाता है.
- लघु हिमालय में 1000 से 2000 मीटर ऊंचाई वाले पर्वतों में ब्रिटिश प्रशासन ने कुछ पर्वतीय नगर स्थापित किए हैं जैसे धर्मशाला मसूरी कौसानी अल्मोड़ा लैंसडाउन और रानीखेत।
- इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण स्थलाकृति दूनहै यहां स्थित कुछ महत्वपूर्ण दून जैसे चंडीगढ़ कालका दून नालागढ़ दून देहरादून हरिकेन दून तथा कोटा दून शामिल है इनमें देहरादून सबसे बड़ी घाटी है
प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी उत्तराखंड हिमालय में स्थित है
गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे स्थल इसी हिमालई क्षेत्र में स्थित है
- मध्य हिमालय पर स्थित घास के मैदानों को मर्ग नाम से जाना जाता है उत्तराखंड में इन मैदानों को वुग्याल या पयार के नाम से भी जाना जाता है यह मैदान उत्तम चारागाह है
- इस श्रंखला का उत्तरी डाल मंद तथा दक्षिणी ढाल तीव्र है इसलिए उतरी ढाल सापेक्षता ज्यादा सघन वनस्पति से आच्छादित है जबकि दक्षिणी ढाल सापेक्षता नग्न है
दर्रे क्षेत्रबुर्जिल दर्रा : श्रीनगर से गिलगित को जोड़ता हैजोजिला : श्रीनगर को लेह वा लद्दाख से जोड़ता हैबडा लाचा ला : हिमाचल प्रदेश को कश्मीर से जोड़ता हैनीति दर्रा : उत्तराखंड में स्थित दर्रा जो मानसरोवर यात्रा का मार्गमाना दर्रा : उत्तराखंड में स्थित हैलिपू लेख दर्रा : उत्तराखंड में स्थित हैनाथू ला : सिक्किम राज्य में स्थित जो दार्जिलिंग चुंबी घाटी तथा तिब्बत को जोड़ता हैजेलेप्ला - सिक्किम राज्य में स्थित दर्रा जो कॉलिंग पोंग ( दार्जिलिंग के निकट) से ल्हासा को जोड़ता हैबूम ला - अरुणाचलतुजू दर्रा - मणिपुरबनिहाल दर्रा - जम्मू को श्रीनगर से जोड़ता है इसे कश्मीर घाटी का द्वार कहते हैं जवाहर सुरंग इसी पर स्थित हैपीर पंजाल दर्रा :- जम्मू एवं कश्मीरबारामुला दर्रा : -जम्मू एवं कश्मीर में स्थित दर्रा जो वर्तमान कश्मीर को पाकिस्तान से अलग करता हैरोहतांग दर्रा :- हिमाचल प्रदेश में धौलाधार श्रेणी में स्थित हैकाराकोरम दर्रा :- जम्मू एवं कश्मीर में स्थित और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण दर्रा जो कश्मीर को चीन से जोड़ता हैयांग याप दर्रा : -अरुणाचल प्रदेश इसी दर्रे से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है.दीफू दर्रा : -अरुणाचल प्रदेश यह भारत चीन म्यांमार सीमा का ट्रिपल प्वाइंट है जहां तीनों देशों की सीमाएं समीपवर्ती हैंपांगसाड दर्रा -अरुणाचल प्रदेशशिपकीला दर्रा - हिमाचल प्रदेश( सतलज नदी इसी दर्रे से भारत में प्रवेश करती है)
शिवालिक या बाह्ह हिमालय
- शिवालिक रेंज का विस्तार पाकिस्तान के पोतवार बेसिन से लेकर अरुणाचल प्रदेश के दिहांग गार्ज तक है।
- मध्य हिमालय के दक्षिण में शिवालिक हिमालय की उपस्थिति है
- इंडो ब्रह्मा नदी की घाटी में निक्षेपित अवसादो के वलन से शिवालिक हिमालय की उत्पत्ति हुई है
- शिवालिक पर्वत की चौड़ाई पश्चिम में अधिक तथा पूर्व में कम है
- शिवालिक श्रेणी अनेक स्थानों पर विखंडित हो गई है जिसके कारण इसकी निरंतरता भंग हो गई है
- दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय
- हिमालय के पश्चिम में नेपाल हिमालय तथा पूर्व में भूटान हिमालय हैं
- हिमालय के इसी भाग में भारत में हिमालय की सर्वोच्च चोटी कंचनजंगा स्थित है
- हिमालय के इस श्रेणी के ऊंचे पर्वत शिखरों पर लेपचा जनजाति पाई जाती है
- यहां की प्राकृतिक दशाएं व दूआर स्थलाकृतियों का उपयोग चाय बागान के लिए किया जाता है
अरुणाचल हिमालय
- अरुणाचल हिमालय का विस्तार भूटान हिमालय से दीफू दर्रे तक है
- इस क्षेत्र के मुख्य चोटियों में कांगतू तथा नामचा बरवा है
- यहां बहने वाली नदियां यथा कामेंग सुबनसीरी दिहांग दिबांग और लोहित आदि एक जलप्रपातों का निर्माण करती है इसलिए यहां जल विद्युत उत्पादन क्षमता अधिक है
- इस हिमालय में बहुत सी जनजाति निवास करती हैं जिनका पश्चिम से पूर्व में बसने का क्रम मोनपा डाफला अबोर मिशमी निशी और नागा है।
पूर्वी पहाड़ियां और पर्वत: -
- हिमालय पर्वत के इस भाग में पहाड़ियों की दिशा उत्तर से दक्षिण है यह पहाड़ियों उत्तर में पटकाई बूम नागा पहाड़ी मणिपुर पहाड़ीयां तथा दक्षिण में में मिजो या लुशाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है
- यह काम ऊंची पहाड़ियों का क्षेत्र है जहां अनेक जनजातियां झूम खेती करती हैं मणिपुर घाटी के मध्य में एक झील स्थित है जिसे लोकटक झील कहा जाता है
- बराक मणिपुर मिजोरम और असम की एक मुख्य नदी है यह सूरमा मेघना नदी तंत्र का एक भाग है .
- मिजोरम जिसे मोलेसिस बेसिन भी कहा जाता है मृदुल व असंगठित चट्टानों से बना है
- पूर्वांचल की पहाड़ियां भारतीय मानसून को दिशा प्रदान करती है इस प्रकार यह पहाड़ियां जल विभाजक के साथ जलवायु विभाजक भी हैं
हिमालय की प्रमुख चोटियां: -शिखर : देशमाउंट एवरेस्ट : नेपालकंचनजंगा : भारतमकालू : नेपालधौलागिरी : नेपालनंगा पर्वत : भारतअन्नपूर्णा : नेपालनंदा देवी : भारतकामेत. भारतनामचा बरवा भारत.
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