Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
अनुच्छेद 356 के अनुप्रयोग द्वारा जिन आधारों पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है उनका वर्णन उच्चतम न्यायालय द्वारा एसआर बोम्मई वाद के निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए करिए अनुच्छेद 356 को किसी राज्य में लागू करने के परिणामों को भी इंगित कीजिए? Discuss the ground upon which the president is rule can be imposed in a state under article 356 of the constitutions give you answer in the light of ruling of supreme courts is S.R. Bommai case also point the consequence of imposition of act 356 in a state.
अनुच्छेद 356 जब राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट करें या राष्ट्रपति को अपने आप यह अनुभव हो जाए कि किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिससे वह संविधान के उपबंधों का पालन करने में असफल है तो उस राज्य में आपात स्थिति घोषित कर सकता है ऐसी घोषणा के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं -
( 1) वह राज्यपाल राज्य सरकार या राज्य अधिकारी में निहित किसी भी शक्ति को अपने हाथ में ले सकता है.
( 2) संसद विधानमंडल की शक्तियों का स्वयं प्रयोग कर सकती है.
( 3) राष्ट्रपति की घोषणा के उद्देश्य से पूरा करने के लिए कोई भी उपबंध बनाया जा सकता है.
संविधान के 38 वें संशोधन में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा का निर्णय राष्ट्रपति की इच्छा पर होगा जो कि अंतिम माना जाएगा.
ऐसी घोषणा की अवधि (duration of such proclamation): - ऐसी घोषणा की अवधि 2 महीने के लिए प्रभाव में रहती है राष्ट्रपति की उद्घोषणा इस अवधि में संसद के समक्ष प्रस्तुत की जानी आवश्यक होती है यदि 2 माह के भीतर संसद संकल्प द्वारा उद्घोषणा का अनुमोदन कर देता है तो घोषणा 6 माह तक प्रभावी रहती है इस प्रकार प्रत्येक बार उद्घोषणा के अनुमोदन व संकल्प द्वारा आपातकाल की अवधि है 6 महीने अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है परंतु 1 वर्ष से अधिक अवधि तक आपातकाल जारी रखने वाला संकल्प सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जा सकता जब तक निम्नलिखित शर्तें पूरी ना हो -
1: - ऐसे संकल्प को पारित करते समय आपात उद्घोषणा प्रवर्तन में हो,
2: - चुनाव आयोग इस तथ्य का प्रमाण ना दे संबंधित विधानसभा के लिए आम चुनाव कराने में कठिनाइयों के कारण स्थिति का जारी रहना आवश्यक है.
68 वें संविधान संशोधन द्वारा पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अधिकतम 5 वर्ष के लिए बढा देने के लिए उपबंध किया गया है।
उद्घोषणा का प्रभाव( effect of the proclamation): -
अनुच्छेद 357 के अनुसार जहां अनुच्छेद 356 (1) जारी की गई उद्घोषणा में यह घोषित किया गया हो कि राज्य के विधान मंडल की शक्तियां संसद के प्राधिकार या उसके अधीन प्रयोग की जाने योग्य होंगी वहां -
1: - संसद राष्ट्रपति को कानून बनाने के लिए राज्य विधानमंडल की शक्तियां प्रदान कर सकेगी और उसे अपनी इन शक्तियों को ऐसी की शर्तों के अधीन जैसा कि वह उचित समझे किसी भी अन्य प्राधिकारी को जिसको वह इस हेतु निर्देशित करें प्रत्यायोजित करने के लिए अधिकृत कर सकेगी.
2: - संसद या राष्ट्रपति या अन्य प्राधिकारी जिसमें कानून बनाने की ऐसी शक्ति निहित है कानून बनाकर संघ को या उसके पदाधिकारियों और प्राधिकारी यों को शक्तियां और कर्तव्य प्रदान और आरोपित कर सकेगी या शक्तियों को प्रधान या आरोपित करने के लिए प्राधिकृत कर सकेंगे.
3: - राष्ट्रपति उस समय जबकि लोकसभा सत्र में ना हो राज्य की संचित निधि में संसद द्वारा ऐसे खर्च की मंजूरी के लंबित रहते खर्च प्राधिकृत कर सकेगा.
