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असुरक्षित ऋण क्या होते हैं? भारतीय बैंकिंग संकट, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और RBI के समाधान की एक विस्तृत विवेचना करो।

Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (pardoning power of president and governor)

सुर्खियों में क्या?
हाल के घटनाक्रमों में राजीव गांधी की हत्या के मामले के दोषियों को सुर्खियों में ला दिया है इस संबंध में गठित हालिया घटनाओं से स्पष्ट होता है कि उपयुक्त प्राधिकारी दोषियों की क्षमा याचिका पर स्पष्ट निर्णय लेने में असमर्थ रहे हैं तथा अब मामले को उच्चतर प्राधिकारी (राष्ट्रपति) को सौंप दिया गया है.


पृष्ठभूमि: -

वर्ष 1991 ने तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में आत्मघाती बम विस्फोट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी.

इस मामले में 7 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था. वर्ष 1999 उच्चतम न्यायालय ने उनमें से चार को मृत्युदंड और अन्य को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

हालांकि वर्ष 2000 में एक दोषी नलिनी की मृत्यु दंड की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था वर्ष 2014 को उच्चतम न्यायालय द्वारा पेरारिवलन सहित अन्य तीन की मृत्यु दंड की सजा को भी उम्र कैद में बदल दिया गया है.


वर्ष 2015 में पेरारिवलन ने तमिलनाडु के राज्यपाल के समक्ष एक क्षमा याचिका दायर की थी सितंबर 2018 में उच्चतम न्यायालय ने राज्यपाल को निर्देश दिया कि यदि वे उचित समझे तो क्षमा याचिका पर निर्णय ले सकते हैं.


उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद तमिलनाडु मंत्रिमंडल पेरारिवलन और छह अन्य लोगों को रिहा करने के लिए राज्यपाल (अनुच्छेद 161 के तहत) से सिफारिश कीथी।


हालांकि राज्यपाल द्वारा सिफारिश और क्षमा याचिका पर 2 वर्ष से अधिक समय तक कोई कार्यवाही नहीं किए जाने के कारण पेरारिवलन में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।


हाल ही में केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को यह आश्वासन दिया कि पैराफिनम की रिहाई के संबंध में सुनवाई करने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल को अनुरोध किया गया है हालांकि बाद में राज्यपाल के कार्यालय द्वारा स्पष्ट किया गया कि इस मामले में संलिप्त सभी दोषियों की क्षमा याचिका पर सुनवाई राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।


क्षमादान के मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल की तुलनात्मक शक्तियां

राष्ट्रपति


संविधान के अनुच्छेद 72 मैं राष्ट्रपति को और व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के दोषी है:

( 1) संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में किया गया दंड मे

(2)सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में तथा

(3) यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो तो


राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में निम्नलिखित शामिल है

क्षमा(pardon):

 इसमें दंड और बंदी करण दोनों को निरस्त कर दिया जाता है तथा दोषी को सजा दंड दंड आदेश एवं निरर्हताओ से पूर्णतया मुक्त कर दिया जाता है।


लघुकरण(Commutation)

इसका अर्थ है कि सजा की प्रकृति को बदलकर उसको कमतर करने जैसे मृत्युदंड को कठोर कारावास में करना.


परिहार(Remission)

सजा की अवधि ना कि उसकी प्रकृति को बदलना जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना.

विराम(respite)

विशेष परिस्थितियों की वजह से सजा को कम करना जैसे तो उसी की शारीरिक अपंगता या दूसरी महिलाओं की गर्भावस्था के कारण


प्रविलंबन(Reprieve)

यह किसी दंड को कुछ समय के लिए टालने की प्रक्रिया से संबंधित है जैसे फांसी की प्रक्रिया को कुछ समय के लिए टालना।


राज्यपाल


अनुच्छेद 161 के तहत किसी राज्य के राज्यपाल को भी क्षमादान की शक्तियां प्राप्त है।


परंतु निम्नलिखित दो परिस्थितियों में राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियां राष्ट्रपति से भिन्न है

सैन्य न्यायालय द्वारा दिया गया दंड को केवल राष्ट्रपति क्षमा कर सकता है ना कि राज्यपाल।

मृत्युदंड को केवल राष्ट्रपति क्षमा कर सकता है जबकि राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकता है यहां तक कि अगर मृत्युदंड की सजा राज्य विधि के तहत की गई है तो क्षमा दान करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है ना कि राज्यपाल के पास।



राज्यपाल के पास राज्य विधि के तहत किसी अपराध के लिए दोषी व्यक्ति के दंड को क्षमा उसका प्रविलंबन विराम या परिहार करने की अथवा दड के निलंबन परिहार या लघुकरण की शक्ति होती है।


हालांकि राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को निलंबित परिहार अथवा उसका लघुकरण कर सकता है।



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