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सुप्रसिद्ध न्यायविद् तथा समाज सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता के रूप में आज भी याद किया जाता है ।
अंबेडकर जी का एक ही नारा था -
“शिक्षित बनो संगठित रहो और संघर्ष करो!
बाबा साहब अंबेडकर को भारतीय समाज के अस्पश्य वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है ।तत्कालीन समय में बाबा साहब अंबेडकर ने भारत में तिरस्कृत समझे जाने वाले अछूतों समाज दलित समाज अर्थात अनुसूचित जन समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष का बीड़ा उठाया था।
डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महु (मध्यप्रदेश )में हुआ था । वह एक साधारण अनुसूचित हरिजन माता-पिता के चौदहवीं संतान थे। उनके पिता का नाम राम जी फौज में एक सिपाही थे और इसी कारण उनका पूरा परिवार सैन्य कैंपों में घूमता रहा ।1905 में मात्र 14 वर्ष की आयु में अंबेडकर जी की शादी अपने पारिवारिक रिश्तेदारों में हो गई। उस समय उनकी पत्नी की आयु केवल 9 वर्ष थी और वह स्कूली शिक्षा से वंचित थी। 1912 में अंबेडकर ने एल्विन स्टोन कॉलेज मुंबई से B.A.किया तथा अमेरिका जाने के लिए स्कॉलरशिप हासिल की । वहां कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में M.A.( 1915 )करने के बाद इसी विषय में पीएचडी (1916) की डिग्री प्राप्त की। सन 1916 में अंबेडकर अपनी स्कॉलरशिप के तहत इंग्लैंड के लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र से M.A. तथा कानून की शिक्षा ग्रहण करने के लिए दाखिला लेने में सफल रहे परंतु स्कॉलरशिप समाप्त होने के कारण शिक्षा अधूरी छोड़कर भारत में वापस आने के लिए इन्हें मजबूर होना पड़ा ।बम्बई के एक कॉलेज में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने फिर वह पुनः इंग्लैंड गए तथा अधूरी शिक्षा पूरी की ।1923 में एमएससी तथा कानून की डिग्री हासिल कर उन्होंने बम्बई बार एसोसिएशन में प्रवेश किया। अगले वर्ष में अंबेडकर ने बम्बई हाईकोर्ट में न्यायविद् के रूप में अभ्यास शुरू किया।
सामाजिक समानता अभियान: -
पढ़ाई तथा डिग्री हासिल करने के इन तमाम वर्षों में अंबेडकर को छुआछूत समझे जाने वाले समाज की सोचनीय व्यवस्था पर दिल कचोटता रहता था ।मौका मिलते ही वह हरिजनों तथा दाबे समुदाय जिन्हें आज दलित वर्ग की संज्ञा मिली हुई है के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करते रहे ।इन तमाम निम्न जाति समझे जाने वाले वर्ग के लिए अंबेडकर ने सामाजिक समानता का एक समग्र अभियान चलाया इसके लिए उन्होंने विभिन्न स्तरों पर संस्थाओं की शुरुआत की। साथ ही उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया हरिजनों और अछूतों के वर्ग के लिए अंबेडकर जी ने अनेक समाचार पत्रों की शुरुआत की। इनमें पहला पत्र मराठी भाषा में (1919)मूकनायक में था। तत्पश्चात बहिष्कृत भारत (1927) व जनता (1930 )जैसे जनरल भी अंबेडकर जी की देन थी ।इतना ही नहीं दबे हुए समाज के छुआ छूत अछूत समझे जाने वाले छात्रों की पढ़ाई तथा रहने ठहरने के लिए बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कई बोर्डिंग हाउसो की स्थापना भी की।
अपेक्षित परिणाम ना पाकर अंबेडकर ने अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए सीधी लड़ाई का ऐलान किया ।1927 में सत्याग्रह की सुरुआत की। साथ साथ में वकालत भी करते रहे। शीघ्र ही उनकी नियुक्ति बम्बई के सरकारी लाॅ कालेज में बतौर प्रोफेसर के पद पर हुई। कुछ ही वर्षों बाद अंबेडकर अंततः इसी कॉलेज में प्रधानाचार्य बने ।सन 1935 में अंबेडकर को प्रतिष्ठित पैरी प्रोफेसर आफ जूरिप्रूडेंस के पद पर नियुक्त किया गया।
अंबेडकर बनाम गांधी: -
अब तक अंबेडकर भारतीय समाज के दबे तथा सताये हुए वर्ग के नेता के रूप में उभर चुके थे ।इसी कारण अंबेडकर को लंदन में होने वाली राउंड टेबल(गोल मेज सम्मेलन) कॉन्फ्रेंस 1930- 1933 में विशेष रूप से भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया ।वहां अंबेडकर ने भारतीय अछूत वर्ग के लिए भारत में अलग-अलग चुनाव क्षेत्र बनवाने के लिए महात्मा गांधी से खुली भिड़ंत ली ।अंबेडकर महात्मा गांधी द्वारा अछूत वर्ग की हरिजन भगवान के बंदे जैसी संज्ञा के खिलाफ थे । गांधीजी हरिजनों को हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा समझकर बुराई दूर करने की बात कहते थे। जबकि अंबेडकर ने हिंदुओं द्वारा हमेशा हरिजनों को हीन भावना की दृष्टि से देखना गवारा या स्वीकार नहीं हुआ ।अब अंबेडकर उन्हें एक अलग जाति की मुहिम के अंतर्गत लाना चाहते थे।