अनुच्छेद 256 के अनुसार राज्य विधान मंडल की शक्ति के प्रयोग में खंड (1) (a) अपने अधीन संसद या राष्ट्रपति या अन्य प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कोई भी कानून उद्घोषणा के समाप्त होने के बाद वह तब तक प्रभावशाली रहेगा जब तक कि उसे किसी सक्षम विधानमंडल या प्राधिकारी द्वारा परिवर्तित निरसित या संशोधित ना कर दिया गया हो.
उपयुक्त अनुच्छेद 356 के अंतर्गत भारत में संविधान के लागू होने के बाद से अब तक विभिन्न राज्यों में अनेक बार राष्ट्रपति शासन लागू किया जा चुका है. सन 1977 में जनता पार्टी की केंद्रीय सरकार ने सामूहिक रूप से 9 राज्यों की कांग्रेसी या अन्य सरकारों को बर्खास्त करने के लिए इस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लागू किया था इसमें से राजस्थान सहित छह राज्यों के केंद्र सरकार के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.
राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ ए आई आर 1977 एस सी 13 61, के ऐसे मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय लिया कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा विधानसभाओं को भंग करने की शक्ति का प्रयोग संविधानिक है यह आवश्यक नहीं है कि राष्ट्रपति राज्यपाल की ही रिपोर्ट पर ऐसा करें यदि वह अन्य किन्हीं कारणों से संतुष्ट है कि किसी राज्य में वे संविधान के अनुसार सरकार चलाना संभव नहीं है तो वह राष्ट्रपति को उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सलाह दे सकती है और राष्ट्रपति इस सलाह को मानने के लिए बाध्य हैं.
पुणे 1980 में मध्यावधि चुनाव होने पर कांग्रेस पार्टी के पुनः सत्ता में लौटने पर केंद्रीय सरकार ने उसी प्रकार सामूहिक रूप से 9 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया.
मध्य प्रदेश हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान तीनों राज्यों में भाजपा शासित सरकारों को बाबरी मस्जिद विवाद के पश्चात भंग कर दिया गया था इसी आदेश के विरुद्ध मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुंदरलाल पटवा बनाम भारत संघ 1993 जेबीएल 387 के बाद में अभी निर्धारित किया कि राष्ट्रपति शासन लागू करने वाला देश क्योंकि वह पुनः अनुच्छेद 3560 पर इन से बाहर है कोई अवैध आदेश संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के पश्चात वैद्य नहीं हो जाता है.
बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए मार्गदर्शक सिद्धांत (the guidelines laid down by the supreme court in Bommai case)
S.R.Bommai vs Central(1994)s.c.c. 1 के मामले में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के संबंध में निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं -
(a) अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने और विधानसभा के भंग करने की शक्ति सशर्त है असीमित नही है उसे यह दिखाना होगा कि अनुच्छेद 256(1) के अधीन वे परिस्थितियां स्थिति में थी जिसके आधार पर राष्ट्रपति ने कार्यवाही की है.
(b) राष्ट्रपति शासन गवर्नर को लिखित रिपोर्ट के बिना लागू नहीं किया जा सकता है.
(c) पंथनिरपेक्षता भारतीय संविधान का आधारभूत ढांचा है एवं अगर कोई गवर्नमेंट उसके आदर्शों के खिलाफ कार्य करती है तो अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया जा सकता है.
(d) विपक्षी के द्वारा शासित सभी राज्य सरकारों को साथ बर्खास्त नहीं किया जा सकता है.
(e) अगर सिर्फ राजनीतिक आधारों पर दुर्भावना से प्रेरित होकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है तो कोर्ट विधानसभा को पुनर्जीवित कर सकता है.
(f) राष्ट्रपति शासन लागू करने एवं विधानसभा को भंग करना दोनों एक साथ नहीं किया जा सकता है राष्ट्रपति संसद के द्वारा उद्घोषणा के अनुमोदित किए जाने के बाद ही विधानसभा को भंग कर सकता है जब तक ऐसा अनुमोदन नहीं हो सकता है राष्ट्रपति विधानसभा को केवल निलंबित कर सकता है.
(g) सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट केंद्रीय सरकार को अनुच्छेद 74 (2) के बावजूद उस सामग्री को बताने के लिए बाध्य कर सकता है जिसके आधार पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का परामर्श केंद्रीय मंत्रिमंडल परिषद द्वारा राष्ट्रपति को देता है.
Comments