Drafting और Structuring the Blog Post Title: "असुरक्षित ऋण: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, और RBI की भूमिका" Structure: परिचय असुरक्षित ऋण का मतलब और यह क्यों महत्वपूर्ण है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में असुरक्षित ऋणों का वर्तमान परिदृश्य। असुरक्षित ऋणों के बढ़ने के कारण आसान कर्ज नीति। उधारकर्ताओं की क्रेडिट प्रोफाइल का सही मूल्यांकन न होना। आर्थिक मंदी और बाहरी कारक। बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव वित्तीय स्थिरता को खतरा। बैंकों की लाभप्रदता में गिरावट। अन्य उधारकर्ताओं को कर्ज मिलने में कठिनाई। व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव आर्थिक विकास में बाधा। निवेश में कमी। रोजगार और व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की भूमिका और समाधान सख्त नियामक नीतियां। उधार देने के मानकों को सुधारना। डूबत ऋण प्रबंधन (NPA) के लिए विशेष उपाय। डिजिटल और तकनीकी साधनों का उपयोग। उदाहरण और केस स्टडी भारतीय बैंकिंग संकट 2015-2020। YES बैंक और IL&FS के मामले। निष्कर्ष पाठकों के लिए सुझाव और RBI की जिम्मेदारी। B...
( 1): - हॉर्टोंग समिति (वर्ष१९२९) के मुख्य निष्कर्षों पर चर्चा कीजिए?
उत्तर में शिक्षा पर गठित हार्टोंग समिति के प्रस्ताव पर चर्चा करनी है प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्व पर बल ग्रामीण विद्यार्थियों को व्यावसायिक और औद्योगिक शिक्षा इत्यादि.
उत्तर. शैक्षणिक विकास पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए हार्टोंग समिति का गठन सर फिलिप हार्टोंग की अध्यक्षता में किया गया समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए तदनुसार प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय महत्व पर बल दिया किंतु शीघ्र प्रसार एवं अनिवार्यता की निंदा की जबकि सुधार और एकीकरण की नीति की सिफारिश की
माध्यमिक शिक्षा के विषय में कहा गया है कि इसमें मैट्रिक परीक्षा पर ही बल है बहुत से अनुचित विद्यार्थी इसको विश्वविद्यालय शिक्षा का मार्ग समझते हैं ग्रामीण विद्यार्थियों को वरना कूलर मिडिल स्कूल के स्तर पर ही रोका जाए तथा कालेज में प्रवेश पर रोका जाए उन्हें व्यवसायिक और औद्योगिक शिक्षा दी जाए.
विश्वविद्यालय शिक्षा की दुर्बलता ओं की ओर ध्यान आकर्षित किया गया और विवेकहिन प्रवेशो की आलोचना की गई है तथा सुझाव दिया गया है कि विश्वविद्यालय शिक्षा को सुधारने के पूर्व प्रयत्न किया जाए एवं विश्वविद्यालय भी अपने कर्तव्य तक ही अपने आप को सीमित रखें तथा सरकार द्वारा विश्वविद्यालय के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कम से कम हो तथा जो विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने योग्य हैं उन्हें अच्छी और उच्च शिक्षा प्राप्त हो।
(2): प्रार्थना समाज पर एक टिप्पणी लिखिए?
उत्तर: प्रार्थना समाज 1867 में महादेव गोविंद रानाडे एवं डॉक्टर आत्माराम पांडुरंग ने मुंबई में इसकी स्थापना की जो आचार केशव चंद्र सेन के विचारों एवं महाराष्ट्र यात्रा से प्रभावित था समाज सुधार के अंतर्गत जाति प्रथा स्त्री शिक्षा विधवा विवाह इत्यादि लक्ष्य थे.
( 3 ): - धर्म सभा पर एक टिप्पणी लिखिए?