इस कारण अंबेडकर का जीवन भर महात्मा गांधी से सीधा टकराव रहा। लेकिन अंबेडकर अपने विचारों से बिल्कुल डिगे नहीं और अपनी बात मनवाने में काफी हद तक सफल भी रहे।
इस कारण अंबेडकर का जीवन भर महात्मा गांधी भारतीय समाज में अछूतों को कलंक मानने तथा असमानता का व्यवहार बिल्कुल नहीं भाता था ।अतः अंबेडकर को असमानता दूर करने के लिए असमान्य कड़े कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा ।1935 में अंबेडकर ने दलित वर्ग की सोचनीय स्थिति में इतने दुखी हो गए कि उन्होंने स्पष्ट घोषणा कर दी कि दलित लोग हिंदू समाज में न्याय नहीं पा सकते ।अतः उन्होंने आवाहन किया कि हिंदुस्तान के तमाम दलित समाज के लोगों को हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लेना चाहिए। बड़े पैमाने पर लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित हुए ।लेकिन अपने समुदाय द्वारा ही समर्पण भाव ना मिलना खटकता रहा।
अंबेडकर को बुलंद आवाज तथा सर्व महान हरिजन नेता मानकर अन्ततः कांग्रेस में अंबेडकर जी को कांस्टीट्यूएंट असेंबली के लिए चुना।ब्रिटिश शासन से मुक्ति के बाद स्वतंत्र भारत की पहली केंद्रीय सरकार में पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री की अगुवाई सरकार बनी तथा अंबेडकर जी को उसमें विधि मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया ।इसमें अंबेडकर जी की देखरेख में भारतीय गणतंत्र के संविधान की रूपरेखा बनाई।
लेकिन 1951 में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया। इस स्थिति में वह बौद्ध धर्म के परम अनुयाई बन गए थे ।सार्वजनिक जीवन से कटने के कारण वह लोकसभा का चुनाव भी हार गए थे ।दरअसल अंबेडकर जी एक अति संवेदनशील व्यक्तित्व था ।तभी मृदु स्वभाव के होते हुए भी विचारों की खातिर उग्र रूप धारण कर लेते थे।
अद्भुत लेखक: -
अंबेडकर जीवन पर्यंत एक चिंतक बने रहे। वह एक बेहतरीन लेखक भी थे ।विभिन्न स्थानों एवं विषयों पर उनकी perfect command पकड़ थी ।हालांकि उनका लेखन भारतीय समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित वर्ग के अधिकारों व शोचनीय स्थिति को उबारने के प्रति ज्यादा रहा। 1916 में प्रकाशित कास्ट इन इंडिया देअर मकेनिज्म जेनेसिस एंड डेवलपमेंट में तथ्य प्रबलता से भरा था कोर्ट इन इंडिया थॉट्स ऑफ पाकिस्तान द प्रॉब्लम आफ दी रूपी तथा रानाडे गांधी जिंहा में उन्होंने न्याय राजनीति अर्थशास्त्र राजनीतिक समीक्षा जैसे विषयों पर अपनी लेखनी चलाई ।
जीवन भर अंबेडकर भारतीय समाज के पिछड़े वर्ग को जोरदार स्वर दिया 1936 में इस खातिर स्वतंत्र पार्टी में शामिल हुए संस्थापक सदस्य राजाजी चार्य के साथ बने। बाद में ना1942 में अनुसूचित जाति फेडरेशन लेबर पार्टी की ।विदेशों में घूमने के बावजूद उनका दिल हिंदुस्तानी ही था ।हिंदू धर्म में दिखावा जात पात से दुखी होकर अंबेडकर ने बुद्धम शरणम गच्छामि वाले बौद्ध धर्म को अपना लिया। इस खातिर उन्होंने भारत में भारतीय बौद्ध महासभा का भी गठन किया।
भीमराव अंबेडकर के जीवन का संक्षिप्त परिचय: -
जन्म तिथि 14 अप्रैल 1891
जन्म स्थान महू मध्य प्रदेश
माता पिता का नाम भीमाबाई, रामजी सकपाल
शिक्षा: - मुंबई कोलंबिया लंदन बीए मुंबई 1912 पीएचडी 1916 कोलंबिया कानून विधि लंदन 1923
राजनीतिक जीवन: 1924 - में बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन 1926 से 1934 तक बम्बई विधानसभा के सदस्य रहे ।1927 में भारतीय समाज के लोगों के अधिकारों के लिए सत्याग्रह किया ।1930,33 के बीच हुए राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भाग लिया। 1935 में तमाम भारतीय एस्प्रेसो वर्ग में से बौद्ध धर्म अपनाने को कहा ।गवर्नर जनरल एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य बने जुलाई 1942 से 46 में।
संस्था स्थापना तथा सक्रिय सदस्यता: - स्वतंत्र पार्टी (1936 )श्रमिक पार्टी अनुसूचित सूचित जाति फेडरेशन 1942।
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पुस्तकें: -कोर्ट इन इडिया एन्हीलेशन आफ कास्ट , थाट्स आफ पाकिस्तान , मि गाँधी ए मेन सिफिशन आफ पाकिस्तान, मिस्टर गांधी ऑफ द इंडियन स्टेट ,द प्रॉब्लम ऑफ रानाडे गांधी जिन्ना कॉस्ट इन इंडिया.
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