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इजरायल ईरान war और भारत ।

इजराइल ने बीते दिन ईरान पर 200 इजरायली फाइटर जेट्स से ईरान के 4 न्यूक्लियर और 2 मिलिट्री ठिकानों पर हमला किये। जिनमें करीब 100 से ज्यादा की मारे जाने की खबरे आ रही है। जिनमें ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिक और टॉप 4  मिलिट्री कमांडर समेत 20 सैन्य अफसर हैं।                    इजराइल और ईरान के बीच दशकों से चले आ रहे तनाव ने सैन्य टकराव का रूप ले लिया है - जैसे कि इजरायल ने सीधे ईरान पर हमला कर दिया है तो इसके परिणाम न केवल पश्चिम एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर व्यापक असर डाल सकते हैं। यह हमला क्षेत्रीय संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय संकट में बदल सकता है। इस post में हम जानेगे  कि इस तरह के हमले से वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सुरक्षा और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर क्या प्रभाव पडेगा और दुनिया का झुकाव किस ओर हो सकता है।  [1. ]अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव:   सैन्य गुटों का पुनर्गठन : इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण वैश्विक स्तर पर गुटबंदी तेज हो गयी है। अमेरिका, यूरोपीय देश और कुछ अरब राष्ट्र जैसे सऊदी अरब इजर...

UPSC previous year question paper prelims part 5

(1) रखमाबाई राऊत ब्रिटिश भारत की पहली महिला डॉक्टरों में से एक थी.11 वर्ष की आयु में इनका विवाह कर दिए जाने के पश्चात भी इन्होंने अपनी मां के घर में ही रहना जारी रखा. इस कारण इनके पति दादाजी भीकाजी ने अपने दांपत्य अधिकारों के प्रति प्रत्यास्थापन हेतु रखमाबाई के विरुद्ध मुकदमा दायर किया।

                 दादाजी भीकाजी बनाम रखमाबाई मामले में पहला निर्णय रखमाबाई के पक्ष में रहा हालांकि बाद में इस मामले पर अनेक बार पुनर्विचार किया गया व अंतिम निर्णय दादाजी भीकाजी के पक्ष में आया इसके बाद महारानी विक्टोरिया द्वारा न्यायालय का निर्णय पलटते हुए रखमाबाई वा दादा जी भीकाजी का विवाह समाप्त कर दिया गया। आगे चलकर रखमाबाई मुकदमे की एज आफ कंसेंट एक्ट 1891 (age of Consent Act 1891) के बनने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका थी.

              महिलाओं को शिक्षा के अधिकार दिलाने से संबंधित प्रयासों में रखमाबाई की प्रत्यक्ष भूमिका नहीं रही है.

( 2) अखिल भारतीय अस्पश्यता  विरोधी लीग की स्थापना वर्ष 1932 में हुई थी। इस संगठन को हरिजन सेवक संघ के नाम से भी जाना जाता है इसके नायक महात्मा गांधी थे अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना वर्ष 1936 में लखनऊ में स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा की गई थी वही आत्मसम्मान आंदोलन वर्ष 1920 में ई वी रामास्वामी नायकर द्वारा दक्षिण भारत में प्रारंभ किया गया।


(3)1873 मे ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की इस समाज के द्वारा महाराष्ट्र में एक जाति विरोधी आंदोलन को प्रारंभ किया गया इस आंदोलन को शाहूजी महाराज ने आगे बढ़ाया।

             सत्यशोधक समाज द्वारा मूर्ति पूजा कर्मकांड पुजारियों के वर्चस्व, पुनर्जन्म और स्वर्ग के सिद्धांतों का विरोध किया गया. यह आंदोलन अपने मूल उद्देश्य और लक्ष्य में ही सामाजिक था. आधुनिकता मूल चरित्र को आत्मसात करने का संभवत यह प्रथम भारतीय अभियान था.


( 4) 24 जनवरी 1868 में केशव चंद्र सेन ने टेबरनेकल आफ डिस्पेसेशन की स्थापना की थी।


       1870 मे केशव चंद्र सेन ने इंडियन रिफॉर्म एसोसिएशन की स्थापना की।

1823 ई  मे राजा राममोहन राय  द्वारकानाथ टैगोर विलियम एडम के द्वारा कोलकाता यूनिटेरियन कमेटी की स्थापना की गयी

       केशव चंद्र सेन ने ब्रह्म समाज में सम्मिलित होकर समाज को संगठित करने का कार्य भी किया वे मूर्ति पूजा बाबू देव पूजा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के कट्टर विरोधी थे स्त्रियों की शिक्षा के प्रति उनके विचार काफी उदार थे वे पास याद सभ्यता की अच्छाइयों को भारतीय संस्कृति में समाहित करना चाहते थे.


(5)1828  मे राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना ब्रह्म समाज की  स्थापना का उद्देश्य था एकेश्वरवाद की उपासना मूर्ति पूजा का विरोध पुरोहितवाद का विरोध अवतारवाद का खंडन आदि


 देवेंद्र नाथ टैगोर व केशव चंद्र सेन ने ब्राह्मण समाज की सदस्यता ग्रहण की आचार केशव चंद्र सेन के उदारवादी विचारों ने ब्रह्म समाज की लोकप्रियता को और बढ़ा दिया.