उत्तर: - धर्म सभा वर्ष 1830 में राधाकांत देव ने इसकी स्थापना की वे सती प्रथा बाल विवाह के समर्थक थे और इन कार्यों को आगे बढ़ाते हुए कल्पद्रुम एवं गौड़ीय समाज की स्थापना की.
( 4): - सत्यशोधक समाज पर एक टिप्पणी लिखिए?
उत्तर: - सत्यशोधक समाज वर्ष 14 में ज्योतिबा फुले ने इसकी स्थापना की तथा विचारों के प्रदर्शन के लिए गुलामगिरी नामक पुस्तक प्रकाशित की सभा में मुख्यता ब्राह्मणों का विरोध किया तथा जाति प्रथा का विरोध एवं सामाजिक समानता पर बल देना इस संगठन का लक्ष्य था.
( 5): - पुणे सार्वजनिक सभा पर टिप्पणी लिखिए?
उत्तर: - सभा वर्ष 1870 में जनता एवं सरकार के मध्य मध्यस्थता स्थापित करने के लिए एक संगठन बनाया गया जिसके प्रमुख नेता गणेश वासुदेव जोशी एस एम चिपलुणकर एच एच सारे गोविंद रानाडे एवं पांडुरंग थे.
( 6): - भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव को प्रभावित करने में तिलक का क्या योगदान था?
बाल गंगाधर तिलक के प्रमुख कार्यों का वर्णन करते हुए राष्ट्रीय आंदोलन के परिवर्तन को समझाना है जैसे मराठा एवं केसरी राष्ट्रीय शिक्षा की मांग होमरूल लीग शिवाजी एवं गणेश उत्सव इत्यादि.
उत्तर: - भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में तिलक ने एक कट्टर क्रांतिकारी देशभक्त के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्होंने अपने पत्र मराठा एवं केसरी के माध्यम से जनसाधारण (विशेषकर पुणे के चाफेकर बंधुओं) को क्रांति का दर्शन दिया.
उन्होंने कांग्रेस के गरम दल का प्रतिनिधित्व किया था तथा राजनीति में एक प्रचंड तत्व को सक्रिय कर दिया सूरत फूट में उनका हाथ था तथा कांग्रेस की विचारधारा को सशक्त ता से पेश करने की वकालत की. वर्ष 1916 के अधिवेशन में स्वशासन बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा की मांग का प्रस्ताव उनके प्रयास से ही पारित हुआ . स्वराज की मांग को सार्वभौमिक बनाने हेतु उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना 1916 में की थी.
क्रांतिकारी देश भक्तों में उत्साह एवं बलिदान की प्रेरणा हेतु शिवाजी एवं गणेश उत्सव को प्रचलित किया आर्यन एवं गीता रहस्य जैसी पुस्तकें लिख कर उन्होंने भारतीय संस्कृति की विरासत को उच्चता प्रदान करने में योगदान दिया.
उनके उपरोक्त प्रयासों से राष्ट्रीय आंदोलनों में अजीब सा संचार हुआ उन्होंने कांग्रेस को जनसाधारण के करीब पहुंचा दिया तथा उनकी राजनीति की दिशा बदल दी.
( 7): - वर्तमान शताब्दी के प्रारंभिक चरण में भारतीय राजनीति में उग्रवाद के कारण और उसके स्वरूप का परीक्षण कीजिए?
इस प्रश्न में कांग्रेस के अंदर उग्रवादी विचारधारा के उदय के कारण बताते हुए उनके विभिन्न कार्यक्रमों तथा विचारधारा का विवरण देना है.
उत्तर: - शताब्दी के अंत तक जब तक नरमपंथी राजनीति की असफलता एकदम स्पष्ट हो गई तब कांग्रेस की कतारों से ही एक प्रतिक्रिया पैदा हुई और इस नई प्रवृत्ति को गर्म पंथी या उग्रवादी प्रवृत्ति कहा जाता है कांग्रेस की स्थापना के 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी कांग्रेस के उदारवादी नेता प्रस्तावों सुझाव प्रार्थना पत्र आदि के माध्यम से सुधारों की मांग कर रहे थे. जिसका कोई प्रतिफल सामने नहीं आ रहा था इससे भारतीय जनमानस में असंतोष बढ़ रहा था सरकार की अकर्मण्यता और कांग्रेस की उदासीनता की अभिव्यक्ति उग्र राष्ट्रीय चेतना के रूप में हुई और उसके उन्नायक लोकमान तिलक लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे.
उग्रवाद के उदय में अनेक कारण जिम्मेदार थे जब लोगों को वास्तविक रूप से ब्रिटिश शासन के सही स्वरूप का ज्ञान हुआ तब आर्थिक प्रश्नों को लेकर समाज में ज्ञान फैला जिससे जनता में यह विश्वास जागा कि भारत की निर्धनता और अन्य अनैतिक कार्य हेतु ब्रिटिश शासन ही जिम्मेदार है जिसके फलस्वरूप उग्रवाद का उदय हुआ.
लोगों में राजनीतिक निराशा तब हुई जब वर्ष 1892 में इंडियन काउंसिल एक्ट पास हुआ तथा वर्ष 1897 में तिलक को राजद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया इससे उग्रवाद पनपा। लॉर्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति जैसे बंगाल विभाजन इंडियन ऑफिसियल सीक्रेट रिजेक्ट इंडियन यूनिवर्सिटीज एक्ट आदि में गर्म पंथी उग्रवादी विचारधारा के उदय में योगदान दिया इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय आंदोलनों एवं घटनाओं से लोगों में जागरूकता आई उनमें आत्म सम्मान एवं आत्मविश्वास का प्रसार हुआ जिसने उग्रवाद के उदय की पृष्ठभूमि तैयार कर दी अनेक समाज सुधार को जैसे राजा राममोहन राय दयानंद सरस्वती विवेकानंद आदि ने भी उग्रवाद के उदय में अपना योगदान दिया।
उग्रवादियों के अनुसार विदेशी शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए वर्तमान प्रयासों से ऊपर उठकर निश्चयात्मक एवं अटल प्रयास करने होंगे. इन्होंने जनता की शक्ति को पहचाना और आंदोलनों में जनता को शामिल किया जाने के पक्षधर हुए. विदेशी सत्ता द्वारा सुधार उग्रवादियों को स्वीकार ना थे तथा विदेशी शासन से उन्हें घृणा थी उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य स्वराज्य स्वाधीनता है उनका विचार था कि भारतीयों को मुक्ति अपने स्वयं के प्रयासों से प्राप्त करनी होगी उन्होंने घोषणा की कि इस कार्य के लिए बड़े-बड़े बलिदान करने होंगे तकलीफ सहनी होंगे.
उग्रवादी इस विचारधारा को अस्वीकार करते थे कि भारत अंग्रेजों के कृपा को मार्गदर्शन और नियंत्रण में प्रगति कर सकता है उन्होंने कांग्रेस के संकुचित आधार को विस्तृत किया और इसके लिए उन्होंने जनता के बीच राजनीतिक कार्य पर और जनता की सीधी राजनीति कार्यवाही पर जोर दिया इस प्रकार उनकी प्राकृतिक बहिष्कार स्वदेशी सहित निष्क्रिय प्रतिरोध की थी उन्होंने नरमपंथी यों की नीति को त्याग दिया और एक आक्रामक नीति का अनुसरण किया जिससे कांग्रेस की दशा एवं दिशा दोनों बदल गई.
( 8): - प्रारंभिक भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व के कार्य आर्थिक राष्ट्रीयता में किस प्रकार प्रदर्शित करते हैं?
इस प्रश्न में राष्ट्रीय नेताओं के आर्थिक शोषण एवं धन निर्गमन आदि पर विचार तथा योग दानों को बताना है.