          
       ब्रह्म समाज में धार्मिक ग्रंथ की व्याख्या के लिए मानव बुद्धि को आधार बनाया और इसी कारण इसने पुरोहित वर्ग के अस्तित्व को अस्वीकार किया।

        यह दोनों की त्रुटि हीनता को प्रचारित करने का श्रेय दयानंद सरस्वती के आर्य समाज को जाता है ना कि ब्रह्म समाज को।


(6) बिरसा मुंडा ने उस आंदोलन का नेतृत्व किया जिसे उलगुलान( विद्रोह) ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए सामंती एवं जमीदारी व्यवस्था के खिलाफ मुंडा विद्रोह के रूप में जाना जाता है. उलगुलान विद्रोह के एक कारण के रूप में साहूकारों एवं ठेकेदारों द्वारा किया गया शोषण भी उत्तरदाई था.


(7) चंपारण आंदोलन1917- 18 मे हुआ था उस दौरान अंग्रेज किसानों से जबरदस्ती नील की खेती( कृषकों को अपनी जमीन के3: 20 विभाग पर नील की खेती करना अनिवार्य तिनकाठिया व्यवस्था) कराते थे जिसका कारण उनमें भारी असंतोष था.

          इसकी परिणति यह हुई कि एक किसान राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को चंपारण आने का न्योता दिया . इसके बाद महात्मा गांधी नील की खेती के विरोध में राजेंद्र प्रसाद अनुग्रह नारायण सिन्हा और ब्रजकिशोर प्रसाद के साथ चंपारण पहुंचे और अंग्रेजो के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया. इस आंदोलन के चलते अंग्रेजों को झुकना पड़ा.


( 7) अशोक मेहता टीएस रामानुजम और जीजी मेहता हिंद मजदूर सभा के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे.

( 8) जनवरी 1856 तक संथाल परगना क्षेत्र में संथाल विद्रोह दबा दिया गया. लेकिन संस्थानों की वीरता और शौर्य को देखते हुए सरकार को प्रशासनिक परिवर्तनों की अनिवार्यता स्वीकार करनी पड़ी संथाल विद्रोह के परिणाम स्वरूप नवंबर 1856 मैं विधिवत संथाल परगना जिला की स्थापना की गई और एशली एडेन को प्रथम जिलाधिकारी बनाया गया।


           अंग्रेज सरकार ने भूमि का स्वामित्व जनजातियों के लिए निर्धारित करते हुए उनके संरक्षण हेतु भूमि कानून संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम बनाया जिसके तहत किसी संथाल  का गैर संताल को भूमि अंतरण करना गैरकानूनी हो गया.


( 9) 1930 के देश में बढ़ती हुई समाजवादी गतिविधियों को चिंतित होकर सरकार ने 1929 मे ट्रेड डिस्प्यूट बिल सदन में पेश किया गया जिसके द्वारा कारखानों में डिसटीब्यूशनल प्रणाली एवं हड़तालो के ऊपर रोक लगा दी गई।


(10) फैक्ट्री एक्ट 1881 मैं औद्योगिक कामगारों को मजदूर संघ बनाने की अनुमति नहीं प्रदान की गई थी.  एन एम लोखंडे ब्रिटिश भारत में मजदूर आंदोलन से जुड़े अग्रणी नेता थे


(11) बंगाल का तेभागा किसान आंदोलन जमीदारों की हिस्सेदारी को फसल के आधे भाग से कम कर के एक तिहाई करना इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था 

(a) बंगाल केंद्रीय यह आंदोलन1946 50 ईसवी की अवधि में हुआ.

(b) इस आंदोलन के प्रमुख नेता कृष्ण विनोद राय अवनी लहरी सुनील सेन आदि  थे।

(c)नोआखाली इस समय भीषण सांप्रदायिक दंगों से झुलस रहा था परंतु इस आंदोलन में हिंदू एवं मुसलमान किसानों ने एकता का प्रदर्शन किया


(d) इस आंदोलन में बटाईदार किसानों ने ऐलान किया कि वह फसल का दो बटे तीन हिस्सा लेंगे और जमीदारों को सिर्फ एक बटे तीन हिस्सा ही देंगे बंटवारे के इसी अनुपात के कारण इसे तेभागा आंदोलन कहा जाता है.

(12) जनजातीय विद्रोह के लिए उत्तरदाई प्रमुख कारण

जनजातीय भूमि व्यवस्था के प्राचीन संबंधों का संपूर्ण विदारण ही  वह साझा कारण था जिसने 19वीं शताब्दी में जनजातीय विद्रोह को मुखर किया ।खासी विद्रोह(1829 33) कोल विद्रोह(1831 32)खोण्ड विद्रोह(1837 56) संथाल विद्रोह(1855 56) मुंडा विद्रोह(1899 1900) आदि जनजातीय विद्रोह के कुछ प्रमुख उदाहरण है. इन विद्रोह के निम्न कारण माने जा सकते हैं

(1) आदिवासियों का वन पर परंपरागत अधिकार था परंतु सरकार ने वन नीति के तहत उसे सरकारी संपत्ति घोषित किया और आदिवासियों को वन सामग्री के उपयोग की आजादी ना रही.

(2)1793 के स्थाई बंदोबस्त से संस्थानों को अपनी परंपरागत जमीन से हाथ धोना पड़ा.

(3) आबकारी कर नमक कर जैसे करों की वसूली भी विद्रोह का कारण बनी।

(4) अंग्रेजों ने आदिवासी इलाकों में पुलिस थाने  सैनिक छावनिया व कंपनी कानून लागू किए नई व्यवस्था की शोषण वादी प्रवृत्ति से आदिवासी त्रस्त हो गए।

(5) ईसाई धर्म प्रचार को ने उनकी संस्कृति पर प्रहार किया फलता उस में असंतोष पैदा हुआ.


       उपरोक्त कारण विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थित थे परंतु साझा कारकों के रूप में मुख्यतः जनजातियों की प्राचीन भूमि व्यवस्था पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कुठाराघात करना था.






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