. उत्तर: - एक भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व में अंग्रेजों को शोषणकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है जनता को अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण के बारे में जागृत किया उन्होंने इस नीति को तब उजागर किया जबकि भारत में राष्ट्रवाद की कोई लहर नहीं थी उन्होंने यह बताने का प्रयास किया कि इस आर्थिक शोषण धन के निर्गमन से कोई एक क्षेत्र विशेष ही नहीं अपितु संपूर्ण राष्ट्र इसका शिकार है जिसके परिणाम स्वरूप भारत में निर्धनता तथा अन्य आर्थिक समस्याएं व्याप्त है.
सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने वर्ष 1867 मैं इंग्लैंड टू इंडिया नामक पुस्तक में धन की निकासी के सिद्धांत का प्रतिपादन किया उनकी एक अन्य पुस्तक इन ब्रिटिश रूल इन इंडिया में स्पष्ट रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया इन पुस्तकों में नौरोजी द्वारा यह बताया गया कि किस तरह अंग्रेजी शासन भारत में धन निकालकर इंग्लैंड पहुंचा रही है और ऐसी नीतियां बना रखी है जिससे भारत की कृषि हस्तशिल्प उद्योग व्यापार एवं ग्रामीण समाज तहस-नहस हो रहा है.
नौरोजी के अलावा रमेश चंद्र दत्त ने अपनी पुस्तक ब्रिटिश भारत का आर्थिक इतिहास में नौरोजी के विचारों का समर्थन किया तथा अंग्रेजी उपनिवेशवाद को तीन आर्थिक काल खंडों में बैठकर यह बताया कि किस तरह भारत का शोषण कर अंग्रेजों ने अपना औद्योगिकरण किया है.
सुरेंद्रनाथ बनर्जी जी बी जोशी एमजी रानाडे आदि विद्वानों ने भी धन निकासी के संदर्भ में ब्रिटिश शासन की आलोचना की.
धन निष्कासन सिद्धांत ने अंग्रेजों के शोषण मुल्क चरित्र को उजागर किया आरंभिक भारतीय बुद्धिजीवियों में अंग्रेजी सत्ता के द्वारा भारतीयों के शुभचिंतक होने का नारा एक धोखा नजर आया इन बुद्धिजीवियों ने एकजुट होकर ब्रिटिश औपनिवेशिक हितों के खिलाफ आवाज उठाई और इस क्रम में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ यह धन निकासी तथा शोषणकारी व्यवस्था सदैव अंग्रेजों के विरुद्ध एक हथियार के रूप में रहे और भारतीय जनमानस स्वराज व स्वदेशी की मांग करने लगा.
( 9): - भारतीयों पर नरम दल वालों का प्रभाव क्यों समाप्त हो गया और अंग्रेजों से अपनी इच्छा के अनुसार प्रतिउत्तर प्राप्त करने में क्यों असफल रहे.?
इस प्रश्न में नरम दल की नीतियों कार्यक्रमों का विवरण देते हुए उसकी असफलता के कारणों को बताना है.
उत्तर: - कांग्रेस की स्थापना के बाद उसका प्रारंभिक चरण उदारवादियों के हाथों में रहा है उदारवादी नेता सुरेंद्र नाथ बैनर्जी फिरोजशाह मेहता दिनशा वाचा दादा भाई नौरोजी आदि थे उन्हें ब्रिटिश शासन व्यवस्था में पूर्ण विश्वास था तथा उनका मानना था कि अंग्रेजी व्यवस्था बनाए रखने में सक्षम है इसलिए वे अपनी मांगों में प्रत्यावेदन ओ स्मरण पत्रों तथा अन्य कार्यों पर सुधार की मांग करते थे जिसके परिणाम स्वरूप कोई भी ठोस सुधार नहीं हो सका और भारतीय जनमानस घुटन महसूस करने लगा और उदार वादियों की नीतियों कार्यक्रमों से दूर होता चला गया.
उदार वादियों की संख्या भी कम की जनता का संपूर्ण सहयोग भी भी नहीं प्राप्त कर सके जिससे एक विस्तृत आंदोलन को चलाया जा सके दूसरी तरफ गरम पंछियों की नीतियां एवं कार्यक्रम आमूलचूल परिवर्तन ओं के पक्ष में थे उन्होंने आत्मनिर्भरता रचनात्मक कार्यक्रमों एवं स्वदेशी का प्रचार प्रसार किया जिससे जनता द्वारा पूरे उत्साह से अपनाया गया.
उदार वादियों की इन्हीं लचर नीतियों के कारण ब्रिटिश सरकार भी कोई सुधार नहीं करने के पक्ष में थी जिससे उन्हें निश्चित प्रत्युत्तर नहीं प्राप्त हो सका.
( 10): - वर्ष 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिए इस अवधि में इसकी आधारभूत कमजोरियां क्या थी?
उत्तर में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में नरमपंथी यों के दृष्टिकोण की विवेचना करते हुए राष्ट्रीय आंदोलन की कमियां जैसे सीमित जनाधार इत्यादि एवं नरमपंथी राजनीति के योगदान को रेखांकित करना है.
उत्तर: - वर्ष 1950 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर नरमपंथी विचारधारा का प्रभाव था समाज कार्य शिक्षक वर्ग एक स्वतंत्र प्रभुत्व संपन्न धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र की स्थापना करना चाहता था किंतु मूल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सदैव वैकल्पिक उद्देश्यों को दृष्टिगत रखना आवश्यक होता है.
वैकल्पिक उद्देश्यों के अंतर्गत अखिल भारतीय संगठन की स्थापना कुशल नेतृत्व का निर्माण एक विचारधारा का विकास जन चेतना का संचालन समाज सुधार एवं शिक्षा की सार्वभौमिकता ब्रिटिश प्रशासन का भारतीय करण भारतीयों के अनुकूल कर व्यवस्था धन निर्गमन का विरोध औद्योगिक विकास तकनीकी शिक्षा पर बल आई सी एस परीक्षा के लिए आयु सीमा में वृद्धि सिंचाई को प्रोत्साहन भारतीयों के पक्ष में सत्ता का हस्तांतरण करना इत्यादि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रारंभिक उद्देश्य थे जिनके लिए उदारवादी प्रयत्न रतन थे.
लेकिन इन उद्देश्यों के लिए उदार वादियों की नीति अहिंसक थी अर्थात प्रतिवाद करने की विधि संवैधानिक होगी उन्होंने भारत के प्रति वृक्षों का योगदान स्वीकार करते हुए उनके प्रति अपनी निष्ठा व्यक्ति की किंतु ऐसा नहीं है कि उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के आ ब्रिटिश स्वरूप का ज्ञान नहीं था वह चाहते थे कि जिन मूल्यों का तथा संस्थाओं के आधार पर ब्रिटेन में लोकतंत्र का विकास हुआ भारत में भी उन्हीं मूल्यों का क्रियान्वयन हो.
जहां तक उदारवादी आंदोलन की कमजोरियों का प्रश्न है तो उनमें प्रमुख संकुचित जनाधार था किंतु आंदोलन में बहुत संख्या का आ शिक्षकों की भागीदारी जिस कारण आंदोलन कभी भी हिंसक से हिंसक हो सकता था जबकि तत्कालीन अस्त्र शास्त्र की कमी हिंसा के पक्ष में नहीं थी उदारवादी आंदोलन के समय कांग्रेस शेष अवस्था में थी जिसे कुचलने के लिए ब्रिटिश आतुर थे कुल मिलाकर अपनी शांति वादी नीतियों की सहायता से उदार वादियों ने इस शिशु को संरक्षण प्रदान किया यही कारण था कि यह शिशु वयस्क होकर गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में सक्षम रहा.
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